मध्य प्रदेश में एक बार फिर राजनीतिक सरगर्मी शबाब पर है। कुछ दिनों पहले तक कमलनाथ की सरकार से समर्थन वापस लेने और कांग्रेस का साथ छोड़ सकने वाले विधायकों के कयास लगाए जाते थे, अब चर्चा यह होने लगी है कि भाजपा के कितने विधायक कमलनाथ के पक्ष में आ सकते हैं। 24 जुलाई 2019 को राज्य विधानसभा में आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक की मंजूरी के वक्त भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कौल ने कांग्रेस सरकार के पक्ष में वोट दे दिया। इससे बाजी ही पलट गई। बिल पास करवाने के बहाने कमलनाथ सरकार का शक्ति-परीक्षण हो गया। सरकार के समर्थन में बहुमत से ज्यादा वोट पड़े। नरेंद्र मोदी और अमित शाह का इशारा मिलते ही मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को गिराने का दंभ भरने वाले भाजपा नेता कमलनाथ के दांव से गश खा गए।
मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायक के समर्थन से चल रही है। कांग्रेस के 114 विधायक हैं। 230 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 116 विधायक होने चाहिए। भाजपा के 109 विधायक चुनकर आए थे, लेकिन रतलाम से सांसद चुने जाने के बाद झाबुआ विधायक गुमान सिंह डामोर ने विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी। कमलनाथ की सरकार को निर्दलीयों और सपा-बसपा का साथ मिला है। हालांकि गाहे-बगाहे निर्दलीय और सपा-बसपा विधायक सरकार को आंख दिखा देते हैं। वहीं, मंत्री न बनाए जाने से कांग्रेस के कम से कम आधे दर्जन विधायक नाखुश हैं और जब-तब बागी सुर में बोलते रहते हैं। ऐसे में कांग्रेस से संख्या बल में केवल पांच कम (अब छह) भाजपा के नेता जब चाहे तब कमलनाथ की सरकार को गिराने की बात कहने लगे।
24 जुलाई को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा, “जिस दिन हमारे नंबर-1 और नंबर-2 कह देंगे, यह सरकार एक दिन भी नहीं चल पाएगी।” इस पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जवाब दिया कि आपके नंबर-1 और नंबर-2 समझदार हैं, इसलिए आदेश नहीं दे रहे। आप चाहें तो अविश्वास प्रस्ताव ले आइए। उसी दिन कमलनाथ ने बिल पर वोटिंग के बहाने भाजपा नेताओं को वास्तविकता बता दी। बसपा के विधायक संजीव सिंह संजू ने वोटिंग की मांग की और कांग्रेस ने मतदान करवा दिया।
राज्य के भाजपा नेता भले कमलनाथ सरकार गिराने की बात कह रहे हैं, लेकिन उनमें आपस में तालमेल कहीं नहीं दिखाई पड़ता। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और सचेतक नरोत्तम मिश्रा की दिशा अलग-अलग दिखती है। पार्टी का एक धड़ा अब शिवराज सिंह को प्रदेश की कमान सौंपने के पक्ष में नहीं है, लेकिन शिवराज का दिल मध्य प्रदेश को छोड़ ही नहीं पा रहा है। कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा और नरेंद्र सिंह तोमर भी भाजपा की सत्ता में मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहते हैं। नरोत्तम मिश्रा को अमित शाह का काफी करीबी माना जाता है। वह नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते हैं। इसलिए दो विधायकों के कांग्रेस के पाले में जाने का दोष मौजूदा नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव पर मढ़ा जा रहा है। पूरे मामले में भार्गव अलग-थलग दिख रहे हैं।
मध्य प्रदेश भाजपा में कितनी अराजकता है, इसका नमूना सक्रिय सदस्यता के लिए 1 अगस्त 2019 को बुलाई गई बैठक में भी दिखा। इसमें 15 विधायक नदारद रहे। यह बैठक भाजपा के विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कौल के कांग्रेस सरकार के पक्ष में वोट देने के कुछ दिनों बाद बुलाई गई थी। भाजपा ने इन दोनों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की है। इस घटना से नाराज भाजपा हाइकमान ने राज्य के नेताओं को दिल्ली तलब किया और विधायकों की घेरेबंदी के निर्देश दिए। अब विधानसभा के अगले सत्र में सभी दिनों के लिए व्हिप जारी करने की रणनीति है।
2014 के बाद यह पहला मौका है, जब किसी राज्य में भाजपा के विधायक कांग्रेस की तरफ गए हैं। मैहर के विधायक नारायण त्रिपाठी और ब्योहारी के विधायक शरद कौल पहले कांग्रेस में ही थे। कहा जाता है कि दोनों काफी दिनों से कांग्रेस नेताओं के सम्पर्क में थे। नारायण त्रिपाठी की कांग्रेस नेता अजय सिंह से पटरी नहीं बैठती। अजय सिंह कांग्रेस में त्रिपाठी की वापसी का खुलकर विरोध कर रहे हैं। कहा तो यह जाता है कि अजय सिंह से तालमेल नहीं बैठने के कारण ही नारायण त्रिपाठी भाजपा गए। भाजपा में उनका सतना के सांसद गणेश सिंह से मेल नहीं खा रहा है।
कांग्रेस छोड़कर विजयराघवगढ़ सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले संजय पाठक का भी दिल डोल रहा है, लेकिन उनका माइनिंग का धंधा आड़े आ रहा है। वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि केंद्र के साथ रहें या राज्य के साथ। वैसे, विंध्य इलाके के ज्यादातर भाजपा विधायक कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं। कांग्रेस से जुड़े कंप्यूटर बाबा और मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कुछ और भाजपा विधायकों के संपर्क में होने की बात कही है। मंत्री गोविंद सिंह ने कहा भी कि जो विधायक भाजपा में घुटन महसूस कर रहे हैं, वे कांग्रेस में आ सकते हैं। लेकिन अजय सिंह विंध्य क्षेत्र के विधायकों के खिलाफ हैं। कमलनाथ फिलहाल अजय सिंह को नाराज नहीं करना चाहते हैं, हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव हार चुके अजय सिंह की पकड़ पार्टी में पहले जैसी नहीं रह गई है। भाजपा विधायकों को कांग्रेस के पाले में करने का काम परदे के पीछे दिग्विजय सिंह कर रहे हैं। त्रिपाठी और कौल को कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी का भी करीबी बताया जाता है। संजय पाठक के अलावा सिवनी के विधायक दिनेश राय मुनमुन और शमशाबाद के राजर्षि सिंह समेत कुछ और नाम हवा में तैर रहे हैं।
कमलनाथ भले भाजपा के कुछ विधायकों को अपने पाले में करके अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनसे जुड़ने वाले भाजपा विधायक शर्तें भी रख रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक एदल सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह, के.पी. सिंह, विक्रम सिंह, दिलीप गुर्जर और राजवर्धन सिंह दत्तीगांव मंत्रीपद की मांग कर रहे हैं। इस बात को लेकर कभी-कभी ये बगावती तेवर भी दिखाते रहते हैं। कमलनाथ ने अपने खास निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल गुड्डा को मंत्री बना दिया है, पर निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा और राणा नटवर सिंह भी मंत्री पद या कुछ और चाहते हैं। बसपा के संजीव सिंह संजू और रामबाई गोविंद सिंह के अलावा सपा के राजेश शुक्ल बबलू भी मंत्री पद की दौड़ में हैं।
मध्य प्रदेश मंत्रिपरिषद में कुल 35 सदस्य हो सकते हैं। अभी मुख्यमंत्री सहित 29 मंत्री हैं। कमलनाथ ने छह मंत्रियों की जगह खाली रखी है। वह कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी विधायकों और समर्थन दे रहे कुछ अन्य विधायकों को मंत्री बनाना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर शून्यता की वजह से मामला लटका है। कमलनाथ साथ देने वालों को निगम-मंडल या अन्य सरकारी पदों पर भी बिठा सकते हैं, लेकिन कांग्रेस के भीतर भी खींचतान जबरदस्त है। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक मंत्रियों को लेकर अलग बैठक करते हैं तो दिग्विजय सिंह कुछ मंत्रियों के कामकाज की सार्वजनिक आलोचना कर चुके हैं। अपने दो विधायकों के कमलनाथ सरकार के पक्ष में जाने से भाजपा भी अब आक्रामक होगी। शिवराज सिंह और दूसरे भाजपा नेताओं ने कहा भी है कि तोड़फोड़ कांग्रेस ने शुरू की, अब हम खत्म करेंगे। ऐसे में आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी बनी रहने के आसार हैं।