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मेडिकल शिक्षा में क्रांति की दरकार

उम्मीद के अनुसार नहीं हो रहा है इस क्षेत्र में बदलाव
डॉक्टर टंडन को सम्‍मानित करते केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन

पिछले 20 सालों में दुनिया इतनी तेज गति से बदली है कि कई बार यकीन नहीं होता कि हम विकास की दौड़ में इतना आगे आ गए हैं और चीजें इतनी तेजी से बदल रही हैं। आज का आविष्कार कुछ ही दिनों में पुराना हो जाता है। बावजूद एक क्षेत्र है जिसमें पूरी दुनिया में तो बदलाव हो रहे हैं मगर भारत में बदलाव की गति धीमी पड़ी हुई है। यह क्षेत्र है मेडिकल यानी चिकित्सा शिक्षा का। भारत में चिकित्सा शिक्षा का पाठ्यफ्म बदलते जमाने के अनुसार नहीं बदल पाया है। देश के बड़े चिकित्सक लगातार इसे लेकर सवाल उठा रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली में नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के 35वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यफ्म में देश के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन, एम्स के प्रोफेसर एमिरेट्स पद्म विभूषण डॉ. पी.एन. टंडन ने प्रमुखता से इस मांग को उठाया।

प्रो. टंडन ने कहा कि देश में चिकित्सा शिक्षा को क्रांतिकारी बदलावों की जरूरत है क्योंकि देश के हेल्थकेयर सेक्टर में तेज गति से बदलाव हो रहे हैं मगर चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में उस अनुपात में बदलाव नहीं हो रहे हैं जबकि वर्तमान में मॉलीक्यूलर बायोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, इम्यूनोलॉजी, जेनेटिक्स और बायोइन्फॉरमेटिक्स आदि क्षेत्र में हुए विकास के मद्देनजर इसमें ज्यादा तेज गति से बदलाव की जरूरत है। प्रो. टंडन ने कहा कि मेडिकल शिक्षा में इन विषयों को जोड़ते हुए स्नातक स्तरीय पाठ्यफ्म को पुनर्गठित करने की जरूरत है। इसके साथ ही इस पुनर्गठित पाठ्यफ्म में अन्य उभरते हुए विषयों जैसे कि जेरिएट्रिक, नई प्रजनन तकनीकें, प्रत्यारोपण, इंप्लांट, बायोमिक्स और बायोएथिक्स आदि को भी शामिल किया जाना चाहिए। इन विषयों को शामिल किए बिना नए दौर में चिकित्सा सेवा का पिछड़ जाना तय माना जा सकता है।

वरिष्ठ न्यूरो सर्जन ने कहा कि इसके अलावा देश में चिकित्सा शोध पर भी जल्द से जल्द ध्यान देने की जरूरत है। खासकर मेडिकल कॉलेजों और उच्च शिक्षा केंद्रों में चिकित्सा शोध को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 2016 में आई रिपोर्ट, करंट मेडिसिन रिसर्च एंड प्रैक्टिस के आंकड़े सामने रखते हुए प्रोफेसर टंडन ने कहा कि देश में सिर्फ चार इंस्टीट्यूट्स में देश का एक-तिहाई चिकित्सा शोध कार्य हो रहा है। देश के सैकड़ों मेडिकल कॉलेज चाहे वह निजी हों या सरकारी, उनमें किसी तरह का उल्लेखनीय मेडिकल शोध नहीं हो रहा है। इसके लिए भले ही मरीजों की बेहिसाब संख्या या पैसे की कमी का रोना रोया जाए मगर सच यही है कि चिकित्सा शोध के मसले में हम पश्चिमी दुनिया के मुकाबले मीलों पीछे हैं।

डॉ. टंडन यहीं नहीं रुके। उन्होंने आज मेडिकल फील्ड में जारी लूट-खसोट पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आज मेडिकल का पूरा क्षेत्र तेज गति से व्यवसायीकरण की ओर बढ़ गया है जिसमें संवेदना और मानवीय मूल्यों से ज्यादा जांच कराने पर जोर रहने लगा है। यही वजह है कि चिकित्सा पेशे में भ्रष्टाचार की शिकायतें आने लगी हैं और यह पेशा तमाम तरह की गलत वजहों से चर्चा में रहने लगा है।

मेडिकल शिक्षा के पाठ्यफ्म में बदलाव की बात सिर्फ डॉ. टंडन ही नहीं कर रहे हैं। देश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और वर्तमान में देश के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने भी इस मांग का समर्थन किया है। डॉ. हर्षवर्धन के अनुसार यह वक्त की जरूरत है कि मेडिकल की शिक्षा को तेजी से विकसित हो रहे प्रौद्योगिकियों के साथ मिलाया जाए। पाठ्यफ्म में इसी के अनुरूप बदलाव किया जाना चाहिए। अगर आधुनिक प्रौद्योगिकी को मेडिकल की पढ़ाई के साथ मिला दिया जाता है तो इस क्षेत्र में क्रांति हो सकती है।

नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और खुद भी देश के जाने-माने हृदय रोग सर्जन डॉ. ओ.पी. यादव भी इस मांग से सहमत हैं मगर साथ ही उनका यह भी कहना है कि चिकित्सा शिक्षा में बदलाव के साथ-साथ चिकित्सा सुविधाओं को सर्वसुलभ बनाना भी जरूरी है। आज स्थिति यह है कि सभी निजी अस्पताल समूह देश के महानगरों या बड़े नगरों में ही अपनी शाखा खोलने में जुटे हैं जबकि जरूरत इस बात की है कि लोगों के दरवाजों तक चिकित्सा सुविधाएं पहुंचाई जाएं। इसे देखते हुए नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट ने उत्तराखंड सरकार से एक करार किया है जिसके तहत अल्मोड़ा में हृदय रोग से संबंधित आधुनिक चिकित्सा केंद्र खोला जा रहा है ताकि पहाड़ के दूर-दराज के लोगों को दिल्ली जैसी चिकित्सा सुविधा मिल सके।

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