Advertisement

लद्दाख को मिले वाजिब हक

जम्मू-कश्मीर के शोर में लद्दाख के मुद्दे नजरंदाज हुए, अब अपेक्षाएं पूरी करने का सही वक्त
नई व्यवस्थाः लद्दाख अब केंद्रशासित प्रदेश होगा, यहां विधानसभा नहीं होगी

जम्मू-कश्मीर में दशकों पुराने राजनीतिक संकट के चलते परेशानियां झेलने वाले लद्दाख क्षेत्र को आखिरकार उसका वाजिब राजनीतिक अधिकार मिल ही गया। विषम परिस्थितियों के कारण लंबे समय तक लद्दाख को अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाने का मौका नहीं मिल सका। समय-समय पर उठी स्थानीय लोगों की मांगों और अपेक्षाओं को या तो बेरहमी के साथ कुचल दिया गया या फिर बाहरी नेताओं ने उन्हें बड़ी चालाकी से दबा दिया। लद्दाख के निवासियों द्वारा उठाई गई कोई भी मांग पूरी नहीं की गई। उनकी वे मांगें भी पूरी नहीं हुईं जो भारत संघ में जम्मू-कश्मीर के विलय से भी पहले की थीं।

लद्दाख के राजनीतिक तिरस्कार के कई कारण दिखाई देते हैं। राज्य और केंद्र सरकारें दशकों तक यहां के लोगों के भोलेपन और पिछड़ेपन का फायदा उठाती रहीं। लद्दाख को अपने अधीन रखने के लिए स्थानीय लोगों में मतभेदों का भी फायदा उठाया गया। छोटा समुदाय होने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखने और मांगों को लेकर दबाव डालने में लद्दाख की अपनी सीमाएं हैं। लद्दाख की अपनी कुछ खास सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याएं हैं। दूसरे अति-प्रचारित मुद्दों के साथ मिलाने पर इनका समाधान नहीं किया जा सकता है। लद्दाख की समस्याएं गंभीर हैं, लेकिन उन्हें प्रभावशाली तरीके से उठाया नहीं जा सका। इसलिए इन पर सरकारों और नेताओं का ध्यान भी नहीं गया, जबकि कश्मीर की समस्याएं ज्यादा प्रमुखता से उठती रहीं।

लद्दाख अपनी राजनीतिक अपेक्षाओं को किसी भी बाहरी ताकत के समर्थन के बल पर नहीं उठाना चाहता है। भले ही यह रास्ता आसान नजर आता हो, लेकिन इसे आदर्श कतई नहीं कहा जा सकता है। इससे समूचे लद्दाख क्षेत्र की राजनीतिक शून्यता भी बाहर आएगी। लद्दाख के निवासियों की अपनी अलग क्षेत्रीय पहचान है। यह जम्मू-कश्मीर की पहचान की तुलना में पूरी तरह से अलग है। लद्दाख में पिछले 20 वर्षों के दौरान हालात में तेजी से बदलाव आए हैं। इस दौरान वहां के लोगों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं। जाहिर है कि यहां दशकों से जो यथास्थिति बनी हुई है, उससे बाहर निकलने और पुरानी गलतियां सुधारने का अब समय आ गया है। लद्दाख के मुद्दे सुलझाने के लिए समाधान इस तरह निकाले जाने चाहिए जो राष्ट्रहित के खिलाफ बिलकुल न हों।

लद्दाख की समस्याएं बिना वहां के लोगों को जोड़े और बिना उनके विचार जाने दूर नहीं की जा सकती हैं। इसके लिए क्षेत्र के निवासियों के साथ परामर्श किया जाना चाहिए। समस्याएं सुलझाने के लिए चाहे जो भी उपाय किए जाएं, उनमें क्षेत्रीय विशेषताएं निहित होनी चाहिए और लोगों की अपेक्षाएं पूरी होनी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने का सरकार का कदम लद्दाख के लिए स्वागत योग्य है। राष्ट्र के निर्माण में देश के बाकी हिस्से के साथ लद्दाख को भी बराबर का हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए।

इन सबके साथ लोगों को अपनी राजनीतिक अपेक्षाएं और मांगें उठाने की अनुमति होनी चाहिए। लद्दाख के लिए परिकल्पना इस तरह की होनी चाहिए, जिसमें उसकी राजनीतिक पहचान और उसके हित सबसे ऊपर रहें। इससे स्थानीय अपेक्षाओं और चुनौतियों के आधार पर वैकल्पिक राजनीतिक संवाद का मार्ग प्रशस्त होगा। यहां के मुख्य मुद्दों को राष्ट्र के समक्ष रखने से लद्दाख का लंबे समय से चला आ रहा राजनीतिक तिरस्कार भी खत्म होगा। जम्मू-कश्मीर और दूसरे कारणों से लद्दाख एक अरसे से इस समस्या को झेल रहा है।

लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिलने से आम लोगों, खासकर युवा वर्ग की बढ़ती अपेक्षाएं पूरी होनी चाहिए, ताकि उन्हें भटकाव के रास्ते पर जाने से रोका जा सके और लद्दाख के राजनीतिक और आर्थिक हितों का ख्याल रखा जा सके।

(लेखक लद्दाख की जानी-मानी शख्सियत हैं)

Advertisement
Advertisement
Advertisement