इराक में मारे गए 39 भारतीयों को अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ। चार साल से उनके सकुशल लौटने के इंतजार में परिजनों की पथराई आंखों से उस वक्त आंसू नहीं थम रहे थे, जब उन्हें अमृतसर हवाई अड्डे पर इराक से आई अपनों की अस्थियां सौंपी जा रही थीं। इनमें से 27 पंजाब के थे, जो निकले तो थे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी से जूझते अपने परिवारों को खुशहाल करने, लेकिन असमय कालग्रस्त हो गए। मौके पर बात पीड़ितों के परिजनों को नौकरी और मुआवजे की आई तो विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह अवैध ट्रैवल एजेंटों के चंगुल में फंसने वाले लोगों की बात कहकर बिगड़ गए। मुआवजे को लेकर सियासत भी जमकर हुई। विपक्ष के नेता सुखपाल खेहरा ने पीड़ित परिवार को एक-एक करोड़ रुपये तो शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने 50 लाख रुपये मुआवजे के साथ परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की मांग की। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने पांच-पांच लाख रुपये मुआवजे के साथ नौकरी का ऐलान किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीड़ित परिवारों के लिए 10-10 लाख रुपये की राशि की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया।
लेकिन यह समस्या का स्थाई हल नहीं है। दशकों से गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से जूझते पंजाब के कई ग्रामीण इलाकों खासकर दोआबा के अकुशल और अर्ध-कुशल युवाओं में खाड़ी के देशों इराक, बहरीन, कुवैत, कतर, ओमान, सउदी अरब और यूएई जाकर मजदूरी करने का क्रेज कम नहीं हुआ है। इसी को भुनाने वाले इमीग्रेशन दलाल मालामाल हो रहे हैं। चार साल तक इराक में काम करके 2015 में लौटे जालंधर की रामा मंडी के कर्मजोत सिंह की मानें तो खतरनाक हालात के बावजूद अकुशल और अनपढ़ बेरोजगार युवाओं के पास घर छोड़कर खाड़ी देश जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि यहां दिहाड़ी मजदूरों को खेत और कारखाने में मजदूरी आज भी सरकार की ओर से तय न्यूनतम मजदूरी से कहीं कम मिलती है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन रूरल ऐंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (चंडीगढ़) ने भी सर्वे में पाया है कि कम समय में ज्यादा धन कमाने के चक्कर में पंजाब के युवा जोखिम को दरकिनार कर खाड़ी देशों की ओर भाग रहे हैं। इराक के मोसुल में इस्लामिक स्टेट के हाथों जान गंवाने वाले कपूरथला के गोबिंदर सिंह के परिवार ने उसे इराक भेजने के लिए डेढ़ लाख रुपये कर्ज लिए थे, जिसे चुकाना अभी बाकी है। गोबिंदर के भाई देवेंद्र सिंह के मुताबिक, “गुरदासपुर के एक एजेंट को ये पैसे गोबिंदर को दुबई की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी दिलाने के लिए दिए गए। जुलाई 2013 में एजेंट ने दुबई की जगह मेरे भाई को इराक भेज दिया। गोबिंदर से हमारी आखिरी बार बात मार्च 2014 में हुई। जून 2014 में मोसुल पर इस्लामिक स्टेट ने कब्जा कर लिया।”
इराक में मारे जाने वालों में शामिल अमृतसर के निशान सिंह की मां सविंदर कौर ने भी निशान को दुबई की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी लगवाने के लिए एक लाख 70 हजार रुपये कर्ज लिए। सविंदर कौर के मुताबिक, अमृतसर से दुबई के लिए 11 लोगों के जत्थे में शामिल उनके बेटे और अन्य को दुबई पहुंचने पर बताया गया कि कंपनी का दुबई में काम खत्म हो गया है। इसलिए इसी कंपनी के काम के लिए इराक जाना होगा। दो साल से दुबई में कारपेंटर का काम कर रहे पठानकोट के सतनाम सिंह के मुताबिक, वे दुबई के अल बरसा इलाके में बन रही बहुमंजिला रिहायशी इमारत में सैकड़ों भारतीय, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी कामगारों के साथ काम पर लगे हैं। पंजाब ट्रैवल एजेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष कुलजीत सिंह हायेर ने कहा कि विदेशों में नौकरी के इच्छुक लोगों को पहले ट्रैवल एजेंटों के रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस की जांच करनी चाहिए। सरकार ट्रैवल एजेंटों के रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस की एक बार जांच करे और जांच के नाम पर उन्हें बार-बार परेशान नहीं किया जाना चाहिए। अभी भी हजारों अवैध ट्रैवल एजेंट सक्रिय हैं।
विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 1991 में खाड़ी युद्ध से पहले 80 हजार से अधिक भारतीय इराक में काम करते थे। युद्ध शुरू होने से पहले ही बहुत से लोग वहां से निकल आए। 2003 के बाद ठेकेदारों ने विदेशी सेनाओं को वहां सेवाएं देने के लिए हजारों भारतीय कामगारों की भर्ती की। इराक में बड़े पैमाने पर कामगारों की भर्ती को अतंरराष्ट्रीय मानव तस्करी नेटवर्क की मिलीभगत से पंजाब में अवैध ट्रैवल एजेंटों ने खूब भुनाया। पंजाब सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 1181 पंजीकृत इमीग्रेशन कंपनियां और ट्रैवल एजेंट हैं। गैर पंजीकृत इमीग्रेशन कंपनियों और ट्रैवल एजेंटों की संख्या 10 हजार के करीब है। जालंधर में सबसे अधिक 287 इमीग्रेशन कंपनियां हैं। लुधियाना में 170 और अमृतसर में 137 हैं। ट्रैवल एजेंटों पर नजर रखने के लिए पंजाब सरकार का पंजाब ट्रैवल प्रोफेशनल्स रेगुलेशन एक्ट-2012 सख्ती से लागू नहीं हो पाया है। एक्ट के तहत ट्रैवल एजेंटों को संबंधित जिला उपायुक्त के पास पंजीकरण के बाद ही लाइसेंस जारी होता है, लेकिन 90 फीसदी अवैध ट्रैवल एजेंट इसलिए सक्रिय हैं क्योंकि कार्रवाई उन्हीं पर होगी, जिनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज हो। पंजाब के डीजीपी सुरेश अरोड़ा के मुताबिक, 10-12 फीसदी पंजीकृत इमीग्रेशन एजेंट्स को छोड़ बाकी नौकरी का झांसा देकर लोगों को अवैध रूप से ले जा रहे हैं। 2017 में 188 अवैध इमीग्रेशन एजेंटो पर आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इराक में मारे गए 27 पंजाबियों के मामले भी एजेंट जांच के दायरे में हैं।
अगस्त 2017 तक इराक में काम करने वाले 10 से 12 हजार भारतीय कामगारों में ज्यादातर कुर्दिस्तान, बसरा, नजफ और करबला की स्टील मिलों, तेल कंपनियों और कंस्ट्रक्श्न प्रोजेक्ट्स में काम कर रहे हैं। इराक यात्रा के खिलाफ 2004 से मई 2010 तक रही भारत सरकार की एडवाइजरी जून 2010 में हटने के बाद से इराक के उक्त इलाकों में पंजाब के अलावा बिहार, यूपी, झारखंड और पश्चिम बंगाल से जाने वाले कामगारों की संख्या में इजाफा हुआ है। फेडरेशन ऑफ स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष बादिश जिंदल के मुताबिक, सरकारों की गलत आर्थिक नीतियों के कारण पिछले एक दशक में पंजाब की 18 हजार से अधिक स्मॉल स्केल इंडस्ट्री बंद हुई है। बहुत सस्ती दरों पर प्रवासी मजदूर बहुतायत में उपलब्ध होने से स्थानीय युवाओं के लिए आकर्षक मजदूरी की गुंजाइश ही नहीं बचती। यही कारण है कि भारत के ग्रामीण बेरोजगार युवाओं के मामले में पंजाब आठवें पायदान पर है। पंजाब में 2015-16 में बेरोजगारी दर 16.5 थी, जबकि ग्रामीण भारत में 9.2 फीसदी रही थी।
साल भर पहले बनी कांग्रेस सरकार का 2500 रुपये महीना बेरोजगारी भत्ता अभी तक नहीं लगा, लेकिन इसे लेने वाले चार लाख से अधिक बेरोजगारों ने पंजीकरण कराया है। दो वक्त की रोटी के लिए मौत के मुंह में जाते बेरोजगार कैसे बचेंगे, इस सवाल पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, “बेरोजगारी हमारी सरकार को अकाली-भाजपा सरकार से विरासत में मिली। साल भर पहले जब हमारी सरकार बनी तब पंजाब में बेरोजगारों की संख्या नौ लाख थी। जाहिर है रोजगार के लिए बहुत से लोग विदेशों की ओर पलायन कर रहे हैं। हमने ‘घर-घर रोजगार’ स्कीम शुरू की है। एक लाख 61 हजार लोगों को रोजगार मिला है। जल्द ही हालात सुधरेंगे।” लेकिन हालात सुधरते अभी तो नहीं दिख रहे हैं।