रालोद, सपा और बसपा के गठबंधन की आपको क्या वजह लगती है?
देखिए पॉलिटिक्स में सोशल मोबलाइजेशन होते रहते हैं। यह सामाजिक गठजोड़ है। आज दलित हो या किसान, दोनों पर सरकार की मार पड़ रही है। उन्हें महसूस हो रहा है कि हम मुख्यधारा में नहीं हैं। तो, नीचे से सभी पार्टियों पर दबाव बना है। राष्ट्रीय परिदृश्य में देखें तो भाजपा का दबदबा बढ़ रहा है। ऐसे में लाजिमी है कि विपक्ष भी तैयारियां करेगा।
गठबंधन की नाकाम कोशिशें विधानसभा चुनाव से पहले भी हुई थीं। क्या गोरखपुर और फूलपुर में कामयाबी से रुख बदला है?
आज संविधान पर हमला हो रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है। ऐसे में तो पार्टियों को अहं और स्वार्थ को छोड़कर साथ काम करना ही पड़ेगा।
सपा पश्चिमी यूपी में कभी उतनी मजबूत नहीं रही। तो, क्या कैराना सीट आपको सौंपने का एक कारण यह भी रहा है?
हमने बातचीत की। दोनों का यह मानना था कि भाजपा को हराना है और चौधरी चरण सिंह की जो विरासत थी, उनका जो समीकरण था, उसे सफल बनाना है। इन दो पहलुओं पर मेरी और अखिलेश जी की बातचीत हुई। फिर जीतने के लिहाज से समझौता यही बना कि नूरपुर से समाजवादी पार्टी लड़ेगी। हमारे लिए दोनों ही सीट महत्वपूर्ण हैं।
चौधरी साहब का मूल मंत्र जाट-मुसलमान गठजोड़ था। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जो परिस्थितियां बनीं, उसके बाद दोनों को कैसे साथ लाएंगे?
जहां चुनाव हो रहा है, यही क्षेत्र प्रभावित था। कोई भी झगड़े में रहना पसंद नहीं करता है। ठीक है उतार-चढ़ाव हुए और आपस में विश्वास कमजोर हुआ, लेकिन अब दोबारा बन रहा है। राजनीति से चीजें प्रेरित होती हैं। जो ध्रुवीकरण हुआ, उसके पीछे राजनीति थी।
लोगों का कहना था कि जयंत जी कैराना से लड़ना चाहते हैं। यहां उम्मीदवार चयन के पीछे कोई खास सोच रही?
एक हाथ से ताली बजती नहीं है और समीकरण बनाने पड़ते हैं। यह हमारे कार्यकर्ताओं को भी पूरी तरह से एहसास है।
हुकुम सिंह ने विधानसभा चुनाव के पहले कैराना में पलायन को मुद्दा बनाने की कोशिश की। ऐसे मुद्दों पर आप क्या सोचते हैं?
देखिए, यह शॉर्टटर्म का रहता है। कभी-कभी सफलता मिलती है। चुनाव किसी एक मुद्दे पर नहीं होता। भाजपा को इतना बड़ा बहुमत पाने के कई कारण थे। ध्रुवीकरण उनमें से एक था, लेकिन हम कहें कि भाजपा ने पलायन का मुद्दा उठाया तो पूरे प्रदेश में उसका लाभ मिल गया तो ऐसा भी नहीं है।
कैंडिडेट तो मुसलमान है, लेकिन जाटों ने बड़े पैमाने पर पिछले दो चुनावों में भाजपा को वोट किया, आप उन्हें वापस ला पाएंगे?
देखिए, मैं किसान की बात करूंगा। जाट ज्यादातर किसान हैं। बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा है। किसानों की हालत इतनी दयनीय है कि जहां यह चुनाव हो रहा है, वह गन्ने का बेल्ट है। मंत्री सुरेश राणा भी इसी जिले के हैं। लगभग 11 हजार करोड़ रुपये का यूपी में बकाया हो गया, तो हमारे लिए वह बड़ा मुद्दा है। ये लोग जिन्ना की बात कर रहे हैं और हम गन्ने की, और गन्ने का मुद्दा जिन्ना पर जीतेगा।
गठबंधन में युवा पीढ़ी (जैसे आप और अखिलेश) की कैमेस्ट्री ने कितना काम किया?
नए लोग निकल कर आ रहे हैं। यह ठीक है कि हम सभी पहले से ही स्थापित हैं। हमें प्लेटफॉर्म मिला। उससे बाहर भी देखेंगे तो निचले स्तर पर प्रधानी के चुनाव में नए लोग निकल कर आ रहे हैं।
यह धारणा रही कि लोकदल किसी के भी साथ जुड़ जाता है। भाजपा के साथ गठजोड़ किया, अब दूसरी तरफ हैं?
भाजपा के साथ चुनाव लड़े नौ साल से ऊपर हो चुके हैं। यह पहले वाली भाजपा नहीं है। इनके साथ अब भविष्य में भी कोई काम करने का मन नहीं है।
भाजपा के कई सहयोगी एक-एक कर अलग हो रहे हैं। आपका इस पर क्या कहना है?
उनसे खुद उनका परिवार नहीं संभल रहा। यूपी में ही राजभर जी बोलते रहते हैं, सविता बाई पार्टी विरोधी स्टैंड ले रही हैं। जब उनसे अपना परिवार ही नहीं संभल रहा तो कोई क्यों जुड़ेगा।
2019 के चुनाव में कौन-से चेहरे दिखते हैं, जो नरेंद्र मोदी या भाजपा के मुकाबले खड़े दिखाई देते हैं?
देश में 125 करोड़ लोग हैं। हमारे देश में बहुत समझदार लोग हैं। यह कोई कव्वाली नहीं है कि मोदीजी अच्छा भाषण देते हैं तो उनकी ही तरह का कोई उस्ताद खड़ा कर दें। लड़ाई विचारधारा की है और जब विचारधारा आपकी ठीक रहेगी तो आपके पास विकल्प बहुत खड़े हो जाएंगे।
क्या आपको लगता है कि दलित और जाट एक साथ वोट करेंगे?
बसपा का अभी औपचारिक फैसला नहीं आया है। लेकिन उसके लोग जमीन पर काम कर रहे हैं। आज यह भावना भी जुड़ गई कि हमलोग साथ हैं, तो फिर कहीं अत्याचार होने कौन देगा।