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पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

नौकरी पर संकट

आउटलुक के 14 अक्टूबर अंक में आइआइटी प्लेसमेंट पर आवरण कथा पढ़ी। आइआइटी प्लेसमेंट में आइटी सेक्टर का बड़ा हाथ था और सबसे ज्यादा नौकरियां यहीं कम हुई हैं। आज लेखक कलम के बजाय लैपटॉप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करता है। कलम के उपयोग के बजाय कंप्यूटर से लेकर अंतरिक्ष अभियानों तक व्यापकता के बावजूद विश्व भर में आइटी में नौकरियां घट रही हैं। इसके लिए शैक्षणिक संस्थान या पाठ्यक्रम दोषी नहीं हैं। आज बाजार में इतने प्रकार के रेडीमेड सॉफ्टवेयर, ऐप्स, टूल्स हैं कि कई तरह की व्यावसायिक गतिविधियों के लिए किसी भी आइटी या अन्य पेशेवरों की जरूरत ही नहीं है। वर्तमान स्वरूप में आइटी विकसित हो चुकी है और जल्द ही ये गुजरे जमाने की तकनीक कहलाएगी। परंपरागत आइटी से अलग, अगला दौर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का होगा। हमें दोनों को अलग करते हुए आइटी की जगह एआइ पेशेवर बनाने होंगे।

बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

 

गांधी की परछाई

14 अक्टूबर के अंक में, ‘गांधी की शांति सेना पर पुनर्विचार’ बहुत अच्छा लगा। यह सर्वमान्य है कि विश्व राजनीति या भारतीय राजनीति में महात्मा गांधी जैसा चमत्कारी नेता दोबारा नहीं होगा। देश-विदेश की राजनीति में कई ऐसे नेता और समाज सुधारक हुए, जिन्हें गांधी की परछाई के रूप में देखा गया। महात्मा गांधी का प्रभाव पूरी दुनिया में रहा। उनकी सहिष्णुता, उनकी कार्यशैली को बहुत से लोगों ने आत्मसात किया। समाज सुधारकों ने उनके काम को आगे बढ़ाया। गांधी ने राजनीतिक, सामाजिक बदलाव में अहम योगदान दिया। यही वजह है कि आज भी गांधी का सिद्धांत प्रासंगिक है। 

विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली

 

नाम-काम दोनों आगे बढ़े

14 अक्टूबर के अंक में, ‘गांधी की शांति सेना पर पुनर्विचार’ गांधी को श्रद्धांजली है। गांधी सभी वाद से परे हैं। गांधी विचारधारा नहीं, बल्कि जीवन शैली है। गांधी को समझना बहुत मुश्किल है। जिसके अंदर मनुष्यता होगी, वही गांधी को समझ पाएगा। गांधीवाद को समझने के लिए सबसे पहले मनुष्य को अपने हिंसक मन पर काबू पाना होगा। गांधीवादी सिद्धांत को जो लोग बेकार या बिना काम की बात समझते हैं, उन्हें मालूम ही नहीं कि गांधी के सिद्धांत यदि पूरे विश्व में लागू हो जाएं, तो युद्ध पूरी दुनिया से खत्म हो जाएंगे। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम गांधी को भी विचारधारा के खांचों में बांट दे रहे हैं। गांधी का जीवन संदेश है, इसे समझना बहुत जरूरी है। हमारी परिस्थितियों में दरअसल गांधी दर्शन को समझने के लिए जितनी बातें होनी चाहिए, उतनी होती नहीं है। हमारे देश से ज्यादा तो विदेश में गांधी की बात होती है। हमारे नेता भी गांधी के नाम पर सिर्फ राजनीति ही करते हैं। अगर कोई सच में गांधी की बात करे, तो ऐसा हो नहीं सकता कि नई पीढ़ी गांधी के सिद्धांत को समझ न पाए। कई समाज सुधारक हैं, जो काम नहीं करते और सिर्फ गांधी का नाम लेते हैं, जबकि उनकी जिम्मेदारी है कि वे गांधी के नाम और काम दोनों को आगे बढ़ाएं।

करुणा राजावत | बेगूसराय, बिहार

 

गांधी ही जीवन

गांधी का नाम ही काफी है। 14 अक्टूबर के अंक में गांधी पर बहुत से आलेख हैं। यह बहुत ही अच्छी बात है कि पत्रिका ने गांधी के बारे में सोचा। आजकल मीडिया में गांधी नहीं चलते। मीडिया को लगता है कि गांधी को कौन देखेगा या पढ़ेगा। आउटलुक ने इस बारे में सोचा इसके लिए टीम धन्यवाद की पात्र है। गांधीवाद का प्रभाव कभी खत्म नहीं होगा, यह तय है। अभी जो हालात हैं, वे जल्द ही बदल जाएंगे। महात्मा गांधी ने जो समाजिक दर्शन दिया है, हमें उसी मार्ग पर चलना है। समकालीन विश्व राजनीति में जो उथल-पुथल हो रही है, जितनी हिंसा है, उस सबमें गांधी दर्शन के बिना शांति की बात सोची भी नहीं जा सकती। अस्त-व्यस्त हो रहे हमारे समाज में, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर गांधी विचार पर चर्चा सबके लिए अच्छा संकेत है।

प्रभा जैन | मुंबई, महाराष्ट्र

 

जड़ों की ओर वापसी

आउटलुक के 30 सितंबर अंक में, ‘ग्लोबल मंच के लोकल सितारे’ सोशल मीडिया की कहानी कहता है, जो बताती है कि आज की पीढ़ी विवेकहीन होती जा रही है। सोशल मीडिया पर जो थोड़ा भी प्रसिद्ध है, उसी का नाम है। फिर भले ही वह उतनी प्रसिद्धि का हकदार न हो। इसी अंक में, ‘बलात्कार के तमाशबीन’ लेख ने बहुत विचलित कर दिया। आज सभी लोगों के पास एंड्रॉयड स्मार्टफोन है। उसमें दुनिया भर की जानकारियां सोशल मीडिया इंटरनेट सुविधा है लेकिन इसका एक बड़ा खामियाजा भी हम भुगत रहे हैं। हमारी पीढ़ी पुस्तकों, स्वाध्याय से दूर होती चली गई और उसमें मानवीयता, इंसानियत जैसे गुण कम होते चले गए। सोशल मीडिया पर सहज उपलब्ध अश्लील रिल्स ने लोगों के मन-मस्तिष्क को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से विवेकहीन होती जा रही है। यह पीढ़ी चिंतन और विचार से दूर होती जा रही है। प्रकृति में ईश्वर का दर्शन करने वाले देश भारत में जब दुराचार हो रहा हो, तो कोई भी व्यक्ति कैसे चुप रह सकता है। आखिर कोई कैसे ऐसी घटना का वीडियो बना सकता है। यह कल्पना से परे बात है। हमें फिर से अपनी जड़ों की तरफ लौटना होगा। बच्चों और युवा पीढ़ी में मानवीयता, महिला सम्मान के संस्कारों का रोपण करना जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रहे।

अशोक चौधरी | जोधपुर, राजस्थान

 

अपराधों पर लगाम लगे

30 सितंबर ‘बलात्कार के तमाशबीन’ लेख पढ़कर दिल दहल गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के द्वारा 2022 के आंकड़े के अनुसार मध्य प्रदेश में देश तीसरे स्थान है। कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है और मध्य प्रदेश में सरेराह यह घटना हो गई। इस तरह की घटनाएं कई सवाल खड़े करती हैं। ऐसे मामलों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। लापरवाही बरतने का मतलब है, ऐसे मामलों को और बढ़ाना। सत्ता और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं, जिसके कारण ऐसे अपराधों को पर लगाम नहीं लग पाती।

मीना धानिया | दिल्ली

 

लाजवाब कलाकार

आउटलुक के 30 सितंबर अंक में प्रकाशित फैसल मलिक का इंटरव्यू बहुत अच्छा लगा। फैसल मलिक मंजे हुए कलाकार हैं। पंचायत में उपप्रधान, शहीद सैनिक के पिता और प्रहलाद चा के रूप में फैसल मलिक ने बहुत सुर्खियां बटोरी हैं। पंचायत के प्रहलाद चा बनकर फैसल ने सिनेमा जगत में अपना खास मुकाम हासिल कर लिया है। हर कोई उन्हें ज्यादा से ज्यादा वेब सीरीज और फिल्मों में देखना चाहता है। लेकिन फैसल कभी इस रोल को नहीं करना चाहते थे और वे कैमरे के पीछे रहकर ही सीरीज का आनंद लेना चाहते थे। हालांकि सीरीज में उन्होंने बेहद कमाल का काम किया है। लोगों ने उनकी एक्टिंग को खूब सराहा है। जब सीरीज के राइटर और डायरेक्टर ने फैसल को इस रोल के लिए कहा था, तब उन्होंने मुश्किल से हामी भरी थी। फैसल ने कई अमेरिकन शोज में भी काम किया है। वे खुद की प्रोडक्शन कंपनी भी चलाते हैं। डेढ़ बीघा जमीन फिल्म में फैसल फिर पुलिस ऑफिसर के किरदार में दिखेंगे।

युगल किशोर राही | छपरा, बिहार

 

कांग्रेस की चुनौती

30 सितंबर का लेख, ‘कांग्रेस की चुनौती खेमेबाजी’ हरियाणा में चुनावों की झांकी दिखाता है। लग तो रहा था कि हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस को इस हवा को आखिर तक बस अपने पक्ष में रखना था। भाजपा तो बस बेकार में माहौल बदलने की तैयारी कर रही थी। भाजपा ने जो हालत हरियाणा में की है, उसके बाद भी वह सोचती है कि जनता उसे वोट देगी। भाजपा का हरियाणा की सत्ता में लौटने का सपना कभी पूरा नहीं होना चाहिए था। किसी वर्ग का वोट भाजपा पर क्यों पड़ना चाहिए। वैसे कांग्रेस की राह भी बहुत आसान नहीं है लेकिन दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने स्थिति बहुत हद तक काबू कर ली थी। अगर कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच सब ठीक चलता, तो कांग्रेस को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता था। कुमारी शैलजा दलित चेहरा हैं और दलित चेहरे पर चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए आसान हााता। कांग्रेस आलाकमान को चाहिए था कि दोनों के बीच सुलह कराने में थोड़ी जल्दबाजी दिखाता। उनकी कलह से कांग्रेस को बहुत नुकसान होना तय था। ये दोनों ही कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती साबित होंगी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोनिया गांधी के करीबी हैं, तो जाहिर सी बात है, कुमारी शैलजा के बजाय वे ही मुख्यमंत्री बनते। वैसे चाहें तो राहुल गांधी युवा शैलजा को कमान दे कर नई मिसाल पेश कर सकते थे। पार्टी आलाकमान को केवल एक चुनौती पर काबू करना था। वह हो जाती, तो समझो जीत पक्की थी।

पुनीत शर्मा | फिरोजपुर, पंजाब

 

पुरस्कृत पत्रः साख पर संकट

14 अक्टूबर की आवरण कथा, ‘फूटा पैकेज का गुब्बारा’ आइटी उद्योग की पोल खोलती है। लेकिन इसका दिलचस्प पहलू यह है कि इस उद्योग में नौकरी के संकट का पूरा ठीकरा आइआइटी पर फूट रहा है। आइआइटी पर दोष देने से कुछ नहीं होगा। बेरोजगारी अब स्थानीय से उठकर वैश्विक संकट होता जा रही है। विश्व के कई देश इससे अछूते नहीं हैं। पहले विदेश में नौकरियां बहुत हुआ करती थीं लेकिन अब वहां भी परेशानी है। इसका असर भारत में भी हो रहा है। यही वजह है कि यहां के बच्चों का अच्छा प्लेसमेंट नहीं हो पा रहा है। इसमें आइआइटी का कोई दोष नहीं है। आइआइटी  में जैसा पहले पढ़ाई होती थी, वैसी ही आज भी होती है। अन्य कॉलेजों की भी यही हालत है। दरअसल हर स्तर पर सुधार की गुंजाइश है। उसके बिना बात नहीं बनेगी। 

सुयश राणा|जोधपुर, राजस्थान

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