नजारा बिलकुल रेलवे स्टेगशनों जैसा था, गनीमत यह रही कि कोई भगदड़ नहीं मची, लोग मौके पर छत्तीस-अड़तालिस घंटों तक इंतजार करके घुटते रहे। कोई जवाबदेही लेने वाला नहीं था। न इंडिगो, न सरकार। लोग बस हाथ मलते रह गए। पूर्वोत्तर के गुवाहाटी से एक बुजुर्ग महिला पति के शव को अंतिम संस्कार के लिए अपने शहर ले जाने का इंतजार करती रही, कहीं किसी का नौकरी ज्वाइन करने का वक्त बीत गया, किसी युवा जोड़े को अपनी ही शादी के रिसेप्शन में हवाई अड्डे से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये मौजूद होना पड़ा। अफरातफरी, हायतौबा, धक्कामुक्की, लोगों की भागमभाग, चीख-चिल्लाहट, हजारों बैग-असबाब का लावारिस की तरह बिखरा होना, लाखों की तादाद में टिकटों का रद्द होना, हफ्तों पैसों और आसबाब का वापस न मिलना, यकीनन यह सब किसी कंपनी से बढ़कर समूची व्यवस्था या सरकार की जवाबदेही होनी चाहिए थी। यह सब नवंबर के आखिर से दिसंबर के पहले हफ्ते तक बदस्तूर जारी रहा, लेकिन कोई जिम्मेदारी लेने वाला नहीं था। सरकार तो सरकार, विपक्षी नेताओं की ओर से भी कुछेक बयान और सोशल मीडिया पर पोस्ट के अलावा खास कुछ नहीं आया।
आखिर में जब सुर्खियां चीखने लगीं, तो सरकार हरकत में आई, मगर बहुत देर से। वह भी सियासत की कड़वी छौंक से बरी नहीं थी। केंद्र में उड्डयन मंत्री, तेलुगुदेशम के राम मोहन नायडु दिसंबर के दूसरे हफ्ते में सक्रिय हुए तो नागरिक विमानन महानिदेशलय (डीजीसीए) को भी ढिलाई छोड़ सख्त कदम उठाने का एहसास हुआ। इंडिगो के कई अधिकारियों को हटाया गया। देखरेख के लिए इंडिगो के दफ्तरों में डीजीसीए के अधिकारी बैठाए गए। माल-असबाब और रिफंड वापसी के निर्देश दिए गए। उसकी उड़ानों में 10 फीसदी की कटौती की गई। हालांकि रियायतें फिर भी दी गईं। नए पायलट ड्यूटी नियमों को लागू करने की 1 दिसंबर को खत्म हुई समय-सीमा बढ़ाकर अगले साल फरवरी के मध्य में कर दी गई।

हाल तक या कहें नवंबर के आखिर तक, डीजीसीए न सिर्फ इंडिगो के कहे पर यकीन कर रहा था, बल्कि मेहरबान भी था, उसे शीतकालीन सत्र के लिए उड़ानों में 10 फीसदी बढ़ोतरी की इजाजत मिल चुकी थी। खबरों के मुताबिक, कथित तौर पर अक्टूबर-नवंबर में चार बैठकों में इंडिगो के अधिकारी डीजीसीए को भरोसा दिलाते रहे कि नए ड्यूटी नियमों के मुताबिक पायलटों की अतिरिक्त भर्ती का काम चल रहा है और सब कुछ ठीक हो जाएगा। वजह यह थी कि नए नियमों के मुताबिक पायलटों के लिए विश्राम की अवधि हफ्ते में 36 घंटे के बदले 48 घंटे कर दी गई थी और रात की लैंडिग छह के बदले दो तक सीमित कर दी गई थी। लेकिन अब पता चला कि इंडिगो के पायलटों की संख्या बढ़ने के बजाए घट गई थी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मानकों के पालन में खासकर यूरोपीय संघ के दबाव में नए नियम जनवरी 2024 में ही जारी किए गए थे और इस साल दो चरणों में लागू होने थे।
लेकिन पहले देखें, हुआ क्या। पिछले डेढ़ दशक (इंडिगो की पहली उड़ान 2006 में दिल्ली-इंफाल की थी) या ठीक-ठीक कहें, तो दशक भर में इंडिगो एकदम वक्त पर सस्ती, सुलभ उड़ान के दावे के साथ देश की सबसे बड़ी एयरलाइन बन गई। उसका घरेलू उड़ानों के करीब 65 फीसद बाजार पर कब्जा हो गया। उसके पास 400 से ज्यादा विमानों का बेड़ा है और मौजूदा संकट से पहले यह रोजाना लगभग 2,300 उड़ानें भरती रही है। 90 से अधिक घरेलू और करीब 45 अंतरराष्ट्रीय रूटों पर उसकी उड़ानों में हर रोज औसतन पांच लाख तक लोग सफर करते रहे हैं।
लेकिन दिसंबर आया तो पहले ही हफ्ते में उसके पंख बैठ गए, जो हर तरह के नियमों में ढील पर कायम थे। 4 से 6 दिसंबर के बीच करीब 2,900 से ज्यादा उड़ानें रद्द की गईं। 5 दिसंबर को ही 1,500 से ज्यादा उड़ानें रद्द हुईं। हजारों यात्री लाउंज में फंसे रहे। लोग दूसरी उड़ानों में टिकट तलाशने लगे, तो हवाई किराया आसमान छूने लगा। मौजूदा संकट से पहले, इंडिगो का बाजार मूल्य 25 अरब डॉलर (2.3 लाख करोड़ रुपये) था और वित्त वर्ष 25 में के बाद भारी मुनाफा 7,258 करोड़ रुपये रहा था। दिसंबर के पहले हफ्ते के संकट के बाद उसका बाजार कैप 19 फीसद घट गया और करीब 45,000 रुपये की गिरावट दर्ज हुई। तो, ऐसा क्या हुआ, जिससे इंडिगो का ऐसा बुरा हाल हो गया? क्या यह ढील दिए जाने और मनमानी ढंग से सिर्फ मुनाफा बटोरने का क्रम था, जो जरा-सी सख्ती पर भरभरा कर ढह गया? यह जवाबदेही सिर्फ इंडिगो की नहीं, डीजीसीए सहित उड्डयन के तमाम हलकों की भी होनी चाहिए।
सख्ती पर कैसे बिखरा शिराजा
लगातार कई हादसों और पश्चिमी तथा अंतरराष्ट्रीय मानकों के पालन की सख्ती के दबाव पर फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) तैयार किया गया, ताकि काम के घंटे तय हो सकें। पहले अमूमन ऐसे ही नियम थे, जिनमें नए दौर में कारोबारी सहूलियत के नाम पर छूट मिल गई थी। कई वर्षों से भारतीय पायलट यूनियनें कहती रही हैं कि थकान से जुड़े नियम पायलट के जीवन के अधिकार जैसे हैं। यूनियनें ये मामले लेकर अदालतों तक गईं। आखिरकार लंबी बातचीत और अदालती दखल के बाद डीजीसीए ने नए नियम तय किए। नए एफडीटीएल नियमों के तहत पायलटों के लिए साप्ताहिक विश्राम 36 घंटे से बढ़ाकर 48 घंटे कर दिए गए। हर पायलट के लिए रात में लैंडिंग छह से घटाकर दो कर दी गई। साथ ही, रात्रि पाली में किसी भी पायलट को लगातार दो रातों से अधिक के लिए ड्यूटी पर नहीं लगाया जा सकता। एयरलाइनों से पायलटों की थकान संबंधी त्रैमासिक रिपोर्ट पेश करने को कहा गया।

ये नए 22 एफडीटीएल नियम इस साल दो चरणों में लागू करने का फैसला किया गया। 1 जुलाई को 15 आसान नियम लागू किए गए, जिसमें पायलटों के लिए अधिकतम दैनिक उड़ान समय नौ घंटे से घटाकर आठ घंटे करना और अधिकतम दैनिक लैंडिंग की संख्या शामिल थी। दूसरा चरण 1 नवंबर को लागू हुआ, जिसमें बाकी सात नियम लागू किए गए, जिसमें रात की ड्यूटी पर सख्त सीमाएं और अनिवार्य साप्ताहिक आराम के समय थे।
नए एफडीटीएल नियम अचानक नहीं आए। ये नियम जनवरी 2024 में जारी किए जा चुके थे, जिससे एयरलाइंस को इसकी तैयारी के लिए करीब दो साल का समय मिला। पायलटों के हर महीने कम घंटे उड़ान भरने संबंधी नियम के मद्देनजर एयरलाइंस को उतनी ही संख्या में उड़ानों के लिए अधिक पायलटों की भर्ती की जरूरत थी।
कम बजट पर काम करने पर गर्व करने वाली इंडिगो के लिए नए एफडीटीएल कई जटिलताएं लेकर आए। उसका पूरा अर्थशास्त्र इस पर टिका है कि पायलटों के काम के घंटों में मामूली कमी से भी बड़ी संख्या में भर्ती की जरूरत थी। दूसरी एयरलाइनों ने व्यवस्था बना ली, लेकिन इंडिगो ऐसा नहीं कर पाई। कई जानकारों का कहना है कि इंडिगो के मालिकों को लग रहा था कि वे इतने रसूख और दबदबे वाले हैं कि आनाकानी करेंगे, तो डीजीसीए को झुकना पड़ेगा।
नवंबर से पहले कुछ हफ्तों में जो हुआ, उसे लापरवाही से ज्यादा सोची-समझी हीला-हवाली भी कहा जा सकता है। जैसे-जैसे दूसरे चरण को लागू करने की समय सीमा नजदीक आ रही थी, डीजीसीए ने एयरलाइनों से तैयारियों की रिपोर्ट मांगनी शुरू कर दी। इसके अलावा, एयरलाइनों को सर्दी के समय की भी अपनी योजनाएं बतानी होती हैं। यह बताना होता है कि कोहरे वाले महीनों में उड़ान का प्रबंध कैसे करेंगी। खबरों के मुताबिक, कथित तौर पर तैयारियों का जायजा लेने के लिए अक्टूबर और नवंबर के बीच कम से कम चार बैठकें हुईं। एक बार भी इंडिगो सहित किसी एयरलाइन ने पायलटों की कमी का कोई जिक्र नहीं किया। यही नहीं, नवंबर में तो इंडिगो ने डीजीसीए को बाकायदा औपचारिक तौर पर कहा कि उसके पास पर्याप्त क्रू है। डीजीसीए और सरकारी अधिकारी अब कह रहे हैं कि उन्हें गुमराह किया गया। नवंबर के आखिरी हफ्ते में व्यवस्था चरमराने लगी। चक्रवात दित्वाह ने चेन्नै और दक्षिणी तट के कुछ हिस्सों में तबाही मचाई, जिससे विमान और क्रू फंस गए। यहीं से हालत गड़बड़ा गई।
कायदे ही उलट
डीजीसीए के डेटा से पता चलता है कि इंडिगो ने नवंबर में 59,438 उड़ानें भरीं, और करीब 1,200 रद्द हुईं, जिनमें 750 एफडीटीएल और रोस्टर संबंधी कारणों से जुड़ी थीं। इंडिगो के 403 विमानों की योजना के बजाए केवल 344 विमान ही उड़ान भर रहे थे। समय की पाबंदी का आंकड़ा अक्तूबर के 84 फीसदी से गिरकर 67 फीसदी पर आ गया। व्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी। लेकिन 2 दिसंबर को रद्द घरेलू उड़ानों की संख्या 133 पर पहुंच गई। उस दिन उसका क्रू मैनेजमेंट सॉफ्टवेअर बैठ गया।

बदहालः मुंबई हवाई अड्डे पर फ्लाइट चार्ट देखते यात्री
इंडिगो का क्रू मैनेजमेंट सिस्टम अमेरिकी कंपनी जेपसेन का बनाया है। यह तमाम डेटा को ऑप्टीमाइज कर खुद रोस्टर तैयार कर देता है। अंदरूनी सूत्रों की मानें, तो इंडिगो बहुत कम क्रू बफर के साथ काम कर रहा था, जिससे विमानों का इस्तेमाल दिन में 11-12 घंटे तक हो गया। जब नए एफडीटीएल नियमों से पायलटों की संख्या घट गई, तो हिसाब-किताब गड़बड़ा गया। विशेषज्ञों का कहना है कि सॉफ्टवेयर फेल होने का एक कारण यह था कि कम पायलटों के साथ उड़ानें तय करने का काम लिया जा रहा था।
फिर, 3 दिसंबर से स्थिति ऐसी बिगड़ी कि कोई सब कुछ बैठने लगा। उस दिन, इंडिगो ने 257 घरेलू उड़ानें रद्द कीं। 4 दिसंबर को रद्द होने वाली उड़ानों की संख्या बढ़कर 611 हो गई। अंतरराष्ट्रीय उड़ान रद्द होने की संख्या 14 पर पहुंच गई। 5 दिसंबर को तो हद हो गई। 1588 घरेलू और 35 अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द हुईं। मात्र 706 उड़ानें उड़ सकीं। सीईओ पीटर एल्बर्स ने एक वीडियो जारी कर माफी मांगी और सिस्टम को ‘रीबूट’ करने का ऐलान किया। जब हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी फैल गईं और नारे लगने लगे, तो सरकार की नींद भी टूटी।
बात तो कुछ और भी
फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स के कैप्टन सी.एस. रंधावा ने कहा कि यह सब केवल इस संकट की वजह से ही नहीं है। उनके मुताबिक, समय पर सिस्टम अपडेट नहीं किया और नए नियमों के अनुसार स्टाफ भी नहीं रखा। नवंबर के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं। उस महीने इंडिगो की उड़ान रद्द करने की दर 1.9 प्रतिशत थी, जो औसत से अधिक है। बकौल रंधावा, ‘‘चीजें इसलिए नहीं गड़बड़ाईं कि नियम लागू किए गए, बल्कि इसलिए कि लागू ही नहीं किए गए। समस्या तब सामने आई जब सिस्टम पर दबाव पड़ा।’’ दरअसल एसोसिएशन ने नवंबर में दिल्ली हाइकोर्ट में एक याचिका दाखिल की कि दूसरे चरण के अमल के मामले में डीजीसीए से एयरलाइनों को छूट और राहत दी जा रही है।
जैसे ही इंडिगो जमीन पर बैठी, देश भर में हवाई किराए आसमान छूने लग गए। दिल्ली-पटना का किराया 39,000 रुपये, दिल्ली-बेंगलूरू का किराया 80,000 रुपये, दिल्ली-मुंबई का 60,000 रुपये, दिल्ली-श्रीनगर का 54,000 रुपये तक पहुंच गया। आखिरकार 6 दिसंबर को सरकार ने किराए पर सीमा लगाने के लिए दखल दिया। अफरातफरी के आलम ने कई हवाई अड्डों पर लोगों को सहूलियत के लिए रेलवे ने वहीं पर टिकट काउंटर लगा दिए।
केंद्रीय नागरिक विमानन मंत्री के. राम मोहन नायडू ने संसद में इस मामले को ‘मिस मैनेजमेंट’ बताया। उन्होंने कहा, ‘‘सभी एयरलाइनों ने बदलाव की मांग की थी। छूट दी गई थी। यह सब इंडिगो के कुप्रबंधन और रोस्टर की गड़बड़ी के कारण हुआ है।’’ डीजीसीए ने सर्दियों में इंडिगो की उड़ानें 10 फीसदी कम कर दीं और एयरलाइन के गुरुग्राम दफ्तर में रोजमर्रा की निगरानी के लिए अपने अधिकारियों को बैठा दिया।

काउंटर पर पूछताछ
जो नियम सभी एयरलाइनों के लिए बना था, आखिर उसने इंडिगो को क्यों जमीन पर ला पटका? क्योंकि इंडिगो दूसरी एयरलाइनों जैसी नहीं है। पिछले डेढ़ दशक में यह एयरलाइन विमानन उद्योग में सबसे अलग रही है। पिछले दो दशकों में जब दूसरी एयरलाइनें बंद हो गईं या एक से दूसरे पुनर्गठन में उलझती गईं, तो इंडिगो लगातार क्षमता, विमान मार्ग और मुनाफे के पंख फैलाती रही। इसके दबदबे का कारण खर्च पर नियंत्रण रहा। जहां इंडिगो ने सर्दियों की शुरुआत 400 से अधिक विमानों से की, लेकिन उसके पास उड़ान के लिए 5,085 पायलट ही थे। इंडिगो का मॉडल बड़े पैमाने और कम लागत के लिहाज से विकसित किया गया था, इसलिए उसमें सब कुछ एकदम सही से चलना बेहद जरूरी था। ज्यादा लोड फैक्टर, लंबी ड्यूटी के दिन, व्यस्त शेड्यूल और कम से कम ढील। जब थकान के नए नियमों ने पायलटों के घंटे घटा दिए, तो एयरलाइन के पास इस झटके से बचने का कोई रास्ता नहीं था।
विमानन हलके में दो-टूक बात कही जा रही है, इंडिगो को लगा कि नियामक मान जाएगा। कुछ हद तक, उसने ऐसा किया भी और एयरलाइन को नए नियम लागू करने के लिए फरवरी तक छूट दे दी। इंडिगो के बोर्ड में रसूखदार पूर्व अधिकारी, प्रशासक और उड्डयन क्षेत्र के बड़े नाम शामिल हैं, जिससे उसका दबदबा बढ़ जाता है।
इंडिगो के चेयरमैन विक्रम मेहता ने 6 दिसंबर को एक वीडियो बयान में हर प्रभावित यात्री से माफी मांगी। उन्होंने कहा, ‘‘पिछले हफ्ते गड़बड़ियां जानबूझकर नहीं हुईं, बल्कि कई आंतरिक और अप्रत्याशित बाहरी वजहों से हुईं। इसमें मामूली तकनीकी खामियां, सर्दियों के लिए शेड्यूल परिवर्तन, प्रतिकूल मौसम, एविएशन सिस्टम में भीड़ बढ़ने और नए नियमों पर अमल शामिल था।’’ उन्होंने यह भी कहा कि बोर्ड ‘‘बाहरी तकनीकी विशेषज्ञों की मदद लेगा’’ और समस्या की मूल वजहें पता करेगा।
दो का एकाधिकार
महामारी के बाद इस क्षेत्र में जबरदस्त वृद्धि हुई है। यात्रियों की संख्या 2022 में 12.3 करोड़ से बढ़कर 2024 में 16.1 करोड़ तक पहुंच गई। लेकिन दो ही ऑपरेटर हैं, जिनके पास कुल मिलाकर लगभग 700 हवाई जहाज हैं। नागरिक विमानन मंत्री नायडू ने कहा है कि यह हिस्सा इतना बड़ा है कि पांच और एयरलाइंस मजे से उड़-चल सकती हैं। पिछले 10 साल में नई एयरलाइंस शुरू कम हुई और बंद ज्यादा हुई हैं; वित्तीय हिचकोलों के कारण एक दर्जन से अधिक एयरलाइंस बंद हो गई हैं। ज्यादा झटका किंगफिशर एयरलाइंस से लगा, जो भारी कर्ज के कारण दिवालिया हो गई थी; कभी मार्केट लीडर रही जेट एयरवेज के पंख टूट गए; और गो फर्स्ट ने भी दिवालिया होने का ऐलान कर दिया।
हालांकि यह कहा जा सकता है कि इंडिगो और एयर इंडिया ने दूसरों के लिए मार्केट एक्सेस को रोककर ‘डुओपॉली’ नहीं बनाई। लेकिन यह दबदबा अब कीमत वसूलने लगा है और लोगों को परेशान करने लगा है।

गड़बड़ी तो हुईः उड्डयन मंत्री के साथ इंडिगो सीईओ पीटर एल्बर्स (बाएं)
इंडिगो के भीतर फ्लाइट क्रू के आंतरिक रोस्टर और ड्यूटी शेड्यूलिंग में गंभीर गड़बड़ी हुई, जिसने पूरे नेटवर्क में चेन रिएक्शन पैदा किया, इसके अलावा शीतकालीन शेड्यूल, खराब मौसम से हालात बिगड़े
के. राम मोहन नायडु, नागरिक उड्डयन मंत्री

यह संकट कुछेक घरानों की मोनोपॉली कायम करने का सरकारी नीतियों का नतीजा है। सबसे हैरानी की बात तो यह है कि पूरा सिस्टम बैठ गया और कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं है
मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस अध्यक्ष, एक्स पर पोस्ट में