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24 जून 2024 · JUN 24 , 2024

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

विश्वसनीय पार्टी

10 जून के अंक में आवरण कथा, ‘किस ओर बैठेगा जनादेश’ घोषित होने वाले लोकसभा चुनावों के परिणाम की अच्छी जानकारी देती है।  भाजपा की जीत को लेकर किसी भी प्रकार की आशंका या विपक्ष के आने की कोई संभावना है ही नहीं। अकर्मण्य विपक्ष के लिए सहानुभूति के सिवा जनता के पास कुछ नहीं है। बेशक देश को विगत दस वर्षों से एक अखिल भारतीय सशक्त विपक्ष चाहिए है लेकिन कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी ने अपनी इतनी हार के बाद भी अपने चरित्र में कोई बदलाव नहीं किया। आज कांग्रेस किस वैचारिक मुकाम पर जा खड़ी हुई है यह उसे भी नहीं मालूम। आर्थिक समाजवाद राष्ट्रीय आवश्यकता है, लेकिन उसका रूपांतरण भारत में वंशवाद, क्षेत्रवाद और जातिवाद में हो गया है। राजनीति के मूल में भ्रष्टाचार भरा है यह सभी जानते हैं लेकिन इसके साथ ही जनता की भलाई के लिए क्या हो सकता है, यह सोचना चाहिए। शासक दल यदि आर्थिक राजनीतिक भ्रष्टाचारियों को जेल भेज रहा है, तो इसमें परेशानी क्या है। सत्ता पक्ष के दुष्प्रचार के लिए विपक्ष गलतबयानी कर रहा है। उन्होंने संविधान खतरें में है का झूठा प्रचार शुरू कर दिया। इसके बाद भी जनता किसी भ्रम में नहीं है।

अरविन्द पुरोहित | रतलाम, मध्य प्रदेश

खुला सस्पेंस 

आउटलुक के नए अंक (10 जून, ‘4 जून का सस्पेंस’) में चुनाव परिणाम के कयास लगाए गए हैं। यह विश्लेषण बहुत बारीकी से किया गया है। इसमें बहुत सारी बातें की गई हैं। मीडिया को हर एंगल से खबरें दिखानी होती है, उन्हें सभी का पक्ष दिखाना होता है लेकिन इस नतीजे में कुछ सस्पेंस है ही नहीं। सभी जानते हैं कि परिणाम क्या होंगे और किसके पक्ष में आएंगे। सबसे पुराने लोकतंत्र वाले देश में चुनाव उत्सव हैं। यहां चुनाव सिर्फ राजनीतिक प्रतिष्ठा हासिल करना नहीं है, बल्कि यह प्रक्रिया पूरे देश को जोड़ती है। यहां चुनाव राजनीतिक त्योहार है, जहां सभी लोग उत्साह से हिस्सा लेते हैं। इसी वजह से हमारे यहां लोकतंत्र के प्रति सभी के मन में आदर है। भारत जितना विविधता वाला देश है, चुनाव में भी वही विविधता दिखाई देती है।

शैल काजी | देहरादून, उत्तराखंड

चुनाव के सिवा कुछ नहीं

10 जून के अंक में, ‘4 जून का सस्पेंस’ अच्छा लगा। चुनाव के मौसम में शायद ही कोई देश होगा, जो अघोषित रूप से अपने हर काम स्थगित कर देता हो। लेकिन भारत में मतदान से लेकर जब तक परिणाम न हो जाएं, देश में चुनाव के सिवा किसी दूसरी बात की चर्चा तक नहीं होती। देश का हर नागरिक चुनाव पर राय देना अपना कर्तव्य समझता है। भारत में जिस तरह से 4 जून का इंतजार हो रहा है, उतना इंतजार तो छात्र अपने परीक्षा परिणाण का भी नहीं करते। सभी के अपने कयास होते हैं। लेकिन पिछली बार जिस तरह से परिणाम अपेक्षित थे, इस बार भी वैसा ही लग रहा है। भाजपा को हराना अभी नामुकिन है। भले ही वोटिंग कम हो रही हो लेकिन जितने भी वोट पड़े हैं, निश्चित तौर पर ये भाजपा के खाते में ही गए होंगे ऐसी आशा है।

प्रशांत रानाडे | कोल्हापुर, महाराष्ट्र

चुनावी टक्कर

जैसे-जैसे मतदान के चरण पूरे होते जा रहे हैं, परिणाम की उत्सुकता भी चरम पर है। इस बार मुकाबला बहुत रोचक रहा है। मतदान का घटता प्रतिशत कुछ लोगों को सुकून भले ही दे रहा हो, लेकिन यह तय है कि परिणाम पहले वाले ही रहेंगे। हां इतना जरूर है कि इस बार सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के ही बीच रोमांचक मुकाबला देखने को मिला।

नैना भावसार | देवास, मध्य प्रदेश

मतदाता का मन

10 जून के अंक में, ‘जो जीता वही बेहतर’ बहुत ही संतुलित है। यह सच है कि चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता। बस सभी लोग अंदाजा ही लगा सकते हैं। इस बार भी यही हो रहा है। सभी अपने-अपने तरीके से चुनाव का विश्लेषण कर रहे हैं। लेकिन यह तय है कि परिणाम के करीब कोई नहीं पहुंच पाएगा। परिणाम हमेशा मतदाता के मन पर निर्भर होता है और मन समझना कठिन होता है। अंधेरे में कोई कितना भी तीर चला ले कोई फायदा नहीं होने वाला। देश में आम चुनाव के परिणाम का अनुमान लगाना बहुत कठिन है। हालांकि इस बार के चुनाव परिणाम को लेकर कोई आशंका नहीं है।

सौम्य विश्वास | देवघर, झारखंड

अंधेरे में तीर

भारत में चुनाव के नतीजे पर शेयर मार्केट गड़बड़ा जाता है। इस बार के संपादकीय, (10 जून) ‘जो जीता वही बेहतर’ में इस बारे में भी बात की गई है। सट्टा बाजार से लेकर भविष्यवक्ताओं, मीडियाकर्मी और चुनाव विश्लेषकों के अपने-अपने अनुमान होते हैं। लेकिन कई बार अनुमान बहुत गड़बड़ा जाते हैं। जमीनी हकीकत समझने के लिए सबसे पहले विचारधारा को एकतरफ रखना पड़ता है, जो कि भारत के पत्रकार नहीं कर पाते। आजकल हर पत्रकार अपनी विचारधारा के अनुसार ही सूचनाएं जनता तक पहुंचाते हैं। खराब को खराब और अच्छे को अच्छा करने के लिए भी पहले देखा जाता है कि मुद्दा या खबर किस पार्टी के पक्ष से संबंधित है। न कोई ठीक से चुनावी क्षेत्रों में जाता है, न सच बोलने का साहस करता है। वातानुकूलित कमरों में सब अपनी इच्छा दूसरों पर थोपते रहते हैं। यही वजह है कि जनता का मूड समझने की हर कोशिश बेकार चली जाती है। जनता बहुत समझदार हो गई है। अब पिछले चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण भर से कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। आजकल चुनाव के परिणाम के बारे में सभी लोग खुद को विशेषज्ञ मानते हैं।

गिरिश निकम | सांगली, महाराष्ट्र

गुरु की तलाश

आउटलुक के 10 जून के अंक में, ‘अगला द्रोण कौन’ लेख अच्छा है। देश से आईपीएल का खुमार खत्म हो चुका है और अब देश में टी20 वर्ल्ड कप का नशा चढ़ चुका है। इसी बीच टीम इंडिया के नए कोच की तलाश शुरू हो चुकी है। लेकिन क्या सिर्फ नया गुरु यानी कोच आ जाने से ही कोई ट्रॉफी आ सकेगी। भारतीय टीम को ऐसे कोच की जरूरत है, जो टीम में अनुशासन ला कर अंदरूनी राजनीति खत्म कर सके। खिलाड़ियों के बीच सामंजस्य न होने से टीम दबाव में खेल नहीं पाते। इस बात पर ध्यान देना जरूरी है। यह सब हो सके, तो खेल में निखार अपने आप आ जाएगा।

कंचन भारद्वाज | बाराबंकी, उत्तर प्रदेश

विदेशी क्यों

10 जून के अंक में, ‘अगला द्रोण कौन’ लेख में, टीम इंडिया के लिए कोच के बारे में तलाश पर बात की गई है। लेकिन विदेशी कोच पर कोई विचार नहीं होना चाहिए। क्या हमारे भारत में प्रतिभा की कमी है, जो हम विदेश से कोच आयतित करें। भारत में इतने अच्छे-अच्छे खिलाड़ी रहे हैं, सभी सक्षम हैं। भारत में कई ऐसे पूर्व खिलाड़ी है, जो अपने अनुभव के माध्यम से टीम इंडिया को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं। इनमें सबसे अग्रणी नाम गौतम गंभीर का है। उन्होंने अपने बेहतरीन ‘गंभीर’ निर्णय के माध्यम से दस साल बाद ‘केकेआर’ को 2024 का आईपीएल चैंपियन बनाया, टीम इंडिया के रूप में गौतम गंभीर का चयन होना बीसीसीआई के तरफ से एक बहुत ही बेहतरीन निर्णय हो सकता है।

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

नई जानकारी

आउटलुक के नए अंक (10 जून) में, ‘आजाद तवायफ तराना’ उम्दा लेख है। यह लेख इतना अच्छा लगा कि मन खुश हो गया। इसी लेख से पता चला कि हिंदुस्तान की टूरिंग थिएटर कंपनियों को जब कलाकारों की जरूरत पड़ती थी, तब वे लोग इन्हीं नाचने-गाने वालियों के बीच से कलाकार खोजते थे। यह कितनी अच्छी बात थी कि नाटक में संगीत और नृत्य का काम होता था और ये लोग दोनों में ही प्रवीण रहती थीं। यह भी विडंबना है कि कोठे की महिलाएं बेझिझक और निडर होकर यात्राएं करती थीं। क्या उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं होती थी, जैसे भद्र महिलाओं को होती थी। यह भी नई जानकारी थी कि गाने रिकॉर्ड करने वाली पहली महिला शशिमुखि और फणिबाला थी।

सुबोध नारायण शाह | मुंबई, महाराष्ट्र

अविस्मरणीय योगदान

आउटलुक के 10 जून अंक में ‘आजाद तवायफ तराना’ पुरानी यादों का पिटारा है। हिंदुस्तान के पहले गाने की रिकॉर्डिंग, ग्रामोफोन कंपनी के लिए गौहर जान का राग जोगिया गाना, पारंपरिक गायिकाओं को नए मौके मिलना, कितना कुछ है, हमारी कला की दुनिया का इतिहास। आज की पीढ़ी तो टॉकीज के आने के दौर के बारे में जान कर ही आश्चर्य करेगी। भारतीय रंगमंच की परंपरा पुरानी रही है। अभिनय संगीत इसकी जान हुआ करते थे। अख्तरी बाई ने ठुमरी गायिका के तौर पर अविस्मरणीय मुकाम हासिल किया। जद्दनबाई कोलंबिया रिकॉर्डिंग कंपनी की आर्टिस्ट बनीं। वह हिंदुस्तान की पहली महिला संगीत निर्देशक भी बनीं। यह क्या कम बड़ी बात है। लेख के लिए साधुवाद।

कुंदन कुमार यादव | बीकानेर, राजस्थान

पुरस्कृत पत्र: तवायफों की दास्तान

हाल ही में आई नई वेबसीरीज, ‘हीरामंडी’ ने तवायफों के जीवन को बहुत अच्छे ढंग से बताया है। लेकिन आउटलुक के नए अंक (10 जून, आजाद तवायफ तराना) ने जैसे समां बांध दिया। आउटलुक के लेख में हिंदुस्तान की तवायफों और देवदासियों के बारे में बहुत अच्छी जानकारी है। अतीत के पन्नों से तवायफों की दास्तान को फिर से पेश करना अच्छा विचार है। इससे पहले भी सिनेमा तवायफों और देवदासियों की कहानी कहता रहा है लेकिन लेख ने बहुत ही विश्वसनीय तरीके से सन सत्तावन की क्रांति और इस दौरान तवायफों के योगदान को बहुत अच्छे तरीके से बताया गया है। भारतीय सिपाहियों की मदद करने और कोठे में उनके छुपने के लिए जगह बनाना वाकई दिलेरी की बात है। चुनाव-चुनाव की चिल्ल पों में ऐसा लेख पढ़ना सुखद है।

चमन लाल|संगरूर, पंजाब

 

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