भारतीय क्रिकेट के लिए वी.वी.एस. लक्ष्मण विशेष उपहार के रूप में आए। वे बल्लेबाजी के ऐसे कलाकार थे जो शीर्ष क्रम में कहीं भी परफॉर्म कर सकते थे। पारी की शुरुआत करते हुए, कलाई घुमाने में माहिर इस हैदराबादी ने जनवरी 2000 में सिडनी में तीसरे टेस्ट में 198 गेंदों पर 167 रन बनाए थे। उस पारी ने करीब एक साल बाद ईडेन गार्डन्स में उनके मास्टरपीस के लिए जैसे आधार तैयार कर दिया था। आम तौर पर छठे नंबर पर बल्लेबाजी करने वाले लक्ष्मण उस मैच में तीसरे नंबर पर खेले। स्टीव वॉ की ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 281 रनों की पारी उनकी सर्वोच्च और सबसे यादगार है। सौमित्र बोस के साथ बातचीत में सौम्य लक्ष्मण ने अपनी इस यादगार पारी को फिर से याद किया। पेश हैं अंश:
ईडेन की मशहूर जीत को आप कैसे याद करते हैं?
वह अब भी मेरे दिमाग में ताजा है। वह टेस्ट मैच मेरे लिए सबसे संतोषजनक और पूर्णता देने वाला था। ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराना कठिन था। उनकी 16 मैचों की अपराजेय चमक डराने वाली थी। ईडन गार्डन्स में पांच दिनों में जो कुछ घटित हुआ, उससे भारतीय टीम को जीवन के सबक सीखने को मिले।
‘जीवन के सबक’ से आपका क्या मतलब है?
उस टेस्ट ने बताया कि जीवन कैसे बदलता है। हम हर दिन चुनौतियों का सामना करते हैं। टीम ने न केवल मुश्किल चुनौती (फॉलोऑन) को देखा, बल्कि उससे मुकाबले के लिए खुद को तैयार किया। जैसे, पूरे चौथे दिन राहुल (द्रविड़) के साथ बल्लेबाजी करना। हम सकारात्मक सोच के साथ आखिर तक लड़े। यही इस भारतीय टीम की पहचान थी।
आपने और राहुल ने कैसे तैयारी की? मैदान पर आपके बीच क्या बातचीत हुई?
हमने कोई योजना नहीं बनाई। हमारा लक्ष्य था कि जितनी देर तक हो सके, खेलें। सौभाग्यवश राहुल और मैंने कोलकाता टेस्ट से एक महीना पहले ही दलीप ट्रॉफी में सूरत बनाम वेस्ट जोन में वैसी ही साझेदारी की थी। उस मैच में राहुल ने शतक और मैंने दोहरा शतक लगाया था। यानी हमारे पास लंबे समय तक बल्लेबाजी करने की क्षमता थी। हमारा लक्ष्य दूसरी नई गेंद की चमक फीकी करने के साथ बल्लेबाजी करते रहना था। आखिरी सत्र चुनौतीपूर्ण था क्योंकि राहुल वायरल बुखार के साथ मैच खेल रहे थे, और मेरी पीठ में चोट के कारण भयंकर दर्द था और मैं दर्दनिवारक दवाएं खा रहा था। राहुल को बहुत तकलीफ थी और हम दोनों एक दूसरे का हौसला बढ़ा रहे थे। मुझे गर्व है कि मानसिक दृढ़ता के कारण हमने डटकर मुकाबला किया।
आपको तीसरे क्रम पर बल्लेबाजी के लिए भेजना मास्टरस्ट्रोक था?
सौरव (गांगुली) और जॉन (राइट) मुझे तीसरे क्रम (छठे से) पर शायद इसलिए ले गए क्योंकि तीसरे दिन सुबह मैंने जिस तरह बैटिंग की थी, उससे ऑस्ट्रेलिया ने फील्डिंग बिखरा दी थी। फिर भी मैं गैप तलाश कर गेंद को बॉउंड्री पार पहुंचा रहा था। इसके अलावा, जब जॉन ने कोच पद संभाला, तो उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई श्रृंखला से पहले घरेलू मैच देखे। साउथ जोन के लिए मैंने हमेशा तीसरे और राहुल ने चौथे नंबर पर बल्लेबाजी की थी। जॉन ने सूरत में मेरा दोहरा शतक भी देखा था।
2000 में सिडनी टेस्ट में आपने सलामी बल्लेबाज के रूप में शतक बनाया था। यदि आप नियमित रूप से भारत के लिए नंबर 3 पर बल्लेबाजी करते तो क्या अधिक सफल होते?
खेल में अगर-मगर मायने नहीं रखते। हर मैच में मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है। कोई भी परिणाम की गारंटी नहीं दे सकता।
क्या आपको लगता है कि ईडेन गार्डन्स की जीत भारतीय क्रिकेट के लिए महत्वपूर्ण मोड़ थी?
इस टेस्ट से पहले भी कई शानदार क्षण आए थे, लेकिन ईडेन टेस्ट के दौरान हम बदलाव के दौर से गुजर रहे थे। सौरव हमारे नए कप्तान थे और बहुत से युवा खिलाड़ी उभर रहे थे। हमारा उद्देश्य नंबर एक टेस्ट टीम बनना और घर और बाहर, दोनों मैदानों पर सर्वश्रेष्ठ को हराना था। वॉ की ऑस्ट्रेलियाई टीम तब की सर्वश्रेष्ठ थी और ईडेन की जीत ने हमें अपनी क्रिकेट को आगे ले जाने में मदद की। इससे मानसिक रूप से हम काफी मजबूत हुए।
क्या कभी ऐसा लगा कि ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज आपको आउट कर सकते हैं?
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आप कभी नकारात्मक नहीं सोचते हैं। लेकिन हां, आस्ट्रेलियाई टीम के पास एक असाधारण गेंदबाजी अटैक था- कास्प्रोविच गेंद को रिवर्स स्विंग करा सकते थे, मैकग्रा आपको एक इंच भी जगह नहीं देते थे, गिलेस्पी की गेंदों में गति और उछाल थी, वॉर्न तो जैसे जादूगर थे। मार्क वॉ की ऑफ स्पिन के बारे में बहुत कम लोग जानते थे।
क्या कोई भी भारतीय टीम 2001 में गांगुली की टीम के प्रदर्शन को दोहरा सकती है?
वर्तमान पीढ़ी ने इसे दोहराया है। गाबा की जीत इसका उदाहरण है। छह शीर्ष खिलाड़ियों के बिना हासिल की गई इस जीत का सभंवतः हमारी ईडेन की जीत से बड़ा महत्व है। शुभमन गिल, शार्दुल ठाकुर, वाशिंगटन सुंदर और टी. नटराजन ने जो किया उस पर गर्व करना चाहिए। हम ऑस्ट्रेलिया में जीतना चाहते थे और इस पीढ़ी ने लगातार दो बार ऐसा किया। यह अभूतपूर्व है।