साल था 2000 का। 1972 की फिल्म समाधि का गाना ‘कांटा लगा’ का रीमिक्स चार्टबस्टर बन गया। लता मंगेशकर के इस खिलंदड़ी गाने पर थोड़े तेज संगीत के साथ एक और बात प्रसिद्ध हुई, एक लड़की जिसने म्यूजिक एल्बम में गाने पर लिप सिंक किए। नाम था शेफाली जरीवाला। इस रीमिक्स से शेफाली ऐसी मशहूर हुईं कि लोग उस पुराने गाने पर अदाओं के साथ नाचने वाली असली कलाकार आशा पारेख को भूल गए और शेफाली ही असली ‘कांटा गर्ल’ बन गईं। बेशक, उसके बाद उन्हें कोई दूसरी बड़ी सफलता नहीं मिली, लेकिन वह लोगों के दिमाग में बसी रह गई। 27 जून को जब तमाम टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर उनकी मौत की खबर आई, तो भरोसा करना कठिन था कि 42 साल की ‘कांटा गर्ल’ दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं। शुरुआत में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौत की परतें जब खुलीं, तो उसके पीछे वह भयावह सच्चाई निकली जो अब सेलेब्रिटियों की दुनिया से निकल कर आम लोगों को भी अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है। बुढ़ापा रोके रखने की हर संभव कोशिश। उम्र चाहे कुछ भी हो जाए, चेहरा 16 साल की कमनीय मासूमियत वाला ही होना चाहिए। नाक तीखी हो, आंखें बड़ी और चेहरे का नूर ऐसा जैसे चौहदवीं के चांद ने खुद चमक तोहफे में दी हो।
कोई यह न सोचे की शेफाली जैसी फिल्मी, मॉडर्न, बिंदास शख्सियतों पर ही हरउम्र जवां दिखने का जुनून तारी है। शेफाली बेशक यह सब रही होंगी, पर वे आम लोगों की तरह व्रती भी थीं। मृत्य के दिन वे सत्यनारायण व्रत पर थीं। तो, मॉडर्न और परंपरा का अजीब सा मिश्रण बनते जा रहे समाज के शौक भी बाजार ही तय करने लगा है। फिर नई पीढ़ी तो पूरा का पूरा बाजार और इंटरनेट का घोल बन गई है।
नियमित रूप से अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर वर्कआउट की तस्वीरें साझा करने वाली शेफाली के कमरे से बाद में जांच पर कई तरह की एंटी-एजिंग दवाएं मिलीं। पुलिस को उनके कमरे में ग्लूटाथियोन इंजेक्शन, विटामिन सी टैबलेट और कई तरह की दवाइयां मिलीं, जो त्वचा में चमक पैदा करती हैं। कहा जा रहा है कि वे पिछले आठ साल से इस तरह की दवाएं ले रही थीं। चिकित्सकों का भी मानना है कि इस तरह की दवाओं के अनियंत्रित इस्तेमाल के कारण उनकी मृत्य हुई। शेफाली की मृत्यु ने कई तरह के सवाल खड़े किए। सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि क्या बेदाग, उम्र से परे और फिट दिखने की कीमत जिंदगी से बढ़कर है? लेकिन इन सवालों से परे देश के हर युवा, अधेड़, कुछ बूढ़ों को भी उम्र छुपाने का छलांग मारता बाजार दावत दे रहा है।
‘जवानी’ बेचता बाजार
एंटी-एजिंग क्रीम, बोटॉक्स, फिलर्स और प्लास्टिक सर्जरी का बाजार दुनिया में अरबों रुपये तक पहुंच चुका है। भारत में भी उसकी उछाल तेज है। शेफाली की मृत्यु की वजह इसी बाजार की दवाओं और थेरेपीज का इस्तेमाल बताया जा रहा है। शेफाली व्रत या उपवास के दौरान भी ग्लूटाथियोन इंजेक्शन ले रही थीं। ग्लूटाथियोन का काम शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स को कम करना है। जब फ्री रेडिकल्स की मात्रा घटती है, तो शरीर में कॉलेजन का उत्पादन बढ़ता है। इससे त्वचा की चमक और लचीलापन बढ़ता है, झुर्रियां कम होती हैं और व्यक्ति जवान दिखाई देता है। असल में, शरीर जो कॉलेजन बनाता है, 30 वर्ष की उम्र के बाद उसकी मात्रा घटने लगती है। ऐसे में कई युवा एजलेस दिखने के लिए एंटी-एजिंग उत्पादों की ओर रुख करते हैं।
आर्टेमिस हॉस्पिटल (मुंबई) की कंसल्टेंट कॉस्मेटोलॉजिस्ट डॉ. शिफा यादव ने आउटलुक को बताया, ‘‘रेटिनोइड्स, बोटॉक्स, फिलर्स, लेजर और माइक्रो-निडलिंग जैसी थेरेपी और दवाएं आम तौर पर एंटी-एजिंग उपचार में इस्तेमाल की जाती हैं। उनका चलन इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि पहले जवान दिखने के लिए सर्जरी की जाती थी, लेकिन अब दवाओं के जरिए ही शरीर की प्रकृति को बदलने की कोशिश की जा रही है।’’ क्या एंटी-एजिंग दवाएं वाकई काम करती हैं? उनका कहना है, ‘‘कॉलेजन के बढ़ने से कुछ समय के लिए त्वचा स्मूथ और टाइट हो जाती है। कोई भी ट्रीटमेंट उम्र को घटा नहीं सकता है।’’
युवा ही नहीं, अधेड़ उम्र की महिलाएं और पुरुष भी एंटी-एजिंग दवाओं का इस्तेमाल तेजी से कर रहे हैं। मार्केट रिसर्च फ्यूचर के विश्लेषण के अनुसार, भारत का एंटी-एजिंग सर्विसेज बाजार 2023 में करीब 2,860 करोड़ रुपये का था। 2024 में बढ़कर करीब 3,330 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
यह बाजार 2035 तक लगभग 8,030 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। 2025 से 2035 के बीच इस इंडस्ट्री की वार्षिक औसत वृद्धि दर लगभग 8.33 प्रतिशत रहने की संभावना है। सर्विसेज के अलावा अगर एंटी-एजिंग प्रोडक्ट को जोड़ें तो भारत का समग्र एंटी-एजिंग बाजार 2024 में लगभग 20,600 करोड़ रुपये का आंका गया है।
वैश्विक मार्केट रिसर्च फर्म आइएमएआरसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में वैश्विक एंटी-एजिंग बाजार का आकार लगभग 6.28 लाख करोड़ रुपये था, जो 5.5 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़कर 2033 तक 10.20 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
शेफाली जरीवाला
इस दौरान मिनिमलिस्ट, ओ 3+, लॉरियल और एस्टी लॉडर जैसे ब्रांड रेटिनॉल, हयालूरोनिक एसिड, पेप्टाइड्स और कॉलेजन से भरे सीरम, क्रीम और सप्लीमेंट बेचकर मोटी कमाई कर रहे हैं। यह उछाल केवल उत्पादों तक सीमित नहीं है। 2024 की इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ एस्थेटिक प्लास्टिक सर्जरी रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘2024 में भारत में 12.9 लाख ब्यूटी ट्रीटमेंट हुए। इसमें करीब 6 लाख नॉन-सर्जिकल ट्रीटमेंट जैसे बोटॉक्स, हयालूरोनिक एसिड फिलर और केमिकल पील्स शामिल थे। 2023 की तुलना में ये आंकड़े 7 प्रतिशत बढ़े हैं।’’
ब्यूटी ट्रीटमेंट के मामले में भारत दुनिया के टॉप 10 देशों में शामिल है। राइनोप्लास्टी, लिपोसक्शन और स्कार रिवीजन जैसी सर्जिकल प्रक्रियाएं भी बढ़ रही हैं। खास बात यह है कि भारत अब धीरे-धीरे इन ट्रीटमेंट का हब बनता जा रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों से लोग ट्रीटमेंट लेने भारत आ रहे हैं, क्योंकि भारत में इनके ट्रीटमेंट यूरोपीय देशों की तुलना में 70 प्रतिशत तक सस्ते हैं। यानी विदेशों में जिस ट्रीटमेंट की कीमत एक लाख रुपये हो, वह भारत में 30 हजार रुपये में ही उपलब्ध है।
डॉ. शिफा यादव बताती हैं कि भारत में एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट की कीमतें क्या हैं। उनके मुताबिक, ‘‘बोटॉक्स की एक यूनिट की कीमत 300 रुपये से 800 रुपये के बीच होती है और एक सेशन की कीमत 8,000 रुपये से 21,000 रुपये तक हो सकती है। डर्मल फिलर की कीमत प्रति सिरिंज 8,000 रुपये से 30,000 रुपये तक होती है। थ्रेड लिफ्ट की लागत 10,000 रुपये से 80,000 रुपये के बीच हो सकती है। वहीं, एनएडी प्लस IV ड्रिप की कीमत प्रति सेशन 35,000 रुपये से 50,000 रुपये तक हो सकती है। ये कीमतें क्लिनिक, इलाज वाले हिस्से, सेशनों की संख्या और डॉक्टर के अनुभव पर निर्भर करती है।’’
एलाइड मार्केट रिसर्च रिपोर्ट, 2024 के मुताबिक, ‘‘एंटी-एजिंग उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री 2030 तक सालाना 9.4 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। इसमें सबसे बड़ा हाथ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का है।’’ युवाओं में इन उत्पादों का क्रेज सबसे ज्यादा है। कई ब्रांड युवाओं को ध्यान में रखकर प्रोडक्ट लॉन्च करते हैं और उन्हें लुभाने के लिए विज्ञापन भी निकालते हैं।
दिल्ली में रहने वाले 24 वर्षीय परवेज आलम पिलग्रिम और मिनिमलिस्ट कंपनी के कई प्रोडक्ट इस्तेमाल कर चुके हैं। वे आउटलुक से कहते हैं, ‘‘मुझे अपने शरीर का ध्यान रखना अच्छा लगता है। यह मेरे लिए खुद से प्यार करने जैसा है। पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा था कि मेरा चेहरा ड्राई है। मैंने ऑनलाइन मॉइस्चराइजर सर्च किया। उसके बाद मुझे और कई प्रोडक्ट के विज्ञापन दिखे। उन्हें देखकर मैंने 2 प्रतिशत सैलिसिलिक एसिड, विटामिन बी 5 और नाइसिनामाइड जैसे उत्पाद खरीदे।’’
परवेज जैसे लाखों युवा इन विज्ञापनों से प्रभावित होकर अपनी उम्र से भी ज्यादा जवान दिखने की चाह रखते हैं। 2024 की यूरोमोनिटर की एक सर्वे में पाया गया कि 74 प्रतिशत भारतीय ‘जेन जी’ सुबह-शाम स्किनकेयर रुटीन का सख्ती से पालन करती है।
बाजार बेलगाम
शेफाली जरीवाला की मृत्यु के बाद खुलासा हुआ कि वे बिना डॉक्टर की सलाह के एंटी-एजिंग दवाओं का इस्तेमाल करती थीं। आखिरी बार वे किसी अस्पताल में करीब चार महीने पहले गई थीं। इस दौरान वे लगातार ग्लूटाथियोन इंजेक्शन खुद ही लेती रहीं। ग्लूटाथियोन भारत के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन द्वारा कॉस्मेटिक उपयोग के लिए स्वीकृत नहीं है। फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से भी उसको मंजूरी नहीं मिली है। फिर भी, यह ऑनलाइन या सैलून में खुलेआम बिकता है। जानकारों का कहना है कि आने वाले समय में ऐसे मामले और तेजी से बढ़ सकते हैं। भारत में इसको नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस नियमन नहीं है। कोई भी पैरासिटामोल की तरह एंटी-एजिंग दवाएं ‘ओवर द काउंटर’ खरीद सकता है।
मुंबई में सैफी हॉस्पिटल के डर्मेटालॉजिस्ट डॉ. गुलरेज तैयबखान ने आउटलुक से कहा, ‘‘हमारे क्लिनिक में कई ऐसे मरीज आते हैं, जिनके चेहरे पर मुंहासे या दाग होते हैं। हमारे यहां आने से पहले वे किसी इन्फ्लुएंसर की सलाह पर कई तरह की दवाएं ले चुके होते हैं।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘स्वास्थ्य सेवा और मरीजों का इलाज अब सिर्फ विशेषज्ञों के हाथ में नहीं रहा। अब इसका एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों के हाथ में चला गया है। टेक्नोलॉजी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के तेजी से बढ़ने के कारण अब हर किसी के पास अपनी बात कहने का माध्यम है। जो जितना अच्छा अपना प्रचार करता है, उसकी बात उतनी ज्यादा सुनी जाती है। डॉक्टरों के साथ दिक्कत यह है कि हमें अपने या किसी कंपनी के उत्पाद को सार्वजनिक रूप से प्रचारित करने की पाबंदी है, जबकि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं होता। ऐसे में कई लोग उनकी गलत सलाह से प्रभावित हो जाते हैं।’’ सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ही नहीं, बल्कि भारत के सेलिब्रिटी लोगों का भी एंटी-एजिंग ट्रेंड और ‘टॉक्सिक’ स्किनकेयर को बढ़ावा देने में बड़ा हाथ है। कई अभिनेत्रियों ने सर्जरी के जरिए अपने नैन-नक्श बदल लिए हैं। अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने अपनी शुरुआती फिल्म अंदाज से पहले नाक की सर्जरी कराई थी। खबरों के अनुसार अंदाज फिल्म के निर्माता सुनील दर्शन ने उन्हें इसकी सलाह दी थी।
सर्टिफाइड प्लास्टिक सर्जन डॉक्टर मोहित पांचाल के अनुसार, प्रियंका के अलावा दीपिका पादुकोण, नोरा फतेही और कैटरीना कैफ जैसी अभिनेत्रियों ने अपने चेहरे को सुंदर और जवान दिखाने के लिए सर्जरी कराई है। सर्जरी के अलावा, सेलिब्रिटी एंटी-एजिंग उत्पादों को भी खुद प्रमोट करते हैं। दीपिका पादुकोण का स्किनकेयर ब्रांड 82ई भले ही खुद को एंटी-एजिंग ब्रांड न कहता हो, लेकिन उसके कुछ उत्पादों में ऐसे तत्व शामिल हैं, जो त्वचा को जवां बनाए रखने और उम्र के असर को कम करने का दावा करते हैं। इसमें कैटरीना कैफ के ब्यूटी ब्रांड को भी गिना जा सकता है।
माना जाता है कि सलमान खान, शाहरुख खान और अक्षय कुमार जैसे अभिनेता भी अपनी उम्र कम दिखाने के लिए बोटॉक्स और फेसलिफ्ट करवा चुके हैं। अनुष्का शर्मा के बारे में भी अफवाह है कि उन्होंने वैम्पायर फेशियल और माइक्रो-निडलिंग करवाए हैं, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन डॉ. मोहित पांचाल मानते हैं कि अक्सर सेलेब्रिटी ऐसी बातों का खंडन करते हैं, जबकि यह सच होता है।
एंटी-एजिंग प्रोडक्ट को लेकर कई बार चेतावनी जारी की जा चुकी है। 2024 में यूएस-सीडीसी ने नकली बोटॉक्स के कारण बोटुलिज्म जैसे लक्षणों की चेतावनी दी थी। यह दुर्लभ लेकिन गंभीर बीमारी है, जो नर्वस सिस्टम पर असर डालती है। बोटॉक्स को अमेरिका में ‘लंचटाइम ट्रीटमेंट’ कहा जाता है, क्योंकि उसे कराने में मात्र 10 मिनट का समय लगता है। भारत में 2006 में इसकी मंजूरी मिली थी, हालांकि शुरुआत में इसका इस्तेमाल केवल 250 प्रशिक्षित डॉक्टरों तक सीमित था। लेकिन वर्तमान में कितने डॉक्टर इसका इस्तेमाल करते हैं, इसके आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
बोटॉक्स का प्रचलन अब कितना आम हो गया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गूगल पर बोटॉक्स सर्च करने पर सैकड़ों लिंक मिल जाते हैं, जहां इसे एक क्लिक पर घर मंगवाया जा सकता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इसकी बिक्री बिना किसी नियमन के धड़ल्ले से हो रही है।
जवानी का सौदा
जवान दिखने का जुनून अब धीरे-धीरे मानसिक बोझ का रूप लेता जा रहा है। हर वक्त खुद को सुंदर और परफेक्ट दिखाने की कोशिश ऐसी थकान को जन्म दे रही है, जिसे मनोविज्ञान की भाषा में ‘फिल्टर थकान’ कहा जाता है। यानी ऐसी मानसिक थकावट, जो लगातार बनावटी सुंदरता बनाए रखने की कोशिश से पैदा होती है। एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट, सर्जरी और फेयरनेस क्रीम्स के अलावा चेहरे को एक सेकंड में ‘फिल्टर’ कर देने वाले ब्यूटी ऐप्स का चलन इन दिनों काफी बढ़ गया है। ये ऐप्स चंद सेकंड में झुर्रियां मिटा देते हैं, लेकिन साथ ही वास्तविकता से दूर ले जाते हैं। शायद यही दबाव उन्हें एंटी-एजिंग दवाओं की ओर धकेलता है। भले ही इन ब्यूटी ऐप्स का कोई शारीरिक नुकसान न हो हो लेकिन मानसिक स्तर पर इसके गंभीर प्रभाव हैं। चीन में हुए एक अध्ययन के अनुसार, 60 प्रतिशत विश्वविद्यालय के छात्र अपनी शारीरिक बनावट से असंतुष्ट हैं। युवाओं में ‘बॉडी डिस्मॉर्फिया’ जैसे नए मानसिक विकार उभर रहे हैं। अमेरिकी किशोर अब खुद को हमेशा ‘कंटेंट रेडी’ रखना चाहते हैं। सेलिब्रिटी लोगों पर तो यह दबाव और ज्यादा होता है। उन्हें अपने पेशे में प्रासंगिक बने रहने के लिए उम्र को मात देनी पड़ती है। इस तरह की दवाओं के बारे में इंडियन जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी ने चेतावनी जारी की है कि इन दवाओं का अनियमित या बिना चिकित्सक के परामर्श के इस्तेमाल हृदय संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है। आउटलुक ने जितने भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात की, उन्होंने एक स्वर में कहा कि जो लोग एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट का इस्तेमाल करते हैं, उनका तर्क रहता है कि ये केवल एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन और पॉलीफेनॉल हैं, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माने जाते हैं। हालांकि, लोग यह नहीं समझते कि किसी भी अच्छी चीज की अति बुरी होती है। कोई भी चिकित्सकीय प्रक्रिया बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं की जानी चाहिए। अगर कोई डायबिटीज का शिकार व्यक्ति एंटी-एजिंग इंजेक्शन लेता है, तो उसके घाव भरने में देरी हो सकती है। यहां तक कि गंभीर संक्रमण भी हो सकता है। इंजेक्शन का असर कई बार रक्तचाप को अनियंत्रित कर देता है, जो मृत्यु का कारण बन सकता है।
बढ़ रहा सौंदर्य उत्पादों का अंधाधुन प्रयोग
कम उम्र में हृदयघात से मृत्यु के पीछे इस तरह की दवाओं का भी हाथ माना जा रहा है। उनमें बिग बॉस में आने वाले सिद्धार्थ शुक्ला भी शामिल हैं। उनके बारे में भी खबरें थीं कि वे जिम करते थे और अत्यधिक प्रोटीन पाउडर लेते थे। भारतीय हिंदी सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री श्रीदेवी की मृत्यु के बाद भी यह बात खूब उछली थी कि वे छरहरी रहने के लिए नाममात्र का खाना खाती थीं और एंटी एजिंग दवाएं ले रही थीं।
यही वजह है कि अब इन दवाओं और उनके इस्तेमाल के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं। भारतीय अभिनेत्री मल्लिका शेरावत कई बार प्राकृतिक सौंदर्य की वकालत और बोटॉक्स से बचने की सलाह दे चुकी हैं। विदेशों में भी कई सेलिब्रिटीज ‘प्राकृतिक बनाम कृत्रिम सुंदरता’ जैसे विषयों पर खुलकर बोल रहे हैं। अमेरिकी अभिनेत्री जेंडाया ने मोडेलिस्ट मैगजीन के एक फोटोशूट में अपने चेहरे और शरीर की फोटोशॉपिंग के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने इंस्टाग्राम पर असली और संपादित तस्वीरे साझा कीं और कहा कि इस तरह की छवियां महिलाओं को आत्म-संदेह में डालती हैं। उनका मानना था कि अवास्तविक सौंदर्य मानकों को बढ़ावा देना गलत है। उनकी प्रतिक्रिया के बाद, मैगजीन ने संपादित तस्वीरों को हटा दिया और बिना फिल्टर वाली तस्वीरें प्रकाशित कीं। हालांकि, इस तरह का साहसिक कदम फिलहाल के समय तो अपवाद है।
हकीकत यह है कि सुंदरता को लेकर अवैज्ञानिक दावे, सौंदर्य उत्पादों के लिए कमजोर कानून और सोशल मीडिया पर फैले बनावटी सौंदर्य के आदर्श खतरनाक ट्रेंड को जन्म दे चुके हैं। ऐसे में अब समय आ गया है कि लोगों को खुद से यह पूछना होगा कि क्या कृत्रिम सुंदरता के लिए जीवन कुर्बान किया जा सकता है? शेफाली जरीवाला की मृत्यु एक चेतावनी है और सबक भी। इससे जितनी जल्दी सीखा या समझा जाए, उतना ही बेहतर।