नाम कमाने के लिए घर छोड़ने वाली कंगना रनौत की अपने गृह प्रदेश हिमाचल वापसी ‘हिमाचल की बेटी’ की तरह हुई। अब उसके गृह प्रदेश के लोगों की निगाहें यह तलाश रही हैं कि क्या ‘बॉलीवुड अभिनेत्री’ का तमगा लंबे वक्त तक उसके साथ रह पाएगा? क्या कंगना राजनैतिक भूमिका के लिए तैयार है? बेशक, सुशांत सिंह राजपूत मसले से कंगना ने खुद को ऊंचे हलके में स्थापित कर लिया है।
कंगना ने शिवसेना सरकार से सीधी टक्कर ली है। मुंबई में उसके बाहरी होने, हिमाचली के रूप में उसकी क्षेत्रीय पहचान और भाजपा से उसकी नजदीकी ने अतिरिक्त ध्यान खींचा। उसके लिए यह सारी स्थितियां थाली में परोसे गए अगले कदम की तरह है। उसका मीडिया प्रोफाइल शानदार है। वह, तेज, आक्रामक और मुखर है। ये सारी बातें उसके लिए खजाने की तरह है। कंगना कभी भी विवादों से दूर नहीं रही। उसने खुद को हमेशा ही अलग दिखाया। चाहे फिर वह बॉलीवुड की शक्तिशाली लॉबी से लोहा लेना ही क्यों न हो। भाई-भतीजावाद और “मूवी माफिया” के खिलाफ उसका रुख बिल्कुल वही है, जो अब एक और ‘बाहरी व्यक्ति’ सुशांत मामले की बहस में बदल गया है। लेकिन केंद्र सरकार से वाइ श्रेणी की सुरक्षा और मुंबई में उसके ऑफिस को तोड़ दिए जाने की घटना ने उसे इस बहस से कहीं आगे कर दिया है। साफ दिख रहा है कि उसके हाथ में भाजपा की तलवार है।
शांत हिमालय से लेकर बॉलीवुड तक उसकी यात्रा सिर्फ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक केवल एक शानदार छलांग है। उसका परिवार मंडी जिले के राजपूत बहुल गांव भांबला से आता है। एक कॉलेज में प्राध्यापक और कंगना की पड़ोसी शशि शर्मा कहती हैं, “कोई भी कल्पना नहीं कर सकता कि साधारण परिवार में जन्मी घरेलू-सी दिखने वाली लड़की सफलता की ऐसी सीढ़ी चढ़ेगी। उनका परिवार बहुत पैसे वाला भी नहीं है। डीएवी स्कूल चंडीगढ़ में पढ़ते हुए जब उसने, मॉडलिंग करने की इच्छा जाहिर की तो परिवार ने सहयोग करने से साफ मना कर दिया था। उसने विद्रोह किया और फिर क्या हुआ सब जानते हैं।”
कंगना की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव के ही एक निजी स्कूल में हुई। उसके बाद वो डीएवी स्कूल, चंडीगढ़ गईं। उसके माता-पिता विशेषकर सेवानिवृत्त स्कूल टीचर उसकी मां आशा रनौत चाहती थीं कि वह डॉक्टर बने। लेकिन कंगना की अपनी योजनाएं और सपने थे। उसने मॉडलिंग से शुरुआत की और फिर फिल्म इंडस्ट्री में चली गईं।
बॉलीवुड में उसका संघर्ष और फिर स्टारडम किसी फंतासी की तरह है। उसे हर कदम पर अपनी लड़ाई लड़नी पड़ी। कंगना ने बहुत-सी बाधाएं पार की। जैसे-जैसे साल बीतते गए, बॉलीवुड सितारों के साथ अपने निजी जीवन और रिश्तों को लेकर वह विवादों में रहने लगी। लेकिन इन सबसे वह डिगी नहीं। बल्कि, अपने व्यक्तिगत मामलों को छुपाने के बजाय खुल कर बात की। सितारे अक्सर ऐसा नहीं करते। शशि शर्मा कहती हैं, “यह खास गुण है, जो सबके पास नहीं होता। पहाड़ी लहजे के लिए उसका खुलकर मजाक भी उड़ाया गया। फिर भी उसे कोई बात नहीं रोक पाई।”
कंगना अपनी ऐंठ निभाना जानती है। एक टीवी इंटरव्यू में उसने स्वीकार किया था कि वह “िजद्दी और विद्रोही” बच्ची रही है। उसने कहा था, “मेरे पिता मेरे भाई को प्लास्टिक की बंदूक देते थे और मेरे लिए गुड़िया लाते थे तो मैं उसे नहीं लेती थी और उनसे इस भेदभाव के बारे में पूछती थी।”
विद्रोह इकलौती वह बात नहीं थी, जो उसके पास जल्दी आई। इसमें महत्वाकांक्षा भी थी। कच्ची उम्र की कंगना के पास अमीर लड़की होने के सपने के बारे में बहुत स्पष्टता थी। शर्मा याद करती हैं, एक बार बड़ी कार (तब उनके पास मारुति 800 थी) मांगने पर उसे अपनी दादी की आपत्ति बहुत नागवार गुजरी थी। उसने अपनी दादी से कहा था, “अम्मा मुझे बड़ा हो जाने दो, लोग देखेंगे कि दुनिया की सबसे महंगी और लग्जरी कारें मेरे पास हैं। और देखना मेरे पास रहने के लिए महलनुमा बंगला होगा।”
घर वापसी, राजनीति हमेशा से उसके आसपास थी, बस उसका अनुमान अलग था। स्वतंत्रता सेनानी, उसके परदादा, सरजू सिंह रनौत, गोपालपुर से दो बार कांग्रेस के विधायक रहे थे। इस वजह से 2015-16 में वीरभद्र सिंह की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने कंगना रनौत को राज्य पर्यटन के लिए अंतरराष्ट्रीय ब्रांड एंबेसेडर बनाना चाहा था। लेकिन बात नहीं बनी।
पेशे से व्यापारी उनके पिता अमरदीप सिंह रनौत, अभी भी अपने पैतृक गांव में रहते हैं। वे कहते हैं, “मेरी बेटी बचपन से ही निडर है। वह सच कहने से कभी नहीं झिझकती। हिमाचली भावनाओं के अलावा उसके साथ इस बार 96 फीसदी भारत उसके साथ खड़ा है।” इस सब में भाजपा का हाथ होने की बातों पर वे कुछ भी बोलने से इनकार कर देते हैं। आउटलुक से उन्होंने फोन पर कहा, “उसे शिवसेना और अन्य लोगों से भी धमकियां मिलीं। हम गृह मंत्री अमित शाह और सीएम जयराम ठाकुर को उसे सुरक्षा प्रदान करने के लिए केवल धन्यवाद कह सकते हैं।”
तीन राष्ट्रीय पुरस्कारों और पद्मश्री के बावजूद जड़ों से जुड़े रहने के लिए स्थानीय लोग उसकी प्रशंसा करते हैं और राजनीतिक पहचान की इच्छा को स्वाभाविक मानते हैं। स्थानीय भाजपा विधायक सेवानिवृत्त कर्नल इंदर सिंह कहते हैं, “सफलता उसे अपने गांव की जड़ों से दूर नहीं ले जा पाई। कंगना समर्पित हिंदू हैं। उसने गांव के पास सुंदर मंदिर बनवाया है।”
क्या भाजपा ने कंगना को राजनीति में लाने की योजना बनाई है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कहते हैं, “हाइकमान यह तय करेगा। मैं इस पर कुछ नहीं कह सकता। मैं इतना कह सकता हूं कि शिवसेना सरकार और उसके नेताओं ने राजनैतिक प्रतिशोध के साथ काम किया है। वह हमारी बेटी है और हम उसके साथ खड़े रहेंगे।”
हिमाचल प्रदेश से कंगना पहली बॉलीवुड स्टार नहीं हैं। उनसे पहले शिमला जिले के पास सेब बेल्ट कहे जाने वाले जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र से प्रिटी जिंटा बॉलीवुड में रह चुकी हैं। शिमला ग्रामीण से जिला कांग्रेस अध्यक्ष और प्रिटी जिंटा के मामा, जसवंत छजता भी मानते हैं, कि कंगना अच्छी अभिनेत्री है, जिसने लोगों के दिलों को छुआ है। वे कहते हैं, “मेरा निजी विचार है कि उसे किसी भी राजनैतिक संगठन का हथियार नहीं बनना चाहिए। बीएमसी ने उसके साथ जो किया वह दुर्भाग्यपूर्ण है। इस कदम ने हिमाचलियों को चोट पहुंचाई है। लेकिन राजनीति का सहारा नहीं लेना चाहिए।” वे बताते हैं कि प्रिटी जिंटा को भी भाजपा और कांग्रेस दोनों ने चुनाव लड़ने का लालच दिया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था।
कंगना ने लॉकडाउन की पूरी अवधि मनाली में अपने बंगले में बिताई थी। लेकिन प्रिटी से उनकी यात्रा अलग है। उनके प्रोफाइल में राजनीतिक बढ़त वाली फिल्में हैं। मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी के बाद कंगना को सोशल मीडिया में राजपूत जड़ों से प्रेम करते देखा जा सकता है। लगता है जैसे, लाइट्स, कैमरा और एक्शन के लिए पटकथा, सेट...हर चीज बिलकुल तैयार है।