जब 2009 में बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून (आरटीई) देश में लागू हुआ तो यह कल्पना की गई थी कि इससे निजी स्कूलों में गरीबों और असहायों के बच्चों की पढ़ाई का सपना साकार होगा। कानून लागू हुए करीब नौ साल बीतने वाले हैं, लेकिन यह कागजों में ही दम तोड़ रहा है। खास तौर पर उत्तर प्रदेश में दावे और हकीकत जुदा-जुदा हैं। स्कूलों की मनमानी के कारण गरीबों के हक पर सिस्टम ने ही डाका डाल दिया है। आरटीई के तहत गरीब और अल्प आय वर्ग के परिवारों के बच्चों को निजी स्कूलों में कम से कम 25 फीसदी सीटों पर प्रवेश देकर निःशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान है। राज्य सरकार इनकी फीस की भरपाई करती है। प्रदेश के सभी जिलों में आरटीई के तहत प्रवेश से पहले आरक्षित सीटों और आवेदन पत्रों का बीएसए की ओर से सत्यापन किया जाता है। अब तक राज्य स्तर पर स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए दो चरणों में लॉटरी निकाली जा चुकी है और तीसरी जून में ही निकाली जानी है।
राहत की बात यह है कि आरटीई के तहत स्कूलों में प्रवेश कराए गए बच्चों की संख्या में साल दर साल इजाफा हुआ है। पिछले तीन साल की तुलना करें तो शैक्षिक सत्र 2016-17 में मात्र 17,136 बच्चों का ही एडमिशन हो पाया था। 2017-18 में 27,662 बच्चों का एडमिशन कराया गया। 2018-19 में करीब 50,000 बच्चों का एडमिशन कराने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन प्रथम चरण की लॉटरी में 48 जिलों में 11,243 और दूसरे चरण की लॉटरी में 57 जिलों में 18,087 बच्चों का चयन किया गया। कुल चयनित 29,330 बच्चों में से 19,122 बच्चों का प्रवेश संबंधित विद्यालयों में हो चुका है। 25 जून को तीसरे चरण की लॉटरी के लिए 76,669 आवेदन पत्रों में से 49,691 आवेदन पत्रों का सत्यापन हो चुका है। इनमें 10,832 आवेदन पत्र सही नहीं पाए गए। वाराणसी, गाजियाबाद, कानपुर और लखनऊ में अधिक संख्या में आवेदन होने से सत्यापन नहीं किया गया है।
लेकिन इस सुखद तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, जो उतना ही संगीन है। अभिभावक मंच के रविंद्र का कहना है कि सीटें अलॉट होने के बाद भी स्कूल एडमिशन लेने से मना कर देते हैं। वे कहते हैं, “अपने बच्चे की फीस के लिए जनसुनवाई पोर्टल पर तीन बार शिकायत की, लेकिन नतीजा सिफर रहा।” दूसरे चरण की लॉटरी ने कई अभिभावकों को निराश किया है। लखनऊ के पूर्वी दीन खेड़ा निवासी अरविंद कुमार के घर के पास जेके पब्लिक स्कूल को किसी अन्य वार्ड में दिखाया जा रहा है। आरडी मेमोरियल इंटर कॉलेज का नाम ही नहीं है, जबकि पिछले वर्ष यहां दाखिले हुए हैं। डीएनएस पब्लिक स्कूल में बताया जा रहा है कि कोई स्थान रिक्त नहीं है। शिक्षा विभाग ने एक बच्चे का अल्पसंख्यक विद्यालय डॉमिनिक कॉन्वेंट में दाखिले का आदेश दिया था, जबकि अल्पसंख्यक विद्यालय होने के कारण इस विद्यालय में आरटीई लागू नहीं होती। ये सभी शिक्षा के अधिकार अधिनियम के उल्लंघन के उदाहरण हैं। इसके अलावा दूसरी लॉटरी तीसरा चरण पूरा होने के बाद देरी से निकाली गई। जिन बच्चों का नाम दूसरी लॉटरी में नहीं आया है, अब उनके पास कोई विकल्प नहीं है कि वे दोबारा आवेदन जमा कर सकें।
ऐसे में, ये सवाल उठाए जा रहे हैं कि बच्चे को कहीं दाखिला नहीं दिलाया जाता है तो मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का क्या अर्थ रह जाएगा? शिक्षा विभाग 25 प्रतिशत की सीमा क्यों तय कर रहा है? अधिनियम में तो वंचित समूह और कमजोर वर्ग के लिए न्यूनतम 25 प्रतिशत का प्रावधान है। इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाले मदद राशि नहीं मिलने के कारण अगले सत्र से बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल हीलाहवाली कर रहे हैं। शैक्षणिक सत्र 2017-18 का देय, जो प्रति बच्चा 5,000 रुपये सरकार से मिलना चाहिए था, वह अभी तक नहीं मिला है। शासन की ओर से शैक्षिक सत्र 2016-17 में चार माह की फीस और 2017-18 में आठ माह की फीस की भरपाई की गई है।
राज्य के तमाम जिले की मांग के अनुसार, 2016-17 और 2017-18 के लिए 14.88 करोड़ रुपये और 2018-19 में करीब 42 करोड़ रुपये यानी कुल 56.88 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। जबकि शासन की ओर से फीस भरपाई के लिए मात्र चार करोड़ का प्रावधान किया गया है। इसी तरह पुस्तकों और यूनिफॉर्म के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता के लिए शैक्षिक सत्र 2016-17 और 2017-18 के लिए 15.74 करोड़ रुपये और 2018-19 के लिए करीब 35 करोड़ रुपये और कुल मिलाकर 50.74 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। जबकि शासन की ओर से मात्र आठ करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
क्षेत्रवार बच्चों के एडमिशन की बात करें तो सबसे ज्यादा अलॉटेड सीट गौतमबुद्धनगर में प्रथम चरण में 598 और दूसरे चरण में 722, गाजियाबाद में प्रथम चरण में 545 और दूसरे चरण में 838 हैं। जबकि आगरा में प्रथम चरण में 852 और दूसरे चरण में 428 सीटें अलॉट की गई हैं। ऐसे ही गोरखपुर जिले में प्रथम चरण में 722 और दूसरे चरण में 497, कानपुर नगर में प्रथम चरण में 533 और दूसरे चरण में 941, लखनऊ में प्रथम चरण में 3904 और दूसरे चरण में 5613, सहारनपुर में प्रथम चरण में 515 और दूसरे चरण में 534, वाराणसी में प्रथम चरण में 863 और दूसरे चरण में 2552 सीटें अलॉट की गई हैं। मेरठ में प्रथम चरण में 72 और दूसरे चरण में 130, बागपत में प्रथम चरण में शून्य और दूसरे चरण में 95, बुलंदशहर में प्रथम चरण में 39 और दूसरे चरण में 72, हापुड़ में प्रथम चरण में 227 और दूसरे चरण में 190 सीटें अलॉट की गई हैं। जिलेवार अलॉटेड सीटों में से कितने बच्चों के एडमिशन हो गए हैं, यह कहना काफी मुश्किल है। लोगों में आरटीई के प्रति कम जागरूकता होने से कई जिलों में आवेदनों की संख्या भी नाम मात्र है।
वैसे, पहले, दूसरे और तीसरे चरण में अलॉटेड सीटों की संख्या में इजाफा हुआ है। पहले चरण में 11,243, दूसरे चरण में 18,087 सीटें अलॉट हुईं हैं, जिसमें 19,022 बच्चों को एडमिशन दिलाया जा चुका है। तीसरे चरण के लिए विभाग को 76,670 आवेदन पत्र मिले हैं, जिसमें 49,733 आवेदन स्वीकार हुए हैं और करीब 10,833 आवेदन खारिज किए गए हैं।
‘नींव’ संस्था के प्रवीण श्रीवास्तव का कहना है कि कानून का पालन सही से किया जाए तो प्रदेश की तस्वीर बदल सकती है, लेकिन स्कूलों की मनमानी से एडमिशन कराने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं। उनका कहना है कि अब लोग कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं।
‘दाखिले में आनाकानी पर होगी कार्रवाई’
आरटीई के तहत बच्चों के दाखिले और आ रही समस्याओं को लेकर उत्तर प्रदेश की बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल से शशिकांत की बातचीत के मुख्य अंश:
आरटीई को लेकर विभागीय स्तर पर क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
आरटीई बच्चों का अपना हक है। योगी सरकार बनने के बाद से विभाग ने काफी काम किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का स्पष्ट निर्देश है कि जो भी बच्चे दाखिला लेना चाहते हैं, विभाग उनका पूरा सहयोग करे। अगर कोई स्कूल सीट अलॉट होने के बाद दाखिला नहीं लेता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई भी तय है।
बच्चों के दाखिले को लेकर स्कूल बहाने बनाते हैं?
आरटीई के तहत सभी मानक निर्धारित हैं। कुछ स्कूलों से इस तरह की शिकायतें भी आ रही हैं कि नाम आने के बाद भी बहाने बनाते हैं। पिछली बार काफी कड़ाई के साथ प्रवेश कराए गए थे और इस बार भी और सख्ती से इससे निपटा जाएगा। बच्चों का जो हक है, उसे दिलाने में विभाग पूरी मदद करेगा।
स्कूलों की मैपिंग को लेकर कई समस्याएं आ रही हैं?
स्कूलों की लगभग मैपिंग कर ली गई है। मानक के अनुसार स्कूल खुले हुए हैं। अगर कहीं इस प्रकार की दिक्कत है या कहीं लग रहा है कि दोबारा आवश्यकता है मैपिंग की, तो विभाग लगातार काम कर रहा है।
आपको नहीं लगता और प्रयास जरूरी हैं?
भले ही लोगों को लगता है कि यह सरकारी विभाग है। अगर मंशा ठीक हो तो हर सरकार को इसी नीयत से काम करना चाहिए, जैसे योगी सरकार कर रही है। मैं भी उस सरकार का छोटा अंग हूं। पूरी ईमानदारी के साथ चाहे आरटीई हो, बच्चों की पढ़ाई हो, शिक्षकों की व्यवस्था हो और विद्यालयों का रखरखाव हो, हर स्तर पर हम लोग पूरी ईमानदारी और मजबूती के साथ कार्य कर रहे हैं।
बड़ी संख्या में बच्चों को दाखिला नहीं मिला है?
पहले आरटीइ को प्रमुखता से लिया ही नहीं जाता था। बड़ी गंभीरता के साथ पिछली बार हमने लिया और इस बार भी जितने बच्चों ने आवेदन किया है और उनके आवेदन सही पाए गए हैं, उन सभी बच्चों को दाखिला मिले, यह हमारा दृढ़ संकल्प है। यह योगी सरकार की बहुत बड़ी सफलता है।