मदर टेरेसा के प्रिय शब्द थे- ‘गॉड ब्लेस यू।’ मिलने वाले अगर कोलकाता के हुए तो वह बांग्ला में ही बात किया करती थीं। उपेक्षित और वंचित लोगों की सेवा ही उनका मिशन रहा। इसके लिए कहीं जाने या किसी के आगे हाथ फैलाने में उन्हें कभी हिचक नहीं रही। जब उन्होंने कोलकाता में उपेक्षित गरीबों के लिए ‘निर्मल हृदय’ आश्रम खोला था, तब उन्होंने गरीबों की मदद करने के लिए कैसे लोगों को प्रेरित किया, उसके बारे में एक किस्सा उनके द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी में काम करने वाले चाव से सुनाते हैं। अपने आश्रम के लिए कुछ ब्रेड मांगने वह कोलकाता के कालीघाट के एक कारोबारी के पास गईं। उसने न सिर्फ मना कर दिया, बल्कि उनके हाथ पर यह कहते हुए थूक दिया कि ‘यह ले जाओ।’ मदर टेरेसा ने दूसरा हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘इसे मैं अपने लिए रख लेती हूं। आप मेरे आश्रम के भूखे-पीड़ितों के लिए भोजन की खातिर व्यवस्था कर दें।’ उस व्यक्ति का दिल पसीज गया और उसने ताउम्र आश्रम के लिए मुफ्त में ब्रेड देने का वादा कर लिया।
ऐसे कई आख्यान हैं- मदर टेरेसा के विरोध के, जब उन्होंने कोलकाता में पीड़ित मानवता की सेवा करने का काम शुरू किया। रोमन कैथोलिक नन रहीं मदर टेरेसा 1929 में दार्जीलिंग पहुंचीं और वहां से कोलकाता। तब कौन जानता था कि आने वाले समय के लिए कोलकाता एक ‘संत’ तैयार कर रहा है। चार सितंबर को रोम के वेटिकन में पोप फ्रांसिस ने दुनिया भर से पहुंचे श्रद्धालुओं की मौजूदगी में मदर टेरेसा को ‘संत’ घोषित किया।
अरसे से उन्हें संत घोषित करने की प्रक्रिया चल रही थी। 1997 में उनके निधन के बाद से ही उन्हें संत घोषित करने की मांग उठने लगी थी। वेटिकन स्थित रोमन कैथोलिक चर्च ने 10 हजार से अधिक ‘संत’ घोषित किए हैं लेकिन उनमें मानवता की सेवा की प्रतिमूर्ति रहीं मदर टेरेसा सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व रही हैं। भारत से ही अब तक कुल छह संत घोषित किए जा चुके हैं- 1619 में गोवा के सेंट फ्रांसिस जेवियर, 1862 में मुंबई के सेंट गोंजालो गार्सिया (भारत में जन्मे पहले कैथोलिक), 2008 में केरल की सेंट अलफोंसो (पहली भारतीय महिला), 2014 में केरल की सेंट यूफ्रेसिया और केरल के ही सेंट कुरियाकोस सवारा।
इन सबमें मदर टेरेसा को संत घोषित करने की प्रक्रिया की दुनिया भर में चर्चा रही- न सिर्फ कैथोलिक चर्च में, बल्कि आम लोगों में भी। इसकी वजह साफ तौर पर उनके मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा दुनिया भर में चलाए जा रहे सेवा कार्य ही रहे हैं। संत घोषित करने की प्रक्रिया के तहत उनके दो ‘चमत्कारों’ को वेटिकन ने मान्यता दी। पहले ‘चमत्कार’ में कोलकाता के पास उत्तर 24 परगना में मोनिका बेसरा नाम की महिला के पेट का अल्सर उनके नाम की प्रार्थना करने से ठीक हो गया। दूसरा चमत्कार ब्राजील की एक महिला के ब्रेन ट्यूमर के ठीक होने का था। इन चमत्कारों को लेकर इस बात की बहस छिड़ी है कि इससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिल रहा है। मदर टेरेसा के जीवन काल में ही धर्मांतरण कराने समेत कई आरोप उठे, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि उनकी तरह कुष्ठ रोगियों से लेकर सड़कों पर फेंक दिए गए बीमार-असहाय-विपन्न लोगों की सेवा में जुटना आसान नहीं। उनका सादा जीवन किसी के लिए अनुकरणीय हो सकता है। उन्होंने जिंदगी भर तीन साड़ियों में काम चलाया, जिन्हें वह खुद धोया करती थीं। वह कहती थीं, दुनिया में हजारों-लाखों लोग हैं, जिनके पास तन ढंकने को कपड़े नहीं हैं। जब उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिला था तब उन्होंने आयोजन के बाद डिनर कार्यफ्म रद्द कर उसका धन गरीबों के लिए खर्च करने की अपील की थी।