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संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आई पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

वोट बैंक से परे

कई हैं जो सवाल कर रहे हैं, भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को क्या हासिल होगा?, राहुल को क्या हासिल होगा? इन सभी को आउटलुक का लेख, ‘राजनीति का उत्तरायण, (28 नवंबर)’ पढ़ना चाहिए। राहुल गांधी इस यात्रा से जो हासिल कर रहे हैं, वह वोट से कहीं बढ़ कर है। हर बात को राजनीति के वोट बैंक नजरिये से नहीं देखा जा सकता। राहुल तमाम जाति, वर्ग, धर्म हर बात को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ रहे हैं। देखा जाए, तो वे सही मायने में नए भारत को गढ़ रहे हैं। पिछले दस साल से भारत ने अपनी विभिन्नता जैसे खो दी थी। राहुल विभिन्नता के उस रूप को फिर लौटा रहे हैं। उनकी पदयात्रा सिर्फ राजनैतिक नहीं है। यात्रा में वे भीड़ के साथ नजर जरूर आ रहे हैं लेकिन दरअसल वे एकाकी चल रहे हैं। खुद की खोज में चल रहे हैं। यही यात्रा का अनुभव उन्हें बड़ा नेता बनाएगी। इस यात्रा से उन्होंने जो अनुभव हासिल किया है, उससे वह राजनीति कर पाएंगे, ऐसी राजनीति जहां धर्म के आधार पर किसी समाज को तोड़ कर राज करने की उनकी न इच्छा रहेगी न वे ऐसा करना कभी चाहेंगे।

प्रीति सांवले | औरंगाबाद, महाराष्ट्र

 

परिपक्व नेता

आउटलुक की आवरण कथा, ‘दिल्ली कितनी दूर’ (28 नवंबर) बहुत अच्छी लगी। राहुल गांधी के लिए दिल्ली कभी भी दूर नहीं थी। लेकिन उनका लक्ष्य सिर्फ प्रधानमंत्री बन कर देश पर हुकुमत करना नहीं है। राहुल राजनीति के लिए बने ही नहीं हैं। उनकी भारत जोड़ो यात्रा से यह और साफ हो जाता है। कोई और नेता होता तो इस यात्रा को ऐसा बना देता जैसे उसके सिवा दुनिया में कोई और है ही नहीं। लेकिन गौर किया जाए, तो राहुल ऐसा नहीं कर रहे हैं। वे निस्वार्थ भाव से लोगों से मिल रहे हैं, हंस रहे हैं, बतिया रहे हैं। उन्होंने अब तक की यात्रा में एक भी बड़ी राजनैतिक टिप्पणी नहीं की है। वे चाहते तो इस यात्रा को पूरी तरह राजनैतिक रंग दे सकते थे। लेकिन उनका पूरा जोर समाज के उस वर्ग तक पहुंचना और समझना है, जो असल भारत है। वे समाज को यह संदेश भी दे रहे हैं कि राजनीति ही जीवन में सब कुछ नहीं है। इस यात्रा से वह परिपक्व नेता के तौर पर उभरे हैं। आज नहीं तो कल उन्हें इसका फल जरूर मिलेगा।

संगीता शर्मा | भोपाल, मध्य प्रदेश

 

संवाद का माध्यम

आउटलुक के 28 नवंबर के अंक में, ‘एक पदयात्री की डायरी’ ने उन सारी शंकाओं से भी परदा उठा दिया, जो कांग्रेस के साथ जुड़ाव रखने वालों के मन में थी। नई पीढ़ी तो जैसे पदयात्रा से अनभिज्ञ ही थी। नौजवानों के लिए वाकई यकीन करना मुश्किल था कि कोई पैदल चल सकता है। राहुल गांधी ने पैदल चलकर वाकई हमारी सांस्कृतिक चेतना को झकझोर दिया है। यह अर्थों में भारत से जुड़ने का ईमानदार प्रयास है। लेख में बिलकुल सही लिखा है कि, “पदयात्रा किसी तप की तरह है। यह पैदल चलने वाले और यात्रा को देखने वाले के बीच एक पुल का काम करती है, दोनों को जोड़ देती है। पदयात्रा संवाद स्थापित करने का एक वैकल्पिक साधन है।” यह पंक्तियां ही इस पदयात्रा का सार है। राहुल निस्पृह भाव से चल रहे हैं, लोगों से मिल रहे हैं, भारत की सांस्कृतिक विभिन्नता को समझ रहे हैं, उसे जोड़ रहे हैं। यह क्या कम बड़ी बात है। विपक्ष भी इस पर बहुत हमलावर नहीं हो पा रहा है। इसका कारण यही है कि उन्हें भी पता चल गया है कि विरोध का अर्थ होगा, इस यात्रा को मान्यता दे देना। विरोध यानी सामने वाले को होने वाली तकलीफ और परेशानी। यही राहुल गांधी की असली जीत है। राहुल जहां-जहां जा रहे हैं, जनता खुद ब खुद उनसे जुड़ रही है। इस यात्रा ने बताया है कि भारत के लोग आसानी से किसी फासीवादी ताकतों के आगे घुटने नहीं टेकते। बीच का एक वक्त था, जब ऐसे लोग सिमट गए थे, लेकिन अब वे फिर इकट्ठे हो गए हैं, जो अच्छा संकेत है।

नीरज कुमार खरे | भिलाई, छत्तीसगढ़

 

दिलों तक पहुंच

28 नवंबर के अंक में, ‘एक पदयात्री की डायरी’ में भारत जोड़ो यात्रा का जैसे चित्र खींच दिया गया। वहां न होकर भी लगा कि हम उस यात्रा का हिस्सा हैं। राहुल गांधी ही यह कर सकते हैं कि वे बिना किसी स्वार्थ के पैदल चलें। वे न सरकार बनाना चाहते हैं न प्रधानमंत्री बनने की उन्हें जल्दी है। अभी उनके पास उम्र है और जब मौका आएगा वह यह पद भी संभाल ही लेंगे। लेकिन अभी वक्त भाजपा-आरएसएस को यह जताना जरूरी था कि जमीनी ताकत सिर्फ उनके पास नहीं है। आरएसएस को गर्व है कि उनके पास लाखों की संख्या में स्वयंसेवक हैं। ये लोग रात दिन शाखा जाते हैं, ये लोग एक संस्था के लिए काम करते हैं। बाद में इनमें से चुन कर किसी को पद भी दिया जाता है। लेकिन इसके विपरीत इस यात्रा में आम लोग जुड़ रहे हैं। उन्हें न किसी पद का लालच है न सत्ता का। फिर भी राहुल को समर्थन मिल रहा है, दरअसल यह असली जन समर्थन है। चुनावी रैली में जाकर जुमले वाले भाषण देना और लोगों के बीच जाकर और जमीनी स्तर पर काम करना दो अलग-अलग बातें हैं। यहां किसी पर यात्रा के साथ जुड़ कर चलने का कोई दबाव नहीं है फिर भी लोग स्वेच्छा से साथ आ रहे हैं। भाजपा राहुल की यह शक्ति देख कर घबरा गई है। हजारों लोगों का जो जत्था उनके साथ जुड़ गया है, उसे बताने के लिए शब्द खर्च करने की जरूरत नहीं है। इस यात्रा ने सचमुच लोगों के दिल में दस्तक दी है। पदयात्रा में असली भारत के दर्शन हो रहे हैं। इसके लिए राहुल गांधी प्रशंसा के पात्र हैं।

सुरेश तोमर | बूंदी, राजस्थान

 

साथ महत्वपूर्ण

28 नवंबर के अंक में ‘कैद में जीवन साथी का साथ’, लेख ने दिल छू लिया। न्यायालय के निर्देश और जेल प्रशासन के प्रयासों की इस मामले में सराहना करनी होगी। लेकिन इसके साथ ही जेलों की संरचनात्मक कमियों को दूर करना भी महत्त्वपूर्ण है। वरना जेल ऐसी जगह बनी रहेंगी जहां निर्दोष बिना कारण लंबे समय तक बंद रहेंगे और परिवार से दूर रहेंगे। सबसे बेहतर तो यही है कि समय से मामलों का निपटारा हो, ताकि जेलों में कैदियों की संख्या में इजाफा न हो। पुलिस पुनर्वास के बारे में सोच रही है, न्यायालय इस तरह के फैसले दे रहे हैं यह भी इस दिशा में सुखद कदम है। बस कुछ नीतिगत उपायों पर भी ध्यान दिया जाए और उन्हें अमली जामा पहनाया जाए, तो कैदियों का जीवन स्तर भी सुधर सकता है।

सुजीत कुमार सिन्हा | पटना, बिहार

 

सबका दायित्व

आउटलुक के 28 नवंबर अंक में, ‘अश्लील कंटेंट का क्लेश’ पढ़ा। भारत सहित दूसरे देशों में भी अश्लीलता की बीमारी सिर उठा रही है। भारत में तो इससे निपटने का यही तरीका है कि इसे गैर जमानती अपराध की श्रेणी में डाल दिया जाए। क्योंकि अभी तक होता यह है कि शिकायत दर्ज हो जाती है और फिर जमानत मिल जाती है। ओटीटी तो जैसे ऐसे कंटेंट की नर्सरी है। अच्छी कहानियों में भी बिना कारण गालियां रखना आम बात है। इन लोगों को लगता है कि गालियां होंगी, तो पात्रों की विश्वसनीयता बढ़ेगी। लेकिन क्या हमारे आसपास ऐसे पात्र होते हैं। कई कहानियां तो कहने और निर्देशन के स्तर पर वाकई शानदार होती हैं लेकिन गालियां और फिजूल दृश्यों की वजह से तारत्मयता टूटती है और देखने का मजा जाता रहता है। हर बात सरकार के स्तर पर नहीं हो सकती। जरूरी है कि समाज ही यह दायित्व उठाए और कोई उपाय सोचे।

डॉ. ऋतु बिजघावने | नासिक, महाराष्ट्र

 

अभिव्यक्ति के नाम पर छूट

आउटलुक के 28 नवंबर अंक में, ‘अश्लील कंटेंट का क्लेश’ में कई पहलूओं पर बात की गई है। लेकिन एक बात समझने योग्य है कि सर्वोच्च न्यायालय के सिर्फ फटकार लगा देने भर से अश्लीलता खत्म नहीं हो जाएगी। यहां लोग सजा काट आते हैं, फिर भी नहीं सुधरते तो भला फटकार से उन पर क्या असर होगा। एकता कपूर इस पूरे खेल का नेतृत्व करती हैं, जो मर्यादा की सीमा लांघ कर ऐसा कंटेंट देते हैं, जिसे इन लोगों ने मनोरंजन का नाम दिया है। फिल्म में पहले सेंसर बोर्ड सख्ती रखता था लेकिन अब तो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जो चाहे दिखाया जा रहा है। एकता कपूर की भी अपनी दलील है कि वे युवाओं को विकल्प दे रही हैं। सच भी है जिसे देखना है देखे जिसे परेशानी हो वे छोड़ दें। लेकिन सभी जानते हैं कि यदि लोगों के सामने अच्छे और बुरे का विकल्प होगा, तो लोग बुरा ही चुनेंगे। मनोरंजन में तो यह सौ फीसदी सही हैं। यदि फटकार के बजाय सुप्रीम कोर्ट एकता को गिरफ्तार करने का आदेश दे देता तब मोहतरमा को समझ आ जाता कि विकल्प किसे कहते हैं। ओटीटी पर चूंकि किसी की नजर नहीं होती इसलिए मनमर्जी से जो चाहे दिखाया जा सकता है। इससे अश्लीलता को बढ़ावा मिलता है। इस माध्यम और अन्य विजुअल माध्यम पर अंकुश लगाना अनिवार्य है। कलात्मक होना अलग है, अश्लील होना बिलकुल अलग। दोनों को ही मिलाया नहीं जा सकता। सिनेमा या दूसरे माध्यम का समाज पर बहुत असर पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि मनोरंजन के नाम पर किसी भी माध्यम को खुली छूट नहीं मिलना चाहिए। मनोरंजन कमाई का भी साधन है। इसलिए यह तो और जरूरी हो जाता है कि कमाने वाला इस बात का खयाल रखे कि वो किसी गलत तरीके से पैसा कमाने को बढ़ावा न दे।

चंदन पटेल | दिल्ली

 

सख्त पाबंदी हो

28 नवंबर के अंक में, ‘अश्लील कंटेंट का क्लेश’ बिलकुल सही वक्त पर आया लेख है। जब तक ओटीटी पर सख्त पाबंदी नहीं लगाई जाएगी, तब तक यहां इसी तरह की सामग्री परोसी जाती रहेगी। आखिर ये लोग दर्शकों को संदेश क्या देना चाहते हैं। इसमें भी दिलचस्प यह है कि बहुत से लोग इस तरह की अश्लील सामग्री के विरोध में रहते हैं लेकिन फिर भी इनके देखने वालों में कोई कमी नहीं आती। ऐसे शो आते ही हिट हो जाते हैं। तो आखिर वो कौन लोग हैं, जो इस तरह के धारावाहिक या कार्यक्रम देखते हैं। यदि दर्शक न होंगे, तो ऐसा कंटेंट भी न होगा।

प्रिया नरूला| दिल्ली

 

पुरस्कृत पत्र : आक्रमकता ही उपाय

राहुल गांधी ने अब तक जो भी काम किए हैं, उसमें सबसे अच्छा काम पदयात्रा करना ही है। (‘राजनीति का उत्तरायण’, 28 नवंबर 2022) यह काम उन्हें बहुत पहले कर लेना चाहिए था। विपक्ष उन पर हमेशा से यही अनर्गल आरोप लगाता रहा है कि वे जनता से कटे हुए हैं। पहले भी ऐसा नहीं था लेकिन यात्रा करने से इतना तो सभी को पता चल गया है उनसे ज्यादा जमीन से जुड़ा नेता फिलहाल कोई नहीं है। यात्रा की तस्वीरें ही बताती हैं कि वे किस तरह की आत्मीयता से लोगों से मिलते हैं। उनके पास ताकत हैं, बस वे उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। राहुल गांधी साधु की तरह अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं। वह नहीं जानते कि सामने वाले उनकी तरह सहृदय नहीं हैं। उन्हें अपनी विनम्रता छोड़ कर आक्रमकता अपनानी होगी।

मयूरध्वज बाछंग | छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश

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