दस साल में बहुत कुछ बदल गया है। 2006 में बंगाल में उद्योगीकरण की कोशिश में तब वाममोर्चा के मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य को माकपा के शीर्ष नेतृत्व समेत घटक दलों का जमकर विरोध झेलना पड़ा था। लेकिन यह 2016 है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन अपनी पार्टी माकपा के शीर्ष नेतृत्व से सीधे टकरा रहे हैं। वाममोर्चा के घटक दलों की नहीं सुन रहे हैं। केरल में सरकारी कामकाज को लेकर जो फैसले ले रहे हैं, वे माकपा के शीर्ष नेताओं को असहज करने के लिए काफी हैं। पोलित ब्यूरो और केंद्रीय कमेटी की बैठकों में आपत्तियां उठाई जा रही हैं, लेकिन माकपा नेतृत्व दखल नहीं देना चाहता।
ताजा मामला हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली उदारवादी (अमेरिका समर्थक) मानी जाने वाली गीता गोपीनाथ को लेकर चल रहा है, जिन्हें केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने अपना आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया है। इस मुद्दे पर माकपा पोलित ब्यूरो ने आपत्ति जताई। केरल राज्य कमेटी और माकपा पोलित ब्यूरो में बुजुर्ग नेता वी. एस. अच्युतानंदन ने यह मुद्दा उठाया था। बैठक में दो दिनों तक बहस चली। बंगाल का उदाहरण दिया गया कि वहां बुद्धदेव भट्टाचार्य की तत्कालीन आर्थिक नीतियों को पार्टी ने समर्थन नहीं दिया, जिससे उद्योग-धंधे चौपट हो गए और बेरोजगारी बढ़ी। वहां वाममोर्चा का सूपड़ा साफ होने में बड़ा कारण इसे भी माना गया। वहां का तर्क देते हुए यह प्रस्ताव पारित किया गया कि पार्टी राज्य सरकार के फैसलों में दखल नहीं देगी।
दरअसल, विजयन की ओर से पोलित ब्यूरो में तर्क रखा गया कि केरल के आर्थिक मामलों में अगर पार्टी दखल देगी तो हालात बिगड़ेंगे। बंगाल की तरह केरल पर भी कर्ज का भार है। केरल से हजारों लोग अरब देशों में काम करने जाते हैं। उनके द्वारा भेजी गई विदेशी मुद्रा केरल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। अब जबकि, अरब देशों में मंदी के हालात हैं, केरल को अपनी आमदनी बढ़ाने और रोजगार सृजन के लिए उद्योगीकरण के रास्ते पर चलना होगा। यह नीति लागू करने के लिए गीता गोपीनाथ को ले आया गया है। जाहिर है, केरल के बजट में पार्टी लाइन से अलग हटते हुए आर्थिक उदारनीति की छाप स्पष्ट होने लगी है। नई सरकार द्वारा बहुउद्देश्यीय आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना की घोषणा की गई है। पोलित ब्यूरो की बैठक के पहले विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से समय लेकर मुलाकात की थी। केरल की आर्थिक परियोजनाओं को लेकर चर्चा की।
दरअसल,माकपा में पहले से ‘बंगाल लाइन’ और ‘केरल लाइन’ के बीच पार्टी के एजेंडे को लेकर खींचतान चली आ रही है। माकपा के पूर्व महासचिव प्रकाश कारात की लॉबी ‘केरल लाइन’ को आगे बढ़ाती रही है। बंगाल में वाममोर्चा के पराभव से यह खाई चौड़ी होनी शुरू हुई और इस साल वहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ माकपा के गठबंधन को लेकर केरल लॉबी ने सवाल उठाए। निशाने पर मौजूदा महासचिव सीताराम येचुरी माने जा रहे हैं, जो खुलकर बंगाल लॉबी के साथ रहते आए हैं। अब विजयन के बहाने दोनों लॉबी की खींचतान खुलकर सामने आ रही है।
विजयन के खिलाफ सीबीआई जांच के एक मामले को लेकर भी पोलित ब्यूरो में असमंजस की स्थिति है। केरल में ‘एसएनएस लेवालीन’ घोटाले में विजयन के खिलाफ सीबीआई की जांच चल रही है। माकपा पोलित ब्यूरो ने इस मामले में भी दखल देने से मना कर दिया है और कहा है कि सीबीआई ने जो भी आरोप लगाए हैं, वे राजनीति से प्रेरित हैं। इसी मामले को लेकर पिछले दिनों माकपा ने बुजुर्ग नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंदन को ‘सतर्क’ किया था। यह मामला पोलित ब्यूरो की बैठक में दो बार आ चुका है। पहली बार तब आया था, जब प्रकाश कारात महासचिव हुआ करते थे। तब विजयन को पाक-साफ मानते हुए कारात ने चुनौती दी थी कि क्या कोई व्यक्ति यह साबित कर सकता है कि विजयन ने इस डील में पैसा बनाया?
पिनराई विजयन की संगठन पर खासी पकड़ रही है। 72 साल के विजयन का 16 साल से पार्टी पर नियंत्रण बना हुआ है। वे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली थिय्या समुदाय से आते हैं। वे 1996 से 1998 के बीच कुछ समय के लिए केरल के ऊर्जा मंत्री रहे। उसी दौरान वे भ्रष्टाचार के आरोप के घेरे में आए। यह आरोप तीन पनबिजली परियोजनाओं के आधुनिकीकरण के लिए एक कनाडाई कंपनी एसएनएस लेवालीन को ठेका दिए जाने से संबंधित था। एसएनएस लेवालीन कंपनी के अलावा आरएमपी नेता टीपी चंद्रशेखरन की हत्या जैसे मुद्दों को लेकर उनकी छवि प्रभावित हुई है। पूर्व माकपा नेता चंद्रशेखरन की 2011 में कोझिकोड में हत्या कर दी गई थी, जब वे पार्टी के राज्य सचिव थे। पुराने विवादों से लेकर हाल के गीता गोपीनाथ प्रकरण को लेकर विजयन ने टिप्पणी की, ‘यह महज लोगों की सोच और धारणा है।’