एकता ही शक्ति
आउटलुक के 26 मई के अंक की आवरण कथा, ‘जन्नत के जख्म’ पढ़कर मन व्यथित हो गया। टेलीविजन पर दृश्य देखकर और पत्रिका में पूरी घटना का विश्लेषण पढ़ कोई भी गुस्से से भर जाएगा। बैसरन के सुहावने हरे घास के मैदान में मासूम इंसानों का यह सिर्फ खून-खराबा नहीं, बल्कि सुनियोजित मनौवैज्ञानिक हमला था। दहशतगर्दों का मकसद केवल जान लेना नहीं, बल्कि खौफ कायम करना था। ऐसी घटनाएं समाज के भीतर खाई को चौड़ी ही करती हैं। इससे आपस में शक, भय और नफरत पनपता है। उनका मकसद सिर्फ आतंक फैलाना होता, तो वे महिलाओं और बच्चों को भी निशाना बनाते। धर्म पूछ कर हत्या करना नया ट्रेंड है, जो अब तक यहां नहीं था। पुरुषों को टारगेट करना और महिलाओं को छोड़ देना, सोची-समझी चाल है। आतंकी घटना के बाद लोग बहस के बीच प्रश्न पूछना भूल जाते हैं कि सुरक्षा में चूक कहां हुई, इतनी भारी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद आतंकी आए कैसे, इंटेलिजेंस इनपुट क्यों नहीं मिले, चैक पोस्ट वाले क्या कर थे? इन सब खामियों से लगता है कि ये सिर्फ आतंकी हमला नहीं गहरी राजनैतिक साजिश है। ऐसा षड्यंत्र जिसका उद्देश्य सिर्फ हिंदू-मुस्लिम के बीच दूरी बढ़ाना है। यह हमला केवल सुरक्षा तंत्र पर नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और हमारे विवेक पर हमला है। इसलिए हमें सोचना होगा कि समाज एक रहेगा, बंटेगा नहीं तभी हम इस तरह की घटनाओं का सामना कर सकेंगे।
शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी | फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश
संवाद ही विकल्प
26 मई के अंक में लेख, ‘हिंसा वहीं पनपती है जहां संवाद नहीं होता’ पढ़ी। पहलगाम हमले के बाद भारत का पाकिस्तान में मौजूद आतंकी शिविरों पर हमला और पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई देखते-देखते युद्ध में बदल गई। युद्ध शांति का विकल्प नहीं हो सकता। युद्ध से किसी देश का आज तक भला नहीं हुआ। संवाद की सार्थकता दोनों देशों को समझनी होगी। हालांकि भारत हर मुद्दे को बातचीत से सुलझाने का हिमायती है। हालिया भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम भी संवाद से ही हुआ है। इसलिए कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान से पहले कश्मीरियों से बात हो। सभी पक्षों से संवाद करके ऐसा माहौल बने कि हर कश्मीरी आतंकवाद का हैंडलर न लगे। कश्मीरी खुद को कश्मीरी से पहले भारतीय समझें।
बृजेश माथुर | गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
जिम्मेदार कौन
26 मई के अंक में, ‘जिंदगियां मौन, सवाल मुखर’ पढ़कर बहुत दुख हुआ। आखिर क्या दोष था, पर्यटकों का जो उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी। 26 निर्दोष पर्यटकों ने यहां आकर जान गंवाई। अब यह कहने से क्या होगा कि यह जम्मू-कश्मीर में आम लोगों पर सबसे घातक कुछेक आतंकवादी हमलों में एक है। यह बोलना सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने की तरह है। घटना हो जाने के बाद सुरक्षा एजेंसियों जिसे चाहें, उसे इस कायराना हरकत के लिए जिम्मेदार ठहरा सकती हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देता है, फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। जब बैसरन घास के मैदान पर्यटकों के बीच इतने लोकप्रिय हैं, तो वहां सुरक्षा तैनाती क्यों नहीं की गई। रोज 2,000 से 3,000 सैलानी पहुंते हैं, फिर भी वहां कोई सुरक्षाकर्मी या पुलिसवाला नहीं था। क्या सरकार वहां किसी बड़ी घटना घट जाने का रास्ता देख रही थी। यह सुरक्षा की बड़ी चूक है। इस पर अब सफाई देने का कोई फायदा नहीं, जवाबदेही तय होनी चाहिए।
सुरभि दत्त | दिल्ली
लापरवाही का खामियाजा
पहलगाम में पर्यटकों पर हमला हो जाने के बाद सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि बैसरन में आम लोगों पर हमले के दौरान गंभीर और कई स्तरों पर सुरक्षा चूक सामने आई है। मतलब इतने लोग जान गंवा दें, तब सुरक्षा वालों को याद आता है कि वहां सुरक्षा नहीं थी। लेख में भी है कि सुरक्षा तंत्र मान बैठा था कि वहां “कोई आतंकवादी घुस नहीं सकता है।” सरकार की यही लापरवाही पर्यटकों को भारी पड़ी। इससे पहले आतंकवादियों ने पर्यटकों पर हमला नहीं किया था। लेकिन वे ऐसा कभी नहीं करेंगे, इस बात की गारंटी नहीं थी। सरेआम इतने लोगों को गोलियों से भून दिया गया और उनके परिवार वाले कुछ नहीं कर सके। यह कायराना हरकत पाकिस्तान को बहुत भारी पड़ेगी।
विजय मित्तल | बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
पानी का हक
दो पड़ोसी राज्य हरियाणा और पंजाब के बीच पानी को लेकर विवाद शुरू हो गया है (‘पानी पर पुलिसिया पहरा’, 26 मई)। यह कितनी अजीब बात है कि पंजाब सरकार ने वहां पुलिस का पहरा बैठा दिया है। भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड ने हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने से मना कर दिया। यहां तक कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जिस तरह से वक्तव्य जारी किया, वह संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों को शोभा नहीं देता। उन्होंने कहा कि हम पंजाबी हैं और रक्षा करना अच्छी तरह जानते हैं। दूसरी तरफ हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर सबकी सहमति लेकर पंजाब सरकार पर हमला बोल दिया। पानी पर हुई राजनीति ने अलग मोड़ ले लिया है। आप पार्टी का पंजाब में पानी को लेकर विवाद बिलकुल ठीक नहीं है। किसी भी राज्य को पानी या सीमा और विभिन्न तरह के विषय को लेकर किसी भी प्रकार से सामाजिक तथा धार्मिक विवाद से बचना चाहिए और विवेक का परिचय देना चाहिए। किसी भी बात को राजनैतिक रूप नहीं दिया जाना चाहिए। यह सभी को समझना चाहिए।
मीना धानिया | नई दिल्ली
चमकता सितारा
26 मई के आउटलुक में, ‘जीअ हो बिहार के लाला’ अच्छा लगा। बिहार के लाल वैभव सूर्यवंशी ने आइपीएल में जो समा बांधा, वह लंबे समय तक याद रह जाएगा। गुजरात टाइटंस के खिलाफ रिकॉर्ड तोड़ ऐतिहासिक पारी खेलकर उसने न सिर्फ सभी का दिल जीता, बल्कि क्रिकेट प्रेमी उसे क्रिकेट के ‘कोहिनूर’ के रूप में देखने लगे हैं। महज 35 गेंदो में आइपीएल करियर का पहला शतक जड़ कर उसने दिखा दिया कि राजस्थान रॉयल्स का उसका चुनाव गलत नहीं था। सिर्फ 14 साल के उम्र में टी20 में शतक जड़ना वर्ल्ड रिकॉर्ड है। इस फॉर्मेट में यह कारनामा करने वाले वह दुनिया का पहला खिलाड़ी है। अपनी इस दमदार पारी के बाद उसने साबित कर दिया कि वह आने वाले समय में भारत के क्रिकेट के भविष्य के स्टार बन सकते हैं। अपनी दमदारी पारी से उसने क्रिकेट के कई दिग्गजों के अनुमान और भविष्यवाणी को गलत साबित कर दिया। आइपीएल में सबसे तेज शतक लगाने के मामले में क्रिस गेल सबसे आगे हैं। अब दूसरे नंबर पर वैभव सूर्यवंशी है। क्रिकेट के सभी प्रेमियों को उम्मीद है कि आने वाले समय में वैभव सूर्यवंशी और ज्यादा ‘वैभवशाली’ पारियां खेल कर क्रिकेट का नया सितारा बनकर उभरेगा।
विजय किशोर तिवारी | नई दिल्ली
हिन्दुओं पर अत्याचार
आउटलुक के 12 मई के अंक में, ‘मुर्शीदाबाद की लपटें’ पढ़कर लगा जैसे यह भारत से बाहर के हालात हैं। भारत में एक राज्य में इतनी हिंसा हो रही है और इस पर कहीं कोई चर्चा ही नहीं है। इससे ज्यादा गैर-जरूरी बातों पर बतंगड़ बन जाता है। यह भारत में क्या हो रहा है कि हिंदू परिवारों के घर पहचान कर उन्हें जलाया जा रहा है, मंदिर तोड़े जा रहे हैं, गांव के गांव खाली कराए जा रहे है। ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगी, तो हमारे देश का पूरा ताना-बाना ही बिखर जाएगा। सरकार कह रही है कि यह भीड़ ने किया, तो भीड़ को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? अगर इसी तरह वोट बैंक की राजनीति चलती रही, तो एक दिन यह आग पूरे देश में फैल जाएगी। बंगाल की सरकार भूल गई है कि यह चैतन्य महाप्रभु की धरती है। अगर सरकार असंवेदनशील बनी रहेगी, तो कैसे काम चलेगा।
सरोज चौधरी | रोहतक, हरियाणा
खेल, खेल न रहा
हर बात पर बाजारवाद हावी है। इससे खेल भी नहीं बच सका है। हर बात बाजार से ही तय हो रही है। अब पैसा और लोकप्रियता स्टेट्स सिंबल है। इसे पाने के लिए सभी मापदंड दरक रहे हैं। खेल अब खेल की भावना से कम, बाजार के मिजाज से ज्यादा खेला जा रहा। आउटलुक के 12 मई के अंक में आवरण कथा, ‘ब्रांड गेम’ इस बात को अच्छे से समझाती है। अब खिलाड़ी मैदान के बाहर ज्यादा चमक रहे हैं। कभी विज्ञापन, कभी सोशल मीडिया, कभी सिनेमा इंटरटेनमेंट तो कभी करोड़ों की लीग और सट्टा का बाजार। सवाल मौजूं है कि जब सारा ध्यान खुद को ब्रांड बनाने और पैसा कमाने में लगा रहेगा, तो खेल और खेल की भावना से खिलाड़ी मैदान में कैसे उतरेंगे? बेहतर हो कि खिलाड़ी खेल से इतर काम रिटायरमेंट या संन्यास के बाद करें। इससे तो देश की पूरी खेल संस्कृति ही चौपट हो रही है। खेल को धंधा न बनाया जाए।
डॉ. हर्षवर्धन कुमार | पटना, बिहार
पुरस्कृत पत्र: जन्नत की हकीकत
‘वादी बोली दहशतगर्दी से तौबा’, 26 मई की आवरण कथा कश्मीर की कहानी कहती है। कश्मीर के आतंकवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। अब लगने लगा है कि इस समस्या को सुलझाना शायद कठिन हो। यह एक भारतवासी की निराशा नहीं, बल्कि हार की कगार पर पहुंच चुके व्यक्ति की हताशा है। निराश होने पर आशा की किरण होती है, लेकिन यदि कोई हताश हो जाए, तो फिर उसमें आशा का संचार करना कठिन होता है। इस बार की घटना से यही हुआ है। इस बार की घटना इसलिए भी ज्यादा दुखदाई है कि उन लोगों ने लक्ष्य कर लोगों को मारा। महिलाओं के सामने उनके पति, बच्चों के सामने उनके पिता चले गए। इस घटना की निंदा करने से कुछ नहीं होगा। सरकार को इसका ठोस समाधान खोजना होगा।
एन.के. सिंह|दिल्ली