आजकल सोशल मीडिया का जमाना है और हमारी सरकार चलाने वाले नेताओं में सोशल मीडिया पर रहने की होड़ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तो ट्विटर पर दुनिया के चुनिंदा लोगों में सबसे अधिक फालोवर हैं। ऐसे में शायद उनको अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का वह ट्वीट जरूर दिखना चाहिए था जिसमें उन्होंने अमेरिका के डेयरी किसानों के संकट की चिंता में कहा है कि कनाडा ने अमेरिकी डेयरी उत्पादों पर 270 फीसदी का सीमा शुल्क लगाया हुआ है। यह हमारे किसानों के लिए ठीक नहीं है। यह ट्वीट उन्होंने जी-7 देशों की बैठक के दौरान किया था। असल में दुनिया के अधिकांश देशों के साथ ही हमारे देश के दूध उत्पादक किसान भारी संकट में हैं क्योंकि दूध की कीमतों में भारी गिरावट आई है। ऐसे में किसानों की मदद के लिए सरकार को सामने आना चाहिए। कुछ राज्यों ने मदद की शुरुआत की है लेकिन केंद्र सरकार चुप्पी साधे बैठी है। वह भी तब जब देश में डेयरी सेक्टर के उत्पादन का कुल मूल्य छह लाख करोड़ रुपये को पार कर गया जो समस्त खाद्यान्न के कुल मूल्य से ज्यादा है। इससे यह अंदाजा लगता है कि कितनी बड़ी तादाद में किसान इससे प्रभावित हैं।
पिछले साल इन दिनों में डेयरी कंपनियां और सहकारी समितियां किसानों को भैंस के दूध की कीमत 44 रुपये प्रति लीटर तक दे रही थीं जो अब गिरकर उत्तर भारत में 32 रुपये प्रति लीटर पर आ गया है। गाय के दूध का दाम 20 रुपये लीटर पर आ गया है। महाराष्ट्र में यह 18 रुपये प्रति लीटर है। हालांकि, उपभोक्ता अभी भी दूध के लिए 50 रुपये लीटर या उससे अधिक दाम चुका रहे हैं। यह हालात भी तब हैं जब दूध आपूर्ति में कमी का सीजन है। दो माह बाद जब दूध आपूर्ति बढ़ने का सीजन शुरू होगा तब किसानों की क्या हालत होगी, इसका अंदाजा अभी से लगाया जा सकता है।
इस समय देश में स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का करीब दो लाख टन का स्टॉक है जबकि कुल उत्पादन ही पांच लाख टन का होता है। उसकी उत्पादन लागत 250 रुपये किलो आ रही है जबकि बाजार में कीमत 188 रुपये किलो चल रही है। डेयरी कंपनियां इसका निर्यात करने की भी स्थिति में नहीं हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 138 रुपये किलो चल रही है। नतीजा यह कि निजी कंपनियों ने दूध की खरीद कम या बंद कर दी है। ऐसे में दूध की कीमत में भारी कमी आ गई है।
गुजरात को-आपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (अमूल) के प्रबंध निदेशक आर.एस. सोढ़ी ने आउटलुक को बताया कि इस संकट के हल के लिए एसएमपी का बफर स्टॉक बनाया जाना चाहिए। इससे बाजार में कीमतों में सुधार होगा। सरकार पचास हजार टन एसएमपी का बफर स्टॉक बना सकती है। पहले भी नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) एसएमपी का बफर स्टॉक बनाता रहा है।
देश के कई हिस्सों में लोगों ने डेयरी को व्यावसायिक रूप दिया है लेकिन अब वह संकट में हैं। पंजाब में इसका काफी असर पड़ा है। वहां निजी क्षेत्र की एक बड़ी डेयरी कंपनी ने तो दूध खरीदना ही बंद कर दिया है क्योंकि वह सस्ता एसएमपी खरीद रही है। हालांकि, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र की सरकार ने किसानों की कुछ मदद की है। लेकिन पंजाब सरकार ने यह मदद भी नहीं की है।
पंजाब में पीक सीजन में डेयरी किसानों को पिछले वर्ष के पीक सीजन की तुलना में दूध का पांच से सात रुपये प्रति लीटर कम रेट मिल रहा है। प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) पंजाब के अध्यक्ष दलजीत सिंह का कहना है कि खाड़ी देशों को एसएमपी का निर्यात बंद होने से मिल्क प्लांट्स के पास पाउडर ओवर स्टॉक है। पाउडर से तैयार करके दूध लोकल मार्केट में बेचा जा रहा है, जिसके चलते डेयरी किसानों को रेट कम दिया जा रहा है और दूध खरीद भी 25 से 30 फीसदी तक घटा दी गई है। उनके मुताबिक 2002 में भी ऐसा ही संकट आया था। अब हालात 2002 से भी अधिक खराब हो गए हैं। केंद्र और पंजाब सरकार ने अभी तक किसी राहत पैकेज की घोषणा नहीं की है। हरियाणा सरकार ने अपने डेयरी किसानों को चार रुपये प्रति लीटर राहत पैकेज दिया है। राजस्थान में भी तीन, महाराष्ट्र में चार रुपये, केरल समेत कई राज्यों द्वारा डेयरी किसानों को तीन से चार रुपये प्रति लीटर राहत पैकेज का ऐलान किया है। पैकेज के सवाल पर पंजाब के सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा का कहना है कि उनकी सरकार दो लाख रुपये तक की कर्जमाफी कर रही है और इसके दायरे में पांच एकड़ तक के किसानों में बहुत से डेयरी किसान भी हैं। रंधावा ने केंद्र से फसलों की तर्ज पर दूध का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की मांग रखी है।
दिलचस्प यह है कि द गार्डियन अखबार की एक ताजा खबर में कहा गया है कि अमेरिका में डेयरी उत्पादों की कीमत गिरने से जहां डेयरी फार्म बंद हो रहे हैं वहीं किसानों की आत्महत्याएं भी बढ़ गई हैं। कनाडा सरकार की किसान हितैषी नीतियों के चलते कनाडा के डेयरी किसानों की आय काफी बेहतर है। हमारे देश में डेयरी किसानों को सरकार किसान ही नहीं मानती क्योंकि उनकी कोई लॉबी नहीं है जो राजनीतिक दबाव बनाए। लेकिन उसके सामने डोनाल्ड ट्रंप और जस्टिन ट्रूडो के उदाहरण हैं जो अपने डेयरी किसानों की बेहतरी के लिए व्यापार समझौते को दांव पर लगा रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री इन दोनों नेताओं के काफी करीब हैं लेकिन डेयरी किसान उनकी नीतियों से कितने प्रभावित होते हैं, यह देखना बाकी है।