भारत के सबसे बड़े बल्लेबाजों में एक, विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। इंग्लैंड दौरे से ठीक पहले उनके इस फैसले ने क्रिकेट जगत को चौंका दिया। बीते एक दशक में अगर किसी ने टेस्ट क्रिकेट को संजीवनी दी है, तो वह नाम विराट कोहली है। टी 20 के दौर में उन्होंने सबसे लंबे फॉर्मेट को जीवंत बनाए रखा। भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड या दक्षिण अफ्रीका, विराट हर मैदान पर अपनी ऊर्जा और खेल से भीड़ खींचने में सफल रहे। जितना उन्हें मैच जिताने वाली पारियों, रणनीति और जुनून के लिए याद किया जाएगा, उससे कहीं अधिक वह टेस्ट क्रिकेट में तेज गेंदबाजों के युग की नींव रखने के लिए याद किए जाएंगे। फिटनेस संस्कृति को भारतीय टीम में स्थापित करना भी उन्हीं की विरासत का हिस्सा है। उनके रिटायरमेंट से क्रिकेट को जो खालीपन मिला है, उसे भरना शायद आसान न हो।
दिल्ली के रहने वाले विराट कोहली 2008 में भारत को अंडर-19 वर्ल्ड कप जिताने के बाद चर्चा में आए। भारत में नई प्रतिभाओं को अक्सर पुराने दिग्गजों की परछाईं में देखा जाता है, इसलिए वनडे में शुरुआती सफलता के बाद उन्हें ‘अगला सचिन’ कहा जाने लगा। 2011 में जब उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया, तो उम्र मात्र 22 साल थी। वेस्टइंडीज के खिलाफ डेब्यू अच्छा नहीं रहा। उन्हें रेड बॉल क्रिकेट की लय पाने में थोड़ा वक्त लगा। इसके उलट, वनडे में उनका जलवा जारी था। फिर आया 2012 का एडिलेड टेस्ट, कोहली का पहला टेस्ट शतक, जो एक हारती हुई सीरीज में भारत की इकलौती चमक थी। इस दौरे पर उन्होंने 300 रन बनाए और साबित कर दिया कि उनमें टेस्ट क्रिकेटर बनने की पूरी क्षमता है।
महानता वहीं जन्म लेती है, जहां खिलाड़ी अपनी गलतियों से सीख ले। विराट ने 2012 की उस सीरीज से बहुत कुछ सीखा और 2014-15 में गलतियां दोहराई नहीं। ये दौरा उनके टेस्ट करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। धोनी की अनुपस्थिति में उन्हें कप्तानी की जिम्मेदारी मिली, ऊपर से मिशेल जॉनसन जैसे तेज गेंदबाजों का सामना करना था। विराट ने एडिलेड टेस्ट की दोनों पारियों में शतक जमाया और कप्तानी डेब्यू पर ऐसा करने वाले पहले भारतीय कप्तान बन गए। इस सीरीज में उन्होंने 86.50 की औसत से 692 रन बनाए, जिसमें चार शतक शामिल थे। टीम इंडिया भले सीरीज 2-0 से हार गई, लेकिन एक युवा, जुझारू और आक्रामक कप्तान भारतीय क्रिकेट को मिल चुका था।
यहीं से शुरू हुआ ‘विराट कोहली युग।’ 2015 से 2017 के बीच भारत ने विराट की कप्तानी में लगातार 9 टेस्ट सीरीज जीतीं और उन्होंने रिकी पोंटिंग के रिकॉर्ड की बराबरी की। 2018-19 में भारत पहली बार ऑस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर हराने में सफल रहा। विराट न केवल कप्तान के रूप में चमके, बल्कि बल्लेबाज के रूप में भी निरंतर बेहतर होते गए। वे टेस्ट में सात दोहरे शतक जड़ने वाले दुनिया के इकलौते कप्तान हैं। कोहली की कप्तानी में भारत ने 68 में से 40 टेस्ट जीते और केवल 17 हारे-इन्हीं आंकड़ों ने उन्हें भारत का सबसे सफल टेस्ट कप्तान बना दिया।
कप्तानी का दबाव कभी उनकी बल्लेबाजी पर हावी नहीं हुआ। उन्होंने लगभग हर देश में रन बनाए और “किंग कोहली” का तमगा अर्जित किया। 2018 में इंग्लैंड दौरा उनके करियर का एक और बड़ा मुकाम था। 2014 की विफलता के बाद यह सीरीज उनके लिए परीक्षा थी, जिसमें उन्होंने 59.30 की औसत से 583 रन बनाए और दोनों टीमों के सबसे सफल बल्लेबाज बने। साल 2018 उनके करियर का शायद सबसे संतुलित साल रहा, जिसमें उन्होंने 1322 रन बनाए। 2016 से 2018 के बीच उन्होंने 58 पारियों में 14 शतक और 8 अर्धशतक के साथ 3796 रन बनाए, औसत रहा 66.59 का। दुर्भाग्य से वे टेस्ट में 10,000 रन से सिर्फ 730 रन दूर रह गए। यह कसक उन्हें और उनके प्रशंसकों को हमेशा सालती रहेगी।
हालांकि, पिछले कुछ साल उनके लिए कठिन रहे। 2020 से लेकर 2022 तक उनका औसत गिरता चला गया। 2020 में महज 19.33, 2021 में 28.21 और 2022 में 26.50। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पांच टेस्ट में सिर्फ 190 रन। हालांकि 2023 में उन्होंने 50 से ऊपर का औसत वापस हासिल किया, लेकिन वह विराट के कद के लिहाज से पर्याप्त नहीं था। कई आलोचक उन्हें उनके मानक से नीचे मानने लगे। शायद यह भी एक कारण बना हो उनके रिटायर होने के फैसले का। संयोग से, जिस ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने अपना पहला टेस्ट शतक जड़ा, वहीं उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट मैच भी खेला। इसी तरह एक चक्र पूरा हुआ।
विराट को केवल रनों और जीत के आंकड़ों में समेटना, उनके योगदान के साथ अन्याय होगा। जब उन्होंने टेस्ट कप्तानी संभाली, तब भारत विदेशी जमीन पर जीत के लिए तरसता था। कोहली ने इस धारणा को तोड़ा। उन्होंने आक्रामकता को अनुशासन में ढाला, जीत के लिए खेलना सिखाया और यह टीम में यह भावना भरी कि ड्रॉ कोई विकल्प नहीं है। विराट ने फिटनेस को क्रिकेट का मूल बनाया। “यो-यो टेस्ट” अनिवार्य कर उन्होंने भारतीय टीम को दुनिया की सबसे फुर्तीली टीमों में ला खड़ा किया। बुमराह, शमी, सिराज जैसे तेज गेंदबाजों को प्राथमिकता देकर उन्होंने भारत की बॉलिंग को नई दिशा दी। भारतीय टीम अब सिर्फ घरेलू स्पिन ट्रैक पर नहीं, विदेशी पिचों पर भी जीत के लिए जानी जाने लगी।
कोहली का प्रभाव सिर्फ ड्रेसिंग रूम तक सीमित नहीं था। उन्होंने मैदान पर अपने एटीट्यूड, स्लेजिंग का जवाब और जुनून से दर्शकों को टेस्ट क्रिकेट से दोबारा जोड़ा। 2022 में उन्होंने जब कप्तानी छोड़ी, तब यह साफ हो गया कि वह अपनी शर्त पर फैसले लेते हैं। शायद यही उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। वे सिर्फ कप्तान या खिलाड़ी नहीं थे, एक युग थे। विराट कोहली से एक पूरी पीढ़ी ने टेस्ट क्रिकेट से प्रेम करना सीखा। यह उपलब्धि किसी भी रिकॉर्ड से बड़ी है। यही वजह रही कि विराट सही मायनों में एक दशक से टेस्ट क्रिकेट के सबसे सच्चे ब्रांड एंबेसडर हैं। उनकी जगह लेना ऐसा नहीं है कि नाममुकिन होगा लेकिन फिलहाल उन्होंने क्रिकेट की दुनिया में जो मापदंड बना दिए हैं, उसे तोड़ पाना कठिन होगा। टेस्ट की दुनिया अपने ‘किंग’ को हमेशा याद रखेगी।
विराट कोहली
कुल टेस्ट मैच: 123
कुल इनिंग्स: 210
कुल रन: 9230
स्ट्राइक रेट: 55.57
औसत: 46.85
शतक: 30
अर्धशतक: 31
दोहरा शतक: 7
सर्वाधिक स्कोर: 254
बतौर कप्तान टेस्ट: 68
कप्तानी में जीत: 40
कप्तानी में हार: 17
2021 में भारत को वर्ल्ड कप फाइनल तक पहुंचाया
दुनिया के इकलौते कप्तान जिनके नाम 7 दोहरे शतक दर्ज हैं