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आयकर की आंच से तपती किसानों की धरती

राज्य की नई राजधानी बनाने के लिए ली गई जमीन के बदले मिले मुआवजे पर टैक्स मांग रही है सरकार
आयकर नोटिस के खिलाफ धरने पर किसान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अघोषित आय को घोषित करने के बार-बार दिए जा रहे अल्टीमेटम का देश के दूसरे इलाकों में असर हो या न हो लेकिन छत्तीसगढ़ में नया रायपुर के विस्थापित लगभग 300 किसानों पर इसका असर दिखने लगा है। इन किसानों को आयकर विभाग ने नोटिस देकर पूछा है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अधिग्रहीत जमीन के बदले मिले मुआवजे की भारी भरकम रकम का हिसाब आयकर कार्यालय में आकर दें। ऐसे में परेशान किसान नोटिस लेकर दर-दर भटक रहे हैं। नया रायपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी (एनआरडीए) के अफसर उन्हें समझा रहे हैं कि कुछ नहीं होगा, सरकार आयकर विभाग से बात करेगी। हालांकि किसानों की बेचैनी देखकर राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर इन किसानों को कैपिटल गेन टैक्स के दायरे से बाहर रखने का आग्रह किया है। इस पत्र के मुताबिक वित्त मंत्री को बताया गया है कि चूंकि नया रायपुर पुराने रायपुर नगर निगम सीमा से 8 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर है जिसके चलते आयकर अधिनियम की धारा 2(14) के अंतर्गत नया रायपुर की कृषि भूमि पर कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए। इसी तरह आयकर अधिनियम की धारा 10(37)के प्रावधान के अनुसार कृषि भूमि का अधिग्रहण राज्य सरकार द्वारा नया रायपुर के विकास के लिए किया गया। इस स्थिति में भी किसान को मिले मुआवजे पर कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए। बहरहाल केंद्रीय वित्त मंत्रालय से इस बाबत न तो आयकर विभाग को और न ही राज्य सरकार को कोई दिशा-निर्देश मिले हैं। इधर आयकर के चीफ कमिश्नर केसी घुमारिया की यदि मानें तो एनआरडीए और विस्थापित किसानों के बीच पिछले दस साल में साढ़े चार सौ करोड़ रुपये के ट्रांजेक्शन हुए हैं। हमने उन किसानों को पत्र लिखकर यही पूछा है कि क्या एनआरडीए रायपुर से प्राप्त राशि के बाद आयकर अधिनियम के कैपिटल गेन के अनुसार टैक्स का भुगतान किया है? यदि किया है तो चालान की कॉपी पेश करें और यदि नहीं किया है तो कैपिटल गेन टैक्स नहीं देने का कारण स्पष्ट करें। विभाग ने किसानों से यह भी पूछा है कि जिस वर्ष आपने एनआरडीए रायपुर के साथ ट्रांजेक्शन किया है उस वर्ष का रिटर्न फाइल किया है या नहीं। घुमारिया ने आउटलुक से कहा कि जिन किसानों की जमीन 2013 के बाद अधिग्रहीत होकर मुआवजा मिला है वे इस दायरे में नहीं आएंगे

क्योंकि 2013 में नया जमीन अधिग्रहण बिल आ गया था। घुमारिया ने कहा कि हमने नोटिस हवा में जारी नहीं किया है। इन किसानों के साथ कुछ व्यापारी भी शामिल हैं जिनकी जमीन गई और मुआवजा मिला है।

 

दरअसल, जिन किसानों को नोटिस मिले हैं उसमें अधिकांश की जमीन वर्ष 2005 से 2010 के बीच अधिग्रहीत कर उन्हें मुआवजा दिया गया। एनआरडीए ने जब मुआवजा राशि दी तो पहले इन किसानों से पैन कार्ड बनवा लिए। पैसा टीडीएस काटकर चेक से दिया। जिन पैनकार्ड नंबरों में आयकर विभाग को भारी भरकम ट्रांजेक्शन दिखा उन सबको नोटिस जारी कर दिया। चार्टर्ड एकाउंटेंट राकेश ढोडी का कहना है कि एसेसमेंट इयर 2010-11 के पहले किसानों के किसी भी ट्रांजेक्शन पर विभाग को नोटिस देने का अधिकार ही नहीं है, यह अवैध है। लेकिन यदि किसान की जमीन अधिग्रहीत पहले कर ली हो और मुआवजा 31-03-2010 के बाद दिया गया हो और किसान की जमीन नगर निगम की सीमा से 8 किलोमीटर के दायरे में आ रही हो तो किसान को कैपिटल गेन टैक्स देना होगा। इसमें वित्त मंत्रालय भी कुछ नहीं कर सकता। दूसरी स्थिति यह भी है कि यदि किसान ने इसी मुआवजा राशि से कहीं अन्यत्र जमीन खरीद ली हो तो भी वह इस टैक्स से बच सकता है।

दूसरी तरफ नया रायपुर के आसपास के गांवों कोटराभाट, फलौद, कोटनी, तांदुल, कुहेरा, राखी, कयाबांधा, पौता, चीचा, सेंध, बरौदा, उपरवारा जैसे गांवों के किसानों से आउटलुक ने बात की तो उन्हें नोटिस मिलने के बाद पता चला कि आयकर विभाग नाम का कोई सरकारी विभाग भी होता है जिसे किसान को मिले मुआवजे का हिसाब देना होता है। कोटरा भाटा गांव के 51 वर्षीय किसान मस्तराम यादव की आठ एकड़ जमीन सरकार ने दो किस्तों में ली। पहले पांच एकड़ आपसी सहमति से और दूसरी एक एकड़ 26 डिसमिल अनिवार्य भू-अर्जन से। 2007-08 में इस जमीन का मुआवजा 29 लाख रुपये मिला। इससे उसने दूसरे गांव में 10 लाख रुपये की जमीन खरीद ली और बाकी पैसे बच्चों की शादी ब्याह, पढ़ाई, लिखाई, गाड़ी खरीदी में खर्च कर दिए। इसी किसान की दूसरी जमीन एक  एकड़ 26 डिसिमिल सरकार ने अनिवार्य भू-अर्जन के तहत ली जिसकी रजिस्ट्री 5 अगस्त, 2011 को हुई और उसका 12 लाख 75 हजार रुपये उसे मिला। इसी राशि को लेकर आयकर विभाग ने नोटिस देकर मस्तराम से हिसाब-किताब पूछा है। चूंकि यह ट्रांजेक्शन 31 मार्च, 2010 के बाद और 2013 के पहले का है। इसलिए इस किसान को अनिवार्यत: टैक्स देना होगा।

इसी गांव के 70 वर्षीय किसान शाखाराम यादव की 20 एकड़ जमीन गई है। 29 जनवरी, 2010 को हुई रजिस्ट्री के बदले उसे मिले 25 लाख 31 हजार रुपये का हिसाब आयकर विभाग ने उनसे पूछा है। अभी इस किसान पर साहूकार का 70 हजार रुपये कर्ज है। मुआवजा राशि खर्च हो चुकी है। इस किसान का आरोप है कि जिस जमीन पर इसका घर बना हुआ था उसे भी सरकार ने ले लिया है और किसी प्राइवेट स्कूल संचालक को उसकी जमीन अलॉट कर दी है। इसी गांव के सरपंच भगत यादव की पौने दो एकड़ जमीन नई राजधानी के लिए गई है। नोटिस उन्हें भी मिला है लेकिन उनके पास पैसा नहीं है बल्कि उन पर भी निजी फाइनेंस कंपनी का एक लाख रुपये कर्ज हैं।

नई राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति के सचिव  कामता प्रसाद रात्रे की यदि मानें तो 26 गांवों के लगभग 2,000 किसानों को इस तरह के नोटिस जारी किए गए हैं। उन्होंने आउटलुक को बताया कि विस्थापित किसानों को न्याय दिलाने के लिए हम जैसे-तैसे आंदोलन कर ही रहे थे कि आयकर विभाग नोटिस ने नई मुसीबत खड़ी कर दी।

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