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संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आई पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

हंसी पर सेंसर

आउटलुक की 3 अप्रैल की आवरण कथा, ‘अपनी ही छवि में फंसी विधा’ कई कारणों से खास है। आज के दौर में जब हर बात पर सेंसर है, यह दुखद है कि हंसी पर भी सेंसर लगा दिया गया है। अब लोग मजाक भी करने से डरते हैं। पहले का जमाना बीत गया, जब नेताओं पर चुटकुले बनाना अपराध नहीं था। अब तो जरा सा कुछ कह देने पर नेताओं की भौंहे टेढ़ी हो जाती है। अति तो तब होती है, जब हर आदमी की भावनाएं आहत होने लगती हैं और धार्मिक भावनाएं आहत होना तो जैसे फैशन बन गया है। कितने ही कॉमेडियनों ने अपना रास्ता बदल लिया। कितने हैं, जिन्होंने राजनीतिक चुटकुलों से तौबा कर ली। हास्य की दुनिया इतने प्रतिबंधों में नहीं फल-फूल सकती। यदि सोच कर ही चुटकुला बनाना पड़े, तो फिर वह चुटकुला कैसा। सरकार मजाक को जितनी गंभीरता से लेती है यदि उतनी गंभीरता से दूसरी बातों को ले ले तो देश की सूरत ही कुछ और होगी। कॉमेडी करने वालों को जेल भेज कर किसी देश का भला नहीं हुआ।

इतिश्री वशिष्ठ | मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

 

देसी अंदाज

कपिल शर्मा के शो को जो कामयाबी मिली उसके पीछे उसकी टाइमिंग तो है ही लेकिन उनके शो का पारिवारिक फॉर्मेट भी इसमें अहम है। (आवरण कथा, 3 अप्रैल) दर्शकों के बीच खुद कपिल की मां बैठती थीं, ताकि शो देखने वालों का विश्वास जागे। इस तरह की प्रामाणिकता कम ही लोगों को हासिल थी। उन्होंने कई बातों को बिलकुल देसी अंदाज में पेश किया, जिससे लोग भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ते गए। सही मायनों में यह विशुद्ध अराजनीतिक शो है। क्योंकि आजकल के ज्यादातर कॉमेडियन सिर्फ राजनीतिक किस्सों या घटनाक्रम पर ही बात करते हैं। लेकिन कपिल के शो ने उन लोगों को भी बांधे रखा, जिन्हें राजनीति में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी।

चारू शर्मा | धार, मध्य प्रदेश

 

अंग्रेजीदां के बीच

3 अप्रैल अंक में ‘अपनी ही छवि में फंसी विधा’ कॉमेडी की दुनिया को बेहतर ढंग से खोलती है। कपिल से पहले स्टैंड-अप कॉमेडियन के क्षेत्र को अंग्रेजी को लोगों का ही समझा जाता था। यह गलत भी नहीं था क्योंकि इन्हीं लोगों का बोलबाला था। आज भी कॉमेडियन भले ही हिंदी में बात शुरू करते हों, लेकिन फिर वे अंग्रेजी पर ही आ जाते हैं क्योंकि उनकी पृष्ठभूमि वही रहती है। इनमें कई हैं जो बड़े संस्थानों से पढ़कर निकले हैं या कॉरपोरेट की नौकरी छोड़ कर इस क्षेत्र में हाथ आजमा रहे हैं। हिंदी कॉमेडी करते वक्त भी अंग्रेजी का तड़का लगाना जरूरी होता है। लेकिन इसके उलट, कपिल शर्मा खुद अपनी अंग्रेजी का मजाक उड़ाते हैं। दर्शकों को उनकी यह हास्य रूपी ईमानदार स्वीकारोक्ति बहुत पसंद आती है। यही हिंदी की ताकत है।

करण भल्ला | मोहाली, पंजाब

 

मेहनत का नतीजा

3 अप्रैल की आवरण कथा, ‘एक्सीडेंटल कॉमेडियन’ कपिल शर्मा के बारे में बहुत सी बातें उजागर करती है। वे वाकई आज के सुपरस्टार हैं। टेलीविजन पर सिर्फ कॉमेडी शो करने के बाद भी कोई इतनी बड़ी हस्ती बन सकता है यह उनसे पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। जॉनी लीवर जैसे कलाकार भी स्टैंड अप कॉमेडी में फिलर की तरह ही इस्तेमाल किए जाते थे। लेकिन कपिल शर्मा ने इस विधा की तकदीर ही बदल दी। बेशक अमृतसर के इस लड़के को यहां तक पहुंचने में मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन जो कामयाबी उन्हें नसीब हुई है, वह पूरी तरह उनकी मेहनत का ही नतीजा है। उनके शो में हर बड़ा मेहमान आया है, बॉलीवुड के किसी बड़े सितारे से ज्यादा उनकी हैसियत है। उनका जज्बा ही था, जो वे डटे रहे और कामयाब होकर नाम कमाया।

अमृत पाल | पटियाला, पंजाब

 

शीर्ष की कीमत

कपिल शर्मा अब घर-घर जाना पहचाना नाम बन गए है। 3 अप्रैल के अंक में उनके इंटरव्यू में उन्होंने बहुत सलीके से अपने बारे में बातें रखी हैं। एक वक्त था, जब उन पर शोहरत हावी हो गई और शीर्ष पर रहने की उन्होंने कीमत चुकाई। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ही यह है कि वे फिसले और फिर उठ खड़े हुए। सच्चे इंसान की यही पहचान होती है। उन्होंने छोटे परदे पर एक तरह से कॉमेडियन तबके को शोहरत दिलाई और फिर से स्थापित किया। 

महिमा चौधरी | गुड़गांव, हरियाणा

 

लंबी यात्रा

जिन लोगों को भी अभी तक लगता था कि कपिल शर्मा आए और रातोरात टीवी के स्टार बन गए, उन सभी को आउटलुक का 3 अप्रैल का अंक पढ़ना चाहिए। ‘एक्सिडेंटल कॉमेडियन’ लेख पढ़ कर ही समझा जा सकता है कि कपिल शर्मा की संघर्ष यात्रा कैसी रही है। जो बंदा 2007 में टीवी पर ‘लाफ्टर चैलेंज’ कार्यक्रम देख, ऑडिशन के लिए आ जाए उसमें कहीं न कहीं तो ये आत्मविश्वास होगा ही कि वह कुछ कर जाएगा। उसके बाद वे कार्यक्रम में चुन लिए गए और धीरे-धीरे अपने आप उनके सामने रास्ते खुलते चले गए। 

आनंद राजवंश | मंडी, हिमाचल प्रदेश

 

खुशियों की चाभी

3 अप्रैल के अंक में आवरण पर कपिल शर्मा को देखना सुखद लगा। उनके इंटरव्यू, “वह समय भी अच्छा था, जब जेब में पैसे नहीं होते थे” ने सफलता और जिंदगी के नए पहलुओं से मिलवाया। इस दुनिया में हर एक इंसान को सफल होने का पूरा अधिकार है। इसकी परिभाषा हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकती है। किसी को खाने में खुशी मिलती है, तो किसी को बनाने में, किसी की खुशियां एकांत में समय बिताने में है, तो किसी की परिवार और दोस्तों के साथ। वहीं, आजकल के दौर में हर इंसान हंसे और खिलखिलाये बगैर इतना अधिक व्यस्त हो गया है कि अपनी वास्तविक खुशियों का रास्ता जैसे भूल ही गया है। ऐसे में कॉमेडियन कपिल के साथ इस रूबरू में जीवन, संघर्ष और सफलता हर पहलू पर रोचक बातचीत है। समाज में ऐसे ही नायकों की बहतु जरूरत है।

डॉ. पूनम पांडे | अजमेर, राजस्थान

 

ढाक के तीन पात

प्रतिष्ठित पत्रिका आउटलुक के 3 अप्रैल के अंक में प्रकाशित, विपक्ष पर वार के औजार आलेख में विपक्षी नेताओं पर ईडी और सीबीआइ की हो रही कार्रवाई के आलोक में विपक्ष के संवैधानिक महत्व पर विस्तृत जानकारी दी गई है। यह बहुत ही सराहनीय लेख है। केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ विपक्ष के नौ नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा है, जिसमें लिखा है कि उन भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई जो भाजपा में चले गए। विपक्षी दलों का यह पत्र ढाक के तीन पात साबित हुआ है। ईडी और सीबीआइ की जांच और तेज हो गई है। मजेदार बात यह है कि जिन नौ दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में उक्त बातें कही हैं, उन्हीं दलों के नेताओं पर शिकंजा कसता जा रहा है।

युगल किशोर राही | छपरा, बिहार

 

हर नागरिक की हार

‘एक साल में कौन जीता कौन हारा’ (3 अप्रैल) लेख उम्मीद तोड़ता है। पूरा एक साल बीत जाने के बाद भी वहां हालात जस के तस हैं। यह रूस और यूक्रेन का मामला नहीं है यह पूरे विश्व का मामला है। युद्ध में जनहानि होती है, बच्चे अनाथ होते हैं। शांति की हर संभव कोशिश होना चाहिए लेकिन स्वार्थ के लिए दूसरे देश युद्ध को उकसा रहे हैं। आर्थिक व्यवस्था की बदहाली का तो किसी को अंदाजा भी नहीं हो रहा। युद्ध में कोई अकेला देश नहीं हारता, बल्कि उस देश के साथ वहां के  विद्यार्थी, महिलाएं, बच्चे, वृद्ध हर व्यक्ति हारता है। सैनिक हताश होते हैं। अब सभी विराम, शांति और सुख चाहते हैं। पुतिन हों या जेलेंस्की हर कोई राजनीति के लिए दोनों देशों को युद्ध की आग में झोंके हुए है, इसलिए दूसरे देशों को आगे आकर शांति बहाल करानी चाहिए।

राजू मेहता | जोधपुर, राजस्थान

 

गिरोह के चंगुल में

20 मार्च के अंक में भ्रष्टाचार है ‘न्यू नार्मल’ पढ़ी। आज हमारे देश से हजारों बच्चे मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों विदेशों में जाते हैं। लेकिन मेडिकल क्षेत्र में कई प्रकार की अनियमिताएं, भ्रष्टाचार सरेआम पैर पसारे हुए है। मेडिकल एंट्रेस के पेपर्स लीक होते हैं, कम अंक प्राप्त पैसा देकर आसानी से डॉक्टर बन जाते हैं। चिकित्सक बनने के लिए जितने शॉर्टकट अपनाए जा सकते हैं, अपनाए जा रहे हैं। देश में ऐसे गिरोहों की कमी नहीं जो डॉक्टर बनवाने की जिम्मेदारी लेते हैं और ऐसे कई गिरोह सरकार की नाक के नीचे पनप रहे हैं। यही गिरोह मिलकर मेडिकल डिग्रियों में घोटाला कर रहे हैं और इन्हें सजा भी नहीं हो रही है। मेडिकल का मकड़जाल (बिना मेडिकल टेस्ट पास किए प्रैक्टिस रजिस्ट्रेशन का मिलना) शर्मनाक है। दलालों, सिंडिकेटों के हाथों सरेआम डॉक्टरी की डिग्रियां बिक रही हैं। आखिर क्या हो कि चिकित्सा शिक्षा और उपचार का पवित्र पेशा इन भ्रष्टाचारियों की भेंट न चढ़े।

ज्योति कटेवा | पटियाला, पंजाब

 

करिअर से खिलवाड़

आउटलुक के 20 मार्च के अंक में मेडिकल फर्जीवाड़े के बारे में जानकर ज्यादा अचरज नहीं हुआ। भारत में परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा एकदम सामान्य बात हो गई है। लेकिन राज्य और केंद्र सरकार के पास इसे रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं है। ‘व्यापम से व्यापक’ पढ़ कर रूह कांप गई। इसे पढ़कर इतना दुख हुआ कि भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े का रूप इतना घिनौना भी हो सकता है। जिन लोगों के करिअर से इतना बड़ा खिलवाड़ होता है, वे बेचारे कहीं के नहीं रहते। कहां हैं देश के रखवाले? उन्हें किसी की फिक्र नहीं क्योंकि हमारे यहां, चुनावी राजनीति से बड़ा कुछ भी नहीं। कायदे से तो कानून इतना सख्त कर दिया जाना चाहिए कि कोई सपने में भी इस तरह के फर्जीवाड़े के बारे में न सोच सके। इसी अंक में उत्तर दक्षिण का संगम अच्छा लेख है। इसी तरह आउटलुक सामग्री देता रहे यही कामना है।

इन्दु सिन्हा इन्दु’ | रतलाम, मध्यप्रदेश

 

पुरस्कृत पत्र: हंसना जरूरी है

इस आपाधापी के युग में जब हंसना सबसे दुर्लभ हो गया है आउटलुक ने एक ऐसे व्यक्ति को केंद्र में रख कर आवरण कथा निकाली है, जिसके बारे में सोचा नहीं जा सकता था। ‘कॉमेडी का रॉकस्टार’ (3 अप्रैल) में कपिल शर्मा का विस्तृत इंटरव्यू पढ़ कर लगता है कि कोशिश की जाए, तो कामयाबी कदम चूमती ही है। एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का मुंबई की चमक-दमक में यदि खुद को स्थापित कर पाया, तो यह उसकी मेहनत और सकारात्मक सोच का ही नतीजा रहा है। कपिल ने सभी उत्तर पूरे दिल से दिए। इतने साफगोई से उन्होंने अपनी कमजोरियों के बारे में भी बताया। इसी से पता चलता है कि उनकी सफलता खरीदी हुई या किसी की कृपा पर मिली सफलता नहीं है।

दिविता रघुवंशी | सिवनी मध्य प्रदेश

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