दिल्ली के चुनाव में पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार का भ्रष्टाचार मुद्दा है, जो खुद भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की पैदाइश थी। इस भ्रष्टाचार के केंद्र में दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कथित शराब घोटाला है जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दोनों को जेल हो चुकी है। थोक और खुदरा शराब बिक्री का निजीकरण करने वाली दिल्ली की नई शराब नीति 17 नवंबर, 2021 को लागू हुई थी। उसके खिलाफ सबसे पहला और आक्रामक विरोध भारतीय जनता पार्टी के विधायक जितेंद्र महाजन ने किया था, जो 26 नवंबर, 2021 को साइकिल चलाकर विधानसभा पहुंच गए। इसके चलते उन्हें असेंबली के एक दिन के विशेष सत्र से न केवल निलंबित किया गया, बल्कि शराब का एक ठेका बंद करवाने के आरोप में उनके ऊपर मुकदमा चला और दोषी भी ठहराया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे महाजन दो बार रोहतास नगर विधानसभा से विधायक रहे और अबकी फिर से चुनाव मैदान में हैं। मंडोली रोड पर उनके चुनावी कार्यालय में अभिषेक श्रीवास्तव ने जितेंद्र महाजन से चुनाव प्रचार की उनकी व्यस्तता के बीच खुलकर बात की।
चुनाव कैसा चल रहा है?
ठीक चल रहा है। जैसा रिस्पॉन्स यहां मिल रहा है उससे तो हमें लग रहा है कि क्लीन स्वीप है, इस बार भाजपा आएगी। मेरा मामला यह है कि कांग्रेस ने बहुत कमजोर कैंडिडेट दिया है। आम आदमी के साथ आमने-सामने की फाइट है। फिफ्टी परसेंट वोट से ऊपर मैं जाऊंगा तभी जीतूंगा, नीचे रहा तो नहीं जीतूंगा।
पिछले चुनाव में भाजपा उतना सक्रिय क्यों नहीं थी, इस बार इतनी आक्रामक क्यों है?
तब तक कोई घोटाला एक्सपोज नहीं हुआ था। इस बार जब घोटाले एक्सपोज हुए, जैसे शराब वाला, तो उसे जनता की नजरों में बहुत ज्यादा गिरा दिया। आप देखिए, उस समय केजरीवाल का नाम बहुत बड़ा था। सरिता सिंह (आप प्रत्याशी, रोहतास नगर) का जब नाम पहली बार आया था तो पब्लिक में ये था कि किसी सरिता सिंह का टिकट घोषित हो गया। वो सत्रह दिन में आईं और सत्रह दिन में चुनाव जीत गईं। केजरीवाल के नाम पर कोई भी खड़ा हो गया तो उस वक्त जीत गया। आज केजरीवाल के नाम पर ये चुनाव लड़ते हैं तो प्रत्याशी के नाम पर तो कुछ है ही नहीं यहां पर, और केजरीवाल को दुनिया तैयार बैठी है निपटाने के लिए क्योंकि उनकी इमेज बहुत खराब हो गई है।
शराब का ठेका बंद करवाने के आरोप में आपको सजा हुई। यह अपने आप में एक दिलचस्प मामला था। क्या हुआ था?
शराब पॉलिसी टर्निंग प्वाइंट थी। पॉलिसी लागू होने के बाद हमारे गली-मुहल्लों में शराब के निजी ठेके खुलने शुरू हो गए थे। यह वो विधानसभा है जिसमें उसका सबसे पहले विरोध हुआ। शराबबंदी आंदोलन इसी विधानसभा से शुरू हुआ। उसमें मेरे ऊपर चार मुकदमे लगे। एक में तीन महीने की सजा हुई। सेशन में जाकर मैं बरी हुआ। हमारे यहां की एक हजार महिलाएं अरविंद केजरीवाल के दफ्तर पर गईं, आइटीओ चौक जाम कर दिया। ये वो विधानसभा है। हमारे यहां शराब के खिलाफ बावन कार्यक्रम हुए। यहीं से आंदोलन पूरी दिल्ली में फैला।
आप लोगों को शुरू में पता कैसे चला कि शराब का कोई घोटाला हुआ है?
देखो, आम समाज में शराब चाहे कोई भी पीता हो लेकिन सबकी इच्छा रहती है कि उसके घर के आसपास शराब का ठेका न हो। कारण ये है कि वहां जो माहौल हो जाता है वह आदमी सहन नहीं कर पाता है। लोग शराब पी रहे हैं, टॉयलेट कर रहे हैं वहीं, बहुत बुरी स्थिति हो जाती है। वैसा माहौल यहां पर हो रहा था। यहीं पर शराब का एक ठेका खुला था। उस एक ठेके पर अठारह कार्यक्रम हुए। महिलाओं के प्रदर्शन हुए। रोज कुछ न कुछ होता था। हमारी विधानसभा में सात ठेके खुल गए थे। सब आबादी के बीच में खुले थे। गुस्सा उसके खिलाफ था। हमने भी दबाकर ठोंका। दिल्ली भाजपा से हजार महिलाएं इकट्ठी नहीं हो पाईं, लेकिन हम यहां से हजार महिलाएं नौ बसों में भरकर आइटीओ ले गए।
वो ठेके चल रहे हैं या बंद हो गए?
वो ठेके तो बंद हो गए, लेकिन फिर सरकारी ठेके खोल दिए गए। वो हमारे यहां बड़ा मुद्दा है आज की डेट में, कि नई सरकार आएगी तो शराब के ऊपर जो पॉलिसी है उसको बदलेंगे। हम तो आवाज उठाएंगे। अभी हमारे यहां सौ मीटर के अंदर दो ठेके हैं, तीसरा और खोल रहे हैं लेकिन हम लोग खुलने नहीं दे रहे हैं। आचार संहिता से पहले हमने प्रदर्शन किया था। आप कहें तो मार्केट वालों से मैं बात करा सकता हूं।
भाजपा की कोई पॉलिसी तय हुई है इसको लेकर? इससे जो रेवेन्यू आ रहा था उसका क्या?
ये जनता की पॉलिसी है। जनता नहीं चाहती कि ठेके खुलें। हम जनता के साथ हैं। रेवेन्यू का सरकार देखे कैसे चलाना है। दुनिया को, लोगों को बरबाद कर के थोड़े ही शराब के ठेके खोले जाएंगे। हम तो खुल के विरोध करते हैं।
क्या हम मान सकते हैं कि भाजपा सरकार आती है तो ये ठेके बंद हो जाएंगे?
भाजपा सरकार आती है तो जितेंद्र महाजन इन सब बातों पर बोलेगा। हमने सोच रखा है कि सरकार किसी की भी हो हम तो इस मुद्दे को उठाएंगे। हो सकता है हमारी सरकार की भी कुछ मजबूरी हो, लेकिन मैं तो उसका विरोध करूंगा। इसी विधानसभा में आज भी ये मुद्दा जिंदा है कि सरकार को रिहायशी इलाकों में ठेके नहीं खोलने चाहिए।
जब भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हुआ था तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उसका सक्रिय समर्थन किया था, दोनों की वैचारिकी में भी बहुत फर्क नहीं दिखता था...
हम भी खाना ले के जाते थे...
... जी, तो ये जो घोटाले आपने बताए, इसके अलावा वैचारिक स्तर पर ऐसी क्या नौबत आ गई है कि भाजपा अब आम आदमी पार्टी को उखाड़ने पर आमादा हो गई है?
आप देखिए न, दिल्ली से चलकर ये पंजाब पहुंच गए। पंजाब में दोबारा खालिस्तान खड़ा हो गया। पंजाब में इनकी सरकार ने किसान आंदोलन के नाम पर जितने इस प्रकार के लोग थे सबको दिल्ली की तरफ भेज दिया। इनका जो अपना स्टेटमेंट है कि हम फंस गए, हम लालकिले की तरफ चल दिए, हम तो जाते जंतर-मंतर पर, वहां जा के कब्जा करते... तो जिस प्रकार की गतिविधि ये चला रहे हैं उससे बहुत साफ हो गया कि अलगाववादी भी इनके आंदोलन में शामिल हैं। इस कारण ये नासूर बनने लग गए थे। स्वाभाविक है कि भाजपा ने भी सोचा कि इनको अब पैक करना है। आप ये देखिए कि ये दिल्ली को कहां तक ले आए हैं। चौदह सीएजी रिपोर्ट हैं, वो इन्होंने पेश नहीं की। बुजुर्गों और विधवाओं की पेंशन चार-चार महीना लेट है। हर चीज इन्होंने चुनाव पर टाल दी है कि जब अगली सरकार बनेगी तब हम उसको ठीक करेंगे। ग्यारह साल में ठीक नहीं कर पाए तो अब क्या ठीक करेंगे।
अधिसूचना से पहले केजरीवाल ने सरसंघचालक को एक चिट्ठी लिखी थी। संघ का होने के नाते आपका इस घटना पर क्या आकलन है?
देखिए, बेसिकली थोड़ी-बहुत वो जानकारी रखते हैं। जब उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाया तो एक बड़े उद्देश्य के लिए, बड़े सुधार के लिए हमारे जैसे लोग भी वहां खाना लेकर जाना, पानी लेकर जाना, और कहीं न कहीं संघ ने भी उस आंदोलन को सपोर्ट किया था। स्वाभाविक है कि भाजपा भी संघ विचार परिवार का एक संगठन है। केजरीवाल समझदार आदमी हैं। मोदी जी की तो पूरे पांच साल वो गाते हैं, तो एक बार परम पूजनीय सरसंघचालक जी को भी उन्होंने कहा। वो हमारी कार्यपद्धति जानता है, कि भाजपा के अंदर संघ का क्या स्थान है, तो उन्होंने कहा, ये दिखाने के लिए कि भाई भाजपा को समझाओ, भागवत जी हस्तक्षेप करो। कुटिलता भरा था ये।
संघ इस बार क्या भूमिका निभा रहा है दिल्ली चुनाव में?
चुनाव में तो महीने दस दिन के लिए संघ का स्वयंसेवक हमें सहयोग करता ही है। जनता सब जानती है। बस याद दिलाने का काम संघ के स्वयंसेवक करते हैं, कि सामने वाला आदमी क्या है। जब धर्म की बात होती है तो जिसकी नानी हमें ये समझा रही थी कि जहां मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाया जाता है वहां पूजा नहीं हो सकती इसलिए मैं नहीं जाऊंगी, और अब हफ्ता दस दिन पहले वो दर्शन करके आए हैं परिवार सहित। तो इन सब बातों का लाभ हमें मिलता है याद दिलाने पर।
तो आपको लगता है कि राम मंदिर का कोई असर है इस चुनाव में?
आप देखिए कि हम राम मंदिर का एक कैलेंडर बांट रहे हैं। उस कैलेंडर की इतनी मांग है कि हम गलियों में जा रहे हैं तो लोग कह रहे हैं रामजी वाला कैलेंडर दे दो। कुछ चीजें सुनने में अनुभव नहीं होती हैं, देखने में अनुभव होती हैं। रामजी का हमारे समाज में जितना बड़ा महत्व है, आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते।