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एयर इंडिया: लुटकर वापस हुए महाराजा

भ्रष्टाचार और काम की ‘सरकारी संस्कृति’ के कारण ही निजीकरण की नौबत, टाटा के लिए भी एयर इंडिया के पुराने दिनों को लौटा पाना बेहद मुश्किल
सरकार के ऐलान के बाद रतन टाटा ने जेआरडी टाटा की यह फोटो ट्वीट की

टाटा समूह के अधिग्रहण किए जाने के फैसले से मरणासन्न एयर इंडिया में भले नई जान दिखने लगी हो, लेकिन यह दास्तां है सरकारी विभागों के रग-रग में फैले भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की। पहले तो मंत्रियों, नेताओं और बाबुओं ने व्यक्तिगत जागीर की तरह इसका इस्तेमाल किया, फिर ऐसे फैसले थोपे गए कि कभी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइंस में शुमार की जाने वाली एयर इंडिया सिर न उठा सकी। इसे चलाने का जिम्मा ऐसे अफसरों को दिया गया, जिनके पास विमान में यात्रा करने के सिवाय विमानन का कोई अनुभव नहीं था। 1953 में एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण का विरोध करते हुए जेआरडी टाटा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा था, “राष्ट्रीयकरण का मतलब है अफसरशाही और आलस्य। इससे कर्मचारियों का मनोबल गिरेगा और सेवा की गुणवत्ता खराब होगी।” जेआरडी का वह आकलन आज हर मायने में सही लगता है। करीब 15 वर्षों से लगातार घाटा, पुराने पड़ते विमान, जंग खाए कर्मचारी और 32 हजार करोड़ रुपये की निगेटिव नेटवर्थ के बाद भी कोई इसे खरीदना चाहे तो यह किसी आश्चर्य से कम नहीं।

एयर इंडिया

विनिवेश से सरकार खुश पर हजारों करोड़ के नुकसान का जिम्मेदार कौन

बेशक, टाटा समूह का एयर इंडिया के साथ भावनात्मक लगाव ही इस सौदे की पहली वजह है, फिर भी विशेषज्ञ मानते हैं कि टाटा के हाथों में यह एक बार फिर बेशकीमती एसेट बन सकती है। एयर इंडिया को खरीदने की बोली टाटा समूह की कंपनी टालेस प्राइवेट लिमिटेड ने 18,000 करोड़ रुपये में जीती। इसमें से 15,300 करोड़ रुपये कर्ज चुकाने में जाएंगे और सरकार को 2,700 करोड़ रुपये मिलेंगे। टाटा के अलावा स्पाइसजेट के प्रमोटर अजय सिंह के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम ने भी बोली लगाई थी, जो 15,100 करोड़ रुपये की थी। सरकार ने रिजर्व प्राइस 12,906 करोड़ रुपये रखी थी।

दिसंबर तक सौदे की सभी औपचारिकताएं पूरी कर लिए जाने की उम्मीद है। अधिग्रहण के बाद एक साल तक एयर इंडिया कर्मचारियों की छंटनी नहीं हो सकेगी। दूसरे साल टाटा समूह उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) का ऑफर दे सकता है। एयर इंडिया ब्रांड और लोगो को पांच वर्षों तक बेचा नहीं जा सकेगा। उसके बाद भी इसे किसी भारतीय कंपनी को ही बेचा जा सकता है। एक साल बाद टाटा समूह को 49 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की छूट होगी।

बोली जीतने के बाद टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने ट्वीट किया, “आज जेआरडी टाटा हमारे बीच होते तो बहुत खुश होते।” भारत का पहला कॉमर्शियल पायलट लाइसेंस पाने वाले जेआरडी ने 15 अक्टूबर 1932 को कराची से मुंबई तक टाटा एयर मेल की पहली उड़ान भरी थी। कुछ वर्षों बाद नाम टाटा एयरलाइंस और फिर 1946 में एयर इंडिया रखा गया। टाटा समूह को एयर इंडिया की 100 फीसदी इक्विटी के साथ उसकी सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रेस की पूरी और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी एआइसैट्स की 50 फीसदी इक्विटी भी मिलेगी। अभी टाटा के पास एयर एशिया इंडिया नाम से सस्ती और विस्तारा नाम से फुल सर्विस एयरलाइंस हैं। अधिग्रहण के बाद उसके बेड़े में चार एयरलाइंस होंगी।

इस सौदे में एयर इंडिया की जमीन और बिल्डिंग शामिल नहीं हैं। उनकी कीमत 14,718 करोड़ रुपये आंकी गई है। उन्हें एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेड (एआइएएचएल) को ट्रांसफर किया जाएगा। सरकार ने विनिवेश के मकसद से ही इस विशेष कंपनी का गठन किया है। एलायंस एयर समेत एयर इंडिया की बाकी सब्सिडियरी भी एआइएएचएल को ट्रांसफर की जा सकती है। वह इनकी बिक्री करके एयर इंडिया का बकाया कर्ज चुकाएगी।

एयर इंडिया पर 31 अगस्त को 61,562 करोड़ रुपये का कर्ज था। टाटा के साथ सौदे के बाद भी सरकार पर 44,679 करोड़ की देनदारी रह जाएगी (देखें टेबल)। इतने से ही सरकार को छुटकारा नहीं मिलने वाला। एयर इंडिया को रोजाना 20 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। यानी सितंबर से दिसंबर तक चार महीने में 2,400 करोड़ रुपये का घाटा और जुड़ेगा। रिटायर हो चुके और होने वाले पुराने कर्मचारियों की मेडिकल सुविधा का बिल भी सरकार ही भरेगी। उसे कर्मचारियों का 1,332 करोड़ का बकाया भी चुकाना है। संभव है सरकार बांड के जरिए नया कर्ज लेकर पुराना कर्ज चुकाए। 2009-10 से अब तक सरकार एयर इंडिया को 54,584 करोड़ नकद सहायता और 55,692 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी दे चुकी है।

टाटा को फायदा

एयर इंडिया के पास 128 और एयर इंडिया एक्सप्रेस के पास 25 विमान हैं। देश में 4,400 घरेलू और 1,800 अंतरराष्ट्रीय लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट के अलावा लंदन, न्यूयॉर्क, सिंगापुर, हांगकांग और दुबई जैसे दुनिया के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों के 900 स्लॉट इसके पास हैं। किसी अन्य भारतीय एयरलाइन के पास ऐसा नहीं है। इन सब पर टाटा समूह का नियंत्रण होगा।

एयर इंडिया की अमेरिका और यूरोप की सीधी उड़ानें हैं। अन्य भारतीय एयरलाइंस खाड़ी और दक्षिण एशियाई देशों तक ही जाती हैं। एयर इंडिया के पूर्व डायरेक्टर और ‘डिसेंट ऑफ एयर इंडिया’ किताब के लेखक जीतेंद्र भार्गव आउटलुक से कहते हैं, “अंतरराष्ट्रीय रूट पर बिजनेस बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। लेकिन संसाधनों के अभाव में एयर इंडिया ऐसा नहीं कर पा रही थी। लिहाजा इन रूटों पर विदेशी एयरलाइंस का कब्जा बढ़ता जा रहा था।” टाटा के आने से यह रुख बदल सकता है। भार्गव के अनुसार, “आज की पीढ़ी ने देखा ही नहीं कि एक जमाने में एयर इंडिया कैसी थी। टाटा के लिए इसे सुधारना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन वह इसमें सक्षम है। दो साल बाद हमें एयर इंडिया का नया रूप दिख सकता है।”

घरेलू बाजार में एयर इंडिया समूह की हिस्सेदारी 12.6 फीसदी है। एयर इंडिया, विस्तारा और एयर एशिया इंडिया समेत टाटा समूह की कुल हिस्सेदारी 25.1 फीसदी बनती है। सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन इंडिगो का 55 फीसदी बाजार पर कब्जा है। यहां टाटा के लिए अपना बाजार बढ़ाना मुश्किल होगा। फिर भी वह दूसरे स्थान पर तो आ ही जाएगी।

महामारी के कारण इंडिगो को पिछले वित्त वर्ष 5,800 करोड़ और स्पाइसजेट को 1,000 करोड़ का घाटा हुआ था। इस साल भी इनके घाटे में ही रहने के आसार हैं। टाटा समूह की विस्तारा और एयर एशिया इंडिया को अब तक करीब 9,000 करोड़ का घाटा हो चुका है। इसलिए प्राइस वॉर की आशंका कम है। घाटा कम करने के लिए कंपनियां लागत कम करने के उपाय कर सकती हैं। एयर इंडिया में अनेक कर्मचारी 55 साल से अधिक उम्र के हैं। अगले पांच वर्षों तक हर साल औसतन 1,000 कर्मचारी रिटायर होने से वेतन का बोझ कम होगा। 2011 में एयर इंडिया का सालाना वेतन बिल 3,600 करोड़ रुपये था।

सुनहरा इतिहास

शुरू में एयर इंडिया का इस्तेमाल कराची-अहमदाबाद-मुंबई रूट पर डाक के लिए होता था। 1940 के दशक में इसने यात्री सेवा शुरू की तो जल्दी ही लोकप्रिय हो गई। जेआरडी की कोशिश थी कि उड़ानें तय समय पर रहें। मुंबई से एयर इंडिया की पहली अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट 10 जून 1948 को लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर उतरी तो जेआरडी ने इंग्लैंड में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त वी.के. कृष्णमेनन को अपनी घड़ी दिखाते हुए कहा था, “हम समय से एक मिनट पहले पहुंचे हैं।” एयरलाइन के राष्ट्रीयकरण के बाद 25 साल तक चेयरमैन रहते जेआरडी अपना आधा समय एयर इंडिया को ही देते थे। हालांकि उनका यह पद अवैतनिक था।

आज सिंगापुर एयरलाइंस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन 1970 के दशक में सिंगापुर सरकार ने जब एयरलाइंस की शुरूआत की तो विश्वस्तरीय सेवाएं सीखने के लिए उसने एयर इंडिया की ही मदद ली थी। एयर इंडिया को कैथे पैसेफिक और थाई एयरवेज जैसी एयरलाइंस की भी प्रेरणा माना जाता है।

एयर इंडिया के साथ कई हस्तियों के नाम जुड़े हैं। दलाई लामा, मोहम्मद अली, हॉलीवुड स्टार अल पचीनो, जेन फोंडा, रिचर्ड हैरिस जैसे लोग इसमें सफर कर चुके हैं। 1955 में चीन के प्रधानमंत्री झाउ एनलाइ को हांग कांग से इंडोनेशिया ले जाने के लिए एयर इंडिया का विशेष विमान मंगवाया गया था। जाने-माने उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला यथासंभव एयर इंडिया में ही यात्रा करते थे। आज एयर इंडिया देरी और खराब सेवाओं के लिए ही अधिक जानी जाती है।

एक समय एयर इंडिया की एयर होस्टेस काफी मशहूर हुआ करती थीं। उन दिनों हर अमीर भारतीय कुंवारा एयर इंडिया होस्टेस से शादी करना चाहता था। मौरीन वाडिया, परमेश्वर गोदरेज, सुंदरी खान उन एयर होस्टेस में हैं जिन्होंने बड़े बिजनेसमैन या फिल्मी सितारे के साथ शादी की। मौरीन ने नुस्ली वाडिया और परमेश्वर ने आदि गोदरेज के साथ। विजय माल्या पहली पत्नी समीरा तैय्यबजी से एयर इंडिया की फ्लाइट में ही मिले थे जो एयर होस्टेस थीं। कहा जाता है कि जेआरडी और कॉमर्शियल डायरेक्टर बॉबी कूका खुद ग्लैमरस लड़कियों को चुनते थे।

एयर इंडिया की होस्टेस का ग्लैमर इतना अधिक था कि उन्हें भारत की पहली पीढ़ी की सुपरमॉडल भी कहा जाता है। उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियां विज्ञापन में मॉडल के लिए एयर इंडिया से ही संपर्क करती थीं। ऐसे ही एक विज्ञापन के लिए एयर होस्टेस मौरीन को बॉम्बे डाइंग भेजा गया था, जहां उनकी मुलाकात नुस्ली वाडिया से हुई। लेकिन 1980 के दशक में वह समय भी आया जब एयर इंडिया प्रोफेशनल मॉडल को एयर होस्टेस के कपड़े पहना कर अपना विज्ञापन करने लगी।

स्थिति क्यों बिगड़ी

एयर इंडिया

एयर इंडिया का 1953 में राष्ट्रीयकरण किया गया, हालांकि जेआरडी 1978 तक चेयरमैन रहे। उन्होंने राष्ट्रीयकरण का विरोध भी किया था। दरअसल सरकार ने उस समय 11 एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण किया। एयर इंडिया को छोड़कर बाकी सब घाटे में थीं। उन सबका विलय एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस में कर दिया गया। जेआरडी के रहने तक एयर इंडिया का सितारा चमकता रहा। इसकी माली हालत खास तौर से इसी सदी में खराब हुई। भार्गव इसके तीन प्रमुख कारण गिनाते हैं। पहला, पूर्व उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के समय विमानों का बहुत बड़ा ऑर्डर देना; दूसरा, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का गलत तरीके से विलय और तीसरा, एयर इंडिया का मैनेजमेंट ऐसे लोगों को सौंपना जिनके पास एविएशन बिजनेस का अनुभव नहीं था।

वजहें और भी हैं। मुनाफा कमाने या घाटा कम करने की कोशिश करने वाले चेयरमैन को राजनीतिक आकाओं की नाराजगी का शिकार बनना पड़ा। अतिरिक्त सचिव वी. सुब्रमण्यम ने विमान खरीद सौदे पर आपत्ति जताई तो उनका तबादला ग्रामीण विकास मंत्रालय में कर दिया गया। इंडियन एयरलाइंस के तत्कालीन सीएमडी और एयर इंडिया के एमडी सुनील अरोड़ा (2018 में मुख्य चुनाव आयुक्त बने) ने कैबिनेट सचिव को विमान खरीद के बारे में पत्र लिखकर गंभीर आरोप लगाए थे।

दरअसल, प्रफुल्ल पटेल के समय 2004 से 2008 के दौरान 67,000 करोड़ के 111 विमानों के ऑर्डर दिए गए। इसके लिए सरकारी एयरलाइंस को भारी-भरकम कर्ज लेना पड़ा। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने भी 111 विमानों की खरीद और गलत समय पर इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय को एयर इंडिया की माली हालत के लिए जिम्मेदार ठहराया। 2007 में विलय के बाद एयर इंडिया कभी मुनाफे में नहीं आई।

एविएशन विशेषज्ञ कैप्टन मोहन रंगनाथन ने एक बातचीत में कहा था, “खाड़ी देशों के मुनाफे वाले रूट एतिहाद और कतर एयरवेज जैसी विदेशी एयरलाइंस को दे दिए गए।” अचानक इन रूटों पर एयर इंडिया की उड़ानें बंद कर दी गईं। विदेशी एयरलाइंस को उड़ान अधिकार देने में घरेलू एयरलाइंस की अनदेखी की गई। उन्हें मुनाफे वाले रूट छोड़ने के लिए भी कहा गया। गौरतलब है कि 2004 में घरेलू बाजार में इंडियन एयरलाइंस की 42 फीसदी हिस्सेदारी थी।

घाटा बढ़ने लगा तो कंपनी मामलों के मंत्रालय ने 2012 में एयर इंडिया के आंशिक निजीकरण की सिफारिश की। तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री अजीत सिंह ने 2013 में कहा कि निजीकरण से ही यह बच सकती है। लेकिन तब भाजपा और माकपा ने कड़ा विरोध किया। आखिरकार 28 जून 2017 को मोदी सरकार ने निजीकरण को औपचारिक मंजूरी दी।

टाटा की चुनौतियां

एयर इंडिया

एयर इंडिया के साथ टाटा को अनेक समस्याएं भी लीगेसी में मिलेंगी। लीज पर लिए गए विमानों का एयर इंडिया बहुत किराया दे रही है, मेंटनेंस कॉन्ट्रैक्ट भी मोटा है। करीब एक दशक से इंजनों की ओवरहॉलिंग नहीं हुई है। यूरोप में पर्यावरण के नए मानकों से पुराने विमानों को लेकर समस्या आ सकती है। काम की संस्कृति बदलने की भी जरूरत है। मैनेजमेंट में बार-बार बदलाव होने से शीर्ष अधिकारियों में प्रतिबद्धता नहीं रह गई। शायद बेचने का मन बना चुकी सरकार ने इन बातों की ओर ध्यान देना बंद कर दिया था। टाटा संस का अपना अनुमान है कि 2025 तक एयर इंडिया से उसे कोई मुनाफा नहीं होगा। एयर इंडिया के पायलटों और केबिन क्रू संगठनों ने टाटा समूह के बोली जीतने का अभी तो स्वागत किया है, लेकिन अतीत में यही संगठन निजीकरण का विरोध करते रहे हैं।

कोविड-19 के बाद विदेशी एयरलाइंस भी भारतीय बाजार पर कब्जा जमाने की कोशिश करेंगी और कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आइएटीए) के अनुसार 2021 में दुनियाभर की एयरलाइंस को कोरोना के कारण 52 अरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है। पिछले साल 138 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। इनका कुल नुकसान 2023 तक 200 अरब डॉलर का होगा।

दुनियाभर में एयरलाइंस के निजीकरण का अब तक का अनुभव मिश्रित रहा है। ब्रिटिश एयरवेज का 1987 में निजीकरण किया गया था। उसी को देखकर 2001 में एयर इंडिया के निजीकरण की पहली कोशिश हुई थी। जर्मनी की लुफ्थांसा का 1997 में, एयर फ्रांस का 1999 में और डच एयरलाइन केएलएम का 1998 में निजीकरण हुआ। आज इनकी गिनती सबसे अच्छी एयरलाइंस में होती है। लेकिन मलेशिया एयरलाइंस के 1985 में निजीकरण के बाद घाटा इतना बढ़ा कि 2000 में सरकार को उसे वापस खरीदना पड़ा। जापान एयरलाइंस को भी 1987 में निजीकरण के बाद 2010 में सरकार ने दोबारा खरीदा। टाटा के कई अधिग्रहण घाटे का सौदा साबित हुए हैं, फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि 153 साल पुराने औद्योगिक घराने के पास जाने के बाद एयर इंडिया का वह हश्र नहीं होगा। लेकिन वही हुआ तो लेने के देने पड़ेंगे।

जब इंदिरा ने लिखा था जेआरडी को पत्र

एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण के बावजूद जेआरडी टाटा मार्च 1953 में इसके चेयरमैन और इंडियन एयरलाइंस के डायरेक्टर बनाए गए थे। 25 वर्ष बाद मोरारजी देसाई सरकार ने उन्हें 1 फरवरी 1978 को हटा दिया। तब इंदिरा गांधी ने जेआरडी को पत्र लिखा था। दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा अप्रैल 1980 में जेआरडी को एयर इंडिया के बोर्ड में लेकर आईं, लेकिन चेयरमैन नहीं बल्कि डायरेक्टर के रूप में। वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने वह चिट्ठी ट्वीट की।

इंदिरा ने 14 फरवरी को हाथ से पत्र लिखा, “प्रिय जेह, मुझे खेद है कि आप एयर इंडिया के साथ नहीं हैं। एयर इंडिया को उतना ही दुख हो रहा होगा जितना आपको। आप सिर्फ चेयरमैन नहीं, बल्कि संस्थापक और पालक थे जिसे व्यक्तिगत रूप से चिंता रहती थी। साज-सज्जा और एयर होस्टेस की साड़ी जैसी छोटी-छोटी बातों पर भी आपके ध्यान देने के कारण एयर इंडिया को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली और इसने शीर्ष एयरलाइंस में जगह बनाई। हमें आप और एयरलाइन पर गर्व है। हमारे बीच कुछ गलतफहमी थी। लेकिन मैं जिस दबाव में काम कर रही थी और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में जो झगड़ा चल रहा था, उसके बारे में आपको बताना संभव नहीं था। मैं और कुछ नहीं कहना चाहूंगी।”

जवाब में जेआरडी ने लिखा

“प्रिय इंदिरा, एयर इंडिया से मेरा जुड़ाव खत्म करने संबंधी सरकार के फैसले पर लिखने के लिए आपका शुक्रिया। एयरलाइन को खड़ा करने में मेरी भूमिका का जो उल्लेख आपने किया, वह मुझे छू गया। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने साथियों और कर्मचारियों की निष्ठा और उनका उत्साह मिला। सरकार ने भी समर्थन किया। इनके बिना मैं कुछ भी हासिल नहीं कर पाता।”

पत्र

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