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जमीन खरीद, सीमा पर बाड़बंदी

घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर 180 वर्ग किलोमीटर जमीन खरीदकर फ्लोटिंग एल्यूमिनियम बाड़ लगाने की तैयारी
भारत बांग्लादेश बॉर्डर पर चौकसी

अधिग्रहण के बदले जमीन की खरीद। बांग्लादेश सीमा के बचे हिस्सों की बाड़बंदी करने के लिए रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय जमीन खरीदेंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है। नियमों के तहत रक्षा, रेल, संचार आदि के काम के लिए जमीन की जरूरत पडऩे पर राज्य सरकारें अधिग्रहण कर केंद्र सरकार को दिया करती थीं लेकिन बंगाल की ममता बनर्जी सरकार द्वारा पिछले पांच साल से

इस मामले में हाथ खड़े करते रहने के चलते केंद्र ने सेना को रक्षा मंत्रालय के जरिये जमीन खरीदने के लिए हरी झंडी दे दी है। साथ में सीमा सुरक्षा बल है, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के जरिये जमीन खरीदेगा।

जमीन हासिल करने के लिए क्‍या रास्ता अक्तयार किया जाएगा- इसको लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच खींचतान चल रही थी।  इस खींचतान के चलते बांग्लादेश सीमा पर कई इलाकों में बाड़बंदी का काम रुका हुआ था। 2011 में सत्‍ता में आने के बाद ममता बनर्जी की सरकार ने नीतिगत फैसला लेकर किसानों से जमीन अधिग्रहण पर रोक लगा दी थी। किसी भी तरह के इस्तेमाल के लिए सीधे किसानों से जमीन खरीदना जरूरी कर दिया था। लेकिन पिछले पांच वर्षों में इस मुद्दे पर राज्य सरकार को कई जगह बैकफुट पर जाना पड़ा। जमीन अधिग्रहण नहीं करने के फैसले के चलते बंगाल में न सिर्फ रक्षा मंत्रालय की जरूरतें अधर में लटक गईं, बल्कि हाईवे निर्माण, रेल परियोजनाएं, उद्योगीकरण- सभी से संबंधित काम अटक गए।

इस दफा दूसरी बार सरकार बनाने के बाद मुक्चयमंत्री ममता बनर्जी का मूड भी बदला हुआ लग रहा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ सहयोगात्मक रुख दिख रहा है। केंद्र सरकार का भी रुख कुछ ऐसा ही है। हाल में केंद्र और राज्य के प्रतिनिधियों के बीच विभिन्न मंचों पर जिन मुद्दों को लेकर बातचीत हुई, उनमें सीमा पर बाड़बंदी के लिए जमीन का मसला अहम रहा। तय हुआ कि रक्षा मंत्रालय बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में जरूरत लायक जमीन खरीदेगा। इसके लिए केंद्र सरकार भुगतान करेगी। ममता बनर्जी की सरकार जमीन की बंदोबस्त करेगी।

बंगाल में भारत और बांग्लादेश सीमा पर आठ जिलों में 180 किलोमीटर बाड़बंदी होनी है। इसी काम के लिए जमीन की खातिर केंद्र और राज्य सरकार के बीच कशमकश चल रही थी। इस मसले पर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री को तीन पत्र लिखे। जवाब था- 'बीएसएफ सीधे ही जमीन खरीदे।  केंद्र का तर्क था- 'राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है इसलिए जमीन का इंतजाम राज्य सरकार करे।  2014 के जमीन अधिग्रहण अधिनियम से जटिलता और बढ़ी। मुख्यमंत्री सचिवालय के एक अधिकारी के अनुसार, 'अब केंद्र और राज्य- दोनों ही इस मामले में नरम पड़े हैं। राज्य सरकार बाड़बंदी के लिए जमीन चिह्निïत करेगी और केंद्रीय मंत्रालय खरीदेंगे। सीमा सुरक्षा बल के डीआईजी विजय राज के अनुसार, 'हम लोग जल्द ही प्रस्ताव राज्य सरकार को सौंपेंगे। उनका कहना है, 'हम जमीन नहीं खरीद सकते। अब आठों जिलों के जिलाधिकारियों को जमीन चिह्निïत करने और खरीदवाने के काम में लगाया गया है। इसलिए हम तैयार हुए हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार, 'जाली नोटों के प्रवाह और मवेशियों की तस्करी की समस्या को रोकने के लिए केंद्र भारत-बांग्लादेश सीमा को सील करना जरूरी है। उनके अनुसार, 'हम भारत-बांग्लादेश सीमा को सील करने पर विचार कर रहे हैं, जिससे कि जाली नकदी और गौ-तस्करी की समस्या को रोका जा सके। गृह मंत्री के अनुसार, 'बांग्लादेशी घुसपैठियों के मामले में अब तक हमने कोई कदम नहीं उठाया है। लेकिन हम चाहते हैं कि बांग्लादेश के लोग बांग्लादेश में रहें और भारतीय भारत में रहें। बांग्लादेश हमारा पड़ोसी है और हमारा उनके साथ बहुत मित्रतापूर्ण संबंध है और हम इसे बनाए रखेंगे।

जमीन मिल जाने के बाद बाड़बंदी शुरू की जाएगी। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर क्रलोटिंग एल्यूमीनियम बाड़ लगाने की तैयारी की जा रही है। हलके और कम वजन वाली इस बाड़ को लगाने का जिक्वमा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) को सौंपा गया है। इस प्रोजेञ्चट की शुरुआत नदी वाले भारत-बांग्लादेश की सीमा पर गोजाडांगा क्षेत्र से की जाएगी। सीमा सुरक्षा बल के महानिरीक्षक (दक्षिण बंगाल फ्रंटियर) संदीप सालुंके ने बताया कि सीमा पर सुरक्षा की दृष्टि से इस परियोजना को अमलीजामा पहनाने के लिए उत्‍तर 24 परगना जिले को चुना गया है। प्रयोग सफल रहने पर इसे सीमा क्षेत्र के अन्य इलाकों में भी लगाया जाएगा। सीमा क्षेत्र के नदी वाले इलाकों की निगरानी करना चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस बाड़ के लग जाने से काफी हद तक सीमा की सुरक्षा दुरुस्त हो सकती है। इन बाड़ों को नदी वाले सीमा क्षेत्र में कंक्रीट और सीमेंट पर धातु के डंडों के सहारे लगाया जाएगा।

भारत-बांग्लादेश के बीच 4096 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। इनमें पश्चिम बंगाल में 2217 किलोमीटर सीमा है, जबकि असम में 262 किमी, त्रिपुरा में 856 किमी, मिजोरम में 180 किमी तथा मेघालय में 443 किमी की सीमा है। भारत-बांग्लादेश की इस लंबी सीमा में मात्र 3406 किलोमीटर पर ही तार के बाड़ लगाए गए हैं। इसमें स्थल व नदी के इलाकों के साथ-साथ कई दुर्गम स्थान भी हैं। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकारी इस बात को स्वीकार करते हैं कि बिना बाड़ के स्थल और लंबी नदी की सीमा के कारण सीमा पार से अवैध गतिविधियां रोकने में कठिनाई आ रही है। 

 

सीमा पर अदृश्य लेजर वॉल

सीमा पार से अवांछित घटनाएं रोकने के लिए सीमा सुरक्षा बल और रक्षा मंत्रालय ने कई इलाकों में अदृश्य लेजर वॉल बनाने की परियोजना शुरू की है। भारत-पाकिस्तान और भारत-बांग्लादेश सीमा पर फिलहाल इसे आठ दुर्गम जगहों पर सक्रिय किया गया है, लेकिन धीरे-धीरे संख्या बढ़ाई जाएगी। जल्द ही ऐसे 45 सिस्टम पूरी तरह काम करने लगेंगे। इन लेजर वॉल सिस्टम के पूरी तरह काम शुरू करने की दशा में पाकिस्तान और बांग्लादेश से जुड़ी सीमा पर संवेदनशील क्षेत्रों में हाईटेक निगरानी मुमकिन हो पाएगी।

सीमा पर लेजर वॉल लगाने की परियोजना के दायरे में जम्‍मू -कश्मीर, पंजाब, गुजरात और पश्चिम बंगाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा है। दरअसल इन इलाकों में नदियों, घाटियों समेत दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सीमापार से होनेवाली घुसपैठ एक बड़ी समस्या बन चुकी है। लेजर दीवारों के आसपास किसी तरह की अवांछित गतिविधि दिखने पर यह सिस्टम उसे डिटेक्ट कर लेगा। अगर कोई इस लेजर वाल को पार करने की कोशिश करेगा तो तेज आवाज में सायरन बजने लगेगा। सेंसर के माध्यम से सेटेलाइट आधारित सिग्नल कमांड सिस्टम के जरिये इस पर निगरानी रखी जाएगी। यह सिस्टम रात के अंधेरे के अलावा कोहरे के दौरान भी यह निगरानी करने में सक्षम होगा। किसी तरह की घुसपैठ होने की दशा में बीम का फोकस बिखर जाता है। ऐसा होने पर लेजर कलेक्टर लेजर बीम को पूरी तरह से रिसीव नहीं कर पाता है। ऐसी दशा में माइक्रोप्रोसेसर से जोड़ा गया अलार्म सिस्टम तत्काल यह सिग्नल जारी करता है कि लेजर बीम के बीच में कोई बाधा पैदा हो रही है, जो किसी घुसपैठ की वजह से हो सकती है।

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