ठीक बैंक के लॉकर की तरह इस बार दिल्ली की सत्ता की चाबी आगामी पांच साल के लिए दो अलग प्रांतों- उत्तर में बिहार के जनता दल युनाइटेड के नीतीश कुमार और दक्षिण में तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू के हाथों में रहेगी। भले ही जदयू और टीडीपी ने मिल कर 28 सीटें जीत कर एनडीए को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचाया हो, पर इस आंकड़े में नायडू की टीडीपी की भागीदारी ज्यादा है। टीडीपी के पास जदयू से चार सीट अधिक है।
इस बार एनडीए गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती नायडू और उनके जैसे अन्य दलों को साथ लेकर चलना है। जाहिर है, इसके चलते इस बार नायडू बड़ी जिम्मेदारी और ताकत के साथ आंध्र प्रदेश और दिल्ली में अहम भूमिका में नजर आने वाले हैं। उन्होंने आंध्र में टीडीपी के पक्ष में फैसला आने के तुरंत बाद इस भूमिका का जिक्र भी किया। एक्स पर नायडू ने लिखा, “आंध्र प्रदेश के लोगों ने हमें एक मजबूत जनादेश दिया है। यह जनादेश हमारे गठबंधन और राज्य के लिए लोगों के विश्वास का प्रतिबिंब है। अपने लोगों के साथ मिलकर हम आंध्र प्रदेश का पुनर्निर्माण करेंगे और इसके गौरव को फिर से स्थापित करेंगे।”
चंद्रबाबू को मृदुभाषी और तकनीक प्रेमी के रूप में जाना जाता है। वे आंध्र प्रदेश के सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने 13 साल 247 दिन तक मुख्यमंत्री पद संभाला है। यही नहीं, नायडू आंध्र प्रदेश के ऐसे एकमात्र नेता हैं जिन्होंने अविभाजित और विभाजन के बाद (आंध्र से अलग कर तेलंगाना का गठन) राज्य की बागडोर संभाली है। उनके मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल को आर्थिक सुधार और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाला कार्यकाल माना जाता है। उन्हें ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है जिसे नई तकनीक के साथ कदमताल करना पसंद है। हैदराबाद की साइबर सिटी उन्हीं की दूरदृष्टि का परिणाम है। यही नहीं, उन्होंने राज्य के बुनियादी ढांचे के विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया जिसमें नई राजधानी अमरावती का निर्माण भी शामिल है। अपने कार्यकाल में कई कीर्तिमान रच चुके नायडू को आइटी क्षेत्र में अपने राज्य को अग्रणी स्थान पर ले जाने का श्रेय दिया जाता है। वह राज्य ही नहीं केंद्र की राजनीति के भी कुशल रणनीतिकार रहे हैं। उनके धैर्य, दूरदृष्टि, आर्थिक सुधार और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित आर्थिक विकास का श्रेय निश्चित ही वेंकटेश्वर आर्ट्स कॉलेज, वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय और उनके परिवार को जाता है। नायडू ने अर्थशास्त्र में पीएचडी की है।
20 अप्रैल 1950 को आंध्र प्रदेश के गांव नारावरिपल्ले में जन्मे एन. चंद्रबाबू नायडू के पिता एन. खर्जुरा नायडू किसान और मां अम्मानम्मा गृहिणी थीं। 20 साल की उम्र में 1970 के दशक में उन्होंने अपना सियासी सफर शुरू किया। एमए की पढ़ाई के दौरान श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में छात्र संघ के नेता निर्वाचित होने के बाद राजनीति और सामाजिक कार्य में समय देने लगे। इसके बाद वे युवा कांग्रेस में शामिल हो गए और फिर आंध्र प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी तेलुगुदेशम पार्टी में चले गए। कुछ वर्षों बाद उन्होंने फिल्म अभिनेता और पार्टी संस्थापक एनटी रामा राव की पुत्री भुवनेश्वरी से विवाह कर लिया।
उनके राजनैतिक सफर की शुरुआत 1978 में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव से हुई। इस चुनाव में वे निर्वाचित हुए और मंत्री बने। वर्ष 1995 में ससुर एन.टी. रामराव के बाद पहली बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अगले वर्ष यानी 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व किया। वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को समर्थन देने से पहले नायडू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के संयोजक भी रहे। इस दौरान राज्य ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति में भी नायडू खासा दबदबा बनाने में कामयाब रहे।
वर्ष 1999 में नायडू फिर मुख्यमंत्री चुने गए और 2004 तक पद पर रहे। आंध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना का गठन किए जाने के बाद 2014 में वह तीसरी बार राज्य (आंध्र प्रदेश) के मुख्यमंत्री बने। पिछले वर्ष यानी 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार मिली। 2019 के विधानसभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाइएसआर कांग्रेस पार्टी से करारी हार के बाद टीडीपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा। वहीं लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार ने उन्हें सियासी नेपथ्य में धकेल दिया। इस दौरान नायडू के लिए लगभग तीन वर्ष 2021-2023 का समय कई उतार-चढ़ाव से भरा रहा।
19 नवंबर 2021 को एक प्रेस काॅन्फ्रेंस के दौरान चंद्रबाबू नायडू ने रोते हुए शपथ ली थी कि जब तक विधानसभा चुनाव नहीं जीत लेंगे, तब तक विधानसभा में कदम नहीं रखेंगे। नायडू अपनी पत्नी को लेकर की गई टिप्पणियों से आहत थे। नायडू ने कहा था, ‘‘विधानसभा में आज जो कुछ हुआ, वह महाभारत में पांडवों की मौजूदगी में कौरवों द्वारा द्रौपदी के साथ अभद्र व्यवहार जैसा था।’’ पिछले साल सितंबर में नायडू को स्किल डेवलपमेंट घोटाले में राज्य की सीआइडी ने गिरफ्तार किया था। 9 सितंबर को तड़के गिरफ्तार किए गए नायडू ने लगभग दो महीने राजा महेंद्रवरम केंद्रीय जेल में भी बिताए।
हकीकत यह है कि देश और प्रदेश की सत्ता से बेदखल होने के बाद भी नायडू ने प्रदेश की जनता से अपना नाता हमेशा जोड़े रखा। यही वजह है कि उन्होंने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे को लेकर मार्च, 2018 में एनडीए से नाता तोड़ लिया। नायडू 2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर भाजपा विरोधी खेमे में रहे।
ठीक छह साल बाद मार्च, 2024 में नायडू ने एनडीए में वापसी की और आंध्र प्रदेश में भाजपा, जनसेना के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। गठबंधन के तहत प्रदेश की कुल 175 विधानसभा सीट में से टीडीपी 144, जनसेना 21 और भाजपा 10 सीट पर चुनाव लड़ी। राज्य में टीडीपी 144 में से 135 विधानसभा सीटें लेने में कामयाब रही। जानकारों का कहना है भले ही एनडीए से उनके संबंध ‘लव ऐंड हेट’ के रहे हों, इसके बावजूद उनका कुनबा प्रदेश में बढ़ता ही गया।
यही वजह है कि आंध्र प्रदेश में 2019 में लैंडस्लाइड जीत दर्ज करने वाली वाइएसआरसीपी को हरा कर लोगों ने मुफ्त की सियासत को नकार दिया और पूर्व के कार्यों और नए आंध्र के रोडमैप को लेकर चुनावी अखाड़े में उतरे चंद्रबाबू के वादों पर जमकर भरोसा जताया। वर्ष 2019 में खाता खोलने में नाकाम रही भाजपा भी इस बार दक्षिण के दिग्गजों के सहारे यहां कमल खिलाने में कामयाब रही। टीडीपी ने 16 लोकसभा सीटें जीतीं, भाजपा ने तीन और जनसेना ने दो सीटें जीतीं, जिससे वाइएसआरसीपी का सफाया हो गया। 25 लोकसभा सीटों में से एनडीए ने 21 सीटें जीत लीं, जबकि वाइएसआरसीपी केवल चार सीटें जीतने में सफल रही।
नायडू के पास गठबंधन और प्रदेश दोनों तरह की सरकार चलाने का खासा अनुभव रहा है। इस जीत के चलते नायडू दोनों जगह मजबूत स्थिति में हैं। यह तो तय है कि केंद्र की सत्ता की एक चाबी बैंक मैनेजर (चंद्रबाबू नायडू) के पास रहने वाली है।