हर बार की तरह कुछ चौंकाने वाले विशेषणों और कुछेक उद्धरणों से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मोदी-2.0 सरकार के मोटे तौर पर आखिरी संपूर्ण बजट से पहले वाले बजट में अमृत काल (यानी शुभ मुहुर्त) का आह्वान उसी तरह करती लगीं, जैसे एक दिन पहले आए आर्थिक सर्वेक्षण में काव्य-कल्पना के आधार पर आकलन दिखा। सर्वेक्षण चार-पांच संभावनाओं, हकीकत नहीं, पर अपना हिसाब-किताब तैयार करता है। मसलन, कच्चे तेल की कीमत 70-75 डॉलर प्रति बैरल रहे, इंद्रदेव मेहरबान रहें वगैरह-वगैरह, तो देश की अर्थव्यवस्था में वैसे नतीजे दिखेंगे, जबकि उसी दिन कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत करीब 90 डॉलर थी और जानकारों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में सैकड़ा डॉलर से ऊपर ही जा सकती है। तो, बजट भी भला हकीकत को क्योंकर ध्यान में रखता।
हकीकत तो यह है कि देश की अर्थव्यवस्था पांच वर्षों से सुस्त है, बेरोजगारी चार दशकों के चरम पर है, मध्य वर्ग और निम्न वर्ग की कमाई घट रही है और महंगाई लगातार ऊंची बनी हुई है। उच्च मध्य वर्ग और अमीर वर्ग को छोड़ दें तो बाकी सब संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर बजट से देश की 90 फीसदी आबादी राहत की उम्मीद कर रही थी तो कुछ गलत नहीं। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-23 के बजट में इतने बड़े वर्ग को मायूस किया है। इस वर्ग के लिए आवंटन मौजूदा साल के बराबर है या मामूली बढ़ाया गया है। महंगाई को समायोजित करें तो अनेक मदों में आवंटन इस साल से कम हो जाता है। इसके बावजूद वित्त मंत्री ने बजट को अगले 25 वर्षों के विकास का ब्लूप्रिंट बताया है।
महामारी के दौर में कृषि ने ही अर्थव्यवस्था को सहारा दिया, लेकिन उसके लिए बजट में ज्यादा कुछ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कही थी, लेकिन वित्त मंत्री ने इसका जिक्र तक नहीं किया। कृषि मंत्रालय का बजट 1.18 लाख करोड़ से बढ़ाकर 1.24 लाख करोड़ किया गया है, लेकिन महंगाई समायोजित करें तो रकम बराबर है। इसमें भी 68,000 करोड़ रुपये किसान सम्मान निधि के लिए हैं। सरकार फसल बीमा की बात तो करती है, लेकिन उसके लिए आवंटन घटा है। खाद्य सब्सिडी 2.86 लाख करोड़ से घटाकर 2.06 लाख करोड़ की गई है। यानी मुफ्त अनाज योजना आगे बंद हो सकती है। उर्वरक सब्सिडी भी 1.40 लाख करोड़ से घटाकर 1.05 लाख करोड़ की गई है। यानी चुनाव के बाद इनके दाम बढ़ सकते हैं। 2019-20 के बजट में जीरो फार्मिंग की बात कहने वाली वित्त मंत्री ने इस बजट में नेचुरल फार्मिंग की बात कही है।
अगले साल 6.9 फीसदी राजकोषीय घाटे का प्रावधान है। इसके लिए सरकार बाजार से 14.95 लाख करोड़ रुपये कर्ज जुटाएगी। इससे बाजार में कर्ज महंगा होना लाजिमी है। यानी आने वाले दिनों में महंगाई और बढ़ सकती है। थोक महंगाई पहले ही दहाई अंकों में चल रही है, खुदरा महंगाई भी रिजर्व बैंक की छह फीसदी की ऊपरी सीमा के आसपास है। ज्यादा महंगाई से लोगों की खर्च करने की क्षमता घटेगी।
बजट प्रावधानों से तत्काल खपत बढ़ाने के लिए लोगों के हाथ में पैसा नहीं आएगा। इसलिए कंज्यूमर गुड्स कंपनियों को तत्काल मांग बढ़ने की उम्मीद नहीं है। दिसंबर तिमाही में वॉल्यूम के लिहाज से एफएमसीजी उत्पादों की बिक्री में 1.8 फीसदी गिरावट आई थी। दाम बढ़ने के कारण खासकर ग्रामीण क्षेत्र में मांग घटी है।
वैसे, महंगाई को लेकर बजट में एक रोचक विरोधाभास है। अगले वित्त वर्ष में नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट 11.1 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। आर्थिक सर्वेक्षण में 8-8.5 फीसदी रियल जीडीपी ग्रोथ का अनुमान है। रियल ग्रोथ में महंगाई दर जोड़ने पर नॉमिनल ग्रोथ बनती है। यानी सरकार महंगाई दर ढाई से तीन फीसदी मानकर चल रही है जबकि यह साढ़े पांच फीसदी के आसपास है।
महामारी के कारण करोड़ों बच्चों की पढ़ाई पर असर हुआ है। ऐसे छात्रों की मदद के लिए ई-विद्या स्कीम की घोषणा की गई है। पहली से 12वीं कक्षा तक ‘एक क्लास-एक टीवी चैनल’ योजना के तहत करीब 200 टीवी चैनल शुरू किए जाएंगे। सवाल है कि दूरदराज के इलाकों में कितने घरों में टीवी है।
पूंजीगत खर्च 5.54 लाख करोड़ से 35 फीसदी बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये करने को छोड़ दें, तो बजट में कोई बड़ी घोषणा नहीं दिखती। केंद्र और राज्यों का कुल पूंजीगत खर्च 10.7 लाख रुपये होता है जो जीडीपी का 4.1 फीसदी होगा। लेकिन अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “मौजूदा वित्त वर्ष में तो नवंबर तक आधा पैसा भी खर्च नहीं हुआ। जब हम 5.5 लाख करोड़ ही खर्च नहीं कर पा रहे हैं तो 7.5 लाख करोड़ कैसे खर्च करेंगे।” यही नहीं, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री के मुख्य आर्थिक सलाहकार अमित मित्रा के मुताबिक, ऐसी शर्तें जोड़ी गई हैं कि पूंजीगत खर्च में राज्यों को हिस्सेदारी निभाने में मुश्किल पेश आएगी। वैसे भी इस खर्च में ज्यादातर बड़े इन्फ्राट्रक्चर प्रोजेक्ट हैं। इस प्रावधान से उद्योगों को फायदा होगा। सोलर मॉड्यूल के लिए पीएलआइ स्कीम के तहत 19,500 करोड़ आवंटित किए गए हैं। देश के दो बड़े उद्योग घराने, अंबानी और अडाणी सोलर में बड़ा निवेश करने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। इन प्रावधानों के चलते ही पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इसे पूंजीवादी बजट बताया है।
गति शक्ति योजना से माल ढुलाई सस्ती होने की उम्मीद की जा सकती है। अभी भारत में लॉजिस्टिक का खर्च जीडीपी के 14 फीसदी के आसपास है, जो विकसित देशों में आठ से नौ फीसदी है। 25,000 किलोमीटर सड़कें बनने से कंस्ट्रक्शन उपकरण और कॉमर्शियल वाहन बनाने वाली कंपनियां लाभान्वित होंगी। स्टील और सीमेंट की भी मांग बढ़ेगी। स्किलिंग, कृषि, शिक्षा, मेंटल हेल्थ, लॉजिस्टिक्स और एमएसएमई क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा से टेक्नोलॉजी कंपनियों को ग्रोथ मिलेगी।
अनलिस्टेड कंपनियों के लिए लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स पर सरचार्ज 37.5 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी किया गया है। टैक्स की दर 20 फीसदी बनी रहेगी। पहले कुल टैक्स 28.5 फीसदी बनता था, अब यह 24 फीसदी के आसपास रहेगा। इससे स्टार्टअप संस्थापकों, एम्पलाई स्टॉक ऑप्शन रखने वालों और अन्य निवेशकों को फायदा होगा। यानी इसमें भी फायदा उच्च मध्य वर्ग और अमीर वर्ग को है।
क्रिप्टो करेंसी और डिजिटल ऐसेट में मुनाफे पर 1 अप्रैल से 30 फीसदी टैक्स लागू होगा। इसलिए 31 मार्च तक इनमें बिकवाली बढ़ सकती है। टैक्स लगाना इस बात का संकेत है कि रिजर्व बैंक के विरोध के बावजूद अब इन पर रोक नहीं लगने जा रही है। बल्कि अगले साल रिजर्व बैंक डिजिटल रुपया जारी करेगा।
2020 में कोविड-19 महामारी से प्रभावित औद्योगिक इकाइयों की मदद के लिए इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम की घोषणा की गई थी। इसे मार्च 2023 तक बढ़ाने का फैसला किया गया है। गारंटी की कुल रकम 50,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर पांच लाख करोड़ रुपये की गई है। अभी तक करीब 1.3 करोड़ एमएसएमई इस स्कीम का फायदा उठा चुके हैं। बढ़ी हुई रकम हॉस्पिटालिटी सेक्टर के लिए होगी।
राज्यों को कुछ राहत देते हुए बजट में कहा गया है कि वे 50 साल के लिए एक लाख करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज ले सकते हैं। गति शक्ति योजना में राज्यों द्वारा डेवलप किए जा रहे प्रोजेक्ट को भी शामिल किया जाएगा। अफोर्डेबल हाउसिंग को मंजूरी में दिया जाने वाला समय कम करने का भी वादा है। राज्यों को अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के चार फीसदी तक ले जाने की इजाजत दी गई है, लेकिन इसके लिए बिजली क्षेत्र में सुधार की शर्त जोड़ दी गई है। यानी जो राज्य बिजली वितरण का निजीकरण करेंगे वही ज्यादा कर्ज ले सकेंगे। बीते दो वर्षों में इन्हीं शर्तों के कारण राज्य ज्यादा कर्ज नहीं जुटा पाए थे।
निजीकरण के खिलाफ माहौल को देखते हुए वित्त मंत्री ने बजट भाषण में इस शब्द का जिक्र ही नहीं किया, जबकि पिछले साल के बजट में निजीकरण और एस्सेट मॉनेटाइजेशन पर फोकस किया गया था। पिछले बजट में 1.75 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा गया था। उसे संशोधित करके सिर्फ 78,000 करोड़ किया गया है। अगले साल के लिए लक्ष्य सिर्फ 65,000 करोड़ रुपये का है। इस साल के संशोधित लक्ष्य में भी सब कुछ एलआइसी के आइपीओ पर निर्भर करेगा। इस साल अभी तक विनिवेश से 12,000 करोड़ ही मिले हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 80 लाख घर बनाने का प्रस्ताव है। इसके लिए 48,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 3.8 करोड़ घरों को नल से जल उपलब्ध कराने के लिए 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह कदम अच्छा तो है, लेकिन इस स्कीम के तहत जहां नल लगाए गए हैं, ज्यादातर जगहों पर पानी न मिलने की समस्या है। पोस्ट ऑफिस की सभी 1.5 लाख शाखाओं में कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस) लागू किया जाएगा। इससे पोस्ट ऑफिस खाताधारक नेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल कर सकेंगे। पोस्ट ऑफिस से बैंक खाते के बीच ऑनलाइन ट्रांसफर भी किया जा सकेगा। पोस्ट ऑफिस में घंटों खड़े रहने वाले ग्राहकों और कर्मचारियों के व्यवहार से तंग आ चुके ग्राहकों के लिए यह राहत की बात है।
आम करदाताओं के लिए बजट में कुछ नहीं है। महामारी में सबसे कमजोर वर्ग अधिक प्रभावित हुआ था, उन्हें भी कुछ नहीं मिला है। अभी पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। साल के अंत तक दो राज्यों में चुनाव होंगे। ऐसे में लोक-लुभावन घोषणाओं से बचना आश्चर्यजनक है। संभव है कि सरकार ने इन घोषणाओं को अगले बजट के लिए बचा रखा हो, क्योंकि अगले आम चुनाव से पहले वह आखिरी पूर्ण बजट होगा।