खबर क्या थी, साक्षात वायरल होता वीडियो ही था। सीन कुछ यों था कि एक पेड़ था। पेड़ की डाल पर एक बंदा एकदम उलटा लटक रहा था। ठीक बेताल की तरह। यों वह बेताल नहीं था, क्योंकि उसके गले में एक कैमरा भी लटक रहा था। विलोम मुद्रा में बेताल की अदा से लटक वह विचित्र जीव चित्र ले रहा था। उस चित्रजीवी के ऐन नीचे भी एक बंदा था जो निश्चित ही विक्रम नहीं था। विवाह के माध्यम से जीवन के महान अनुत्तरित प्रश्नों की खोज में जुटा हुआ वर था। वर अकेला नहीं था। प्रश्न हेतु प्रस्तुत होने जा रही वधू उसके साथ थी। अद्भुत ओज और खबरिया खोज से भरा पोज था यह। द्वाराचार से पूर्व गजब नवाचार।
नवाचार के ऐसे विकट नमूने और आज के नवांकुरों की लवातुर टीनभावना देख मैं हीनभावना से भरा पड़ा हूं। कुछ नया न कर पाने की कसक गला मसक रही है। वही मुंह में पान का बीड़ा ठूंसे, कमर में पिलपिलिया-सी कटार खोंसे बौड़म की तरह घोड़े पर बैठे और पहुंच गए आम हिंदुस्तानी दूल्हों की नाईं दरवाजा-ए-इम्तिहान पर। हें हें करते वरमाला डाली और दफ्तर की आम फाइलों की तरह हो गए जनता के अवलोकनार्थ प्रस्तुत!
मेरे पास गरियाने के लिए अपनी आउटडेटेड आत्मा के अतिरिक्त कुछ नहीं है। सो, मैं आत्मा पर सवार हो जाता हूं। ऐन वैसे ही जैसे बेताल, विक्रम के कंधे पर।
मैं प्रश्न करता हूं, “बता, तूने मुझे भी ऐसा ही कुछ नया और अनोखा करने के लिए जगाया क्यों नहीं? मैं भी कुछ करता और इस सोशल चरचराटे में शामिल हो अमर हो जाता।”
मेरे धिक्कार पर धक्क हो आत्मा समझाती है, “तू नहीं समझता राजन। तब धाक के लिए नवाचार व्यर्थ था क्योंकि तब बाजार नहीं था। तू कैमरामैन को उलटा लटकाकर या उसे पानी में ही क्यों न डुबोकर फोटो खिंचवा भी लेता, तो भी कुछ खास नहीं होने वाला था। एलबम में तेरा एक फोटो और चस्पां हो जाता और इतिहास बन वहीं दफन हो जाता। अब समय बदल गया है राजन। तू अभागा टेलीग्राम के युग का जीव है और अब युग इंस्टाग्राम का है। इन दो युगों के बीच बाजार आ गया है और अब वही सब तय करता है। तेरी शादी किससे हो, कब हो और शादी में क्या-क्या हो, यह बात तेरे फूफाजी नहीं, बाजार तय करता है क्योंकि बाजार अब रिश्तों से बड़ा है। अगले के घर में भले शौचालय की व्यवस्था न हो लेकिन दुल्हन को हेलीकॉप्टर में लाने की पूरी व्यवस्था है इस बाजार के पास। रस्मों को इवेंट में बदला है इसने राजन।
‘कुछ कुछ होता है’ को ‘सब कुछ हो जाने दो’ में बदल देने का जंतर प्री-वेडिंग के बाजार ने ही दिया है। याद कर, बारातियों का स्वागत पान पराग से करने से शुरू हुआ था ये बाजार और आज स्वैग से सबका स्वागत करने जैसे नित नवाचार का आह्वान कर रहा है।” आत्मा चुप हो जाती है लेकिन मुझे प्रश्न का उत्तर मिल गया है। मैं पुनर्बुद्ध हो विरुद्ध भी अब बिलकुल साफ देख पाता हूं। एकदम शुद्ध सत्य। बाजार ने हम सबको उलटा लटका रखा है और खुद अपना उल्लू सीधा कर रहा है। हम कैमरामैन की तरह उलटा लटके दांत निपोर खुश हो रहे हैं और बाजार ठहाके मार रहा है। यह और बात है कि हमारे दांत तो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर दिख रहे हैं, मगर बाजार के ठहाके नजर नहीं आ रहे, क्योंकि बाजार के दांत सिर्फ और सिर्फ खाने के हैं। दिखाने वाले दांत तो हमारे आपके पास ही हैं ना!