ब्लैक फंगस बीमारी कितनी खतरनाक है?
फंगस वैसे तो सफेद रंग के होते हैं, लेकिन शरीर में गल जाते हैं। इसी वजह से नाक के जरिए काले रंग का नेकरोटिक्स टिश्यू निकलता है। इसलिए इसे ब्लैक फंगस कहा जा रहा है। हालांकि इसका वैज्ञानिक नाम म्यूकोरमाइकोसिस है। यह बहुत खतरनाक होता है। यह रक्त कोशिकाओं के जरिए शरीर में पूरी तरह से फैल जाता है। वैसे तो यह शरीर के किसी भी हिस्से में फैल सकता है लेकिन भारत में ज्यादातर मामले राइनो सेरिब्रल मतलब आंख, नाक और मस्तिष्क में पाए जा रहे हैं। यह बहुत घातक फंगस है, स्थिति गंभीर हो जाने पर मृत्यु दर 30-50 फीसदी हो सकती है।
क्या ब्लैक फंगस के मामले भारत में पहली बार सामने आए हैं?
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। ब्लैक फंगस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में पाया जाता है। समझने वाली बात यह है कि विश्व में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा डायबिटीज के मामले भारत में पाए जाते है। ऐसे में जिन लोगों की इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कमजोर होती है उन पर यह फंगस तेजी से हमला करता है। जब कोविड-19 नहीं था, उस वक्त भी हमारे देश में फंगस था। लेकिन कोविड-19 के मामले आने के बाद ब्लैक फंगस के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
कोविड-19 की दूसरी लहर में ब्लैक फंगस के ही मामले क्यों बढ़े हैं?
एक तो भारत में पहले से ही डायबिटिज के मरीज ज्यादा हैं, वहीं कोविड-19 वायरस पैंक्रियाज पर असर डालता है। इससे मरीज के शुगर लेवल में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है। इसके अलावा जिन लोगों ने स्टेरॉयड ली हुई है, उनकी इम्युनिटी कमजोर हो जाती है।
तो, ज्यादा स्टेराइड के इस्तेमाल से यह बीमारी गंभीर हो गई है?
सबसे दुखद यह है कि अभी तक देश में स्टेरॉयड के इस्तेमाल की कोई गाइडलाइन नहीं बन पाई है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन में इसकी गाइडलाइन अपडेट होती रही है। अभी हाल ही ब्रिटेन ने एक नई गाइडलाइन जारी की है जिसमें कहा गया है कि केवल उस मरीज को स्टेरॉयड देना है जिनमें ऑक्सीजन की कमी है या फिर जो वेंटिलेटर पर है। हमारे यहां तो हर किसी को स्टेरॉयड दी जा रही है। हम स्टेरॉयड का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसका साइड इफेक्ट हो रहा है। पहले हमारे पास दो-तीन महीने में ब्लैक फंगस के एक-दो मामले आते थे। अब तो वार्ड (20-30 मरीज) ही भरे पड़े हैं।
ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण क्या हैं और उस वक्त मरीज को क्या करना चाहिए?
अगर किसी व्यक्ति को कोविड-19 से ठीक होने के बाद दो-तीन हफ्ते के अंदर जुखाम हो जाए, बुखार आ जाए और संक्रमित व्यक्ति के नाक में से कुछ काला सा निकल रहा है, तो तुरंत उसे डॉक्टर के पास जाना चाहिए। उस समय एंडोस्कोपी और सीटी- स्कैन करके तुरंत इलाज शुरू हो जाए तो मरीज ठीक हो जाता है। शुरू में इलाज होने पर सर्जरी की बहुत कम जरूरत पड़ती है।
ब्लैक फंगस का पुख्ता इलाज क्या है?
इसके इलाज में कोई दुविधा नहीं है। यह पूरी तरह से तय है। इसके लिए एम्फोटेरिसिन-बी दवा दी जाती है। लेकिन इसकी डोज देने में खास ध्यान रखना होता है। व्यक्ति के वजन के आधार पर डोज तय होती है। प्रति एक किलोग्राम वजन पर 3-7 मिलिग्राम दवा दी जाती है। इस दवा का भी साइड इफेक्ट होता है। यह किडनी पर असर डालती है इसीलिए इसे डॉक्टर की निगरानी में डेक्सट्रोज के साथ दिया जाता है। हमें कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीजों के लिए निगरानी प्रोटोकोल बनाना पड़ेगा। हर दूसरे-तीसरे हफ्ते बुलाकर उनका चेकअप किया जाना चाहिए, ताकि पता चलता रहे कि उन्हें ब्लैक फंगस हो रहा है कि नहीं।
इससे बचाव का क्या तरीका है?
इससे बचाव का कोई ऐसा खास तरीका नहीं है कि हम यह कह दें कि आप हाथ धो लो तो ब्लैक फंगस नहीं होगा। फिलहाल की परिस्थितियों में मास्क पहनना जरूरी है। अभी तो यह कोशिश होनी चाहिए कि डॉक्टर स्टेरॉयड का बहुत ध्यान से इस्तेमाल करें। इससे मरीज से ज्यादा हम डॉक्टरों के ऊपर जिम्मेदारी है कि मरीज का ठीक से उपचार करें।
आपने शुरुआत में कहा कि यह दवा से ठीक हो सकता तो ऑपरेशन की नौबत कब आती है?
इसका इलाज तो एंफोटेरिसिन-बी दवा है। लेकिन यह फंगस रक्त कोशिकाओं को ब्लॉक कर देता है। तब दवा संक्रमित जगह पर नहीं पहुंच पाती है। इसलिए दवा पहुंचाने के लिए ऑपरेशन करना पड़ता है और फंगस को हटा दिया जाता है। लेकिन कई बार यह आंख तक पहुंच जाता है और तेजी से फैलता है, वैसी स्थिति में आंख भी निकालनी पड़ती है। अगर संक्रमण मस्तिष्क तक पहुंच गया तो मरीज की जान का खतरा बढ़ जाता है।
आजकल दवाओं को लेकर भी काफी भ्रांतियां हो गई हैं, इसको आप कैसे देखते हैं?
ब्लैक फंगस के इलाज के नाम पर पोसाकोनाजोल का भ्रम फैलाया जा रहा है। मैं यह साफ करना चाहता हूं कि पोसाकोनाजोल से कोई इलाज नहीं हो सकता है। दुख की बात है कि हम पहले तो कोविड-19 पर कोई उचित गाइडलाइन नहीं बना पाए और अब ब्लैक फंगस पर नहीं बना पा रहे हैं। ब्लैक फंगस को लेकर कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए क्योंकि इसका क्या इलाज है यह पूरी तरह से प्रमाणित और स्थापित है। बस उसे ही डॉक्टरों को लागू करना है।