बीते नवंबर में दिल्ली की 70 सीटों पर न्याय यात्रा निकालकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने चुनावी बिगुल फूंक दिया था। दिवंगत शीला दीक्षित के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में ही यादव पीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके थे और एआइसीसी में उत्तराखंड सहित पंजाब के प्रभारी भी रह चुके हैं। चुनाव में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने के साथ वे बादली विधानसभा से खुद प्रत्याशी भी हैं। प्रचार पर निकलने से पहले कोहाट एंक्लेव स्थित उनके आवास पर तड़के अभिषेक श्रीवास्तव ने देवेंद्र यादव के साथ विस्तृत बातचीत की।
आपने जो 62 सीटें पाने का दावा कर दिया है, जनता आश्चर्य में है कि कांग्रेस को इतनी सीटें कहां से और कैसे आ रही हैं।
जनता ही तो आश्चर्य करती है, और 67 सीट ले जाती है। किसने सोचा था 67 सीटें आ जाएंगी? जब जनता करती है तो ऐसे ही करती है। जनता का मूड बहुत उलटा है। वे बिलकुल भी केजरीवाल को पसंद नहीं कर रहे। आप किसी भी सेगमेंट को उठा के देख लो। सिर्फ सेंटिमेंट देखने की जरूरत है... (बादली विधानसभा का एक वीडियो दिखाते हुए) इनको खुलकर गाली दे रहे हैं लोग। यह सीन हर जगह दिखाई दे रहा है। ये जो कॉरपोरेशन में मेयर बने हैं न, ये ले के डूब गए हैं। पहले कॉरपोरेशन इनके पास नहीं था, तो बच जाता था। नाली जाम है, सीवर खराब है, राशन कार्ड क्यों नहीं बन रहा है, पानी गंदा क्यों आ रहा है, इन सवालों से पहले ये बच जाता था। अब केजरीवाल नहीं कह सकता कि मेरे पास ये सब नहीं है। दस साल हो गए। अब क्या बहाना दोगे?
कांग्रेस के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी कौन है- आम आदमी पार्टी या भाजपा?
भाजपा के पास अपना तय वोट है, लेकिन वह दिल्लीवालों की स्वाभाविक पसंद नहीं है। फिर भी, उसका हिंदुत्व वाला वोट, कैडर वोट, सब मिलाकर बत्तीस से तैंतीस प्रतिशत तक है जो बहुत बेहतर होगा तो 38 तक जाएगा। फिर भी वे सरकार बनाने की स्थिति तक नहीं आ पाते हैं। मुद्दा यह है कि आम आदमी के पास सिर्फ केजरीवाल है। केजरीवाल है तो सब कुछ है। आज उसकी निजी छवि कमजोर हुई है। लोगों का मूड केजरीवाल के इतना खिलाफ है जितना शीलाजी या हमारी पंद्रह साल की सरकार के खिलाफ भी नहीं था। जब कांग्रेस के खिलाफ मूड था तब उनकी 67 सीट आ गई। स्वाभाविक है कि मैं अगर कहता हूं कि हमारी भी साठ-बासठ सीटें आ सकती हैं, तो उसका सीधा मतलब यह है कि आम आदमी पार्टी पूरी तरह से तितर-बितर हो चुकी है। दुश्मन तो हमारी भाजपा है, लेकिन वोट शेयर हमारे पास आम आदमी पार्टी का आ रहा है।
मान लेते हैं कि पूरी तरह वोट शेयर नहीं पलटता है और 2013 वाली स्थिति बनती है जब आपने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर 49 दिन की सरकार बनवाई थी, और आपको तय करना पड़ा कि किधर जाना है...
गलती बार-बार नहीं होती... हमने कहा न, नहीं जाएंगे। ये पहले से तय है। हम किसी के पास नहीं जाएंगे।
तो आप भाजपा की सरकार बनने देंगे...?
ये स्थिति कैसे हो जाएगी? ये एक काल्पनिक सवाल है। मैंने कहा कि मेरा किसी के साथ कोई संबंध नहीं है। मैं समझौता नहीं करूंगा। मैं का मतलब कांग्रेस पार्टी किसी के साथ नहीं जाएगी।
आपकी पार्टी के लोगों का कहना है कि चुनावी तैयारी में थोड़ी देरी हो गई वरना कांग्रेस का प्रचार और आक्रामक होता...
हमारा संगठन एकदम चुस्त है। जो जमीनी स्तर के हमारे योद्धा हैं वे ब्लॉक और बूथ स्तर पर तैनात हैं। वे हमने रिवाइव किए हैं। वे अपनी जगह पर कार्यरत हैं। जिलों के अध्यक्ष हमारे काम कर रहे हैं। जो लोग पद के लालची थे, जिनको विधायक-सांसद बनना था, वे सब पार्टी छोड़ कर पहले ही चले गए। अब हमारे पास केवल कैडर है और कैडर काम करने में विश्वास करता है। उनको उतना सम्मान हम दे रहे हैं।
इस चुनाव में हम पहली बार देख रहे हैं कि डिलिवरी वाली पॉलिटिक्स, जिसे रेवड़ी भी कहते हैं, वह अपने शबाब पर है जिसकी शुरुआत केजरीवाल जी ने की थी...
माफ कीजिएगा, किसी ने नहीं करी... आप याद कर लीजिए शीलाजी की सरकार थी तब लाडली योजना हमने शुरू की थी। शीलाजी की सरकार थी तब सौ यूनिट बिजली फ्री मिलती थी। हमने प्रचार नहीं किया। प्रचार क्यों नहीं किया? क्योंकि वो उनकी जरूरत थी। इन लोगों ने प्रचार बहुत ज्यादा किया। जैसे पचास करोड़ का विज्ञापन कर दिया कि हम स्कॉलरशिप देंगे एससी-एसटी को, लेकिन मात्र पचीस लाख रुपये उन्होंने दिए। तो ये ढिंढोरा पीटना इन्होंने सिखाया है जरूर इस देश को, लेकिन अगर जरूरतमंद की जरूरतें पूरे करने का काम किसी ने किया है तो वह कांग्रेस ने किया है और शुरू से किया है। सच्ची बात तो ये है कि बुजुर्गों को 2000 रुपये की पेंशन हमने दी, गरीब आदमी को अन्नश्री योजना दी, हमने एलपीजी के सिलिंडर फ्री में घर-घर बांटे। आज भी हमारी जो पॉलिसी है जिसके तहत हम किसी को कुछ देने की बात कर रहे हैं और दे रहे हैं, तो उसका बड़ा कारण ये है कि पिछले दस साल में गरीबी और महंगाई इतनी बढ़ा दी इस सरकार ने और लोगों की जेब लूटने का काम किया है, लिहाजा, उनकी जरूरतें पूरी करना जिम्मेदारी सरकार की बनती है। जो टैक्स दे रहा है उसको सुविधाएं मिलनी चाहिए। महंगाई कंट्रोल करना, रोजगार देना, सरकार की जिम्मेदारी थी। चूंकि दस साल में वह नहीं कर पाई है इसलिए ये जरूरत पड़ी कि हम लोगों को कुछ चीजें दे पाएं जिससे उनका आत्मसम्मान बना रहे। जो पटरी से उतर गया है उसको पटरी पर तो लाना पड़ेगा। तभी तो वो खुद चलेगा? तो हमारी सोच फ्री की नहीं है, लोगों को सशक्त बनाने की है। समाज को मजबूत बनाना, लेवेल प्लेइंग फील्ड देना, ये सब सरकार की जिम्मेदारी है। ये हमारा संविधान कहता है।
भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच वैचारिक रिश्ते पर कांग्रेस की समझदारी क्या है? यह सवाल इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और आप इंडिया अलायंस में साथ है।
आम आदमी तो निश्चित रूप से... देखिए समय-समय पर आम आदमी पार्टी ने यह अहसास कराया है कि वह भाजपा की बी टीम है। चाहे वह गोवा का चुनाव हो, राजस्थान हो, बहुत हाल में हरियाणा की बात करें जहां वे 1.46 प्रतिशत वोट लेकर आए और वोट बांट के कांग्रेस का नुकसान करके भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया... तो हम बहुत साफ हैं। लेकिन ये साहब इतने समझदार हैं कि ये कब यू-टर्न ले लें पता नहीं चलता। हां, वे निश्चित रूप से आज की तारीख तक इंडिया अलायंस का हिस्सा हैं लेकिन वे जैसे-जैसे एक्सपोज हो रहे हैं... चाहे आरएसएस को लिखी उनकी चिट्ठी को ही ले लीजिए। अब ये काम कौन आदमी करता है? ये वही व्यक्ति हैं जो वही एजेंडा चलाता है जो भाजपा चलाती है- ये दलित का विरोध करता है, दलित और ओबीसी के लिए कोई जगह नहीं है इनके सिस्टम में। योगेंद्र यादव की पिटाई हो जाती है। राजेंद्र गौतम अपनी बात रखना चाहता है तो उसको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। आप राजकुमार आनंद को ले लीजिए। कैलाश गहलोत को रास्ता दिखा दिया जाता है। ये वे प्रसंग हैं जो आरएसएस की वैचारिक लाइन को दिखाते हैं। जब तक हरियाणा में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का अलायंस चल रहा था तब तक तो ये महाराज जेल में थे। जैसे ही कहा कि मैं अकेले लडूंगा, जेल से बाहर आए और प्रचार करने का मौका भी मिल गया। तो हम इस मामले में बिलकुल साफ हैं कि ये धोखा दे सकते हैं और सच्चाई यही है कि ये आरएसएस की ही बी टीम है।
यानी फिलहाल के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों की साझा दुश्मन आम आदमी पार्टी है?
बिलकुल, बिलकुल...
तो ये जो बातें पीछे कही जा रही हैं कि कांग्रेस और भाजपा मिल के दिल्ली का चुनाव लड़ रहे हैं इसमें कुछ सच्चाई हो सकती है?
कैसे आप कह रहे हैं? दोनों की साझा शत्रु कांग्रेस है, इसीलिए वे हमारा कोई नैरेटिव नहीं चलने देते। हम बात करते हैं बेरोजगारी की, महंगाई की, एससी-एसटी के साथ दुर्व्यवहार की, बुजुर्गों की पेंशन की, सफाई की, यमुना की, राशन कार्ड की, लेकिन वो क्या करते हैं? आपस में खेला शुरू कर देते हैं जब भी दिल्ली के मुद्दों की बात आती है।
इस चुनाव के बाद, चाहे जो भी नतीजा हो, इंडिया अलायंस का क्या भविष्य देखते हैं आप? खासकर आम आदमी पार्टी के संदर्भ में?
इंडिया अलायंस दिल्ली का मुद्दा नहीं। इंडिया अलायंस के बारे में मैं कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहता। यह अलायंस उस समय बना था जब एक ऐसी पार्टी जो संविधान को कमजोर करने में लगी थी तब समान विचार वाली सारी पार्टियां इकट्ठा हुई थीं। आज भी वे संविधान की लड़ाई को लगातार लड़ने का काम कर रहे हैं, लेकिन घर में भी कई बार कोई ऐसा व्यक्ति घुस आता है जो आपकी आइडियोलॉजी के खिलाफ काम करता है। इसे देखना नेतृत्व का काम होता है। वह मेरे पेस्केल से ऊपर है।
अंतिम वास्तविक आकलन दे दीजिए चुनाव नतीजों का...
दिल्ली की जनता जिसको बनाती है सीधा बनाती है। ये सेंटिमेंट से चलती है और सेंटिमेंट इस बार कांग्रेस के साथ है। इसलिए दिल्ली की जनता जो कर दे, उसका अनुमान आप और हम लगा ही नहीं सकते।