नीम-हकीम
यह आज की बात नहीं है जब विदेश से पढ़कर भारत लौटे छात्र भारत की परीक्षा पास नहीं कर पाए, जिससे वे यहां प्रैक्टिस कर सकें। इस बार की आवरण कथा, (20 मार्च, ‘डॉ. फ्रॉड’) में फर्जी डॉक्टरों के बारे में अच्छी जानकारी है। वर्षों से ऐसा होता आया है। लेकिन इस बार यूक्रेन संकट की वजह से यह बड़े स्तर पर दिखाई दे रहा है। यूक्रेन संकट के बाद भारत लौटकर आए छात्र चाहते हैं कि उन्हें अपनी बाकी की पढ़ाई भारत में करवाने का प्रबंध भारत सरकार करे। भारत सरकार पहले ही पढ़ाई का प्रबंध कर पाती, तो फिर इन छात्रों को विदेश जाना ही क्यों पड़ता। इस तरह की राजनीति से छात्रों को कुछ हासिल नहीं होता। हर मसले पर अभिभावक संघ बन जाते हैं और सरकार पर दबाव बनाने लगते हैं। इससे उन छात्रों को नुकसान पहुंचता है, जिन्होंने मेहनत से भारत के मेडिकल कॉलेजों में अपनी मेहनत के दम पर दाखिला लिया है। आखिर कैसे सरकार इतने छात्रों को यहां प्रवेश दे सकती है या पढ़ाई पूरी करा सकती है। इसका नतीजा यह होता है कि इस तंत्र के लोग पैसा बनाते हैं और फर्जी डॉक्टरों की फौज खड़ी हो जाती है। इसका खामियाजा वो गरीब मरीज भुगतते हैं, जो प्राइवेट अस्पतालों में नहीं जा सकते और सरकारी अस्पताल में सुविधा न होने की वजह से ऐसे अनगढ़ डॉक्टरों की शरण में चले जाते हैं। सरकार को ऐसे सभी डॉक्टरों से सख्ती से निपटना चाहिए।
बीना रस्तोगी | गंजबासौदा, मध्य प्रदेश
बदनुमा दाग
व्यापम घोटला मध्य प्रदेश पर एक बदनुमा दाग है, जिसे कभी नहीं मिटाया जा सकेगा। इस घोटाले ने कई जिंदगियां लील लीं और अभी भी इसमें जांच चल ही रही है। (‘व्यापम से व्यापक’, 20 मार्च) अंततः होगा यही कि सभी आरोपी बरी हो जाएंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि इस घोटाले का असली सूत्रधार कौन था। भारत में वैसे भी डॉक्टरों की कमी है, इस पेशे की विश्वसनीयता पर सवाल उठते ही रहते हैं। ऐसे में यदि इस तरह के घोटाले सामने आते हैं, तो मरीजों के सामने संकट और गहरा जाता है। वैसे ही ईलाज की सुविधा नहीं हैं और फर्जी डॉक्टरों का संकट दुविधा में डाल देता है। ग्रामीण इलाकों में ऐसे डॉक्टर खप जाते हैं और इन इलाकों में मरीजों की मौत पर बवाल भी कम होता है। भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य सेवाएं न के बराबर हैं, ऐसे घोटाले दिल को तोड़ कर रख देते हैं।
रूपम चौधरी | फरीदाबाद, हरियाणा
कड़ी सजा मिले
आउटलुक के 20 मार्च के अंक में, ‘बड़े मकड़जाल का छोटा हिस्सा’ पढ़ कर यही कहा जा सकता है कि पूरे भारत में केवल 74 लोगों को पकड़ कर कुछ नहीं होगा। सरकार को लगातार ऐसे कदम उठाने होंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा फर्जी डॉक्टर पकड़ में आ सकें। यह तो आश्चर्यजनक है कि विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेकर लौटे 73 डॉक्टर देश में अनिवार्य टेस्ट पास किए बिना मेडिकल काउंसिल का सर्टिफिकेट ले लेते हैं। इतने बड़े स्तर पर धांधली चलती है और किसी को पता नहीं चलता। रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट बांटने में हर राज्य अव्वल है। अस्पताल या राज्य भी लगता है, सोए रहते हैं, जो ये फर्जी डॉक्टर विभिन्न अस्पतालों में नौकरी पा लेते हैं या निजी क्लीनिक खोल कर प्रैक्टिस भी शुरू कर देते हैं। बिहार इन सब में अव्वल है। कायदे से तो बिहार मेडिकल काउंसिल को ही रद्द कर देना चाहिए या इससे जुड़े सभी लोगों को कड़ी से कड़ी सजा देना चाहिए।
रीति चौहान | बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
सबूतों का अभाव
‘बड़े मकड़जाल का छोटा हिस्सा’, (20 मार्च) तो सिर्फ ट्रेलर है। सीबीआई की जांच की पिक्चर तो अभी बाकी है। यह भारत में ही हो सकता है कि विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेकर लौटे छात्र भारत में अनिवार्य स्क्रीनिंग परीक्षा में फेल हो गए, मगर फिर भी उनका यहां रजिस्ट्रेशन हो गया। बिहार मेडिकल काउंसिल समेत कई राज्यों की काउंसिल ने ऐसे लोगों को अपने यहां से रजिस्ट्रेशन नंबर दे दिया। इन 73 डॉक्टरों के साथ इनके माता-पिता को भी सख्त सजा होनी चाहिए, जो ऐसी बेइमानी में बच्चों का साथ देते हैं। सीबीआइ के केवल केस दर्ज करने से कुछ नहीं होगा। क्योंकि कई होंगे, जो सबूतों के अभाव में छूट जाएंगे। उससे पहले सालों साल केस चलेगा और तब तक ये डॉक्टर मरीजों की जान से खेलते रहेंगे। भारत में स्वास्थ्य सेवाएं भगवान भरोसे हैं।
सौदान सिंह शक्तावत | जशपुर, छत्तीसगढ़
लचर कानून-व्यवस्था
आउटलुक के 20 मार्च के अंक में प्रकाशित ‘वारिस का वार’ आलेख में कट्टरपंथी उपदेशक अमृतलाल सिंह द्वारा धर्म की आड़ में कानून की धज्जियां उड़ानें की घटना को बेबाक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए बधाई। सभ्य समाज कभी भी ऐसी घटना को स्वीकार नहीं करेगा। सियासत अपनी जगह है, मगर जो बुनियादी सवाल हैं, उनके जवाब मिलने चाहिए। सवाल पंजाब में एक बार फिर सिर उठाते खालिस्तानी समर्थकों का है। जो डर अब तक इन लोगों में था क्या वो खत्म हो गया है। एक समय था, पंजाब पुलिस की चर्चा पूरे देश में होती थी। इस अव्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार है? अजनाला की घटना ने पंजाब में कानून-व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। किसी भी पक्ष द्वारा इस मामले में बरती गई जरा सी ढिलाई पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह सहित अनेक लोगों के बलिदान पर पानी फेर सकती है।
युगल किशोर राही | छपरा, बिहार
शब्दों की गरिमा
6 मार्च के प्रथम दृष्टि में, ‘शब्द सम्हारे बोलिये’ बहुत उम्दा लगा। इसीलिए कहा गया कि शब्दों को बरतना आना ही चाहिए। सचमुच अपशब्द बोलना पाशविक है और इन्हें सुनना यंत्रणा। बुरे शब्द जितना दर्द देते हैं, उतना दर्द जख्मी होने पर भी शायद नहीं होता। बोलते वक्त जो लोग ध्यान नहीं रखते उन्हें मनुष्य नहीं कहा जा सकता। क्योंकि भाषा ही मनुष्य को पशु से अलग करती है। मनुष्य यदि गुस्से या ताकत के दंभ में अपशब्द बोलने लगे, इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता।
राजू मेहता | जोधपुर, राजस्थान
खतरनाक तकनीक
आउटलुक के 6 मार्च के अंक में, ‘मोबाइल मधुर फांस’ तकनीक के उस जंगल की कहानी है, जहां मनुष्यता खो गई है। तकनीक का जंगल इतना बड़ा है कि इससे कोई नहीं बच सकता। गांव-गांव तक यह तकनीक पहुंच गई है। लेकिन तकनीक खतरनाक हो सकती है, इसका उन्हें अंदाजा भी नहीं होता। चमक-दमक का आकर्षण और छुप कर पैसा कमाने के अवसर मधुजाल फंसने के लिए लालच देते हैं। इस अंक से लोग सावधान हुए होंगे, ऐसी आशा है।
डॉ. पूनम पांडे | अजमेर, राजस्थान
पुरस्कृत पत्र: भगवान ही मालिक
20 मार्च की आवरण कथा, ‘डॉ. फ्रॉड’ चिकित्सा के पेशे की परत उघाड़ती है। दुखद यह नहीं है कि जिन लोगों के हाथ में मरीजों का भविष्य रहता है, वे बेइमानी से डॉक्टर बन रहे हैं। बल्कि दुखद यह है कि पूरा तंत्र इसमें ऐसे लोगों का साथ दे रहा है। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा लायक बने लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सामाजिक प्रतिष्ठा और कमाई के लिए किसी दूसरे की जान दांव पर लगा दी जाए। हर पेशे की एक पवित्रता होती है, चिकित्सक के खाते में यह कुछ ज्यादा ही होती है। क्योंकि डॉक्टर के हाथों मरीज का जीवन रहता है। ऐसे में अगर बिना परीक्षा में बैठे या फेल होकर लोग डॉक्टर बनने लगेंगे, तो मरीजों का भगवान ही मालिक है। डॉक्टरी पेशे में ईमादारी सबसे ज्यादा जरूरी है
देवव्रत नारायण | जयपुर, राजस्थान