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31 मार्च 2025 · MAR 31 , 2025

पत्र संपादक के नाम

पाठको की चिट्ठियां
पिछले अंक पर आई प्रतिक्रियाएं

कड़े कानून की दरकार

17 मार्च का अंक ‘डिजिटल माफिया साया’ बड़े खतरे की घंटी की ओर इशारा करता है। डिजिटल टेक्नोलॉजी से अब हम चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा सकते। रोजमर्रा की जिंदगी की कई बातें इसी से संचालित होती है। टैक्सी बुक करना हो, हवाई या रेल टिकट लेना हो या घर के राशन की बात हो, तकनीक हमारे जीवन में रचबस गई है। साइबर अपराधी इसी बात का फायदा उठा रहे हैं। आम जनता करे भी को क्या करे। अपराधियों की सोच पुलिस के कई गुना आगे है। जब तक पुलिस या तकनीकी विशेषज्ञ किसी एक बात को लोगों को समझाते हैं, तब तक अपराधी किसी नए पैंतरे के साथ आ जाते हैं। अपराधी पुणे में बैठ कर चेन्नै में बैठे किसी व्यक्ति को ठग लेते हैं। इस वजह से इन्हें पकड़ना भी मुश्किल होता है। इस तरह के अपराध को पूरी तरह खत्म तो नहीं किया जा सकता लेकिन जांच में तेजी लाकर और कड़े कानून बना कर इसे कम जरूर किया जा सकता है।

लाल सिंह | बूंदी, राजस्थान

 

चेतावनी भी बेकार

सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद साइबर अपराधी उनके साथ तुम डाल-डाल, हम पात-पात का खेल खेल रहे हैं। उनके नए-नए तरीकों के आगे सारी व्यवस्था हाथ टेक देती है। सिर्फ अनपढ़ ही नहीं अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी उनके झांसे में आ जाते हैं। दो लोग जल्दी इनके जाल में फंसते हैं। पहले वे जो लालच में आ जाते हैं, दूसरे वे जिन्होंने गलत काम किया होता है। डिजिटल अरेस्ट के कई मामलों में ऐसा ही हो रहा है। जालसाज मनी लॉन्ड्रिंग का झूठा केस होने की बात कहते हैं। बड़े बिजनेस मैन ऐसा करते हैं, इसलिए वे जल्दी डर जाते हैं। युवा बदलते वक्त और लगातार आ रहे नए गैजेट के लालच में फंस जाते हैं। उन्हें लगता है कि अगर कोई चीज सस्ते में मिल रही है, तो तुरंत ले लेनी चाहिए। दिन-रात इंटरनेट पर बिताने वाले युवा तरह-तरह की वेबसाइट देखते रहते हैं और धोखाधड़ी के शिकार होते हैं। सरकार इतनी चेतावनी जारी करती है। इतनी बार बताया जाता है कि अनजान लिंक को क्लिक नहीं करना है, इसके बावजूद यह सिलसिला थम नहीं रहा है। (17 मार्च का अंक ‘डिजिटल माफिया साया’)

कौशलेंद्र बाजपेयी | यमुनानगर, हरियाणा

 

पढ़े-लिखे भी लिप्त

17 मार्च के अंक में ‘डिजिटल माफिया साया’ साइबर अपराध के कई पहलुओं को बताती है। फटाफट पैसा बनाने की चाह में युवा साइबर अपराधी बन रहे हैं। पहले जामताड़ा में अनपढ़ युवा यह काम कर रहे थे, अब तकनीक के विशेषज्ञ, डिग्रीधारी भी यह काम करने लगे हैं। इस तरह के अपराध में अभी कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है इसलिए युवा भी जानते हैं कि आज नहीं तो कल छूट जाएंगे और बाकी जिंदगी ऐश से गुजारेंगे। जिसे तकनीक की जितनी समझ है, वह उतना ही बड़ा ठग बनने को तैयार है। कुछ लोग इसे बेरोजगारी से जोड़ रहे हैं। यह एकदम कुतर्क है। जो लोग डिग्रीधारी हैं, वो भी ऐसे अपराध कर रहे हैं। कोई भी युवा अब छोटा काम करना नहीं चाहता। युवा पहले दिन से नौकरी में बड़ा ‘पैकेज’ चाहता है। काम सीखना और धीरे-धीरे तरक्की हासिल करना तो जैसे ये लोग भूल ही गए हैं। सरकार साइबर अपराध के लिए कड़ी सजा देने लगे, तब हो सकता है ऐसे मामलों में कमी आए।

प्रो. सीमा सारस्वत | हाथरस, उत्तर प्रदेश

 

तकनीक की अधिकता

साइबर अपराध पर काबू पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। व्यक्ति सामने हो, तो उसे पकड़ना आसान होता है लेकिन यहां धोखेबाज लोग कब कहां से किसके साथ ठगी कर लेंगे, पता ही नहीं चलता। सरकार जब कोई कानून बनाती है, तो जालसाज उससे आगे की सोच लेते हैं। जब से मोबाइल आए हैं, तब से ही ठगी का धंधा चालू है। की-पैड वाले मोबाइल के वक्त ठगी के तरीके दूसरे थे और स्मार्ट फोन के जमाने में दूसरे हो गए हैं। डिजिटल लेनदेन इतना सुविधाजनक है कि इसका चलन दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। लोग चाह कर भी डिजिटल लेनदेन से दूरी नहीं बना पा रहे हैं। यूपीआइ से धोखाधड़ी बढ़ने पर अब लोग सावधानी बरतने लगे हैं। लेकिन अब एआइ जा जाने के बाद स्थिति और बिगड़ गई है। अब एआइ हर तरह के नियंत्रण से बाहर है। अगला प्रलय लगता है तकनीक की अधिकता ही लाएगी। (17 मार्च का अंक ‘डिजिटल माफिया साया’)

मीरा रघुवंशी | छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश

 

हर पहुंच से दूर

साइबर अपराधी दुनिया भर के लिए बड़ा संकट बन गए हैं। ये लोग हर कानून, हर पुलिस से दूर हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया के विस्तार ने इन्हें फलने-फूलने के खूब अवसर दिए हैं। अब लगने लगा है, जैसे हर चीज नकली है। किसी पर भी भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा है। विज्ञापन, उत्पाद, लोग, ईमेल अकाउंट सब कुछ शक के दायरे में है। कोविड के बाद यह स्थिति और भयावह हो गई है। डिजिटल अरेस्ट के नाम पर ठगी का जो नया तरीका निकाला गया है, वह तो अकल्पनीय है। साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेशन एक्सपर्ट मुकेश चौधरी ने सच कहा है कि ‘‘साइबर अपराधी आगे की सोचते हैं। उनकी कामयाबी का राज यही है कि वे कितनी जल्दी नए तरीके खोज सकते हैं।’’ पुलिस को किसी भी अपराधी का सूत्र पकड़ने में समय लगता है। जब तक पुलिस किसी अपराधी को एक अपराध के लिए गिरफ्तार करती है, तब तक वह दो-तीन और ठगी कर चुका होता है। आखिर यह सिलसिला कहां जाकर रुकेगा, कोई नहीं जानता। (17 मार्च का अंक ‘डिजिटल माफिया साया’)

बाल गोविंद | नोएडा, उत्तर प्रदेश

 

कूल’ की परिभाषा

17 मार्च 2025 के अंक में, ‘अश्लील बोल के बहाने’ युवाओं की नई तरह की मानसिकता पर रोशनी डालता है। आखिर हमारे युवा कहां जा रहे हैं। ऐसे शो का उद्देश्य क्या है, यह किसी को नहीं पता। दर्शकों को हंसाने के लिए माता-पिता पर अश्लील बातें होने लगीं। इसे कॉमेडी का नाम दिया जा रहा है। आखिर ये कौन सी नई कॉमेडी है, जिसमें अश्लीलता होती है। चर्चित हस्तियां भी क्या अपना दिमाग घर छोड़ कर आती हैं, जो उन्हें स्क्रिप्ट में जो दिया जाए, वो कैमरे पर बोल देती हैं। कॉमेडी को लेकर एक नया शब्द डार्क कॉमेडी है। यह डार्क कॉमेडी क्या होता है। किसी भी अच्छे खासे शब्द का मतलब बिगाड़ कर ये युवा सोचते हैं कि इनका कुछ नहीं होगा। सभी को अब बस ‘वायरल’ होने से मतलब है। इसके लिए उन्हें कुछ भी गलत करना पड़े, तो ये लोग करते हैं। आजकल के शोज में गाली-गलौज करना आम बात हो गई है। जो लोग अभी इन बातों को लेकर हल्ला मचा रहे हैं, वो भी इस तरह के शो में पहले हंसते रहे हैं। अगर ऐसे शोज को दर्शक ही न मिलें, तो ये लोग इतने प्रसिद्ध ही नहीं होंगे। पहले हम ही इन्हें सिर पर चढ़ाते हैं और बाद में जब ये लोग सीमा से बाहर जाते हैं, तो हो-हल्ला मचाने लगते हैं।

रानी कुमारी | चाइबासा, झारखंड

 

उबरना एकाकीपन से

आउटलुक के 17 मार्च अंक ‘आध्यात्मिक स्मृतियों का संगम’ बहुत अच्छा लेख है। इस महाकुंभ में करोड़ों लोग आए और शांति से स्नान कर चले गए। इस महाकुंभ ने कोरोना काल के एकाकीपन को पूरी तरह धो दिया। वो वक्त था जब हम किसी को छू नहीं सकते थे, पास नहीं जा सकते थे। तब लगता था अब हम शायद ही कभी किसी अजनबियों के इतने करीब जा सकें। कुंभ में करोड़ों की भीड़ में जब बिना मास्क पहने हम अजनबियों के इतने नजदीक से गुजर गए, साथ नहा लिए तो लगा वाकई अब हम कोरोना की बुरी यादों और अनुभव से उबर गए हैं।

शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी | फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश

 

मिले कड़ी सजा

3 मार्च के अंक में, ‘जंजीरों में लौटे आज के गिरमिटिया’ पढ़ कर दिल दहल गया। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अपनी दोस्ती का लगातार दम भरते नजर आते हैं, लेकिन जब भारत से लोगों की वापसी की बात हुई तो वे चुप्पी साध गए। अमेरिका में हमारे लोगों के साथ जो अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा है, उस पर भारत कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। हालांकि कुछ गलती उन लोगों की भी है, जो बिना डिग्री या वैध कागजात के चोरी छुपे वहां जाना चाहते हैं। अच्छे कल के लिए सभी पैसा कमाना चाहते हैं। भारत में नौकरी का संकट होने की वजह से ही उन्हें ऐसे जालसाज एजेंटों का शिकार होना पड़ रहा है। सुनहरे सपने की आस लेकर गए इन लोगों को अब अवैध बताकर वहां से धकिया कर वापस स्वदेश भेजा जा रहा है। सोच कर देखिए उन माता-पिता पर क्या बीत रही होगी, जिन्होंने अपने जीवन भर की कमाई बच्चों का भविष्य संवारने में लगा दी। हथकड़ी में अपने ही लोगों को देखने से हर भारतीय का सिर भी शर्म से सिर झुक गया। बेहतर हो कि सरकार ऐसे एजेंटों को कड़ी से कड़ी सजा दे ताकि आगे वे किसी के भविष्य के साथ खिलवाड़ न कर सके। 

एमएम राजावत | शाजापुर, मध्य प्रदेश

 

पुरस्कृत पत्र: सावधानी ही बचाव

आजकल हर जगह साइबर अपराध की चर्चा जोरों पर है। आउटलुक का 17 मार्च का अंक ‘डिजिटल माफिया साया’ उस खतरे पर कायदे से बात करता है। इस समस्या को देखते हुए यही समझ आता है कि पुलिस के पास जाने की नौबत न आए, इसके लिए हमें खुद ही सावधान रहना होगा। जागरूकता और किसी भी तरह के लालच में न फंसना इसका समाधान है। दिक्कत यह है कि इंटरनेट की दुनिया में करोड़ों लोग कब क्या देख रहे हैं, इसे पकड़ा नहीं जा सकता। जरूरत है कि पाठ्यक्रम में बदलाव लाए जाए। स्कूल स्तर पर ही इंटरनेट के खतरे और साइबर क्राइम एक मुकम्मल विषय के तौर पर पढ़ाया जाए। बच्चे अभी से जानेंगे, तो इस खतरे से बचे रहेंगे। जानकारी ही ऐसे अपराध से बचने का एकमात्र माध्यम है।

आदर्श केसरवानी|भोपाल, मध्य प्रदेश

 

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