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24 जुलाई 2023 · JUL 24 , 2023

पत्र संपादक के नाम

भारत भर से आई पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रिया

परिवार का सहारा

आज की बदलती जीवनशैली में अकेलापन और अवसाद बढ़ा है, जो लोगों को ऐसे ऐप की ओर आकर्षित कर रहा है। 10 जुलाई की आवरण कथा, ‘बेवफाई का बाजार’ भी उसी सीमित मेलमिलाप की ओर इशारा करती है, जिसके कारण अब लोग रिश्तों के लिए तकनीक और ऐप पर निर्भर रहने लगे हैं। यह चिंता का कारण है भी और नहीं भी। जो लोग इसके प्रति समझ-बूझ रखते हैं उनके लिए तो यह औषधि है। मगर जो लोग भावनात्मक रूप से परेशान हैं और किसी सहारे की तलाश में हैं वे किसी अपराध के शिकार भी हो सकते हैं। कई लोग खुलकर अपने परिजनों से मन की बात नहीं कर पाते, उन्हें अपने साथी का भी सहारा नहीं रहता। यही वजह है कि वे किसी भी अनजान ऐसे पर मिले रिश्ते को अपना मान लेते हैं। भावुक होकर रिश्ता जोड़ने से पहले वे कुछ नहीं सोचते। अगर परिवार में ही ऐसे लोगों को सहारा मिले, तो ऐसे आंकड़ों में खुद ब खुद गिरावट आ जाएगी। इसलिए जरूरी है कि हम समाज में मानसिक और भावनात्मक मजबूती के लिए काम करें। बेशक यह काम धीमे होगा लेकिन तब कम से कम ऐसे ऐप की जरूरत तो नहीं होगी।

डॉ. पूनम पांडे | अजमेर, राजस्थान

बदल रहा है देश

इस बार की आवरण कथा (10 जुलाई, ‘बेवफाई का बाजार’) दिलचस्प लगी। यह भी गजब है कि अब विवाहित लोगों के लिए भी डेटिंग ऐप बन गए हैं। और सबसे दिलचस्प यह है कि इस ऐप का दावा है कि उनके पास 20 लाख लोग ऐसे हैं, जो उनका ऐप इस्तेमाल कर रहे हैं। इस ऐप को महिलाओं ने महिलाओं के लिए बनाया है। यानी महिलाएं को लगने लगा है कि उनके लिए आजादी का मतलब दूसरा संबंध है। वाह क्या कहने। सिर्फ 1500 लोगों से सर्वे कर भारत के लोगों के बारे में यह प्रचारित कर दो कि अब यहां भी छोटे शहरों और कस्बों में लोग बेवफाई करने लगे हैं। जबकि बेवफाई का अर्थ बहुत अलग है। इसमें यह भी लिखा है कि महानगरों में 58 फीसदी लोगों ने विवाहेतर संबंधों की बात कबूली। यहां यह स्पष्ट किया जाना जरूरी था कि विवाहेतर संबंध से आशय क्या है। यानी क्या ये लोग सिर्फ दूसरे व्यक्ति से बात करते थे, फोटो या वीडियो का आदान प्रदान करते थे या शारीरिक गतिविधियों में लिप्त थे। इसे कई श्रेणियों में बांटा जाना चाहिए था तभी पता चलता कि यह बेवफाई किस स्तर की है, क्योंकि ऐसे हवा में बात कर यह नहीं कहा जा सकता कि इस ऐप ने छोटे शहरों को वह आजादी दी जिसके बारे में खुद उन्होंने सोचा नहीं था। यह क्या आजादी हुई, क्योंकि जब ऐप नहीं था, भारत में लोग तब भी इस मामले में आजाद थे। उनका कहना है कि इस डेटिंग ऐप्स के प्रयोग के मामले में भारत शीर्ष पांच देशों में शामिल हो। ऐसा हो सकता है क्योंकि भारत में उत्सुक लोगों की कमी नहीं है, जो फुर्सत में बिना कारण ऐसे काम करते रहते हैं।

प्रकाश आर्य | रतलाम, मध्य प्रदेश

महामारी का बदलाव

कोरोना महामारी पूरी दुनिया में बहुत सी बातें हमेशा के लिए बदल गईं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस दौर में रिश्तों की परिभाषा और स्वरूप भी बदला। 10 जुलाई की आवरण कथा, ‘बेवफाई का बाजार’ बहुत सी बातों पर रोशनी डालती है। वह दौर बीत गया जब भारतीय समाज विवाह को पवित्र बंधन मानता था। अब तो हमारे यहां भी शादी हर सामाजिक बंधन से परे है। शादी को लेकर युवाओं की सोच में बहुत बदलाव आया है। भारतीय लड़के अब विचार के रूप में थोड़े परिपक्व हुए हैं। अब वे पत्नी को सिर्फ घर में ही कैद कर नहीं रखते हैं। वहीं लड़कियां भी अपनी बात करने का साहस जुटा लेती हैं। जहां समझदारी होती है वहां, तो आपसी सामंजस्य से दोनों साथ रह पाते हैं। लेकिन जहां शादी के बाद जरा भी वैचारिक तालमेल गड़बड़ाया वहां फिर ऐसे डेटिंग ऐप्स का प्रवेश होता है। महामारी के वक्त कई पति-पत्नी घर के अंदर कैद रहे और तब उन्हें पता चला कि हमेशा साथ रहने की कसम खाना अलग बात है और हमेशा साथ रहना बिलकुल अलग। इसलिए यह हो सकता है कि इस दौर में पति और पत्नी दोनों ने ही दूसरे विकल्प तलाशे हों। इसमें यह तर्क भी ठीक लगता है कि लॉकडाउन के चलते, घर पर लौटे लोगों की वजह से डेटिंग ऐप के आंकड़ों में बढ़ोतरी दिखाई दी हो। यह तो सच है कि अब कहीं भी चाहे वह बड़े शहर हों या छोटे कस्बे, कोई भी बात टैबू नहीं रह गई है।

प्रवेश दत्तात्रय भांडारे | कोल्हापुर, महाराष्ट्र

बाजार की दखल

10 जुलाई की आवरण कथा, ‘पति, पत्नी और ऐप’ ने बाजार का एक नया रंग दिखाया है। इसमें सच कहा गया है कि यह कोई नई बात नहीं है। पर हां बाजार ने अब रिश्तों पर भी नजर टिका दी है। अब तक तो सब कुछ बाजार के हवाले था ही अब रिश्ते पर भी इसकी नजर लग गई है। विवाहेतर संबंध नई बात नहीं लेकिन इसी तरह बाजार इसे हवा देता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब यह महामारी की तरह दुनिया भर में फैल जाएगा। बेवफाई करना या विवाह के बाद भी प्रेम प्रसंग रखना कुछ लोगों की फितरत का हिस्सा है। यह नितांत निजी और व्यक्तिगत मामला है। इसके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि समाज में हर व्यक्ति ऐसा करता ही है। लेकिन जब इस तरह के सर्वेक्षण आते हैं, तो लगता है जैसे, समाज का हर दूसरा या तीसरा व्यक्ति इसी में लिप्त है। इन सर्वेक्षणों को पढ़ कर जो इन डेटिंग ऐप के बारे में कुछ नहीं जानता वो भी उत्सुकता से इस पर घूमने पहुंच जाएगा। बस इसी को रणनीतिक मार्केटिंग कहते हैं। बाजार इन दबी-छुपी इच्छाओं को भड़का कर ऐसा मंच देते हैं, जो उनका तो हित करता है लेकिन समाज को इसका लंबे समय बाद नुकसान उठाना पड़ता है।

बसंत शर्मा | हिसार, हरियाणा

तकनीक की परेशानी

लालसा, वासना और बेवफाई की कोई ठीक-ठीक परिभाषा नहीं है। 10 जुलाई की आवरण कथा में विवाहेतर संबंध और इन संबंधों के लिए डेटिंग ऐप्स की जो बात की गई है, वह कुछ हद तक वाकई सही है। क्योंकि इच्छा तो कई लोगों की होती होगी कि वे किसी और के साथ संबंध रखें लेकिन कई बार किसी से बात करने का साहस नहीं होता और लोग चुप बैठ जाते हैं। लेकिन उनके पास ऐसे ऐप की सुविधा हो, तो फिर कहने ही क्या। जो लोग अब तक शादी निभा रहे थे, उन विवाहितों के लिए भी डेटिंग ऐप्स ने नए दरवाजे खोल दिए हैं। ग्लीडेन एप का दावा है कि यह सुरक्षित है। यह तो उन लोगों के लिए सोने पर सुहागा की तरह है, जो यह सब बस कुछ ही समय के लिए करना चाहते हैं। मन करे, तो यह किसी से बात या चैट करेंगे और जब मन भर जाएगा, इस ऐप से बाहर हो जाएंगे। उनका राज भी राज बना रहेगा और जो वह चाहते हैं, हो भी जाएगा। इसमें कोई शक नहीं कि इंटरनेट और स्मार्टफोन के दौर में अब सब कुछ संभव है।

जीशान | दिल्ली

मौके की तलाश

विवाहेतर संबंधों के बढ़ते आंकड़ों की सच्चाई यही है कि यह सिर्फ एक मौके की तलाश है, जो ऐसे ऐप ने पूरी कर दी है। महानगरों से निकल कर यह बात छोटे शहरों और कस्बों तथा दूर-दराज के इलाकों में नहीं आई है। यह बात थी तो हर जगह, बस तलाश का कोई जरिया नहीं था। दूसरे संबंधों के प्रति आकर्षण सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ रहा है कि अब ऐप आ गए हैं। बल्कि जहां नजर उठाइए सब जगह यही है। फिल्मों में, खबरों में, वेब सीरीज में। ऐसी कोई जगह नहीं जहां इस तरह की कहानियां न हों। इस तरह की कहानियां देख कर व्यक्ति के अवचेतन में भी यह सब भर जाता है और जब बाजार उसकी तलाश को पूरा करने का साधन मुहैया कराता है, तो व्यक्ति तुरंत उसे लपक लेता है। इच्छा पूर्ति का यह आकर्षण तेजी से बढ़ ही इसलिए रहा है क्योंकि नैतिकता का कोई मोल नहीं रह गया है।

सावनी भिड़े | मुंबई, महाराष्ट्र

बदल गया जीवन

10 जुलाई की आवरण कथा, में मृदुला गर्ग का इंटरव्यू, “जो पुरुष खुद आजाद नहीं है, उससे आजादी का क्या मतलब” बहुत सटीक लगा। उन्होंने बहुत सुंदर बात कही कि उनके लिए नारी स्वतंत्रता और पुरुष स्वतंत्रता में कोई अंतर नहीं है। यह सच भी है। लेकिन कई स्त्री विर्मशकारों को यह बात ठीक नहीं लगेगी क्योंकि कुछ का मानना है कि महिलाओं को कई मायनों में अपनी बात करने का हक नहीं होता इसलिए आजादी की परिभाषा एक सी नहीं हो सकती। लेकिन आज के दौर में देखें, तो इतनी जागरूकता तो आ ही गई है कि अधिकांश लड़कियां अपनी बात खुल कर सामने रख पाती हैं। उन्होंने यह भी ठीक कहा है कि शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर, कानून की निगाह में समानता, रोजगार प्राप्ति के पर्याप्त अवसर या सामाजिक, कानूनी और आर्थिक रूप से एक नागरिक का स्वायत्त इकाई माना जाना ही महत्वपूर्ण है। इस मायने में आजादी को लेकर उनके विचार बहुत स्पष्ट हैं और ऐसे स्पष्ट विचार सभी के हो जाएं, तो हर समस्या सुलझ जाएगी।

कांता देसाई | भावनगर, गुजरात

जज्बे की जीत

10 जुलाई के अंक में ‘सरकार ने छीनी आंखें, जज्बे ने सिर उठाया’ पढ़ कर इन्शा मुश्ताक को सलाम करने का जी चाहा। बारहवीं की परीक्षा में उन्होंने जो कमाल दिखाया वह वाकई काबिले तारीफ है। दृष्टिबाधित होने के बाद भी वह 500 में से 367 अंक लेकर आई हैं। यह उन बच्चों के लिए मिसाल है, जो हर असफलता का ठीकरा किस्मत पर फोड़ते हैं। 2016 में भी उनके बारे में अखबार में बहुत पढ़ा था। लेकिन जब बारहवीं का नतीजा आया और फिर उनके बारे में खबर छपी तब जाकर लगा कि सरकार की छोटी की गलती कैसे किसी बच्चे पर भारी पड़ सकती है। इन्शा को उच्च शिक्षा में मदद कर सरकार चाहे तो अपनी गलती का प्रायश्चित कर सकती है।

के. सी. पाल | देहरादून, उत्तराखंड

निजी मसला

10 जुलाई के अंक में, ‘शहनाइयों के सियासी सुर’ पढ़ कर हंसी आई। विपक्ष के पास अब वाकई कोई मुद्दा नहीं बचा, जो वह शादियों को मुद्दा बना रहा है। किसी की शादी भला कैसे मुद्दा बन सकती है। कोई किसी से भी शादी करे, इसमें तो किसी का भी दखल नहीं होना चाहिए। पंजाब में कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर काम होना है, विपक्ष को चाहिए कि इस पर बात करे। अगर सरकार को घेरना ही है, तो पंजाब में बढ़ते नशे पर बात करे, बेरोजगारी पर बात करे।

चंदन सूरी | पटियाला, पंजाब

पुरस्कृत पत्र: बेवफाई का सच

10 जुलाई 2023 की आवरण कथा ‘बेवफाई का बाजार’ पढ़ी। सर्वेक्षण बता रहा है कि अब छोटे शहरों और कस्बों में यह चलन बढ़ा है। यह नई बात नहीं है। मोबाइल क्रांति आने के बाद से ही इस तरह इस तरह के रिश्तों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। अब हर हाथ मोबाइल है। इसका सीधा सा अर्थ हैं, व्यक्तिगत स्वतंत्रता है। फोटो-वीडियो भेजने की जो सुविधा है, उस से तो हर तरह की सीमाएं टूट रही हैं। इस पर भी बात करना जरूरी है कि अब लोगों की सोच में भी बहुत बदलाव हुआ है। अब लोग एक-दूसरे की बहुत फिक्र भी नहीं करते। यही बेफिक्री दरअसल बेवफाई को बढ़ावा दे रही है। रिश्ते में खुलापन इसलिए आ रहा है क्योंकि लोग अब निभाने पर जोर नहीं देते हैं।

पुष्पा मिश्रा | बरेली, उत्तर प्रदेश

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