Advertisement

पहरा, पाबंदियां और खामोशी

श्रीनगर और अन्य शहरों में नाकेबंदी और संचार नेटवर्क पर पाबंदी जारी, 19 अगस्त को पत्थरबाजी की 50 से अधिक घटनाएं
पाबंदी के बीचः श्रीनगर में एक महिला अस्पताल जाने के लिए कागजात दिखाती हुई

उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले की ओर जाने वाली सड़क के दोनों किनारे कई जगहों पर 17 अगस्त 2019 को लोग छोटे-छोटे समूहों खड़े थे। सड़क पर कहीं भी पत्थरबाजी के निशान नहीं थे। केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त को संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन करने, 35ए को खत्म करने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के बाद से कश्मीर घाटी के अन्य क्षेत्रों की तरह बांदीपोरा की सड़कों पर भी सेना की सघन गश्ती जारी थी। कुछ जगहों पर जम्मू-कश्मीर पुलिस भी बिना हथियारों के अर्धसैनिक बलों के साथ सड़कों पर नजर आई। सदरकोट बाला गांव में कुछ लोग एक बंद दुकान के पास बैठे थे। उनमें से कुछ पारंपरिक कश्मीरी फिरन पहने थे। लेकिन, कोई एक-दूसरे से बात नहीं कर रहा था। मीडिया से भी बात करने में उनकी कम दिलचस्पी थी। एक ने कहा, “हम आपको जो बताएंगे, आप उसे छापेंगे नहीं।” दूसरे ने गुस्से में कहा, “हम में अधिकांश ड्राइवर हैं। जब से यह सब हुआ है, हम बेरोजगार हो गए हैं।” उनका कहना है कि 16 अगस्त को पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने गांव में लोगों के साथ मारपीट की, जिसके बाद लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया।

इन आक्रोशित युवाओं का कहना है कि घाटी में हालात गंभीर हैं। कर्फ्यू और प्रतिबंध हटने के बाद हम जवाब देंगे। एक युवक ने कहा, “मैं हिरासत में लिए गए लोगों के लिए दुखी हूं। जब सरकार इन नेताओं को रिहा करेगी और संचार सुविधाएं बहाल होंगी, तब हम सोचेंगे कि क्या करना है।” कुछ युवकों ने कहा, “हमारी शिक्षा बर्बाद हो चुकी है, बाहरी लोग हमारी नौकरियां हड़प लेंगे और यहां बसने के लिए हमारी जगह ले लेंगे। यह एक लंबी लड़ाई है। उन्होंने कश्मीरियों को हिंसा के लिए मजबूर किया है।” इस बात से इत्तेफाक रखते हुए दो बुजुर्गों ने कहा कि अनुच्छेद 370 में बदलाव गुंडागर्दी की मिसाल है।

बांदीपोरा इलाके में 16 अगस्त को सुरक्षा बलों की ओर से प्रतिबंध आंशिक रूप से हटाने के बावजूद दुकानें और सड़कें सूनी थीं। स्थानीय लोग इसे सिविल कर्फ्यू कहते हैं। बांदीपोरा थाने के बाहर अनेक लोग फोन करने के लिए इंतजार कर रहे थे। सरकार ने कुछ थानों में एक फोन चालू रखने की मंजूरी दी है, बांदीपोरा उन्हीं में से एक है। आमतौर पर लोग बाहर के रिश्तेदारों को फोन कर रहे थे। कुछ महिलाएं टिफिन लेकर थाने में दाखिल हुईं। उनके बच्चों को 4 अगस्त से पहले पुलिस उठा ले आई थी। माएं इन्हीं बच्चों के लिए खाना लेकर आती हैं। थाने के भीतर एक किशोर ने यह कहकर बात करने से इनकार कर दिया कि मीडिया से बात करने पर पुलिस, पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत केस दर्ज कर लेगी। सूत्रों के मुताबिक, 5 अगस्त के बाद से बांदीपोरा में ही करीब 130 लोगों को हिरासत में लिया गया है। कश्मीर घाटी में 4 और 5 अगस्त को ही मुख्यधारा के नेताओं सहित 2,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

मालपोरा गांव के ग्राम प्रधान गुलाम मोहिदीन का कहना है कि भाजपा सरकार ने कश्मीरियों को तगड़ा झटका दिया है। उन्होंने बताया, “अनुच्छेद 370 तथा 35ए हमारे और भारत के बीच पुल की तरह थे। भाजपा ने पुल तोड़ दिया। सबके लिए यह एक झटका था और जवाब देने में वक्त लगेगा।” एक अन्य बुजुर्ग अब्दुल डार ने कहा, “सेना और अर्धसैनिक बल उन्हें बाहर नहीं जाने दे रहे। आज सेना ने दुकानदारों से दुकानें खोलने के लिए कहा, लेकिन किसी ने दुकान नहीं खोली।” कई युवाओं ने यह कहते हुए हस्तक्षेप किया कि वे इसका मुकाबला करेंगे, यह अब खुली जंग है।

श्रीनगर के कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। पुराने शहर और श्रीनगर के ऊपरी इलाके में युवाओं ने सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी की। श्रीनगर के सौरा इलाके में प्रदर्शनकारी बैनर पर प्रदर्शन की तारीख भी लिख रहे हैं, ताकि वे बता सकें कि यह ताजा प्रदर्शन है न कि पुराना। कुछ न्यूज चैनल इन प्रदर्शनों को पुराना बता रहे हैं।

दक्षिण कश्मीर में कुलगाम के खुड़वानी इलाके में युवा आर-पार के मूड में हैं। वे कहते हैं, “हम गिरफ्तार नेताओं के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं। हमने हार नहीं मानी है। हुर्रियत से निर्देश आने दें, और तब आपको बताएंगे कि हम कौन हैं।” कुलगाम और अनंतनाग जिलों में 18 अगस्त को भी दुकानें और सड़कें बंद थीं। सेना ने 5 अगस्त से पूरे कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों को स्थगित कर रखा है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, अगर सेना आतंकवाद विरोधी अभियान फिर शुरू करती है, तो लोगों के गुस्से को देखते हुए कानून-व्यवस्था का गंभीर संकट पैदा हो सकता है।

तरीगाम गांव के एक युवक ने आउटलुक को बताया, “मैं बाहर पढ़ाई कर रहा था। 5 अगस्त के बाद दो वजहों से घर आया। एक तो मुझे लगा कि बाहर कश्मीरियों के खिलाफ हिंसा होगी और दूसरे, मैं अपने परिवार का हाल जानना चाहता था।” 1996 से विधानसभा के लिए सीपीआइ (एम) के मोहम्मद यूसुफ तरीगामी को अपना विधायक चुनने वाले इस गांव के अधिकांश युवाओं का कहना है कि अब पूरे राज्य में आतंकवाद बढ़ेगा। कुलगाम मुख्य सड़क से कुछ दूरी पर एक सड़क यूसुफ तरीगामी के घर तक जाती है। सरकार ने उनके घर की सुरक्षा में लगे जम्मू-कश्मीर पुलिस के 15 सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया है और उनका परिवार दुविधा में है कि क्या करें।

तरीगामी के भतीजे मोहम्मद अब्बास बताते हैं, “तरीगामी साहब को श्रीनगर में आधिकारिक आवास पर हिरासत में रखा गया है। यहां हमारी सुरक्षा हटा दी है। अब आतंकी आकर घर पर कब्जा कर सकते हैं। अगर यहां कोई मुठभेड़ हुई तो सेना कहेगी कि हम आतंकियों को बचा रहे थे और आतंकवादी कहेंगे कि हमने मुखबिरी की है। अतीत में आतंकवादियों ने हमारे घर पर हमला किया था, इसके बावजूद सुरक्षा वापस ले ली गई। दो साल पहले माकपा के दो कार्यकर्ताओं को पास के शांगास और शालिपोरा गांव में आतंकवादियों ने गोली मार दी थी, और अब हम बिना सुरक्षा के हैं।”

अनंतनाग डाक बंगले में पहलगाम निर्वाचन क्षेत्र से नेशनल कॉन्फ्रेंस के 74 वर्षीय पूर्व विधायक कबीर पठान नाराज हैं। वह अनुच्छेद 370 में संशोधन को विश्वासघात मानते हैं। उनका कहना है कि हम गांधी और नेहरू के भारत को जानते हैं, हमने यह भारत नहीं देखा। एक स्थानीय पत्रकार के दफ्तर में आउटलुक से बातचीत के दौरान पठान ने कहा, “1996 में जब घाटी में कोई ‘भारत’ शब्द बोलने की हिम्मत नहीं जुटा रहा था, तब हमने भारत का झंडा उठाया। जब कोई चुनाव की बात करने की हिमाकत नहीं करता था, तब हमने चुनाव लड़ा। आज उन्होंने हमारी सुरक्षा वापस ले ली।” पठान कहते हैं, “मुझे मारने के लिए गोली चलाने की जरूरत नहीं है। पत्थर मारकर ही मेरी और साथियों की जान ले सकते हैं।” वह चेतावनी देते हैं, “कश्मीरियों के अंदर एक लावा है और यह बम की तरह फटेगा।” भाजपा के दो स्थानीय नेता और इलाके के दो व्यापारी भी दफ्तर में मौजूद थे। एक व्यापारी ने कहा, “भाजपा कहती है कि अनुच्छेद 370 हटने से आतंकवाद कम होगा। मेरी बात याद रखिए, यह 100 गुना बढ़ जाएगा।” पठान कहते हैं, “भाजपा की भाषा प्रेम की नहीं है। प्रधानमंत्री कश्मीर को गले लगाने की बात कर रहे थे। क्या यह लोगों को गले लगाने का तरीका है? उन्होंने सबको अलग-थलग कर दिया। फारूक अब्दुल्ला की गिरफ्तारी का लोगों पर क्या असर होगा? यदि आप फारूक अब्दुल्ला पर भरोसा नहीं करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप किसी पर भी भरोसा नहीं करते।” स्थानीय भाजपा नेताओं रफीक वानी और मोहम्मद मकबूल गनई ने कहा कि अनुच्छेद 370 को बदलने से राज्य में खुशहाली आएगी, तो पठान ने उन्हें टोकते हुए कहा कि यह महज बयानबाजी है। दक्षिण कश्मीर के जाने-माने व्यवसायी और सिविल सोसायटी के प्रमुख जफर सलाठी कहते हैं, “सरकार उद्योगपतियों को जम्मू-कश्मीर में निवेश करने के लिए 90 साल के लिए पट्टे पर जमीन पहले ही दे सकती थी। उद्योगपति यहां पहले से हैं, पांच सितारा होटल पहले से हैं। यह कहना एक फरेब है कि घाटी में उद्योगपतियों को निवेश करने से रोका गया था।”

एक अन्य व्यवसायी अफरोज अहमद मिसगर कहते हैं कि सरकार के फैसले का राज्य की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा। राज्य की अर्थव्यवस्था और उद्योग अच्छा कर रहे थे। हमें अगले एक दशक में अच्छे नतीजों की उम्मीद थी। लेकिन अब सब कुछ पटरी से उतर गया। मुझे नहीं लगता कि कश्मीर इससे कभी उबर पाएगा।

हालांकि, भाजपा नेताओं का मानना है कि अनिश्चितता और नाराजगी लंबे समय तक नहीं चलेगी। लेकिन पठान कहते हैं कि भारत के साथ जुड़ने के लिए कश्मीरी 1990 के दशक में नेशनल कॉन्फ्रेंस और उसके संस्थापक नेता शेख अब्दुल्ला को गाली देते थे। आज भाजपा ने भारत के झंडाबरदारों को गिरफ्तार कर लिया है। यदि भारत हमारे लिए वफादार नहीं हो सकता है, तो वह कश्मीर में किसी के प्रति वफादार नहीं हो सकता।

श्रीनगर में प्रोफेसर नूर मोहम्मद बाबा कहते हैं, “अनुच्छेद 370 बदलने के बाद लोग यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि यह कैसे हुआ और उन्हें क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिए।” इस्लामिक यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर सादिक वहीद कहते हैं कि 5 अगस्त से कश्मीर में जो कुछ हो रहा है वह चीन के झिंजियांग से भी बदतर है। उन्होंने 70 लाख लोगों पर शिकंजा कस दिया है। वह लोग कहीं आ-जा नहीं सकते और न ही उनके बीच संवाद का कोई माध्यम है। यह सख्ती झिंजियांग से भी बुरी है।

सरकार का कहना है कि उसने प्रतिबंधों में ढील दी है, लेकिन श्रीनगर और अन्य शहरों में बैरिकेडिंग और संचार नेटवर्क पर पाबंदी जारी है। 19 अगस्त को घाटी में पत्थरबाजी की 50 से अधिक घटनाएं हुईं। सरकार ने स्कूल तो खोल दिए, लेकिन बच्चे नहीं आए। श्रीनगर के कुछ इलाकों में लैंडलाइन फोन सेवा बहाल करने के एक घंटे के बाद ही बंद कर दी गई। नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “पहले जिला और मंडल स्तर पर फैसले लिए जाते थे। अब हर कोई दिल्ली से निर्देशों का इंतजार कर रहा है, यहां तक कि फोन सेवा शुरू करने के लिए भी।”

Advertisement
Advertisement
Advertisement