नैसर्गिक सौंदर्य हिमाचल प्रदेश की थाती रही है। देश-दुनिया के पर्यटक इसी सौंदर्य के कारण खिंचे चले आते हैं। लेकिन, पर्यटन के बढ़ते अवसर को भुनाने के लिए जिस तरह से प्रदेश में अवैध निर्माण किए गए वह आज इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन गए हैं। इसके बावजूद सरकार चेतती नजर नहीं आ रही है। यही कारण है कि एनजीटी, हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दर्जन भर आदेश के कारण बीते छह महीने से अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने को मजबूर हुई सरकार इससे बच निकलने का रास्ता तलाशने में जुटी है।
प्रदेश की नगर नियोजन व शहरी विकास मंत्री सरवीण चौधरी ने आउटलुक को बताया कि पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार ने टाउन ऐंड कंट्री प्लानिंग (टीसीपी) एक्ट में संशोधन किया था, जिसे अदालत ने निरस्त कर दिया था। इस बावत फिर से हाइकोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की गई है। वीरभद्र सिंह सरकार ने अवैध निर्माण वाले 1,65,339 भवनों को नियमित करने के लिए संशोधन किया था। इसके अलावा अनियमित भवनों को नियमित करने के लिए सरकार एक रिटेंशन नीति भी लाई थी। उसे भी हाइकोर्ट ने निरस्त कर दिया। इस नीति के तहत करीब 8,700 भवन मालिकों ने अपने मकानों को नियमित करने के लिए आवेदन दे रखे हैं। एनजीटी के एक फैसले के मुताबिक शिमला में ढाई मंजिला मकान ही बन सकते हैं। सरकार ने इन दोनों फैसलों को लेकर भी समीक्षा याचिका दायर की है।
टीसीपी अधिनियम के बड़े पैमाने पर उल्लंघन के सैकड़ाें मामले हैं। जहां सात कमरों का निर्माण करने की मंजूरी थी वहां 42 कमरे बना दिए गए। जहां दो मंजिल का नक्शा पास था वहां चार मंजिल खड़ी कर दी गई। टीसीपी निदेशक राजेश्वर गोयल ने बताया कि अधिनियम का उल्लंघन कर बने होटलों और इमारतों का कोई सही आंकड़ा नहीं है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश में नौ हजार से अधिक निर्माण ऐसे हैं जहां टीसीपी अधिनियम का उल्लंघन हुआ है। भ्रष्टाचार किस कदर हावी है इसे एनजीटी के एक फैसले से समझा जा सकता है। इस फैसले में बताया गया है कि कसौली में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने मौके पर गए बिना ही होटल चलाने की मंजूरी दे दी थी।
ये हालात रातोरात पैदा नहीं हुए हैं। बीते ढाई दशक से सत्ता के संरक्षण में अवैध निर्माण जारी हैं। प्रदेश की राजधानी शिमला को अंग्रेजों ने 16 हजार की आबादी के हिसाब से बसाया था। 2011 की जनगणना के अनुसार इस शहर की आबादी दो लाख 36 हजार के करीब थी जो आज बढ़कर चार लाख से ज्यादा होने का अनुमान है। इन वर्षों में जिस रफ्तार से आबादी बढ़ी, उस हिसाब से संसाधन नहीं बढ़े। पर्यटन के अवसर को भुनाने के लिए अवैध तरीके से बने होटल और गेस्ट हाउस की कतार लग गई।
शिमला के रिहायशी इलाकों में सैकड़ाें अवैध गेस्ट हाउस चल रहे हैं। राजधानी में पेयजल का भीषण संकट पैदा होने का एक कारण यह भी है। इन गेस्ट हाउसों में ज्यादातर बुकिंग ऑनलाइन होती है। इसके कारण राज्य सरकार को यह पता नहीं चल पाता कि कितने लोग इन जगहों पर आकर ठहरते हैं। शिमला नगर निगम के पूर्व किमश्नर एच.एन कश्यप ने बताया कि जिन रिहायशी इलाकों में ढाई मंजिला भवन के निर्माण की इजाजत है, वहां लोगों ने चार-चार मंजिल बना रखी है। इनमें गैरकानूनी तरीके से गेस्ट हाउस चल रहे हैं। आपात स्थिति में ये अन्य भवनों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकते हैं।
राज्य के अन्य पर्यटन स्थलों मनाली, डलहौजी, खजियार, कसौली, कुल्लू, किन्नौर, भरमौर में भी अवैध तरीके से बनाए गए होटलों की भरमार है। जिला कुल्लू में मिनी इजरायल के नाम से मशहूर कसोल में हाइकोर्ट के आदेश पर जब होटलों की जांच की गई तो चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई। चरस के लिए मशहूर मलाणा के समीप कसोल और उसके आसपास के इलाकों में चल रहे 65 होटलों में से 42 के पास पर्यटन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मंजूरी नहीं थी। इसी तरह कांगड़ा में 151 होटल अवैध तरीके से चलते मिले। कसौली में तो सुप्रीम कोर्ट ने दर्जन भर होटलों को गिराने के आदेश तक दिए हैं। जिला कुल्लू में करीब 600 होटल और गेस्टहाउस पर एनजीटी के मामले दर्ज हैं।
प्रदेश के सिंचाई व जनस्वास्थ्य मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर के होटल और मनाली वैली रिसॉर्ट में अवैध निर्माण को प्रशासन ने हाल ही में गिराया है। इसके खिलाफ रमेश कुमार ने याचिका दाखिल की थी। उन्होंने बताया कि अभी भी मनाली में कई रसूखदार होटल मालिक नियमों से खिलवाड़ कर रहे हैं। अवैध निर्माण करने वालों के हौसले कितने बुलंद है इसका अंदाजा कसौली में एक मई को हुई घटना से लगाया जा सकता है। अवैध निर्माण करने वाले होटलों में कार्रवाई के दौरान नारायणी गेस्ट हाउस के मालिक विजय ठाकुर ने सहायक नगर नियोजक शैलबाला की गोली मारकर हत्या कर दी। सुप्रीम कोर्ट के खुद संज्ञान लेने के बाद इस मामले में कुछ अधिकारियों पर कार्रवाई की गई। लेकिन, उन बड़े नौकरशाहों और नेताओं पर कोई आंच नहीं आई जिनके संरक्षण में अतिक्रमण और अवैध निर्माण किए गए हैं।
प्रदेश में करीब 25 हजार अवैध निर्माण और अतिक्रमण की पहचान सरकार ने की है। मई में हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में राज्य सरकार ने माना है कि होटल, गेस्ट हाउस और होम स्टे समेत आधी इकाइयों में नियमों की अनदेखी कर निर्माण किए गए हैं। पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 2,907 होटल और गेस्टहाउस में से करीब 1,524 में अवैध निर्माण किए गए हैं। पर्यटन विभाग के मुताबिक राज्य में 2,907 होटल एवं गेस्ट हाउस, 1,220 होम स्टे इकाइयां और 703 रेस्तरां पंजीकृत हैं। इसके अलावा राज्य में 24,300 हेक्टेयर वन भूमि पर लोगों ने कब्जा कर रखा है। राज्य वन निगम ने ऐसे 1,464 लोगों की सूची तैयार की है जिन्होंने दस बीघा से ज्यादा वन भूमि पर अवैध कब्जे कर रखे है।
रमेश कुमार ने बताया कि पिछले ढाई दशकों में अतिक्रमण और अवैध निर्माण जिन मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की नाक तले हुए हैं जब तक उनकी जवाबदेही तय नहीं होती यह सिलसिला नहीं रुकेगा। असल में हिमाचल में पर्यटन उद्योग को काफी बढ़ावा मिलने के कारण होटल मालिकों ने मान लिया कि एक न एक दिन सारे निर्माण वैध हो जाएंगे।
पिछले ढाई दशक में प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकार रही है। 1993 से लेकर दिसंबर 2017 तक प्रदेश में तीन बार वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की तो दो बार प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार रह चुकी है। फिलहाल, जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में है। लेकिन नेताओं की जवाबदेही तय करने को लेकर सरकार गंभीर नजर नहीं आती। मंत्री सरवीण चौधरी ने इस संबंध में पूछे जाने पर आउटलुक को बताया, “यह अभी जांच का विषय है कि किन इलाकों में राजनेताओं की शह पर अवैध निर्माण हुए हैं।” उन्होंने बताया कि टीसीपी अधिनियम का उल्लंघन न हो इसको लेकर अधिकारियों को हिदायतें दी गई हैं। अब क्लर्क से लेकर सचिव तक जो भी गलत करेगा उसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी।
इस बीच, अवैध निर्माण के खिलाफ प्रशासन की सख्ती ने कारोबारियों को नाराज कर दिया है। स्टेट फेडरेशन आफ होटल ऐंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष अश्वनी बाम्बा ने बताया कि एक तरफ सरकार पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने की बात कहती है और दूसरी ओर इस तरह कार्रवाई कर रही है जैसे पूरे प्रदेश में सिर्फ अवैध निर्माण ही हैं। हालांकि, होटल और गेस्ट हाउस मालिकों को राहत देने के लिए सरकार ने टीसीपी में कुछ संशोधन किए हैं। अब होटलों के उन्हीं हिस्सों को सील किया जाएगा जो अवैध तरीके से बनाए गए हैं। साथ ही लोग साल भर के भीतर खुद अवैध निर्माण गिराने का हलफनामा भी दे सकते हैं। ये संशोधन कितने वाजिब हैं, इसको लेकर भी विवाद शुरू हो गया है। इसने बीते साल मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले जयराम ठाकुर सरकार के लिए इधर कुआं, उधर खाई जैसे हालात पैदा कर दिए हैं।