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बिहार/चिराग को इंतजार पसंद

लोजपा प्रमुख को राजद से गठबंधन की कोई जल्दी नहीं, विकल्प खुला रखने की ख्वाहिश
राजद नेता श्याम रजक चिराग से मिले तो अटकलें भी तेज हुईं

अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पार्टी के सांसदों के तख्तापलट का सामना करने के एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी लोजपा के संकटग्रस्त प्रमुख चिराग पासवान बिहार में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन करने की जल्दी में नहीं दिख रहे हैं। जबसे चिराग को उनके चाचा सहित लोजपा के पांच लोकसभा सांसदों ने ‘अपदस्थ’ किया और दिवंगत रामविलास पासवान द्वारा स्थापित ‘असली पार्टी’ की कमान अपने हाथों में लेने का दावा किया, राजद चिराग को बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ एकजुट होने का प्रस्ताव भेज रहा है। हाल में, बिहार के पूर्व मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता श्याम रजक ने चिराग से दिल्ली में मुलाकात की। अटकलें हैं कि उन्होंने लालू की ओर से चिराग को संदेश भी दिया। हालांकि रजक कहते हैं कि वे चिराग के पिता के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करने गए थे, जिन्होंने दलितों के उत्थान के लिए बहुत कुछ किया था। लेकिन, इसमें दो मत नहीं कि राजद 38 वर्षीय लोजपा नेता को अपने खेमे में लाना चाहता है। रजक का कहना है कि जो कोई भी जेपी और लोहिया के दर्शन को मानता है, उसका एनडीए विरोधी मोर्चे में स्वागत है।

फिलहाल चिराग ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बिहार में आशीर्वाद यात्रा के दूसरे चरण में निकट भविष्य में राजद के साथ गठबंधन की संभावना पर उन्होंने कहा, ‘‘इस पर चर्चा करने का यह सही समय नहीं है।’’ चिराग के पास तुरंत ऐसा करने का कोई कारण नहीं है। अगले कुछ वर्षों में बिहार में न तो संसदीय, न ही विधानसभा होने चुनाव होने जा रहे हैं। संसदीय चुनाव अप्रैल-मई, 2024 से पहले निर्धारित नहीं है, जबकि विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर 2025 में होना है। इसलिए, उनके पास अपनी पार्टी के पुनर्निर्माण और अपने जनसमर्थन के आकलन का पर्याप्त समय है।

लोजपा कोटे पर नरेंद्र मोदी कैबिनेट में अपने चाचा को शामिल किए जाने से बिफरने के बावजूद चिराग राजद के साथ हड़बड़ी में गठबंधन करके भाजपा के साथ संपर्क नहीं तोड़ना चाहते हैं। वे जनसंख्या नीति के खिलाफ बोल चुके हैं, लेकिन भगवा पार्टी या विशेष रूप से मोदी पर निशाना साधने से परहेज किया है।

राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार, चिराग को लगता है कि अगले चुनावों तक राजनैतिक परिस्थितियां, खासकर बिहार में पहले जैसी नहीं रहेंगी। वे राज्य में मध्यावधि चुनाव की संभावना के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन सभी विकल्प खुला रखना पसंद कर रहे हैं।

बिहार में नवंबर 2020 के चुनावों में लोजपा को 137 निर्वाचन क्षेत्रों में मिले लगभग 25 लाख वोटों की बदौलत कुल मतदान का 5.66 प्रतिशत वोट मिला था। चिराग बखूबी जानते हैं कि अगर वे अगले चुनावों तक किसी गठबंधन में शामिल नहीं हुए तो उन्हें आज से बेहतर विकल्प मिल सकते हैं। भाजपा तब तक नीतीश के जदयू और पारस के नेतृत्व वाले लोजपा के गुट के साथ बनी रहती है, तो चिराग के पास राजद के साथ गठबंधन करने का विकल्प खुला ही रहेगा। लेकिन, अगर नीतीश के साथ भाजपा का गठबंधन समाप्त हो जाता है और पारस खुद को बिहार में दिवंगत पासवान की राजनीतिक विरासत का असली वारिस साबित करने में विफल हो जाते हैं, तो चिराग के पास भाजपा की ओर वापस जाने के विकल्प खुल जाएंगे।

चिराग वैसे भी अपने पत्ते संभल कर खेल रहे हैं। चाचा पारस के रातोरात विद्रोह से स्तब्ध चिराग अब परिवार के अन्य सदस्यों के साथ संबंध सुधारने के लिए निकल पड़े हैं। ‘आशीर्वाद यात्रा’ के पहले चरण में उन्होंने सौतेली मां राज कुमारी देवी से मिलकर उनका आशीर्वाद लिया, जो खगडि़या जिले के शहरबन्नी गांव में उनके पैतृक घर में रहती हैं। राज कुमारी देवी पूर्व केंद्रीय मंत्री पासवान की पहली पत्नी हैं, जिन्होंने 1981 में उन्हें तलाक देकर चिराग की मां रीना शर्मा से शादी कर ली। पहली शादी से पासवान की दो बेटियां उषा और आशा हैं। पासवान के जीवनकाल में दोनों परिवारों के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। लेकिन लगता है कि चिराग अपनी बड़ी मां और अपनी बहनों के साथ संबंध बहाल कर रहे हैं ताकि यह संदेश दिया जा सके कि पासवान परिवार अपने चाचा के ‘विश्वासघात’ के बावजूद एकजुट है।

पारस का दावा है कि उन्हें अपने भाई की राजनीतिक विरासत प्राप्त है, भले ही चिराग का अपने पिता की संपत्तियों पर अधिकार है। दरअसल, पारस और चिराग दोनों को बिहार में अपनी राजनीति आगे बढ़ाने के लिए खुद को पासवान की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में पेश करना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार में दलित राजनीति के ध्वजवाहक के रूप में जनता आखिरकार किसे चुनती है।

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