अब अंतरिक्ष में तरह-तरह के व्यवसाय शुरू करने की होड़ मची हुई है। पहले यह क्षेत्र पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में था, लेकिन अब निजी खिलाड़ी भी इसमें हाथ आजमा रहे हैं। इसके कई नुकसान भी हैं। निजी खिलाड़ियों और सरकारों द्वारा शोध के नाम पर अंधाधुंध तरीके से प्रक्षेपित किए जा रहे उपग्रह अंतरिक्ष में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने इस मुद्दे पर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक और अब अंतरिक्ष उद्यमी मनीष पुरोहित से बातचीत की। संपादित अंश:
अमेरिका में स्पेस टूरिज्म विकसित किया जा रहा है। अभी तो टिकट के दाम अरबपति ही चुका सकते हैं, भविष्य में क्या देखते हैं?
स्पेस टूरिज्म अभी शुरू ही हुआ है। इसमें अभी बहुत कुछ खोजबीन बाकी है। अभी यह महंगा है, लेकिन जैसे-जैसे तकनीक बढ़ेगी और यान प्रक्षेपण की लागत कम होगी, यह कुछ सस्ता हो सकेगा। पहले फ्लाइट से यात्रा भी अमीर ही करते थे लेकिन आज हर कोई कर सकता है। स्पेस टूरिज्म के साथ भी ऐसा ही होगा। अमेरिका में इसकी शुरुआत हो चुकी है। स्पेस एक्स और वर्जिन गैलेक्टिक जैसी कंपनियां निजी अंतरिक्ष यात्री भेज रही हैं। पहले ऐसा नहीं था। पहले सिर्फ सरकारी अंतरिक्ष यात्री भेजे जाते थे। इसरो भी इस पर काम कर रहा है और आने वाले समय में भारत में भी इस बाजार को बढ़ता हुआ देखा जा सकता है। भविष्य में तो यह प्लान है कि वहां कुछ होटल भी खोले जाएंगे जहां टूरिस्ट कुछ दिन रहकर छुट्टियां मना सकते हैं।
स्पेस टूरिज्म से वैज्ञानिक परीक्षण को झटका लगने की आशंका है। पैसा कमाने के लालच में लोक कल्याण के लिए स्पेस एक्सपेरिमेंट पीछे छूट जाएंगे। आपकी राय?
मेरे हिसाब से स्पेस टूरिज्म से लग्जरी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन इससे वैज्ञानिक परीक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा। शायद दुनिया के पहले अंतरिक्ष पर्यटक डेनिश टीटो थे, जिन्हें रूस अंतरिक्ष में ले गया था। वे अपनी मर्जी से गए थे और विशुद्ध रूप से पर्यटन के नजरिए से गए थे। अब स्थिति बदल गई है। अब आप एक साथ कई लोगों को अंतरिक्ष में ले जा सकते हैं। मेरे हिसाब से अंतरिक्ष परीक्षण और एक्सपेरिमेंट और अंतरिक्ष पर्यटन दोनों एक साथ चलेंगे। ये एक दूसरे के पूरक होंगे। आने वाले समय में ऐसा हो सकता है कि किसी अंतरिक्ष यान में कुछ लोग ऐसे हों जो पर्यटन के नजरिये से ऊपर जा रहे हों। और उसमें कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो वहां जाकर एक्सपेरिमेंट करेंगे।
यह व्यावसायीकरण सही है?
मेरे हिसाब से स्पेस टूरिज्म बहुत अच्छा है। जितने ज्यादा खिलाड़ी बाजार में आएंगे, उतने ही ज्यादा शोध और वैज्ञानिक प्रयोग बढ़ेंगे। नई तकनीकें ईजाद होंगी। अंतरिक्ष के बारे में जागरूकता बढ़ेगी, हालांकि हमें नियमों पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर नियम और कानून सख्त हों तो स्पेस टूरिज्म में कोई बुराई नहीं है।
मनीष पुरोहित
स्पेस टूरिज्म को लेकर अभी किस तरह के नियम-कानून हैं? क्या इसमें बदलाव की जरूरत है?
देखिए, अभी तक जो कानून हैं, वे पूरी तरह से स्पेस रिसर्च से जुड़े हैं क्योंकि माना जाता है कि जो भी स्पेस में जाएगा, वह रिसर्च के लिए ही जाएगा। स्पेस टूरिज्म को लेकर कोई खास नियम नहीं बनाए गए हैं। स्पेस और रॉकेट डिजाइनिंग एक रणनीतिक मामला है, इसलिए ऐसा नहीं है कि कोई भी आकर स्पेस में रॉकेट लॉन्च कर देगा। अभी स्पेस टूरिज्म मार्केट में ज्यादा प्लेयर्स नहीं हैं। यहां तक कि अमेरिका की कंपनियों को भी अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेटर से इजाजत लेनी पड़ती है। खुद स्पेस एक्स के स्टारशिप को इजाजत के लिए कई महीनों तक इंतजार करना पड़ा था, जबकि एलॉन मस्क कह रहे थे कि हम पूरी तरह तैयार हैं। मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में पूरी तरह से स्पेस टूरिज्म को ध्यान में रखकर सख्त और स्पष्ट नियम-कायदे बनाए जाएंगे।
अमेरिका में कई प्राइवेट कंपनियां स्पेस टूरिज्म शुरू कर चुकी हैं, लेकिन भारत अभी भी अपने पहले स्पेस ह्यूमन मिशन पर काम कर रहा है।
नहीं। अभी यह मार्केट एक्स्प्लोर किया जा रहा है। अभी स्पेस टूरिज्म एक ग्रोइंग मार्केट भी नहीं बना है। हम जब इसमें आएंगे तो सोच-समझकर कर आएंगे क्योंकि हमारी किसी से होड़ नहीं है। हम आएंगे तो इसे और किफायती ही बनाएंगे। जिस चंद्रयान मिशन में रूस और अमेरिका हजारों करोड़ खर्च किए, वह अमेरिकी मूवी की बजट में पूरा हो गया है। हम अभी गगनयान पर काम कर रहे हैं। अगर ये मिशन पूरा हो जाता है तो हमारे पास भी लोगों को स्पेस में भेजने को क्षमता हो जाएगी। समय लगेगा लेकिन योजनाएं बन रही हैं।
स्पेस में फैल रहे कचरे को लेकर विशेषज्ञ पहले से ही चिंतित हैं। क्या स्पेस टूरिज्म इसे और बढ़ावा देगा? स्पेस का कचरा कैसे बढ़ता है?
स्पेस टूरिज्म स्पेस में कचरे को बढ़ावा देगा या नहीं, यह तो भविष्य की बात है। हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन उम्मीद है कि आने वाले समय में कचरा बढ़ेगा। अब आते हैं इस सवाल पर कि अंतरिक्ष में इतना कचरा कैसे बढ़ गया। इसके तीन कारण हैं। पहला, अंतरिक्ष में जो सैटेलाइट लॉन्च किया जाता है, उसके साथ कई पार्ट्स और जुड़े होते हैं। सैटेलाइट तो अंतरिक्ष में कई साल रहते हैं, लेकिन उसके साथ गए कुछ हिस्से, जिनका काम हो चुका होता है वे समुद्र में गिर जाते हैं और कुछ वहीं रह जाते हैं। अगर ये बचे हुए हिस्से अंतरिक्ष में किसी कारणवश बिखर जाते हैं, तो ये कचरा फैलता है क्योंकि इनके नीचे आने की कोई संभावना नहीं होती है। शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण ये वहीं घूमते रहते हैं। दूसरा कारण यह है कि जब ये हिस्से किसी सैटेलाइट से टकराते हैं, तो इस टक्कर के कारण सैटेलाइट के कई हिस्से टूट जाते हैं। ये भी अंतरिक्ष में वहीं रह जाते हैं, जिससे मलबा फैलता है। तीसरा ये है कि आजकल एंटी-सैटेलाइट भी लॉन्च किए जा रहे हैं। यानी ऊपर लगे सैटेलाइट को नीचे से ही नष्ट कर दिया जाता है, जिससे स्पेस में मलबा बढ़ता है।
आने वाले समय में सैटेलाइट इंटरनेट का बिजनेस और भी बढ़ेगा। हजारों सैटेलाइट अंतरिक्ष में लॉन्च किए जाएंगे। इसमें कई देश शामिल होंगे। अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रयोगों के लिए भी सैटेलाइट लॉन्च किए जाएंगे। ऐसे में सेटेलाइट्स से कचरे के टकराने की संभावना बढ़ जाएगी। इसे कैसे रोका जा सकता है? क्या इस पर काम किया जा रहा है?
जितने भी अंतरिक्ष सैटेलाइट लॉन्च किए जाते हैं, उन पर दिन-रात नजर रखी जाती है। हर अंतरिक्ष एजेंसी के कई विभाग होते हैं जिनका काम सैटेलाइट और कचरे पर नजर रखना होता है। छोटे-मोटे मलबे कई बार नासा के अंतरिक्ष केंद्र से टकराकर उसे नुकसान पहुंचा चुके हैं, लेकिन ज्यादातर समय वैज्ञानिकों को पता होता है कि कहीं कोई मलबा उनके सैटेलाइट के पास से तो नहीं गुजर रहा है। अगर ऐसा होता है, तो सैटेलाइट की लोकेशन बदल दी जाती है। चंद्रयान मिशन के दौरान ही लॉन्च होने वाले तय समय पर पता चल गया था कि अगर इस समय सैटेलाइट लॉन्च किया जाता है, तो रास्ते में कुछ मलबा उससे टकरा सकता है, इसलिए इसे कुछ मिनट की देरी से लॉन्च किया गया। भविष्य में आप देखेंगे कि अब सिर्फ मलबा हटाने वाले मिशन ही लॉन्च की जाएगी। उस मिशन का काम अंतरिक्ष से कचरा हटाना होगा। इसरो इस मिशन को 2025 तक लॉन्च कर सकता है। लेकिन यह सब अभी सोचा जा रहा है। आने वाले दिनों में टेक्नोलॉजी में जैसे-जैसे इजाफा होगा, स्थितियां बेहतर होंगी और चुनौती भी बढ़ेगी।