नालंदा जिले के ठेठ ग्रामीण स्कूल से निकल कर जब मैं पटना आया, तो किसी चकाचौंध ने आकर्षित नहीं किया। बल्कि यहां आकर मुझे पढ़ाई के लिए बहुत अच्छा माहौल मिला। नई दुनिया और छात्रों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता मिली। दिल्ली में मेरे पिताजी की किताबों की दुकान थी, तो स्कूली शिक्षा समाप्त होते-होते पिताजी के साथ दिल्ली आ गया। यहां आकर भी मेरे लिए माहौल नहीं बदला। वही किताबें और पटना से ज्यादा गुणवत्ता वाला शिक्षा का माहौल। यहां दुकान पर आने वाले प्रतियोगी छात्रों से घुलना-मिलना और उनकी तैयारी के तरीके को जानना आसान हो गया। यहीं रहकर जाना कि पाठ्यक्रम का गहरा अध्ययन और निरंतर अभ्यास प्रतियोगी परीक्षा में सफलता का मूल मंत्र है। 2011 में मेरा चयन संघ लोक सेवा आयोग में हो गया और मुझे बिहार कैडर मिला। मैंने महसूस किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों के लिए वैसी सुविधाएं नहीं हैं, जिनके बूते वे कोई अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर सकें। यहीं से मुझे लगा कि छात्रों को न सिर्फ प्रोत्साहन दिया जाए, बल्कि मार्गदर्शन भी दिया जाए। यह प्रेरणा मुझे अपने परिवार खास कर पिता से मिली। यूं समझ लीजिए कि प्रेरणा देना मेरे खून में है। मैं छात्रों को प्रेरित करने के साथ-साथ परीक्षाओं की तैयारी के गुर भी बताने लगा। बिहार के नक्शे में- किशनगंज, भागलपुर और अब गया अपराध और नक्सल गतिविधि का केंद्र है। फिर भी यह सुखद है कि कुछ छात्र इन इलाकों से भी आते हैं। यहां से आए छात्रों को गाइड भी करता हूं और साफ शब्दों में समझा भी देता हूं कि कम से कम दो वर्ष तक साधना करनी पड़ेगी। कड़ी मेहनत और स्मार्ट वर्क ही सफलता की कुंजी है। सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता।
अगर अध्ययन और निरंतर अभ्यास नहीं होगा, तो सफलता की पूरी गारंटी कभी नहीं मिलेगी। मैं समझाता हूं कि छात्र को सबसे पहले अपनी ताकत और कमजोरी जान लेनी चाहिए और उसी के हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए। यही ऐसी कुंजी है, जो सफलता का बड़ा पिटारा खोलती है। कमजोर विषय के नोट्स के लिए अलग रणनीति बनाना चाहिए। अधिकमतम ध्यान उसी पर रहना चाहिए। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद इससे इतर मेरे विषय होने के बावजूद भी मैं आश्वस्त था कि इन विषयों में बेहतर परिणाम आएंगे। मैं छात्रों को भी यही सुझाव देता हूं कि वे यह न समझें कि जिस विषय या अध्याय को एक बार पढ़ लिया, तो विषय समाप्त हो गया। बल्कि थोड़े अंतराल के बाद निरंतर पढ़ते रहें। हर बार जब भी आप उस विषय को दोबारा पढ़ेंगे, तो उसी विषय या अध्याय में से कोई विशेष बात निकल कर आएगी। मैंने जिन्हें गाइड किया उनमें से जाने कितनों ने अलग-अलग परीक्षाओं में सफलता पाई है।
कई बार आपराधिक घटनाओं, उनकी जांच-पड़ताल और अन्य समस्याओं के कारण चाह कर भी छात्रों के लिए समय नहीं निकाल पाता। बावजूद इसके जब भी कोई शैक्षिक संस्था किसी विशेष कार्यक्रम में आमंत्रित करती है, तो मैं वहां जरूर जाता हूं। वहां भी मैं अध्ययन के साथ अभ्यास पर ही जोर देता हूं। वक्त के अभाव के बावजूद खुद को पढ़ाने से रोक नहीं पाता। मैं कलेक्टिव रूप से अपनी बात रखता हूं। क्योंकि मोटिवेशनल स्पीकर मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि तैयार करता है। उसमें व्यक्तिगत मार्गदर्शन शामिल नहीं होता है। मैं जब भागलपुर में था, तब वहां एक कोचिंग में पढ़ाने जाता था। उस साल कई छात्रों ने दरोगा भर्ती परीक्षा में बाजी मारी थी। छोटी बहन को भी मैंने ही मार्गदर्शन दिया है।
इधर कई दिनों से मैं परीक्षा पैटर्न में परिवर्तन होते देख रहा हूं। समय के अनुकूल यह जायज भी है। छात्र अगर सजग हों, तो वह परिवर्तन मायने नहीं रखता। खासकर, करेंट अफेयर्स में। विषयों में गहनता अर्थात कमांड जरूरी है। यह कमांड निरंतर अभ्यास से ही संभव है। मैं बार-बार अभ्यास पर इसलिए जोर देता हूं क्योंकि कई औसत छात्रों को निरंतर अभ्यास के बूते ही यूपीएससी में परचम लहराते देखा है। छात्रों को यही सलाह देता हूं कि दुनिया में पढ़ने के लिए तो बहुत कुछ है। हर बात में न जाकर अपने विषय वस्तु के प्रति गंभीर रहो और वही पढ़ो। राह वही चुनना है, जो उस जंगल से निकल कर मंजिल तक पहुंचाती हो।
मेरा एक ही मंत्र है, खुद पर विश्वास रखो। नोट्स बनाओ और उनका बार-बार दोहराव करो। सिलेबस देखो, उसी के अनुसार तैयारी रखो। कबीर का दोहा तो सभी ने सुना है, “करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात ही सिल पर होत निसान।” अपने छात्रों से यही कहता हूं, निराशा से मीलों दूर रहो, हताशा को पास न फटकने दो। सबके जीवन में कठिनाइयां आती हैं। सबके जीवन में भौतिक और भावनात्मक द्वंद्व चलता है। उन पर नियंत्रण जरूरी है। जो खुद पर नियंत्रण नहीं कर सकता वह प्रशासनिक सेवा में क्या नियंत्रण कर पाएगा।
(आशीष भारती गया में एसएसपी हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं। संजय उपाध्याय से बातचीत पर आधारित।)