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ऐप लोन जालसाजी/नजरिया: गरीब तबके की लूट

सरकार को सस्ती ब्जाज दर पर कर्ज का झांसा देने वाले ऑनलाइन ऐप पर तुरंत रोक लगानी चाहिए
जालसाजों पर शिकंजा कसना जरूरी

कोरोना काल में कर्ज लेने वालों की संख्या बढ़ गई है। इस जरूरत का फायदा उठाने के लिए शर्तों पर कर्ज देने वाली एप बेस्ड फर्जी कंपनियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई। इन फर्जी कंपनियों ने ऐप द्वारा सस्ती ब्याज दरों पर ऑनलाइन कर्ज उपलब्ध कराने का झांसा देना शुरू कर दिया। इनके झांसे में आकर ठगे जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। ठगे जाने की सबसे बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर ऐप कर्ज देने से पहले आपकी इनकम का कोई प्रूफ नहीं मांगते। आपका सिबिल स्कोर चेक नहीं करते। सिबिल स्कोर से कर्ज देने वाली कंपनियां कर्ज चुका पाने की क्षमता देखती हैं। इससे पता चलता है कि किसी व्यक्ति ने पिछले कर्ज चुकाने में कहीं कोई डिफॉल्ट तो नहीं किया।

ठगी करने वाले ऐप न केवल ज्यादा ब्याज वसूलते हैं, बल्कि कर्ज देने के नाम पर कर्ज लेने वाले लोगों से उनके आधार कार्ड, पैन, मोबाइल नंबर, ई-मेल आईडी, सैलरी स्लिप, बैंक अकाउंट नंबर, बैंक आईएफएससी कोड, छह महीने की बैंक स्टेटमेंट ले लेते हैं। आवेदन के लिए दिए जाने वाले इन दस्तावेजों का फायदा साइबर ठग उठाते हैं और इन जानकारियों के आधार पर वे क्रेडिट कार्ड इश्यू करा लेते हैं या इन दस्तावेजों पर बैंक से कर्ज ले लेते हैं। इन कागजों का दूसरे कामों में भी दुरूपयोग हो रहा है।

गलती से भी अगर कर्ज लेने वाले ने एक भी किस्त चुकाने में देरी की तो कंपनी के रिकवरी एजेंट उन्हें धमकी देते हैं या गाली-गलौज करते हैं। धमकी देने, गाली-गलौज करने, मारपीट करने पर भी यदि व्यक्ति कर्ज नहीं चुका पाता, तो ये लोग धमकी देते हैं कि कर्ज न चुकाने की जानकारी न सिर्फ उसके दोस्तों और रिश्तेदारों को दे देंगे बल्कि सोशल मीडिया पर भी डाल दी जाएगी। कर्ज देने वाले ऐप के नेटवर्क के तार दिल्ली, गाजियाबाद, गुरुग्राम, मुंबई, पुणे, नागपुर, हैदराबाद और बेंगलूरू जैसे बड़े शहरों से जुड़े हुए हैं।

ऐप आधारित कंपनियों के दुर्व्यवहार के कारण कर्ज न चुका पाने वाले कई लोगों की आत्महत्या के बाद सरकार और प्रशासन सक्रिय हुआ है। रिजर्व बैंक ने सलाह दी है कि कर्ज के लिए आम लोग रिजर्व बैंक के साथ रजिस्टर्ड बैंक या नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों से ही संपर्क करें। इसके साथ ही राज्य सरकारों द्वारा मान्य वित्तीय संस्थान या अन्य मान्य संस्थानों से भी संपर्क किया जा सकता है। रिजर्व बैंक ने सलाह दी है कि किसी भी मोबाइल ऐप या डिजिटल प्लेटफॉर्म से कर्ज लेने से पहले पूरी जानकारी लें कि ये ऐप या प्लेटफॉर्म किस संस्थान या बैंक से जुड़ा है। किसी भी तरह की शंका हो तो भूल कर भी कर्ज के लिए आगे न बढ़ें।

इन धोखेबाजों से बचने के लिए पिछले साल जून में इन ऐप को लेकर आरबीआइ ने एक एडवाइजरी जारी की थी। इसमें कहा गया था कि कई ऐप ऐसे हैं जो इस बात की जानकारी नहीं दे रहे हैं कि वे किस बैंक या नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन से जुड़े हैं। वैसे आरबीआइ ने भी इन ऐप के लिए कोई रेगुलेशंस नहीं बनाए हैं। हालांकि सिर्फ आरबीआइ रजिस्टर्ड बैंक और राज्यों के कानूनों के हिसाब से काम करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां ही कर्ज दे सकती हैं। अगर कर्ज देने वाली कंपनी या कंपनी से जुड़े रिकवरी एजेंट किसी भी प्रकार की धमकी देते हैं या गाली-गलौज करते हैं, तो कर्ज लेने वाला धमकी देने, गाली-गलौज करने, मारपीट करने या किसी भी प्रकार से परेशान करने वाले के खिलाफ कर्ज देने वाली कंपनी में शिकायत करे। इसके बाद भी यदि एजेंट का ऐसा व्यवहार जारी रहता है या कोई फोन करके धमकाता है, तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराए।

कंज्यूमर फोरम में भी सबूतों के साथ शिकायत दर्ज करा सकते हैं। कर्ज देने वाली कंपनी के खिलाफ आरबीआइ की आधिकारिक वेबसाइट पर भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। मोबाइल ऐप से फटाफट कर्ज देने वाली चीनी कंपनियों से लोगों को बचाने के लिए सरकार को ऐसे ऐप को तुरंत प्रतिबंधित करना चाहिए। साथ ही एनबीएफसी को भी ऐसी कर्ज देने वाली कंपनियों को फाइनेंस नहीं करना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप के माध्यम से ऋण देने सहित डिजिटल उधार पर एक कार्य समूह का गठन किया है। यह वित्तीय क्षेत्र के साथ-साथ सभी अनरेगुलेटेड खिलाड़ियों द्वारा डिजिटल ऋण गतिविधियों के पहलुओं का अध्ययन करेगा।

ज्यादातर लोग इन फर्जी ऐप आधारित कंपनियों के चंगुल में इसलिए फंसते हैं क्योंकि उन्हें किसी भी वित्तीय संस्था या बैंक से आसानी से कर्ज नहीं मिल पाता। सरकारी बैंकों से आम आदमी को छोटी जरूरतों के लिए छोटे कर्ज की सुविधा आसान शर्तों पर दी जानी चाहिए, जिससे लोग इन फर्जी कंपनियों से बच सकें और उनकी जरूरतें भी पूरी हो सकें। यह कवायद तकनीकी दौर में बेहद जरूरी है। देरी से समस्या गंभीर हो सकती है।

(लेखक वॉयस ऑफ बैंकिंग के फाउंडर हैं, यह एक ट्रस्ट है, जो बैंकिंग इंडस्ट्री से जुड़े मुद्दों को उठाता है)

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