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संपादक के नाम पत्र

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पिछले अंक पर आईं प्रतिक्रियाएं

बदल गया आंदोलन

दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन ने करवट ले ली है। 22 फरवरी 2021 के अंक में ‘फसल हमारी, फैसला हमारा’ पढ़ कर इतना तो आम जनता को भी समझ आ रहा है कि किसान आसानी से हार मानने वाले नहीं हैं। 26 जनवरी की घटना के बाद केंद्र सरकार को लग रहा था कि किसान लौट जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि राकेश टिकैत ने आंदोलन में नई जान फूंक दी। अब सरकार को चाहिए कि वह जिद छोड़े और किसानों को उनका वाजिब हक दे। प्रधानमंत्री को समझना चाहिए कि जब सरकार चलाई जाती है, तो उसमें अहं का कोई स्थान नहीं होता। उन्हें लग रहा है कि कानून की वापसी से उनका कद छोटा हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है। यदि वह कानून वापसी का बड़प्पन दिखाते हैं, तो किसान हमेशा के लिए उनके प्रशंसक हो जाएंगे।

रविकांत मित्तल | श्रीगंगानगर, राजस्थान

 

आखिर कब तक

किसानों का मसला इतने दिनों तक न सुलझना बताता है कि सरकार न किसानों के प्रति गंभीर है न ही उनकी समस्याओं के प्रति। 22 फरवरी की आवरण कथा में इस पर बहुत अच्छे से रोशनी डाली गई है। सरकार ने इस आंदोलन को उसी तरह प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है, जैसे उसने शाहीन बाग को बना लिया था। अगर कोरोना का संक्रमण न हुआ होता, तो शाहीन बाग को खाली कराना बहुत मुश्किल होता। यदि सरकार ऐसे ही किसी मौके का इंतजार कर रही है, तो वह गलत सोचती है, क्योंकि हर बार ऐसे मौके नहीं आया करते। सरकार गंभीरता से इस बारे में सोचे। आखिर कब तक किसान अपने हक के लिए इस तरह परेशानी झेलते रहेंगे।

प्रवीण परिहार | झांसी, उत्तर प्रदेश

 

बड़ी चुनौती

‘नए समीकरणों का आगाज’ में (22 फरवरी 2021) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के साथ देश के कई अन्य हिस्सों के किसानों के बारे में सही ढंग से बताया गया है। वाकई अब ये आंदोलन आन-बान और शान का प्रतीक बन गया है। सरकार किसी भी सूरत में इस आंदोलन को कुचल देना चाहती है। लेकिन किसानों के जज्बे का शायद सरकार को अंदाजा नहीं है। इस लेख में बॉर्डर पर किसानों को रोकने का जो आंखों देखा हाल है, वह बताता है कि देश में लोकतंत्र की क्या हालत है। बेहतर हो सरकार इस समस्या को खत्म करने की कोशिश करे, क्योंकि किसान अपनी ओर से बड़ी चुनौती देकर सरकार को घेर चुके हैं।

अश्विनी मलिक | फिरोजपुर, पंजाब

 

पलटी बाजी

26 जनवरी की घटना के बाद राकेश टिकैत का आना और इससे आंदोलन के बदलते समीकरणों पर अच्छी आवरण कथा है, (नए समीकरणों का आगाज, 22 फरवरी)। गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों के समर्थन के लिए चंदा जुटाना बताता है कि नई शुरुआत है। लेख में यह बिलकुल ठीक लिखा है कि किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की फिजा बदल कर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती पेश कर दी है।

प्रियव्रत चौधरी | जींद, हरियाणा

 

किसानों की अनदेखी

‘बदली फिजा’ (22 फरवरी 2021) लेख में किसान आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भूमिका और महापंचायतों के बारे में पढ़ा। सरकार ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि राकेश टिकैत माहौल को बिलकुल बदल कर रख देंगे। जो आंदोलन लगभग खत्म हो गया था, टिकैत ने उसे संजीवनी दे दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इससे कैसे निपटती है। आंदोलन में अब पंजाब कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने पूरे आंदोलन को अपनी ओर मोड़ लिया है। सरकार के लिए ‘गन्ना बेल्ट’ की अनदेखी बहुत महंगी पड़ेगी।

रुद्रप्रताप यादव | मेरठ, उत्तर प्रदेश

 

महिलाओं का हक

8 फरवरी की आवरण कथा, ‘खेत-खलिहान की गुमनाम बेटियां’ बहुत ही संजीदगी से लिखी गई है। कृषि कार्य में महिलाओं की भूमिका को आखिर क्यों नहीं देखा जाता, यह बड़ा प्रश्न है। किसान का मतलब सिर्फ पुरुष किसान क्यों है, इस पर विचार जरूरी है। पंजाब से आईं महिला किसानों ने दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। उन्होंने खेत-खलिहान की बागडोर जिस कुशलता से थामी है, उसी कुशलता से वे सरकार से भी लोहा ले रही हैं। उनके कामों को बराबर की नजर से देखा जाना चाहिए। बीना अग्रवाल के लेख में कई तथ्य हैं, जो महिला किसानों की अनदेखी को दर्शाते हैं। यह लेख वाकई सराहनीय है।

डॉ. जसवंत सिंह जनमेजय | नई दिल्ली

 

खत्म हो गुमनामी

8 फरवरी की आवरण कथा, ‘खेत-खलिहान की गुमनाम बेटियां’ ने न केवल जमीनी हकीकत को उजागर किया बल्कि महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को भी सही तरीके से उठाया है। यह सही बात है कि हमारे समाज में लगभग संपूर्ण खेती-किसानी महिलाओं के ही इर्दगिर्द घूमती है। खेती-किसानी के काम में महिलाएं परोक्ष और प्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में पुरुषों से ज्यादा मेहनत करती हैं, फिर भी खेती की जमीन में उनका अधिकार नहीं है। इसी अंक में ‘वसुंधरा की बाजीगरी’ केवल भाजपा में अपने वजूद को बनाए रखने का हथकंडा है, क्योंकि वे भी जानती हैं कि भाजपा से बाहर होने पर उनकी कोई हैसियत नहीं है। ‘भोले चेहरे के पीछे छिपा शैतान’ लेख पढ़ कर यही लगता है कि ऐसे मनोरोगियों को समय रहते काबू करना बहुत जरूरी है।

खुशवीर मोठसरा | चरखी दादरी, हरियाणा

 

माटी से जुड़ी मातृशक्ति

‘खेत-खलिहान की गुमनाम बेटियां’ (8 फरवरी) में यह कहना गलत नहीं होगा कि कृषि के काम में फसल उगाने से लेकर बाजार ले जाने तक सब में महिलाओं की अग्रणी भूमिका होती है। उनके बिना खेती का काम संभव ही नहीं है। यह सच है कि बुआई, रोपाई और कटाई में काम करने के बावजूद उन्हें न कभी महत्व दिया जाता है, न ही जमीन में हक। जरूरी है कि पितृसत्ता और सामाजिक बेड़ियों को काटकर उन्हें उनका हक दिलाया जाए, क्योंकि यही बेड़ियां उन्हें उनके हक के सम्मान से वंचित करती हैं। आज सभी महिलाएं चाहे वे किसी भी वर्ग की हों, उनका योगदान हाशिये पर ही रहता है। अब जरूरत है कि उनके योगदान को पहचान दिलाने की दृष्टि से उनके काम का मूल्यांकन हो।

मोहन जगदाले | उज्जैन, मध्य प्रदेश

 

बेकार का विवाद

आउटलुक के 8 फरवरी के अंक में वेबसीरीज ‘तांडव’ पर उठे विवाद में कुछ तो वाजिब है, लेकिन ऐसे मसलों में होता यह है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए हर बात पर विवाद शुरू कर दिया जाता है। इसी अंक में, ‘जीत लाए लाजवाब तोहफा’ बहुत अच्छे ढंग से लिखा गया है। कई साल बाद जॉनी लीवर पर कुछ लिखा हुआ पढ़ने को मिला। ‘कॉमेडी लोगों को टॉर्चर करने वाली न हो’ में उन्होंने बेबाकी से अपनी बातें रखी हैं।

आबिद मजीद इराकी | जहानाबाद, बिहार

 

नियंत्रण जरूरी

आउटलुक के 8 फरवरी के अंक में ‘आजादी पर नई पहरेदारी’ में ऑनलाइन माध्यम पर नियंत्रण की बात की गई है। ऐसा होना चाहिए क्योंकि अभी इस माध्यम में कंटेंट को लेकर कुछ ज्यादा ही अराजकता है।  अब यह लोकप्रिय माध्यम बन गया है इसलिए जरूरी है कि इस पर मनमानी न हो। 

बीना उपाध्याय | भोपाल, मध्य प्रदेश

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इतिहास का आईना

14 जुलाई, 1996

द ईएमयू टीम

जॉनसन स्पेस सेंटर

ह्यूसटन, टैक्सास, 77078

ईएमयू समूह के साथियों

कम से कम चौथी सदी या इससे पहले तक, जहां तक मुझे याद पड़ता है, मैं समझता था कि छह फुट का ऑस्ट्रेलियाई पक्षी ईमू उड़ नहीं सकता है। हालांकि मेरी यह जानकारी अब भी गलत नहीं है।

लेकिन अब देखिए, ईएमयू अंतरिक्ष यान इतिहास में सबसे ज्यादा फोटो खींचे जाने वाला यान बन गया। इसकी सफलता में एक बात और विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इस यान ने सवारी करने वाले बदसूरत व्यक्ति को छुपा लिया था। हालांकि, इसकी असली सुंदरता, सही तरीके से काम करना थी। यह मजबूत, विश्वसनीय और बहुत ही आरामदायक था।

जिन लोगों ने इसे बनाया मैं उन सभी को, धन्यवाद और बधाई प्रेषित करता हूं। 

आपका ही

नील ए. आर्मस्ट्रॉन्ग

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पुरस्कृत पत्र

संस्कृति की सुध

आउटलुक पत्रिका में राजनैतिक रिपोर्टिंग का पक्ष हमेशा से मजबूत रहा है। लेकिन पत्रिका में साहित्य और संस्कृति को जो स्थान मिलता है, वह काबिले तारीफ है। सितारा देवी की बेटी जयंती माला मिश्रा का साक्षात्कार (22 फरवरी 2021) बहुत अच्छा लगा। उनकी बेटी से कुछ अनजानी बातों की जानकारी मिली। एक सच्चा कलाकार वही है, जो साहसी हो। उन्हें नृत्य साम्राज्ञी की उपाधि से संबोधित किया जाता था, यह मालूम था लेकिन कब और कैसे यह उपाधि मिली इस बारे में जानना दिलचस्प रहा। हिंदू-मुस्लिम दंगों के बीच लोगों की जान बचाने का वाकया भी एकदम नया था। इससे एक कलाकार की संवेदनशीलता का पता चलता है। इसी तरह कलाकारों के जीवन के अनछुए पहलू सामने लाते रहिए।

गौरव पंत, पिथौरागढ़ |उत्तराखंड