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वर्जनाओं के पार नई मंजिलें

खासकर शहरों में टूटते-बिखरते सामाजिक ताने-बाने से नयों से मेलजोल बढ़ाने की चाहत में डेटिंग के चलन में आई छलांग, डेटिंग ऐप कंपनियों का बाजार भी बेतहाशा बढ़ा
जवां होती ऑनलाइन डेटिंग या मैचमेकिंग की हसरतें

पिछले साल दिवाली के आसपास देश में छुट्टियों और उल्‍लास के माहौल में एक नई बात सामने आई, जिसे अमेरिका में बैठे एक डिजिटल कंपनी के विश्‍लेषकों ने फौरन भांप लिया। अनजाने लोगों से दोस्‍ती गांठने और कैजुअल एनकाउंटर के लिए मशहूर एक मोबाइल ऐप का दिवाली के आसपास भारतीय महानगरों में इस्‍तेमाल छलांग मारने लगा। साल के बाकी दिनों के मुकाबले पुणे में इस ऐप का इस्तेमाल 45 फीसदी तो बेंगलूरू से 35 फीसदी और मुंबई से 30 फीसदी बढ़ गया। दिल्‍ली भी पीछे नहीं थी। दिल्ली में टिंडर नाम के इस ऐप का 25 फीसदी ज्‍यादा यूज हुआ। कुछ दिन बाद सामने आए ये आंकड़े भारतीय समाज में दबे पांव दस्तक दे रही हलचल की आहट दे रहे थे। भागदौड़ से फुरसत मिलते ही लोगों का मन किसी नए साथी से मिलने, बतियाने को लालायित होता था, जिसे डेटिंग ऐप के अलगोरिद्म ने आसान बना दिया।

जाहिर है, दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में ऑनलाइन डेटिंग या मैचमेकिंग की हसरतें जाग चुकी हैं। इसे सस्ता-सुलभ इंटरनेट और तकरीबन हर हाथ तक पहुंच चुके मोबाइल फोन ने बड़ी कारोबारी संभावनाओं में बदल दिया है। हद तो तब हो गई जब वडोदरा में पहचान बदलकर डेटिंग के लिए निकले पति-पत्नी एक-दूसरे से ही टकरा गए। जाहिर है, अजनबियों से मेलजोल बढ़ाने का यह शगल शादी जैसी संस्थाओं और संबंधों की सीमाओं को चुनौतियां देगा। बहुत संभव है, पश्चिमी देशों से इतर इस तरह के ऐप भारत में अलग रंग-ढंग अख्तियार करें और लव मैरिज या शादी से पहले डेटिंग का चलन बढ़ाने में मददगार साबित हों। इस साल फरवरी में खासतौर पर भारत के लिए लॉन्‍च हुए टिंडर के वीडियो को दो दिन में ही करीब पांच लाख लोगों ने देख लिया था। मोहम्मद रफी के गाने जान पहचान हो...पर बना यह वीडियो नए-नए लोगों से मिलती और मनपसंद साथी चुनने का लुत्फ उठाती लड़की को मस्ती में झूमते दिखाता है। इस तरह के विज्ञापन डेटिंग से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ने और टिंडर जैसे ऐप को जीवन-शैली का हिस्सा बनाने की कवायद हैं।

ऐप का बाजार

इस पर बहस हो सकती है कि यह दोस्ती, प्रेम या यौन संतुष्टि की शाश्वत चाहत है या फिर तकनीक के रास्ते खुलती समाज की बंद गिरहें। लेकिन अजनबियों से मिलने और मेलजोल बढ़ाने के तौर-तरीकों में एक नई हलचल जरूर आई है। दिवाली या सप्ताहांत के दौरान टिंडर, ओकेक्यूपिड, ट्रूलीमैडली, वू, बडू जैसे डेटिंग ऐप का बढ़ता इस्तेमाल इसी का संकेत है। गूगल प्ले स्टोर पर ऐसे कई डेटिंग और मैचमेकिंग ऐप हैं जिनके एक करोड़ से ज्यादा डाउनलोड हो चुके हैं। विदेशी ऐप की देखादेखी कई भारतीय कंपनियां भी इस बाजार में उतरी हैं।

इन सबकी बदौलत मनचाहे साथी से मिलना टैक्सी बुक करने या पिज्जा ऑर्डर करने जितना आसान तो नहीं है, लेकिन उसे उतना ही आसान बनाने की कोशिशें जारी हैं। अकेलेपन की गिरफ्त में जकड़े लोगों की जरूरत को भांपते हुए 50 वर्ष की उम्र पार लोगों से लेकर शादीशुदा लोगों के लिए भी कई ऐप मेलजोल के बाजार में उतर आए हैं। इसी तरह यौनिकता के रुझान के आधार पर भी विशिष्ट ऐप हैं जो समलैंगिकों या एक से ज्यादा साथियों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों की बढ़ती तादाद को भुनाना चाहते हैं।

जोखिम भी कम नहीं

इंटरनेट के इन कोनों पर कई वर्जनाएं टूट रही हैं लेकिन इन्हें आजमाने के अपने जोखिम भी कम नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता दीपिका नारायण भारद्वाज ने टिंडर के जरिए लोगों से मिलकर उन्हें ठगने या ब्लैकमेल करने वाली महिला पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है जो नेटफिलिक्स पर दिखाई जा रही है। ऐसी साजिश का शिकार हुए 27 वर्षीय दुष्यंत शर्मा नाम के युवक की जान चली गई थी। यकीनन इस खेल का अपना जोखिम है।

“अजनबियों से न नजरें मिलाना” और “लड़का-लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते” सरीखी फिल्मी लाइनों को सुनकर बड़ी हुई पीढ़ी अब इन बातों को पीछे छोड़ने पर आमादा दिखती है। यह बात सभी लोगों पर भले लागू नहीं होती, लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी का बड़ा हिस्‍सा मोबाइल स्‍क्रीन पर बिताने वालों के लिए ऑनलाइन डेटिंग एक नया शगल है। यहां आप न सिर्फ साथी की तलाश कर सकते हैं बल्कि सीधे किसी को प्रपोज भी कर सकते हैं। मोबाइल ऐप्स ने इस पूरी प्रक्रिया को किसी ऑनलाइन गेम जैसी गतिविधि में तब्दील कर दिया है। वैसे ही जैसे सदी की शुरुआत में याहू ग्रुप्‍स में चैटिंग और फिर ऑरकुट पर अजनबियों से मिलने-जुलने का नशा लोगों पर चढ़ गया था।

विदेशी ऐप्स ने दायरा बढ़ाया

लेकिन आजकल महशूर हो रहे टिंडर, ट्रूलीमैडली, वू और ओकेक्यूपिड सरीखे ऐप दोस्त बनाने में मददगार पुराने माध्यमों से आगे की चीज हैं। करीब दो साल पहले जब अमेरिका के जाने-माने मैच ग्रुप के ऐप टिंडर ने भारत में अपना दफ्तर खोला तब भी किसी को अंदाजा नहीं था कि दुनिया में धूम मचाने वाला यह ऐप और इस तरह कई दूसरे एप्लीकेशन भारतीयों के दिलों को भा जाएंगे। आज भारत टिंडर का न सिर्फ सबसे प्रमुख बल्कि सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है। टिंडर की यह कामयाबी अजनबियों से मेलजोल से लेकर प्रेम, सेक्स और विवाह तक की प्रचलित भारतीय रवायतों में उथलपुथल मचाने का माद्दा रखती है। लव मैरिज और अरेंज मैरिज के द्वंद्व के बीच मनचाहे लोगों से संपर्क बनाने और जब चाहे नाता तोड़ने की सहूलियत मोबाइल स्क्रीन से बस एक टच दूर है।

भारतीय कंपनियां भी कम नहीं

ऐसा नहीं है कि भारतीय कंपनियों ने ऑनलाइन डेटिंग के बाजार में हाथ नहीं आजमाए। लेकिन शादी के लिए योग्य वर-वधू की तलाश को आसान बनाने वाली भारतीय कंपनियां भी डेटिंग के मोर्चे पर कुछ खास नहीं कर पाईं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि ऐसे किसी भी ऐप पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तादाद इतनी कम थी कि एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा हो जाती। ज्यादातर पुरुष ही ऐसी साइटों या एप्लीकेशन का रुख करते या फिर जिश्मफरोशी के इश्तिहार ही नजर आते। ऑरकुट को बर्बाद करने में ऐसे स्पैम का बड़ा हाथ है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से टिंडर और तेजी से उभरते ट्रूलीमैडली जैसे ऐप महिलाओं की मौजूदगी बढ़ाने और यूजर्स के लिए सिरदर्द न बनने में कामयाब रहे हैं।

पहले पुरुष ज्यादा, महिलाएं कम

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मर्दानगी से जुड़े मुद्दों पर शोध कर चुकी शालिनी सिन्हा बताती हैं कि शुरुआत में जितने भी ऐप आए वहां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तादाद बेहद कम होना स्वाभाविक था। समाज में अनजान लोगों से मेलजोल बढ़ाने को वैसे भी खराब समझा जाता है। इसकी परवाह किए बगैर कोई महिला वहां जाती थी तो इतने सारे पुरुष पीछे पड़ जाते कि वह तंग हो जाती। फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया प्लेटफार्म तक महिलाओं के प्रोफाइल फ्रेंड रिक्वेस्‍ट, अमर्यादित टिप्पणियों और गुड मॉर्निंग-गुड ईवनिंग के अनचाहे संदेशों से भरे रहते हैं। डेटिंग साइटों पर यह बर्ताव और आक्रामक या आपत्तिजनक हो जाता है। मानो गली-मोहल्ले में होने वाली छेड़छाड़ बेलगाम हो गई हो। डेटिंग साइटों पर महिलाओं की मौजूदगी में कम होने का यह बड़ा कारण है जिसे आज के दौर के कामयाब डेटिंग ऐप्स ने बखूबी समझा है। यही खूबी इनकी कामयाबी का फार्मूला बन रही है। इनका जोर भी महिलाओं को लुभाने पर है।

नई कंपनियों ने सुधारा

मिसाल के तौर पर ट्रूलीमैडली पर अगर सिंगल हैं तभी जा सकते हैं। इस ऐप में यूजर के प्रोफाइल को वेरीफाई करने और आपत्तिजनक व्यवहार की शिकायतों पर खास ध्यान दिया गया है। टिंडर पर आप तब तक किसी से बात नहीं कर सकते जब तक वह भी आपमें दिलचस्पी न दिखाए। यह ऐप आपके प्रोफाइल से मेल खाते कुछ लोगों की तस्वीरें छोटे-से परिचय के साथ दिखाता है, जिसे आप पसंद या नापसंद कर सकते हैं। इस तरह आपका प्रोफाइल भी बाकी लोगों के सामने से गुजरता है। दो लोग एक-दूसरे को पंसद कर लें तभी चैट संभव है। यानी आपसी सहमति को सबसे ऊपर रखा गया है। आप किसी को आसानी से अनमैच भी कर सकते हैं। तब वह व्यक्ति न तो आपके संपर्क में रहेगा और न ही मैसेज भेज सकेगा।

टिंडर की इंडिया हेड तरु कपूर का दावा है कि लोगों को सुरक्षित माहौल मुहैया कराना उनकी प्राथमिकता में सबसे ऊपर है। स्पैम और अमर्यादित व्यवहार करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की नीति भी है और इसके लिए टूल भी डेवलप किए गए हैं।

हालांकि, इन दावों के बावजूद महिलाओं की आम शिकायत है कि लोग टिंडर या दूसरे डेटिंग ऐप से पीछा करते हुए फेसबुक, ट्विटर या इंस्ट्राग्राम पर पहुंच जाते हैं।

सब कुछ रोमांटिक नहीं

जाहिर है, ऑनलाइन डेटिंग के अफसानों में सब कुछ रोमांटिक ही नहीं है। कई आश्चर्य और उलझनें भी साथ आती हैं। दिल्ली की विज्ञापन एजेंसी में काम करने वाले पुनीत सक्सेना बताते हैं कि वह खाली समय में डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं और अब तक इसके जरिए कई नए और दिलचस्प लोगों से मिल चुके हैं। जाहिर है, ये सभी लड़कियां हैं। पुनीत को इन ऐप्स का लोकेशन फीचर खासतौर पर आकर्षित करता है जो आसपास मौजूद लोगों से संपर्क बनाने में मददगार है। इस तरह बने ऑनलाइन संपर्क डेटिंग, प्रेम विवाह में तब्दील हो सकते हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पढ़ाई कर रही सौम्या भी ऐसे डेटिंग ऐप्स को आजमा चुकी हैं। उनका कहना है कि वास्तविक दुनिया से इतर यह एक दिलचस्प वचुर्अल स्पेस है जहां वे कई नए लोगों से मिल चुकी हैं। जब वे पहली बार दिल्ली आईं तो कैंपस के बाहर नए लोगों से जान-पहचान बनाने में इससे मदद मिली। कुछ अच्छे दोस्त भी बने और कइयों को ब्लॉक भी करना पड़ा। सौम्या को बॉडी दिखाने वाले और अपनी जगह अपने डॉग की फोटो लगाने वाले लोगों से खासतौर पर चिढ़ है।

नई पेशकश

वैसे, असंतुलित लिंगानुपात की समस्या से टिंडर सरीखे ऐप्स भी मुक्त नहीं है। इसलिए ट्रूलीमेडली ने जहां महिलाओं को लुभाने के लिए “ब्वॉय ब्राउजिंग” को प्रचारित करने के लिए जोरदार विज्ञापन अभियान छेड़ा तो टिंडर भी साफ-सुथरी जगह के तौर पर अपनी ब्रांडिंग कर रहा है। इसके "संस्कारी" विज्ञापन को लाखों लोगों ने देखा और ये खास चर्चित भी रहा। टिंडर ने अपने प्रचार अभियान को शहरी युवा महिलाओं पर केंद्रित रखा है। आलिया भट्ट की मदद से डेटिंग, लव और मोबाइल स्क्रीन पर लड़के पसंद करने के रोमांच को दर्शाया गया। एक वीडियो में तो मां अपनी बेटी को डेटिंग ऐप यूज करने की सलाह देती है। भारतीय संदर्भ में इसे असंभव-सा बताकर इसकी काफी आलोचना भी हुई।   

हकीकत यह है कि ऐसे प्रचार के बावजूद बहुत-सी महिलाएं जान-पहचान और घर-परिवार वालों को पता चलने या फिर अपरिचित लोगों के अमर्यादित व्यवहार की वजह से डेटिंग ऐप पर जाने से कतराती हैं। टिंडर पर अधिकांश महिलाओं के प्रोफाइल में यह स्पष्टीकरण जरूर दिखेगा कि वे हुक अप के लिए वहां नहीं हैं और बस साफ-सुथरी, दिलचस्प, दोस्ताना बातचीत चाहती हैं। भारतीयों में ऑनलाइन डेटिंग के इस बढ़ते चलन को कलाकार और लेखिका इंदु हरीकुमार ने प्रेम और दोस्ती की कहानियों के जरिए बड़े दिलचस्प अंदाज में पेश किया हैं। गौरतलब है कि टिंडर की शुरुआती पहचान ऐसी जगह की रही है जहां दो अजनबी आसानी से प्रेम या यौन संबंध बनाने के लिए तैयार हो जाते हैं। हुक अप कल्चर को बढ़ावा देने में इस तरह के ऐप्स की बड़ी भूमिका है। लेकिन भारतीय बाजार में पैठ बनाने के लिए इसे अपनी छवि बदलनी पड़ रही है। शादीशुदा महिलाओं को डेटिंग ऐप्स पर मौजूदगी के चलते उन्हें गलत समझे जाने का डर और भी ज्यादा है।

उदार रवायत

नोएडा में एक आइटी कंपनी में काम करने वाली रश्मि अग्रवाल कहती हैं कि आजकल डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल आम बात है। अगर आप शादीशुदा हैं तब भी नए लोगों से मेलजोल रखने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन महिला होने के नाते अपनी पहचान और सुरक्षा को लेकर सजग रखना पड़ता है। वह एक डेटिंग ऐप पर हैं लेकिन उन्होंने अपनी तस्वीर नहीं लगाई। फिर भी कई नए लोग मिले, उनके बीच बातचीत हुई और उनमें से कुछ लोग आज दोस्त हैं। कुछ लोग पहली बातचीत में ही अश्लील बातें करने लगे तो उन्हें ब्लॉक करना ही बेहतर समझा। 

अनजाने लोगों से संवाद और संपर्क के जोखिम के बावजूद आज कमोबेश हर उम्र के लोग नए लोगों से मेलजोल बढ़ाने को आतुर हैं। फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया की भारत में सफलता इस रुझान को साबित कर चुकी है लेकिन डेटिंग ऐप्स की बढ़ती लोकप्रियता का संबंध समाज में गहरी पैठ बना चुके अकेलेपन, नए लोगों से मिलने के बढ़ते अवसरों और पढ़ाई, नौकरी या कारोबार के लिए बड़ी तादाद में घर-बार छोड़कर नए शहर में आने वाली बड़ी आबादी से है। तमाम हिदायतों के बावजूद अजनबियों से मिलना मजबूरी भी है और इसके पीछे एक सहज मानवीय रोमांच तो खैर है ही।

लेकिन क्या शहरी युवा आबादी के बीच प्रेम की तलाश के नए रास्तों और डेटिंग की लोकप्रियता का बढ़ता प्रेम और सेक्स से जुड़े आचरण के अलावा शादी जैसी सामाजिक संस्था को प्रभावित भी प्रभावित कर रहा है। और क्या ये बदलाव अब तक बेहद कामयाब रही मैट्रीमॉनियल वेबसाइटों की लिए डेटिंग या मैचमेकिंग पोर्टल बड़ी चुनौती हैं। इस प्रतिस्पर्धा को इस रुझान से समझा जा सकता है कि डेटिंग एप्स जहां हुक्स अप या कैजुअल एनकाउंटर्स से जुड़ी अपनी पहचान से पीछा छुड़ाने पर आमादा है वहीं मैट्रीमॉनियल पोर्टल डेटिंग की दुनिया में कदम रखने की तैयारी कर रहे हैं। इसी बीच, फेसबुक जैसी दिग्गज सोशल मीडिया ने भी डेटिंग फीचर शुरू करने का ऐलान कर इस क्षेत्र में हलचल मचा दी है। डेटिंग की दुनिया में फेसबुक की दस्तक को टिंडर, ओकेक्यूपिड वगैहरा के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

दरअसल, भारतीय समाज और परिस्थितियों को देखते हुए डेटिंग और मैचमेकिंग के कारोबार में उतरी बहुराष्ट्रीय कंपनियां यहां एकदम अलग रणनीति अपना रही हैं। हुक अप कल्चर को डेटिंग एप्स के जरिए सुगभ बनाना पश्चिमी देशों में कारगर भले रहा है लेकिन भारत में स्वीकार्यता हासिल करने और महिलाओं की मौजूदगी बढ़ाने के लिए इन्हें थोड़ा संस्कारी बनना पड़ेगा। दूसरी तरफ मैट्रीमॉनियल साइट नई चुनौती से बेखबर नहीं हैं। शादी से पहले डेटिंग, लिव-इन और लव मैरीज के बढ़ते चलन को देखते हुए पुराने ढर्रे की मैट्रीमॉनियल साइटें अपडेट करने और डेटिंग जैसे फीचर को लाने में जुटी हैं।

स्याह पक्ष भी बदस्तूर

हर नई चीज और दिलचस्प चीज की तरह ऑनलाइन डेटिंग के इस खेल के भी अपने स्याह पक्ष हैं। यहां दिलकश तस्वीरों, प्रेम की पींगों और पहली नजर के आकर्षण के पीछे फरेब भी कम नहीं होता। हर आदमी खुद को कूल दिखाने की कोशिश करता है। हर दूसरी महिला हुक अप और शादीशुदा मर्दों से तौबा करती दिखती है। दिल्ली की एक एनजीओ में काम करने वाली सृष्टि बताती हैं कि वे अपनी वैवाहिक स्थिति छिपाकर लड़कियों से डेट करने पर उतारू शादीशुदा मर्दों से तंग आ चुकी हैं। उन्हें टिंडर न तो किसी अजनबी से सेक्स संबंध बनाने हैं, न ही वे इसे शादी.कॉम की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। उन्हें किसी ऐसे दोस्त की तलाश थी, जिससे फुरसत में बतियाया जा सके। लेकिन लोग पहली चैट में ही अश्लील बातें शुरू कर देते हैं। ऐसे पुरुषों को अनमैच करने में वह देर नहीं लगातीं। ऐसे अनुभवों के बावजूद किसी दिलचस्प व्यक्ति से मिलने का क्रेज उन्हें टिंडर पर ले आता है। यह तलाश मंजिल से कम मजेदार नहीं! 

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