देश में कोरोना के संक्रमण का पहला मामला आए हुए 100 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं, लॉकडाउन भी तीसरे चरण में पहुंच गया है। लेकिन संकट खत्म होता नहीं दिख रहा है। उल्टे मई के महीने में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में सरकार का क्या रोडमैप है, क्या संक्रमण खत्म होने की कोई संभावना दिख रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने प्रशांत श्रीवास्तव के सवालों का जवाब दिया है। प्रमुख अंश:
पिछले चार महीने से कोरोना का संकट भारत पर छाया हुआ है, लेकिन स्थिति अभी भी सुधरती नहीं दिख रही है?
पिछले चार महीनों में हमने कोविड-19 संक्रमण पर काबू पाने के लिए एक के बाद एक ऐसे कदम उठाए, जिनसे संक्रमण पर मजबूती से स्पीड ब्रेकर लगाने में सफल रहे हैं। इस समय देश के 733 जिलों में से 130 जिले रेड जोन (हॉटस्पॉट) में, 284 जिले ऑरेंज जोन (नॉन हॉटस्पॉट) में और बाकी बचे 319 ग्रीन जोन (संक्रमण मुक्त) में हैं। उपचार के बाद ठीक होने वाले मरीजों की दर सुधरकर 31.15 फीसदी हो गई है, जो पिछले 15 दिनों की दर के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा है। भारत में कोविड-19 की मृत्यु दर 3.2 फीसदी है जबकि विश्व में यह 6.9 फीसदी है। देश में लॉकडाउन से पहले मामले दोगुना होने की दर 3 दिन रही जबकि अब मामले दोगुना होने की दर 12 दिन है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि देश में कोरोना के संक्रमण का दायरा कम हो रहा है।
लेकिन हाल में संक्रमण और मौत के आंकड़े दोनों बढ़े हैं। यह स्थिति चिंताजनक दिखती है?
संक्रमण के मामले 67,015 हो गए हैं और उपचार के बाद स्वस्थ होकर घर जाने की दर भी 29.3 फीसदी है। इसका मतलब है कि एक चौथाई से अधिक रोगियों ने सरकार के गुणवत्तापूर्ण उपचार के बल पर वापस सुखद जीवन की शुरुआत की है। कुछ राज्यों में सघन बसी कॉलोनियों और बहुत बड़े स्लम होने के कारण मामले तेजी से बढ़े हैं। शायद इन इलाकों में लॉकडाउन और फिजिकल डिस्टेंसिंग के निर्देशों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया। इसलिए कुछ राज्य लॉकडाउन के उस तरह के फायदे नहीं ले सके जितने देश के बाकी राज्यों को मिले। केंद्र सरकार ने 10 राज्यों के 20 जिलों में उच्च अधिकारियों के दल भेजे थे, जिन्होंने ऐसी खामियों का पता लगाया जिनसे कम से कम समय में स्थिति सुधारी जा सके।
क्या हम स्टेज-3 में पहुंच गए हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले भी स्पष्ट किया था कि भारत संक्रमण के तीसरे चरण में नहीं पहुंचा है। इसे लेकर कई सूत्र अक्सर भ्रम फैलाते रहे हैं। देश में चार राज्य और 319 जिले पूरी तरह संक्रमण से मुक्त हैं। 11 मई तक 12 राज्यों में पिछले 24 घंटे में कोई मामले नहीं आए हैं। पिछले तीन दिन में मामले दोगुना होने की दर 12 दिन, पिछले सात दिनों के दौरान यह दर 10 दिन, पिछले 14 दिन में यह दर 11 दिन रही है । इसका अर्थ है कि हम स्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं। इस स्थिति में आने के बाद मामले कम होने शुरू हो सकते हैं। भारत में स्थानीय संक्रमण के कारण मामले इतने नहीं बढ़े, जितने विदेशी यात्रियों के आगमन के कारण बढ़े। कई बार बड़ी मात्रा में निमोनिया की जांच के परिणाम में भी तीसरे चरण से निकटता का कोई संकेत नहीं मिला है। ऐसे में कम्युनिटी संक्रमण का कोई खतरा नहीं है।
कई राज्यों में स्थिति गंभीर हो चुकी है, वहां क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में मामले एक हजार से अधिक हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली मामलों की संख्या में पहले तीन स्थानों पर हैं। केंद्र इन राज्यों के साथ निरंतर संपर्क में है। मैं भी इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों और स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ निरंतर संपर्क बनाए हुए हूं। इन राज्यों से, घर-घर जा कर संक्रमित लोगों की पहचान करने, मामलों का पता लगाने के लिये सर्वेक्षण करने, आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड करने के लिए लोगों को प्रेरित करने, कुछ जिलों का दायित्व मेडिकल कॉलेजों को सौंपने और समुचित कंटेनमेंट स्ट्रेटजी अपनाने को कहा गया है।
संक्रमण के ऐसे भी मामले आ रहे हैं कि जिनके अंदर कोरोना के कोई लक्षण नहीं हैं, यह कितनी गंभीर स्थिति है?
बीमारी के व्यवहार की दृष्टि से यह असामान्य नहीं है। देखा गया है कि इस संक्रमण के 80 प्रतिशत रोगियों में हल्के लक्षण होते हैं। हाल ही में अमेरिका में स्वास्थ्य क्षेत्र के एक संगठन सीडीएस (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन) ने कोविड-19 से जुड़े छह और लक्षण शामिल किए हैं। ये लक्षण हैं-सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, आंखें गुलाबी होना, किसी गंध या स्वाद का पता न चलना, अधिक सर्दी लगना और गले में खराश तथा दर्द होना। नए लक्षणों को वर्तमान लक्षणों में शामिल करने का निर्णय हमारे यहां आइसीएमआर लेता है। अगर छह नए लक्षण शामिल कर लिए गए तो हो सकता है कि मामलों की संख्या बढ़े। मौजूदा लक्षणों की पद्धति के अनुसार अब तक हम 16,73,174 परीक्षण कर चुके हैं। जैसे ही आइसीएमआर पद्धति में बदलाव करेगा, हम संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए सभी व्यक्तियों में इन अतिरिक्त लक्षणों का भी ध्यान रखेंगे और जांच की संख्या बढ़ाएंगे।
लॉकडाउन से संक्रमण रोकने में कितनी मदद मिली है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कोरोना का प्रकोप अभी और गंभीर होगा?
25 मार्च को लागू किए गए लॉकडाउन की अवधि में देश भर के लोगों के सहयोग और कोरोना योद्धाओं की समर्पित सेवाओं से हालात सुधरे हैं। पूरी आशा है कि लॉकडाउन के परिणाम बेहतर होंगे। कुछ स्थानों पर मामले जरूर बढ़े हैं, लेकिन देश के लगभग 44 प्रतिशत जिले संक्रमण से दूर हैं। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पिछले हफ्ते तक 69 जिलों में 7 से 13 दिन में कोई मामला सामने नहीं आया है। देश के 37 जिलों में 14 से 20 दिन में संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है। देश के 28 जिलों में पिछले 21-27 दिन में किसी मामले का पता नहीं चला है। सिक्किम, नगालैंड, लक्षद्वीप और दमन दीव में संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया। साफ है कि लॉकडाउन का फायदा मिल रहा है।
यह भी आरोप है कि भारत में दूसरे देशों की तुलना में टेस्टिंग काफी कम हो रही है?
यह कहना सही नहीं होगा कि भारत में दूसरे देशों की तुलना में टेस्टिंग काफी कम हो रही है। विश्व में आबादी के लिहाज से भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। वर्तमान में कोविड-19 से प्रभावित संपन्न और विकसित देशों समेत सभी देशों के मुकाबले भारत में मामलों की संख्या कम है। इसका कारण यह है कि हमने कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए शुरुआत से ही कारगर प्रयास किए। भारत में अब तक (10 मई) हमने 16,73,174 टेस्ट किए हैं। इस समय टेस्ट करने की प्रतिदिन क्षमता एक लाख हो गई है। इसके लिए 345 सरकारी प्रयोगशालाएं और 131 निजी प्रयोगशालाएं जांच कर रही हैं। हम 4.5 लाख टेस्ट तुरंत करने की स्थिति में हैं। और 56 लाख टेस्ट के लिए आवश्यक मात्रा में किट खरीदने के आर्डर दे दिए गए हैं। मैं विश्वास दिला रहा हूं कि भारत में कोई भी ऐसा व्यक्ति जांच से वंचित नहीं रहेगा, जिसकी जांच करना आवश्यक होगा।
अस्पताल, बेड, वेंटिलेटर की उपलब्धता बढ़ाने के लिए क्या कदम उठा जा रहे हैं? पीपीई किट की कमी की भी शिकायतें हैं?
हमारे पास वर्तमान में अस्पताल, आइसोलेशन बेड, आइसीयू बेड, वेंटिलेटर, मास्क और पीपीई पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। देश में कोविड-19 के विशेष अस्पतालों और विशेष स्वास्थ्य केंद्रों की कुल मिलाकर संख्या 2,948 है, जिनमें 2,84,303 आइसोलेशन बिस्तर, 29,505 आईसीयू बेड और 13,669 वेंटिलेटर हैं। मैं आपको यह भी बताना चाहता हूं कि प्राप्त आकंड़ों के अनुसार अभी तक कुल रोगियों में से 1.1 प्रतिशत रोगियों को वेंटिलेटर की जरूरत होती है। इसी तरह कुल रोगियों में से 4.7 प्रतिशत रोगियों को आइसीयू की आवश्यकता होती है और 3.2 प्रतिशत रोगियों को ऑक्सीजन की जरूरत होती है। हम अब तक पीपीई और एन-95 मास्क का आयात किया करते थे। सरकार ने देश के 109 घरेलू कंपनियों को पीपीई बनाने और 10 अन्य कंपनियों को एन-95 मास्क बनाने के लिए चुना है। इनसे 2.23 करोड़ पीपीई और 2.48 करोड़ एन-95 मास्क की खरीद के ऑडर दे दिए गए हैं। इसी तरह देश में घरेलू कंपनियों को 59 हजार वेंटिलेटर की खरीद के आर्डर दिए गए हैं। इसलिए हम विश्वास से कह सकते हैं कि जरूरी अस्पतालों, बेड, वेंटिलेटर की न तो अभी कमी महसूस की जा रही है, न भविष्य में कमी होने वाली है।
अगर अमेरिका-इटली जैसी स्थिति होती है, तो उसके लिए कितनी तैयारी है?
मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि हमारे देश में अमेरिका और इटली जैसी स्थिति उत्पन्न होने की कोई संभावना दिखाई नहीं देती। इसका कारण यह है कि हमने 7 जनवरी, 2020 को चीन से कोरोनावायरस संक्रमण की जानकारी देने के अगले दिन ही अपनी तैयारियों का खाका बना लिया था। उसी दिन संयुक्त तकनीकी समिति की बैठक स्वास्थ्य मंत्रालय में की गई। 17 जनवरी, 2020 को इस संदर्भ में कमर कसने के लिए राज्यों को विस्तृत निर्देश जारी कर दिए गए। मेरी अध्यक्षता में मंत्री समूह का गठन किया गया जिसने 14 बैठकों में उभरती वैश्विक स्थिति के अनुरूप समय-समय पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने 11 उच्चाधिकार प्राप्त समूह भी गठित किए। पुख्ता तैयारियों, निरंतर समीक्षा, राज्यों के सहयोग तथा कोरोना योद्धाओं की कुशलता, क्षमता और अनुभव से इस संक्रमण पर हमारी निश्चित रूप से विजय होगी।