जून की चिलचिलाती गर्मी, अंधड़ और धूल के गुबार में जब दिल्ली का दम घुटा जा रहा था, तभी दक्षिण दिल्ली की सात सरकारी कॉलोनियों के विकास के नाम पर हजारों पेड़ों पर कुल्हाड़ा चलने लगा। स्मॉग और धूल भरी आंधियों से बेहाल राष्ट्रीय राजधानी के सीने में यह टीस नई थी। पेड़ों को बचाने के लिए कई लोग और संगठन सड़कों पर उतर आए। यह नजारा 45 साल पहले उत्तराखंड के जंगलों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपकी गौरा देवी जैसी महिलाओं के ‘चिपको आंदोलन’ की याद जरूर दिला गया, लेकिन साढ़े चार दशकों में पर्यावरण को लेकर सिस्टम की यह बेपरवाही नए किस्म की है। व्यापक विरोध-प्रदर्शन और याचिकाओं के बाद दिल्ली हाइकोर्ट ने इन कॉलोनियों में पेड़ काटने पर चार जुलाई तक अंतरिम रोक लगा दी। हाइकोर्ट ने प्रोजेक्ट लागू कर रहे नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) से पूछा कि क्या दिल्ली 16,500 पेड़ों का कटना सहन कर पाएगी?
कमर्शियल विकास के नाम पर दिल्ली में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का मुद्दा उठते ही मामले के केंद्र बनाम दिल्ली सरकार, भाजपा बनाम आप, सिस्टम बनाम एनजीओ की बहस में उलझते देर नहीं लगी। इस बीच, 21 जून को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञप्ति गौर करने लायक है। विज्ञप्ति के अनुसार, दिल्ली में नए सिरे से विकसित की जाने वाली सात कॉलोनियों नौरोजी नगर, नेताजी नगर, सरोजनी नगर, मोहम्मदपुर, श्रीनिवासपुरी, कस्तूरबा नगर और त्यागराज नगर में सभी पेड़ नहीं काटे जाने हैं। वहां मौजूद कुल 21,040 पेड़ों में से सिर्फ 14,031 यानी करीब 66 फीसदी पेड़ों को काटा जाएगा। मंत्रालय ने हरे-भरे 14 हजार पेड़ों को “सिर्फ” करार दिया है!
इन्हें काटने के पीछे एनबीसीसी के सीएमडी एके मित्तल की दलील है कि 70 हजार कारों की बेसमेंट पार्किंग बनाने के लिए ऐसा करना जरूरी है। इन कॉलोनियों के बहुमंजिला इमारतों में तब्दील होने से ज्यादा जगह खाली बचेगी, जहां तीन गुना ज्यादा हरियाली रहेगी। मगर ऐसा कब होगा, यह भविष्य की बात है। मित्तल ने स्वीकार किया है कि नौरोजी नगर में काटे गए 1100 पेड़ों के बदले वहां सिर्फ 250 पेड़ लगाए गए। दिल्ली सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग से उसे नौरोजी नगर और नेताजी नगर में कुल 3600 पेड़ काटने की अनुमति मिली है और नियमों का पूरा पालन किया जा रहा है।
इस मुद्दे पर चौतरफा आलोचनाओं से तिलमिलाए आवास और शहरी मामलों के राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि दिल्ली की सरकारी कॉलोनियों में पेड़ों की भरपाई के प्रयासों की अनदेखी कर भ्रम फैलाया जा रहा है। पुरी का दावा है कि कटने वाले पेड़ों के एवज में 10 गुना ज्यादा पेड़ लगाए जाएंगे। सातों कॉलोनियों के पुनर्विकास के बाद हरियाली तीन गुना बढ़ेगी। हालांकि, ये दावे दिल्ली के पर्यावरण को लेकर चिंतित लोगों के गले नहीं उतर रहे।
अरबन प्लानिंग के जानकार दुनू रॉय का कहना है कि असल खोट शहरी विकास को लेकर अपनाई जा रही नीति और नीयत में है। दिल्ली की सरोजनी नगर, किदवई नगर जैसी कॉलोनियों को सरकारी बाबुओं के लिए डेवलप करने की बात कही जा रही है, जबकि परियोजना का बड़ा हिस्सा कमर्शियल रियल एस्टेट की भेंट चढ़ेगा। दिल्ली में जमीन की मालिक डीडीए के लिए रियल एस्टेट से होने वाला मुनाफा अहमियत रखता है लेकिन इससे शहर के पर्यावरण और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पड़ने वाले असर से कोई सरोकार नहीं है। दिल्ली में कटे हजारों पेड़ों की भरपाई यमुना किनारे वृक्षारोपण से होगी, यह सोचना ही बेमानी है।
पेड़ों की कटाई के अलावा रिहायशी इलाकों में कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बनाने की योजना पर भी कई सवाल उठ रहे हैं। गौरतलब है कि नौरोजी नगर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर बन रहा है। इसके लिए न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और भारत सरकार के बीच समझौता हुआ है। सबसे पहले इसी प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटे गए। यहां मौजूद 1,513 पेड़ों में से 48 पेड़ों को छोड़कर सभी पेड़ काटने की मंजूरी दी जा चुकी है। एनबीसीसी के सीएमडी एके मित्तल भी पेड़ों को काटने के बदले 10 गुना पेड़ लगाने का तर्क देते हैं।
वृक्षारोपण के बदले पुराने पेड़ों की कटाई पर सवाल उठाते हुए पर्यावरण कानूनों की जानकार कांची कोहली कहती हैं कि सरकारी कॉलोनियों के विकास के नाम पर सरकार कमर्शियल रियल एस्टेट का धंधा चमकाना चाहती है। रियल एस्टेट की पर्यावरण मंजूरी के लिए जनसुनवाई नहीं होती, इसलिए ऐसे प्रोजेक्ट की जानकारियां सामने नहीं आ पातीं। दक्षिण दिल्ली में ऐसा ही हुआ। काफी दिनों बाद पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआइए) रिपोर्ट से पता चला कि इन कॉलोनियों में 16 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जाने हैं। नौरोजी नगर और नेताजी नगर में बहुत-से पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं। जबकि एनजीटी ने 22 सितंबर, 2017 के आदेश में कहा था कि 10 गुना वृक्षारोपण पेड़ों को काटने से पहले होना चाहिए, न कि बाद में। सरकार बताए कि दक्षिण दिल्ली में काटे गए पेड़ों के बदले वृक्षारोपण कब और कहां किया गया है?
कोहली हरे-भरे पेड़ों की भरपाई वृक्षारोपण से करने की नीति पर भी सवाल उठाती हैं। उनका कहना है कि कैग की रिपोर्ट पेड़ों को कटाने के बदले वृक्षारोपण की नाकामी को उजागर कर चुकी है। वायु प्रदूषण के गंभीर संकट से जूझते दिल्ली में इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों का कटना बड़ी आपदा है, जिसकी भरपाई 30-40 किलोमीटर दूर वृक्षारोपण से नहीं हो पाएगी।
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 से 2017 के दौरान दिल्ली में 13,018 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी, जिसके एवज में 65,090 पेड़ लगाने थे, लेकिन वन विभाग सिर्फ 21,048 पेड़ लगा पाया। यानी वृक्षारोपण का एक तिहाई लक्ष्य भी पूरा नहीं हुआ। इसके पीछे वन विभाग ने जमीन मिलने में देरी को वजह बताया है। जबकि खुद वन विभाग का ही नियम है कि पेड़ों को काटने की अनुमति देने से पहले ही वृक्षारोपण के लिए जमीन सुनिश्चित होनी चाहिए। ऐसे अनुभवों के बावजूद दिल्ली सरकार वृक्षारोपण के बूते बरसों पुराने पेड़ों को कटवाने पर आमादा है।
दिल्ली में ‘चिपको आंदोलन’ जैसी मुहिम चला रहे पर्यावरण कार्यकर्ता विमलेंदु झा का मानना है कि इस मुद्दे को लेकर दिल्ली के लोगों ने जैसी जागरूकता दिखाई उसे देखते हुए पेड़ों के बचने की उम्मीद बढ़ी है। विमलेंदु एनबीसीसी पर नियमों के उल्लंघन और वृक्षारोपण में कोताही बरतने का आरोप लगाते हैं।
यह मामला दिखाता है कि कैसे सरकारी सिस्टम और विभिन्न एजेंसियों का मकड़जाल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर आमादा है। सरकारी कॉलोनियों के पुनर्विकास के नाम पर किस पैमाने पर पेड़ों की कटाई शुरू हो चुकी है, इसका अंदाजा नेताजी नगर प्रोजेक्ट की ईआइए रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट के अनुसार, नेताजी नगर में कुल 3,906 पेड़ हैं जिनमें 3,033 पेड़ काटने की योजना है और 2,450 पेड़ों को काटने की अनुमति मिल भी चुकी है।
पेड़ों को बचाने की मुहिम में आगे आई आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने सातों कॉलोनियों के रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि दिल्ली में 16-17 हजार पेड़ों को काटने की अनुमति उपराज्यपाल की ओर से दी गई है। दिल्ली सरकार इन मंजूरियों को रद्द कराने का प्रयास करेगी। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने उपराज्यपाल अनिल बैजल को पत्र लिखकर पेड़ों को काटने की अनुमति वापस लेने की मांग की है।
दिल्ली पर नियंत्रण को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच यह विवाद का नया मुद्दा है। भारद्वाज का कहना है कि अदालत में दिल्ली सरकार पेड़ों को काटने के खिलाफ अपना पक्ष रखेगी। एलजी को दिल्ली की चुनी हुई सरकार की बात माननी चाहिए। क्योंकि पेड़ों के उजड़ने का खामियाजा दिल्ली की जनता को भुगतना पड़ेगा।
बेशक, खामियाजा सिर्फ लोगों को ही नहीं, समूचे पर्यावरण का भारी नुकसान होगा, जिसकी भरपाई मुश्किल है। इसी की रक्षा के लिए उत्तराखंड का ‘चिपको आंदोलन’ दुनिया भर में मशहूर हुआ, देखना है, क्या दिल्ली और उसके लोग ऐसी दूसरी मिसाल बनेंगे।