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पत्र संपादक के नाम

भारत भर से आई पाठको की प्रतिक्रियाएं
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

चांद पर धमक

भारत ने आखिर दुनिया को दम दिखा दिया। चंद्रमा के सबसे दुर्गम हिस्से में अपनी मौजूदगी दर्ज करा कर हम वाकई कई देशों से आगे बढ़ गए हैं। इस जटिल विषय पर आवरण कथा (‘इसरो को लगा चार चांद’, 18 सितंबर) देकर आउटलुक ने एक बार फिर साबित किया है कि यह पत्रिका सबसे आगे है। हमारा यान जैसे ही चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित पहुंचा एक बहुत बड़ा कीर्तिमान स्थापित हो गया। भारत दुनिया का पहला देश है जिसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को धीमे से उतारने के कठिन और चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा किया है। यह छोटी उपलब्धि नहीं है। जो कहते हैं कि भारत की सारी प्रतिभा विदेश पलायन कर जाती है और यहां औसत लोग ही बचते हैं यह उपलब्धि उन सभी के लिए करारा जवाब है। चंद्रमा के अंधेरे में उतर कर विक्रम ने देश को चमकदार उजाला दे दिया है।

ईश्वर सिंह मजीठिया | पंचकूला, हरियाणा

मुट्ठी में चंद्रमा

अब तक हम विदेश में किसी स्पेस ऑपरेशन पर गर्व करते थे। तब कभी सोचा ही नहीं था कि दुनिया के इतने देश अंतरिक्ष पर अध्ययन कर रहे हैं, नई-नई बातें खोज रहे हैं उनके बीच भारत कभी खड़ा हो सकेगा, लेकिन भारत ने यह कर दिखाया। इस सफलता और पूरे अभियान को आउटलुक ने भी बहुत अच्छे ढंग से समझाया। 18 सितंबर की आवरण कथा, ‘इसरो को लगा चार चांद’ वाकई रोचक है। इसरो के साथ-साथ इस अभियान ने भारत को भी चार चांद लगा दिए हैं। मॉड्यूल की सफल सॉफ्ट लैंडिंग भारतीय विज्ञान और इसरो की बहुत बड़ी उपलब्धि है। इस गौरवशाली क्षण को लाने में न जाने कितने वैज्ञानिकों की मेहनत लगी हुई है। इस लेख से आसान भाषा में लैंडिंग के लिए दक्षिणी ध्रुव को चुनने के पीछे कई कारण भी पता चले। यह जानकारी भी महत्वपूर्ण थी कि चंद्रमा पर पहले अमेरिका के अपोलो, सर्वेयर और रूस के लूना मिशन चंद्रमा की भूमध्य रेखा के आसपास सपाट इलाकों में उतरे थे। इस दृष्टि से इसरो की सफलता बहुत बड़ी है। चार साल पहले चंद्रयान-2 मिशन के लक्ष्य तक पहुंचने में सफल नहीं होने के बाद इसरो के विशेषज्ञों ने उन्नत चंद्रयान-3 लैंडर को विकसित करने के लिए 21 उपप्रणालियों को संशोधित किया। आउटलुक को इस विषय को हम तक पहुंचाने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद।

जी.एल. माखीजा | मेरठ, उत्तर प्रदेश

साक्षात प्रलय

आउटलुक के 18 सितंबर अंक में, ‘शिमला की तबाही’ पढ़ कर मन दहल गया। इस बार शिमला में मानसून कहर बन कर बरसा है। लोकप्रिय हिल स्टेशन और हिमाचल प्रदेश की राजधानी के वासियों ने साक्षात प्रलय देखी है। पहाड़ों की रानी के नाम से विख्यात शिमला में तबाही के मंजर देखकर मन खिन्न हो गया। लग रहा है जैसे पूरा शिमला बह गया है। ऊपर से लेकर नीचे तक तबाही ही तबाही नजर आती है। पूरा शहर इस विनाश से हिल गया है। इस तरह भूस्खलन होता रहा और इमारतें ढहती रहीं, तो आगे न जाने क्या होगा। ऐसे में उन लोगों की परेशानी को समझना मुमकिन नहीं है। यह लेख पढ़ कर बस समझा जा सकता है कि कैसे वहां के लोगों ने दिन काटे होंगे। जिनके पास ठिकाने थे वे लोग तो घर छोड़ कर सुरक्षित जगहों पर जा सकते हैं, लेकिन जिनके पास शिमला से दूर कोई रिश्तेदार न रहा होगा वे कैसे रहे होंगे। लेकिन शिमलावासियों को यह समझना होगा कि यह पहाड़ से खिलवाड़ का नतीजा है। अभी भी वक्त है, इस पर ध्यान दे सकें तो अच्छा है वर्ना बाद में सिर्फ पछतावा ही हाथ रह जाएगा।

गायत्री त्रिवेदी | श्रीगंगानगर, राजस्थान

बुलाई गई आपदा

शिमला में इस बार मूसलाधार बारिश और बड़े पैमाने पर बादल फटने की जो घटनाएं हुईं उसने पूरे शहर को हिला दिया। पहाड़ों पर अवैध निर्माण, नियमों की अनदेखी आखिरकार वहीं के बाशिंदों पर भारी पड़ी। अब वहां के बुजुर्ग कह रहे हैं कि शिमला के सामने जैसा खतरा इस बार पैदा हुआ, वैसा खतरा उन्होंने अपने जीवन में कभी अनुभव नहीं किया था। लेकिन यह कहने से क्या होता है। जब अवैध निर्माण होते रहते हैं, सब सोते हैं। फिर एक बार आई आपदा से सभी जागते हैं और सरकार को दोष देने लगते हैं। लेकिन यह भूल जाते हैं कि निर्माण का दबाव सरकार पर जनता ही बनाती है। इस बार 18 सितंबर के अंक में ‘शिमला की तबाही’ पर जो लेख दिया गया है, उसमें लोगों के लालच की भी बात की जानी चाहिए थी। 7 से 11 जुलाई और 13 से 16 अगस्त के बीच हुई बारिश ने तो जैसे ठान ही लिया था कि इस बार शिमला को नष्ट ही कर देना है, लेकिन क्या यह सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है? जनता की कोई जिम्मेदारी नहीं है? सब बिना सोचे समझे होटल, रेस्टोरेंट बनाना चाहते हैं। सभी को पहाड़ का दोहन करना है, सभी को बस कमाना है, तब फिर हिमाचल प्रदेश में लगातार बारिश, बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ आती है, तो पछताना कैसा? जो बोया है वह तो काटना ही पड़ेगा। यह अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा सिर्फ मौसम में बदलाव की वजह से नहीं आई है। यह तो प्रकृति का बदला लेने का अपना तरीका है। जो लोग बस अंधाधुंध पहाड़ों पर जाते हैं उन्हें भी सोचना चाहिए कि उनकी तफरीह की कीमत कुछ लोग अपना घर और जान गंवा कर चुका रहे हैं। यदि पर्यटकों का इतना बोझ न हो, तो वहां होटल और अन्य चीजें नहीं खुलेंगी। इससे निर्माण कम होगा और पहाड़ सांस ले पाएंगे। वरना अभी तो मौत का आंकड़ा 370 है, अगर अभी भी न चेते तो यह आंकड़ा सौ से कब हजार और हजार के कब लाख में तब्दील हो जाएगा पता भी नहीं चलेगा।

सारंग उपाध्याय | देहरादून, उत्तराखंड

इतिहास के साक्षी

आउटलुक के 18 सितंबर अंक में ‘भाला फेंक के नए सिकंदर’ पढ़ कर मन खुश हो गया। हम सभी एक ऐतिहासिक पल के गवाह बने हैं। लेख बहुत ही प्रेरक था। मेहनत की जाए, तो क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। भाला फेंक में नीरज ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में इतिहास रच कर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया है। बेहतरीन कोशिश ने उन्हें सोने का पदक दिलाया है। ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं। यह बड़ी उपलब्धि है, जिसकी खुशी सभी को मनानी चाहिए। यह कहना गलत नहीं होगा कि नीरज चोपड़ा भरोसे का दूसरा नाम बनते जा रहे हैं। ओलंपिक के बाद एक बार फिर वह देशवासियों के भरोसे पर खरे उतरे हैं। ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा को इसी खिताब की तलाश थी, आखिरकार वह भी उन्हें मिल गया।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

यथार्थवादी सिनेमा

आज का हिंदी सिनेमा अपने अजीबोगरीब नकली-से और रूमानी टाइप माहौल से उबर रहा है। 4 सितंबर की आवरण कथा ‘अपने जैसे नायक’ इस बात को बखूबी रेखांकित करती हैं। सिनेमा ने अब अपने चाहने वालों की, अपने दर्शकों की बेचैनी को समझ लिया है और अब आम आदमी की भाषा को आवाज देनी शुरू कर दी है। आज का सिनेमा अपने नए मिजाज से दर्शकों को न सिर्फ अपनी तरफ खींच रहा है, बल्कि उन्हें नए तरीके से सोचने पर मजबूर भी कर रहा है। परदे का मौजूदा रूप इसलिए भी लुभावना है क्योंकि वह अपने समय की नब्ज को न सिर्फ पकड़ता है, बल्कि बिल्कुल ठेठ देसी वाले अंदाज में कहानी बयां करता है।

डॉ. पूनम पांडे | अजमेर, राजस्थान

प्रतिभा का सम्मान

4 सितंबर के अंक में ‘परदे पर आम आदमी’ आवरण कथा में बहुत अच्छे ढंग से प्रतिभाशाली कलाकारों के योगदान को दर्शाया गया है। सुनहरे परदे पर आम चेहरों का आना फिल्म उद्योग में बदलाव के अच्छे संकेत हैं। सितारे और अभिनेता के बीच देखा जाए तो खास अंतर नहीं होता। सितारे निर्माता को सिर्फ कमा कर देते हैं लेकिन अभिनेता दर्शकों को संतुष्टि देते हैं। बृजेन्द्र काला, गजराज राव, संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, सौरभ शुक्ला, मनोज पाहवा, दीपक डोबरियाल, सीमा पाहवा, शीबा चड्ढा इत्यादि की सफलता के पीछे न केवल उनका बेहतरीन अभिनय बल्कि फिल्मों के कंटेंट में आया बड़ा बदलाव भी है। आज जबकि फिल्मों के अलावा ओटीटी भी ऐसा मजबूत माध्यम बन गया है जिससे ये उम्दा कलाकार अपनी प्रतिभा को दर्शकों तक पहुंचा सकते हैं, दर्शक भी इन्हें हाथो हाथ इसलिए ले लेते हैं क्योंकि इन सभी को वे अपने बीच का ही किरदार मानते हैं। इनकी सफलता हर संघर्षरत कलाकार की भी सफलता है। वरना पहले होता यह था कि ऐसे प्रतिभाशाली कलाकारों को समानांतर सिनेमा के कलाकार बता कर हाशिये पर धकेल दिया जाता था।

बाल गोविंद | नोएडा

पुरस्कृत पत्र: पैसे में भी बराबरी

किसी कलाकार का सबसे बड़ा पुरस्कार तालियां, तारीफ और तवज्जो होती है, लेकिन इन सब से पेट नहीं भरता। साधारण चेहरे-मोहरे के कलाकारों का फिल्मों में आना ही दुर्लभ था, उस पर सफलता के बारे में सोच पाना तो और भी मुश्किल। अब ये चेहरे न सिर्फ मुख्यधारा में आ रहे हैं बल्कि दर्शकों में पैठ भी बना रहे हैं। इनकी तारीफ करना अच्छा है, लेख देना इन्हें प्रोत्साहित भी करता है लेकिन साथ में यह भी ध्यान देना चाहिए कि इनके साथ मेहनताने में भी समानता का व्यवहार हो। जब हम इनके साधारण होने की सफलता का जश्न मनाएं, तो इनको मिलने वाले मेहनताने पर भी बात करें ताकि देर से ही सही इन्हें भी बराबर का पैसा मिले। (आवरण कथा, 4 सितंबर, ‘अपने जैसे लगते नायक’)

देवयानी भारद्वाज | रोहतक, हरियाणा

 

आपकी यादों का शहर

आउटलुक पत्रिका के लोकप्रिय स्तंभ शहरनामा में अब आप भी अपने शहर, गांव या कस्बे की यादें अन्य पाठकों से साझा कर सकते हैं। ऐसा शहर जो आपके दिल के करीब हो, जहां की यादें आपको जीवंतता का एहसास देती हों। लिख भेजिए हमें लगभग 900 शब्दों में वहां की संस्कृति, इतिहास, खान-पान और उस शहर के पीछे की नाम की कहानी। या ऐसा कुछ जो उस शहर की खास पहचान हो, जो अब बस स्मृतियों में बाकी हो।

रचनाएं यूनिकोड में टाइप की हों और सब-हेड के साथ लिखी गई हों। सब्जेक्ट लाइन में शहरनामा लिखना न भूलिएगा। शब्द सीमा में शहर की संस्कृति पर ही लिखें। लेख के साथ अपना छोटा परिचय, फोन नंबर और फोटो जरूर भेजें।

हमें मेल कीजिए [email protected]

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