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बलूचिस्तान पर नई सियासी करवट

पाकिस्तान के कश्मीर राग पर भारत ने बलूचिस्तान का व्यवधान डाला
बलूचिस्तान पर पाकिस्तानी कब्जे के खिलाफ आंदोलन

हाल ही में भारत के स्वाधीनता दिवस समारोह 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान का मुद्दा उठा कर नई बहस छेड़ दी है। भारत के साथ बलूचिस्तान को लेकर कई देशों का हित-अहित इससे जुड़ा है। कलात क्षेत्र कहलाने वाले बलूचिस्तान में स्वाधीनता आंदोलन चल रहा है। लंबे समय से चले आ रहे इस आंदोलन में अगर भारत कूद पड़ता है तो कई देश प्रभावित होंगे। यदि भारत इस आंदोलन को मदद देता है तो पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर सुरक्षात्मक होना पड़ेगा क्योंकि यदि पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापेगा तो भारत बलूचिस्तान की आजादी को विश्व फलक पर व्यापक रूप दे देगा। पाकिस्तान ने चीन को गिलगित-बाल्टिस्तान से लेकर पाकिस्तान होते हुए बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर आने की अनुमति दे दी है। चीन वहां 46 बिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है। यदि यह मुद्दा उठता है तो चीन को नुकसान होगा। हिंद महासागर से जुड़ने के सपने को वह तोड़ना नहीं चाहता। यही कारण है कि चीन पाकिस्तान पर दबाव डाल सकता है कि कश्मीर मुद्दे को वह न उठाए ताकि भारत बलूचिस्तान मुद्दे से दूर रहे। दूसरी तरफ ईरान चाहता है कि बलूचिस्तान, पाकिस्तान और ईरान के बीच बफर स्टेट की तरह रहे। अफगानिस्तान भी चाहता है कि बलूचिस्तान अलग हो जाए। अमेरिका भी चाहेगा कि चीन का ग्वादर पोर्ट के जरिये हिंद महासागर से जुड़ने का सपना पूरा न हो। अब मोदी ने यह मुद्दा सार्वजनिक मंच से उठा कर इस समस्या का अंतरराष्ट्रीयकरण की संभावना खड़ी कर दी है।

यह मुद्दा आज का नहीं है। भारत-पाकिस्तान बनने के बाद से कश्मीर झगड़े की जड़ बना हुआ है। भारत को आजादी देते वक्त अंग्रेजों ने रियासतों को स्वतंत्र छोड़ दिया। रियासत भारत के साथ रहें या स्वतंत्र यह फैसला उनका था। अन्य रियासतों के साथ जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह भी स्वतंत्र रहना चाहते थे। लेकिन जम्मू-कश्मीर के बड़े नेता शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हो जाए। जम्मू-कश्मीर न भारत में मिलना चाहता था, न पाकिस्तान में। यह तय होता इससे पहले ही पाकिस्तान ने सेना और सेना के वेश में कबालियों को भेजा और वहां हमला किया। तब कबालियों के आक्रमण से बचाव के लिए वहां महाराजा ने भारत से मदद मांगी। उनकी स्वीकृति के बाद भारत ने मदद की और विलय के कागजों पर दस्तखत कर कानूनी और संवैधानिक तौर पर जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बन गया। लेकिन तब तक पाकिस्तान गिलगित और बाल्टिस्तान पर कब्जा कर चुका था। भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर हिस्से को लेकर संयुक्त राष्ट्र चला गया। संयुक्त राष्ट्र ने यथास्थिति बनाए रखने को कहा और यही स्थिति आज तक है।

इस सारे मुद्दे पर पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे जी. पार्थसारथी का कहना है, ‘जब नेहरू जनमत संग्रह कराने के पक्ष में थे लेकिन यूएन ने कहा कि पहले स्थिति सामान्य हो जाए फिर कराया जाए। लेकिन उससे पहले पाक फौजियों और कबालियों को कश्मीर से निकलना होगा। उनके पूरी तरह हटने के बाद ही पूरे प्रांत का प्रशासन भारत अपने हाथ में लेगा। उन्होंने सेना नहीं हटाई, तो जनमत संग्रह का सवाल ही खत्म हो गया। कबायली नहीं हटे और पाकिस्तान ने पूरी आबादी में ही परिवर्तन कर दिया। जो शिया समुदाय बहुतमत में था वह अब अल्पमत में आ गया। अब बहुतायात में सुन्नी समुदाय लाकर उन लोगों ने हालात बदल दिए हैं। इसके बाद सभी को पता है, सन 1965 की जंग हुई कोई फायदा नहीं हुआ, सन 1971 में जंग हुई कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर हुआ शिमला समझौता। तय किया गया द्विपक्षीय वार्ता से मसले सुलझाए जाएंगे। यूएन ने यह प्रस्ताव खारिज कर दिया। नई नियंत्रण रेखा बनी और भारत से गलती यह हुई कि भारत समझ नहीं पाया कि बाद में यही अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा बन जाएगी। दरअसल, पाकिस्तान पर भरोसा रखना पाप है, जो हमने किया।पार्थसारथी कहते हैं कि मोदी ने जो बोला है वह कोई नई बात नहीं है, बस उन्होंने उस बात को दोहरा दिया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब भारत को समर्थन देता है। चीन भी कहता है कि द्विपक्षीय वार्ता हो। मोदी इस बात को दोहरा रहे हैं तो वजह यह है कि वह खुद पाकिस्तान गए, वार्ता का निमंत्रण दिया, दोस्ती का हाथ बढ़ाया। इसके बाद कुछ नहीं हुआ तो अब कड़ी कार्रवाई करनी पड़ेगी।

एक बात याद रखनी होगी कि मोहम्मद अली जिन्ना ने एलान किया था 5 अगस्त, 1947 को कि कलात या बलूचिस्तान एक आजाद मुल्क रहेगा। उसकी अपनी विदेश नीति होगी। फिर खुद ही 1948 में इस फैसले को उलट दिया। पाकिस्तान का कब्जा अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है। लोग वहां से गायब हो रहे हैं, जंग चल रही है, पर किसी को कोई परवाह नहीं है। भारत के द्वार इस बात को उठाए जाने के बाद संभव है यह मुद्दा नई करवट ले।

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