दिल्ली में दलित राजनीति का एक प्रमुख चेहरा एडवोकेट राजेंद्र पाल गौतम हैं, जो डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा स्थापित समता सैनिक दल के साथ दशकों से जुड़े रहे हैं। सीमापुरी विधानसभा से पिछली दो बार विधायक चुने जाने के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार में उन्होंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता सहित अनुसूचित जाति/जनजाति और महिला एवं बाल विकास जैसे अहम मंत्रालय संभाले। पिछले साल सितंबर में उन्होंने मंत्री पद और आप की सदस्यता से अचानक इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस पार्टी में चले गए। उनके साथ आम आदमी पार्टी के कई दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने ईवीएम विरोधी अभियान चलाया। इस चुनाव में वे कोई सीधी भूमिका नहीं निभा रहे हैं, न ही खुद लड़ रहे हैं, लेकिन उनके जय भीम मिशन से जुड़े कुछ लोग अलग-अलग मंचों से प्रत्याशी हैं। मिशन के फिरोजशाह रोड स्थित कार्यालय में दिल्ली की राजनीति, दलित राजनीति और मौजूदा चुनाव पर अभिषेक श्रीवास्तव ने राजेंद्र पाल गौतम के साथ विस्तार से बात की।
दिल्ली के चुनाव में आप किस भूमिका में खुद को देख रहे हैं?
अभी तो मैं स्टार प्रचारक की भूमिका में हूं। पार्टी का खाता खुल जाएगा, लेकिन जिस तरीके से मैं करता हूं अगर वो शुरुआत हुई होती तो हम इस बार बीस पर पहुंच जाते। छह महीने पहले शुरू होना था जो काम वो अभी पंद्रह दिन पहले शुरू हुआ है। इस वक्त जो स्पीड फास्ट होनी थी अभी आधी स्पीड भी नहीं पकड़ी है गाड़ी। जब दूसरे दुश्मन सौ पर चल रहे हैं तो हमें डेढ़ सौ की तैयारी करनी पड़ेगी।
क्या कमियां रह गईं जो इतना लेट हो गया?
वो तो कांग्रेस ही बताएगी। मैंने तो अभी ज्वाइन ही किया है। जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए हैं मुझे और मैं उनके बारे में टिप्पणी करूं ये अच्छी बात नहीं है।
चार दिन कहां, चार महीना हो गया...
वही है, फिर भी, मेरा तो कोई पद भी नहीं है। मैं किस हैसियत से बोलूं वहां। अगले महीने सब हो जाएगा संगठन निर्माण। बहुत कुछ होना है। मैं खुद क्यों कुछ भी कहूं। हमें इस वक्त स्पेस था कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में खत्म हो जाती और कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती, लेकिन किस तरह का वो काम कर रहे हैं वही बता सकते हैं। जिस तरह का काम हमने सीखा और करते आए हैं, हम तो बहुत फास्ट कर देते। हमें तो कोई जल्दी है नहीं।
पिछली बार का चुनाव था या उससे पहले का, दोनों बार भाजपा उतनी बेचैन नहीं थी जितना अबकी जोर लगा रही है। इस बार क्या फर्क आ गया?
दिल्ली सरकार की पावर ना के बराबर होने के बावजूद दिल्ली का मुख्यमंत्री रोज टीवी पर दिखता है, रोज अखबार में छपता है। केरल का नहीं छपता, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक का नहीं दिखता। दिल्ली का सीएम रोज दिखेगा क्योंकि दिल्ली से संदेश पूरे देश में जाता है। इसीलिए दिल्ली पर कब्जा करने की ललक दिख रही है। दस साल से दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा दोनों का सूखा है। भाजपा ने तो धीरे-धीरे पूरा देश कब्जाया है, लेकिन उसके ऊपर एक सवाल तो है ही कि आप दस साल से केंद्र में हो और दिल्ली आपसे जीती नहीं जा रही। इसी चक्कर में चुनाव इस तरह का हो गया है कि एक तरह से वोट खरीदा जा रहा है, लोगों को लालच बांटा जा रहा है। इसी की प्रतिस्पर्धा है।
लेकिन आप तो कहते रहे हैं कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन आरएसएस की पैदाइश था। फिर आरएसएस अपनी ही खड़ी की हुई पार्टी को क्यों हटाना चाहेगा?
हां, मैं मानता हूं कि अरविंद केजरीवाल आखिरकार आरएसएस का ही कार्यकर्ता है। तीन साल पहले मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि केजरीवाल उधर से ही जुड़ा है, लेकिन क्या हुआ? आपने एक फिल्म देखी होगी ‘हीरो’। उसके अंदर एक विलेन था अमरीश पुरी। वो जैकी श्रॉफ को छोटे बच्चे से पाल कर बड़ा करता है, गुंडा बनाता है। बाद में जब जैकी श्रॉफ उलटा उसके ऊपर हमला करता है तो वह जो कहता है, उसका मतलब है, मेरी बिल्ली मुझे ही म्याऊं। आंदोलन आरएसएस का, उस आंदोलन से केंद्र में भाजपा की सरकार बन गई, उसी आंदोलन से निकल के इन्होंने अपनी पार्टी बना ली और खुद मुख्यमंत्री बन बैठे। फिर प्रधानमंत्री बनने का सपना, प्रधानमंत्री को गरियाने लगे। तब जाकर आरएसएस को, मोदी को, सबको लगा कि ये तो हमारे आंदोलन से निकला और हमें ही आंखें दिखा रहा है। इसका दिमाग ठीक करते हैं। तो दिमाग ठीक करने में सबसे पहले अधिकारियों को कंट्रोल किया, ऐंटी-करप्शन ब्रांच ली और उसको बिना दांत वाला जीव बना दिया जो काट ही न पाए किसी को। आज दिल्ली सरकार की क्या वैल्यू है? मैं उसमें मंत्री रहा हूं साढ़े पांच साल और अपने अनुभव के आधार पर ये कह रहा हूं कि दिल्ली सरकार के पास कोई पावर नहीं है।
कैसा अनुभव? सब समझने के बाद आप वहां क्या कर रहे थे मंत्री रह कर?
मंत्री के तौर पर पहले कार्यकाल में मुझे काम करने दिया गया। लोग सीवर में डूब के मर जाते थे, मैं योजना लेकर आया। सीवर में उतरने पर मैंने बैन लगा दिया और दो सौ मशीनें लेकर आया। दूसरा, मैंने जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना बनाई। इसमें प्रतिस्पर्धी परीक्षा की तैयारी करने वाले पंद्रह हजार बच्चों के लिए पूरी कोचिंग का खर्चा उठाने और ढाई हजार महीना स्टाइपेंड देने का इंतजाम किया- छह-छह हजार एससी-एसटी और ओबीसी और तीन हजार ईडब्लूएस। इसी तरह मैंने चार-पांच योजनाएं बनाईं। पहली सरकार में मुझे जो इनमें सहयोग मिला, दूसरी सरकार में खत्म हो गया जबकि सबकी जीत का अंतर कम हुआ था लेकिन मेरा वोट बढ़ा था। फिर मैं मंत्री बना, लेकिन जो भी योजना लेकर गया अरविंद केजरीवाल जी ने एक भी बनाने नहीं दी। मुझे कहा इंतजार करो, अभी बताएंगे, बाद में करना। मैंने कहा कि ये जो जेजे क्लास्टर हैं वहां बीस-बीस गज के मकान हैं और पढ़ने वाले बच्चों के लिए जगह नहीं है, मुझे सौ लाइब्रेरी बनानी है। कहने लगा आप रहने दो मनीष बनाएगा। तो मनीष जी से बनवा दो। कोई भी बनाए, बच्चों को लाइब्रेरी चाहिए। मैं दावे के साथ कह सकता हूं सरकार का कार्यकाल पूरा हो गया और एक भी लाइब्रेरी नहीं बनी। ये नीयत है इनकी। ये जो कहते हैं न कि बच्चों को मुफ्त पढ़ा रहे हैं, डाटा दिखाता हूं आपको, आप चौंक जाएंगे। अभी कल परसों का बयान है कि अठारह लाख बच्चों को मुफ्त पढ़ा रहे हैं। इनका मुफ्त वाला मॉडल मैं बताता हूं। और मेरी असली तकलीफ, आम आदमी पार्टी छोड़ने की वजह- मैंने डेढ़ सौ करोड़ मांगा था अरविंद केजरीवाल जी से बजट में। मैंने कहा 69000 करोड़ का बजट है, बतौर मंत्री आप डेढ़ सौ करोड़ मुझे दे दो ताकि दिल्ली सरकार के मेडिकल, मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, लॉ कॉलेज में जो बच्चे चुने जा रहे हैं लेकिन बेचारे फीस नहीं दे पा रहे और पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं उनकी मैं फीस भर दूं। मना कर दिया। मैंने तब कहा कि सब नाटकबाजी है, झूठ फरेब है। आपको पता होगा कि उन्होंने पढ़ाई के लिए 10 लाख तक के लोन की घोषणा की थी बिना किसी गारंटी के, अरे किसको मिला एक नाम बता दो जबकि उसका प्रचार करने में कई करोड़ खर्च हो गए होंगे। एक भी बच्चेे को दस लाख का लोन नहीं मिला। उलटे इनकी पढ़ाई का मॉडल ये है कि दिल्ली सरकार के कॉलेजों ट्रिपल आइटी, एनएलयू, एनएसयूटी में बीस लाख की डिग्री मिल रही है। इसे कहते हैं फ्री? या केवल बारहवीं तक पढ़ाने की बात कर रहे हो आप? बारहवीं तक पढ़ के बच्चा क्या बन जाएगा? एक बच्चा बीस पचीस लाख रुपया कहां से लाएगा? क्या केजरीवाल जी ने शिक्षा को इंडस्ट्री बना दिया है? पहले युनिवर्सिटी को ग्रांट-इन-एड मिलती थी, अब कह दिया कि जाकर अपने खर्च का इंतजाम खुद करो। तो ये जो मुफ्त शिक्षा वाला इनका मॉडल है बिलकुल मोदी के फर्जी गुजरात मॉडल जैसा है जहां अहमदाबाद के ट्रैफिक पुलिस का भी निजीकरण किया जा चुका है। इसमें सब निजी हाथों में दिया जा रहा है, सब कुछ ठेकेदारी पर चल रहा है। तो केजरीवाल का दिल्ली मॉडल गुजरात के फर्जी मॉडल के जैसा ही है और इसलिए है क्योंकि जिस मूवमेंट से वे निकले हैं वही पूरा का पूरा आरएसएस का था। इसीलिए दोनों की लाइन एक है।
क्या इसीलिए चुनाव की घोषणा से पहले केजरीवाल ने मोहन भागवत को चिट्ठी लिखी थी?
हां, तो जब दो बच्चे आपस में झगड़ते हैं तो पिताजी से शिकायत करते हैं न कि मेरे को उसने मारा, बस इतना ही है और कुछ नहीं। ये सब छोटे छोटे प्यादे हैं आरएसएस के। आरएसएस ने पहले सोचा नहीं होगा कि इतना चतुर है कि उसी को आंखें दिखाएगा।
तो आज की तारीख में दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा का दुश्मन एक है न?
आप ये मानिए कि देश में लड़ाई विचारधारा की है। एक समतावादी न्यायवादी विचारधारा है जिसको आप संविधान पर चलने वाली और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर, फुले, साहू जी महाराज जैसे समता आंदोलन के तमाम महान लोगों की विचारधारा कह सकते हैं। दूसरी मनुवादी विचारधारा है जो मनुस्मृति से देश को चलाना चाहती थी, जैसे आरएसएस। रामलीला मैदान में नेहरू और आंबेडकर के पुतले आरएसएस और हिंदू महासभा ने जलाए थे। विचारधारा की इस लड़ाई में भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों एक हैं। दोनों में अंतर नहीं है। दोनों सरकार के कार्यक्रम में ब्राह्मण को बुलवा के पूजा-अर्चना करते हैं। मुझे आज भी याद है जल बोर्ड का प्रोजेक्ट था मजनूं के टीले के पास चंद्रावल प्लांट का, उसमें बाकायदा हिंदू साधू को बुला कर मंत्रोच्चारण से उद्घाटन किया। यही काम मोदी कर रहे हैं। इसीलिए मैंने घोषणा की है कि विचारधारा की इस लड़ाई में केजरीवाल नहीं बचेंगे। उनको जैसे ही लगेगा कि उनके पैर टूट गए, अब वे और नहीं चल पाएंगे, वे या तो भाजपा में चले जाएंगे या इधर आएंगे। इधर आने की संभावना नहीं है क्योंकि वे मनुवादी हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं बचेगा। समतावाद और मनुवाद में से पूरे देश के लोगों को एक विचार चुनना ही पड़ेगा।
ये विचारधारा वाली बात आपको तब क्यों नहीं समझ आई जब आप केजरीवाल के साथ गए थे? तब आपको केजरीवाल की विचारधारा क्या समझ में आ रही थी?
देखो, उस समय तो पूरे देश के लोग आंदोलन से प्रभावित थे। जब कोई झूठा प्रपंच बनाया जाता है तो एकदम से पता नहीं चलता। हम क्या, सब बह गए थे उसमें। कौन नहीं जुड़ा उसमें? लगा कि पूरा देश बदल जाएगा, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा, काला धन वापस आएगा, पता नहीं क्या-क्या। लेकिन जहर तो जहर का ही काम करेगा। जब हम गए तो धीरे-धीरे उसका अहसास होने लगा क्योंकि उन्होंने अपनी विचारधारा को लागू करना शुरू कर दिया। रोजगार देने की बात केजरीवाल ने कभी नहीं की। रोजगार तो छोड़ो, बच्चा कायदे से पढ़-लिख जाए तो अपना रोजगार खुद ले लेगा लेकिन मेरी असली पीड़ा ये है कि बच्चों के पढ़ने के लिए इन्होंने फीस का इंतजाम तक नहीं किया। कोई शक नहीं कि इन्होंने स्कूल बनवाए, लेकिन बारहवीं के आगे क्या होगा? इसी पीड़ा की वजह से मैंने आम आदमी पार्टी को छोड़ा। यह आरएसएस के गुरु गोलवलकर वाली विचारधारा से उपजी नीति है जो उन्होंने बंच ऑफ थॉट में लिखा है, कि लोगों को शिक्षा से दूर कर दो और पूरे देश का पैसा दो-चार हाथों में रखो ताकि लंबे समय तक राज कर सको। फ्री की छोटी-छोटी चीजें हमारे टैक्स के पैसे से ही बांटो ताकि लोग उसके आदी हो जाएं, फिर राज करते रहो। पांच पैसे की टॉफी खिलाकर जैसे बच्चों को बहलाते हैं न, वैसे ही बहला रहे हैं केजरीवाल और मोदी।
समतावादी विचारधारा की बात आपने की है, उस संदर्भ में ध्यान आया कि तीन प्रमुख दलों के अलावा केवल बहुजन समाज पार्टी ने दिल्ली की सभी 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। दिल्लीे के दलितों के संदर्भ में चुनाव को आप कैसे देख रहे हैं? दलितों की असली लड़ाई यहां कौन लड़ रहा है?
कांशीराम साहब का जो सामाजिक न्याय का आंदोलन था जिसमें अलग-अलग जगह से उन्होंने हीरे लेकर बगिया बनाई और बहुजन समाज का निर्माण किया, 2006 के बाद बहनजी इसे सर्वजन की तरफ ले गईं। अब पार्टी पूरी तरह खत्म हो चुकी है। अब उसका आधार कहीं नहीं बचा है। सामाजिक न्याय की बात खत्म हो गई। बगिया उजड़ गई। उसी में से निकल के निषादराज पार्टी, अपना दल, सुहेलदेव पार्टी बन गई। सब अपनी-अपनी पार्टी चला रहे हैं। सपना खत्म हो गया। अब दिल्ली में जो इन्होंने कैंडिडेट खड़े किए हैं, तो मैं या कोई भी जो बसपा से प्यार करता था सभी इससे आहत हैं। हम लोग असहमत होते हुए भी उनके खिलाफ कमेंट नहीं कर सकते क्योंकि हम बहनजी से प्यार करते हैं, उनकी इज्जत करते हैं। हां, जितने अफर्मेटिव ऐक्शन देश में हुए हैं आज तक सब कांग्रेस के दौर में हुए थे। केवल दिल्ली की बात करूं तो यहां पैंतालीस जेजे क्लस्टर हैं। इन सब में कांग्रेस के टाइम मकान दिए गए। दिल्ली के देहातों में कांग्रेस के दौर में बीस सूत्रीय कार्यक्रम के तहत एक सौ बीस गज के प्लॉाट मिले। मेरे मामाजी को भी मिला था। मैं पैदा दिल्ली में हुआ, यहीं पला-बढ़ा हूं। वजीफा इतना मिलता था कि पढ़ाई हो जाती थी। वर्दी मिलती थी, किताबें मिलती थीं। आरक्षण से मेहनत कर के नौकरी में आ जाते थे। आज सब सार्वजनिक उपक्रम बेच दिए, शिक्षा महंगी कर के दलितों को पढ़ाई से दूर कर दिया। यानी जब देश गरीब था तब शिक्षा सस्ती थी और जब देश अमीर हो गया तब शिक्षा महंगी हो गई। ये कौन सा मॉडल है देश का, मेरी समझ से परे है। ऐसे में तो मुझे लगता है कि कांग्रेस इकलौती पार्टी है जो बाबासाहब आंबेडकर के सपनों को पूरा कर सकती है।
आपने बीते दिनों ईवीएम के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है। दिल्ली के चुनाव में फिर ईवीएम की बारी है। आपके आंदोलन ‘ईवीएम हटाओ देश बचाओ’ का क्या हुआ और इस चुनाव में क्या आप कोई हस्ताक्षेप की योजना बना रहे हैं?
उस आंदोलन का हश्र ये हुआ कि हमारे साथ कोई भी पार्टी नहीं आई। राजनीतिक दलों की उदासीनता की सूरत में कोई भी सामाजिक आंदोलन कितने दिन बच सकता है? इसी पार्क में सारी मीटिंग होती थी, प्रेस कॉन्फ्रेंस होती थी। सारे देश का सर्वे करवाया हमने, 75 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वे ईवीएम नहीं चाहते, लेकिन ऐसा लग रहा है कि चुनाव आयोग भाजपा के लिए काम कर रहा हो। तमाम पार्टियां भी चुप्पी साधे रहीं। आंदोलन ने दम तोड़ दिया। इसका एक और कारण है। जितने भी यूट्यूब चैनल हमारे आंदोलन की खबरें चला रहे थे, सरकार के दबाव में उनका मोनेटाइजेशन बंद करवा दिया गया। उनकी आय बंद हो गई। छोटे-छोटे लोग करोड़ों लोगों तक हमारी बात पहुंचा रहे थे। वे शांत हो गए। इसलिए ईवीएम तो आज भी अपना रोल निभाएगी। दो-तीन परसेंट चोरी उससे होती ही होती है। इतना वोट सरकार बनाने के लिए काफी होता है।