गुजरात के दलित एक्टिविस्ट जिग्नेश मेवाणी 2016 में ऊना कांड और रोहित वेमुला कांड जैसी घटनाओं के खिलाफ मजबूत आवाज बनकर उभरे थे। 2017 में वे निर्दलीय विधायक के तौर पर विधानसभा पहुंचे और अब 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का ऐलान किया है। अपनी मौजूदा राजनीति और भावी रणनीति को लेकर उन्होंने आउटलुक से खास बातचीत की। मुख्य अंश:
आप कांग्रेस के साथ क्यों आए, इससे ज्यादा अहम सवाल यह है कि बिखराव और टूट के इस दौर में कमजोर दिख रही कांग्रेस की संभावनाएं आप कैसे देखते हैं?
वैसे तो मुझे अभी विधिवत रूप से कांग्रेस में शामिल होना है, पर इस सवाल का जवाब मैं दूंगा। ऐसे अभूतपूर्व संकट के दौर में जब भाजपा-आरएसएस देश को हिंदू-मुस्लिम विभाजन के एजेंडे पर ले जा रही है। लोकतंत्र पर फासीवादी ताकतों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। भारत का बुनियादी विचार ही खतरे में है, क्योंकि उनकी आस्था आंबेडकर के संविधान में नहीं, मनुस्मृति में है। पिछले सात वर्षों से हम लोकतंत्र पर हमले होता देख रहे हैं। अगर हमें भारत के विचार को बचाना है, संविधान को बचाना है, समाज में भाईचारे को बचाना है तो ऐसा प्लेटफॉर्म चाहिए, जो भाजपा-आरएसएस की विचारधारा से मुकाबला कर सके। यह काम कांग्रेस कर सकती है। मुझे यह भी लगता है कि राहुल गांधी ऐसे नेता हैं, जो कुछ भी हो जाए मगर आरएसएस से समझौता नहीं करेंगे।
पंजाब से लेकर, छत्तीसगढ़, गोवा और केरल तक में कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझ रही है। ऐसे में वह भाजपा विरोधी विपक्षी गठजोड़ की धुरी कैसे बन सकती है?
कांग्रेस के भीतर क्या हो रहा है, उससे ज्यादा चिंताजनक है कि देश में क्या हो रहा है। जिस तरीके से कांग्रेस नेतृत्व देश के आम नागरिकों पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ खड़ा है, जमीन पर संघर्ष कर रहा है, उसे देखते हुए मुख्य विपक्षी दल के तौर पर कांग्रेस की भूमिका को लेकर कोई संदेह नहीं रह गया है। जहां तक पार्टी के अंदरूनी मसलों का सवाल है तो मेरा मानना है कि नए-पुराने सभी लोग मिलकर कांग्रेस को आगे बढ़ाएंगे।
आप गुजरात में निर्दलीय विधायक हैं। आप पिछले चुनाव के वक्त कांग्रेस में शामिल नहीं हुए। अब आप कांग्रेस में जाकर क्या करना चाहते हैं?
एक पत्रकार, वकील और सोशल एक्टिविस्ट से यहां तक का मेरा सफर आसान नहीं रहा है। बहुत उतार-चढ़ाव आए। बतौर निर्दलीय विधायक एक अनुभव रहा है। जो काम विधायक के तौर पर किए, उन्हें बड़े पैमाने पर करना हो तो कांग्रेस जैसे मंच की जरूरत है।
भाजपा के विकास के दावे खोखले निकले। मेरी कोशिश है कि आधुनिक गुजरात को लेकर एक विजन जनता के सामने रखा जाए। राज्य की व्यापार संस्कृति है लेकिन पिछले वर्षों में सिर्फ अडाणी जैसे पूंजीपतियों का विकास हुआ, जबकि छोटे उद्योग-धंधे तबाह हुए हैं। इन मुद्दों को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। इसलिए गुजरात में अगला चुनाव पढ़ाई, दवाई और कमाई के मुद्दे पर लड़ा जाएगा। व्यक्तिगत तौर पर मैं एनएसयूआइ, यूथ कांग्रेस और इंटक के संगठनों के साथ काम करना चाहता हूं।
गुजरात में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को टक्कर दी थी। लेकिन हाल में पहले राजकोट, सूरत और अब गांधीनगर के निगम चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का काफी वोट काट लिया। क्या विधानसभा चुनावों में यही रुझान नहीं रह सकता है?
पिछली बार कांग्रेस गुजरात में सिर्फ 13 सीटों के अंतर से सरकार बनाने से चूक गई थी। लेकिन विजय रूपाणी की भाजपा सरकार ने कोरोना काल में जिस तरह अव्यवस्था फैलायी, भाजपा के पन्ना प्रमुख भी ऑक्सीजन और इलाज के लिए तड़प रहे थे। भाजपा का विकास का यह मॉडल पूरी तरह एक्सपोज हो चुका है। भाजपा को इस बात का एहसास है, इसलिए मुख्यमंत्री समेत पूरी कैबिनेट को बदल दिया गया। लेकिन ऐसा करने से नाकामियां छिपने वाली नहीं हैं। अगले चुनाव में जब जनता के सामने विकल्प चुनने का सवाल आएगा तो कांग्रेस की दावेदारी सबसे मजबूत होगी। आम आदमी पार्टी का उतना असर नहीं है, जितना बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है।
लखीमपुर खीरी कांड में प्रियंका और राहुल गांधी की सक्रियता से कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा के आगामी चुनावों में कितना लाभ मिलने की उम्मीद है?
लखीमपुर कांड में प्रियंका गांधी जिस तरह डटकर भाजपा के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं, उसका संदेश पूरे देश में गया है। कुछ चीजें हमेशा चुनावी राजनीति से ऊपर होती हैं। कांग्रेस देश की कमजोर, गरीब और पीड़ित जनता का साथ दे, यह चुनाव जीतने से कहीं ज्यादा जरूरी है। कांग्रेस की यह भूमिका मुझे चुनावी हार-जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है।
राहुल गांधी आप लोगों को लाकर नई ‘युवा तुर्क’ टोली बनाना चाहते हैं लेकिन उनकी पुरानी टीम के नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं।
इतनी बड़ी पार्टी से कुछ लोग छोड़कर गए हैं तो कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, रेवंत रेड्डी जैसे लोग पार्टी में शामिल भी हुए हैं। देश भर में नौजवान कांग्रेस से जुड़ रहे हैं।
पंजाब में अमरिंदर सिंह को हटाए जाने और चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बारे में आप क्या सोचते हैं?
पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का पूरे देश के दलितों में संदेश गया है। हालांकि, पुराने लोग पार्टी से नाखुश होते हैं और छोड़कर जाते हैं तो अफसोस तो होता ही है। देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते इन स्थितियों को संभालने का कांग्रेस का अपना अनुभव है।
राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में भी दलित उत्पीड़न की घटनाएं हो रही हैं। उस पर कांग्रेस की चुप्पी सवालों के घेरे में है। क्या कहेंगे?
देश में कहीं भी दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों या आम लोगों पर जुल्म होता है तो उसके खिलाफ हमें खड़ा होना ही होगा। अगर मैं ऐसा नहीं कर पाया तो मेरे जिग्नेश मेवाणी होने या सार्वजनिक जीवन में होने का कोई अर्थ नहीं है।
जातिगत उत्पीड़न और छूआछूत को लेकर भाजपा और कांग्रेस में बड़ा फर्क है। भाजपा मनुवाद के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहती है ताकि ऊना और रोहित वेमुला जैसी घटनाएं होती रहें।
कांग्रेस का अनुसूचित जाति विभाग दलित उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर काफी सजग है। ऐसे मामलों में पीड़ितों की सहायता और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए हम और ज्यादा सक्रियता दिखाएंगे। दलितों के मुद्दों पर पार्टी के बाहर और भीतर आवाज उठा सकूंगा, इसका मुझे पूरा भरोसा है।