चुनावी साल में लोकलुभावन घोषणाएं नई बात नहीं हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो इतनी घोषणाएं कर दीं कि खजाना ही खाली हो गया है और मध्य प्रदेश कर्ज के भंवरजाल में फंस गया है। शिवराज ने मध्य प्रदेश में चौथी बार भगवा फहराने के लिए 14 जुलाई से उज्जैन से जन आशीर्वाद यात्रा निकाली। कहने को तो यह पार्टी की यात्रा है, लेकिन भीड़ से लेकर दूसरी व्यवस्था की जिम्मेदारी भी सरकारी मशीनरी के मत्थे है। ढाई करोड़ के रथ पर सवार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक तरफ घोषणाओं की बौछार कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ राज्य की जनता कर्ज के बोझ से लदती जा रही है। 7.33 करोड़ की आबादी वाले मध्य प्रदेश में औसतन एक व्यक्ति पर 36,000 रुपये का कर्ज लद चुका है।
अभी मध्य प्रदेश का कुल बजट 2,04,642 करोड़ रुपये का है और कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश पर 31 मार्च 2018 तक 1.83 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है। भाजपा के प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि 2003 में मध्य प्रदेश का कुल बजट 21 हजार करोड़ था और तब की दिग्विजय सिंह की सरकार ने 24 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया हुआ था।
कांग्रेस का कहना है कि 2003 में प्रदेश पर 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज था। कर्ज के बदले में शिवराज सिंह चौहान की सरकार अलग-अलग संस्थाओं को 47,564 करोड़ रुपये का ब्याज अदा कर चुकी है। सरकार पिछले दो साल में 47,564 करोड़ रुपये का कर्ज बाजार से उठा चुकी है। आरबीआइ से ही 26 हजार करोड़ रुपये कर्ज ले चुकी है। इसके अलावा सड़क बनाने के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक और न्यू डेवलपमेंट बैंक से पांच हजार करोड़ रुपये ऋण लिया है। न्यू डेवलपमेंट बैंक से स्मार्ट सिटी के लिए 1,600 करोड़ रुपये कर्ज लिया गया है। राज्य के वित्तमंत्री जयंत मलैया ने कहा कि प्रदेश को ओवरड्राफ्ट के खतरे से केंद्र सरकार बचाएगी। जल्द ही केंद्र से चार हजार करोड़ रुपये प्रदेश को मिलेंगे। कहा जा रहा है कि वर्तमान में मध्य प्रदेश वेज ऐंड मीन्स (निर्धारित राजकोषीय घाटा से अधिक खर्च) के 465 करोड़ रुपये खर्च कर चुका है। वित्त मंत्री जयंत मलैया का कहना है कि जो लोग ओवरड्राफ्ट पर सवाल उठा रहे हैं, वे बताएं कि उनके शासनकाल में कितने महीने ओवरड्राफ्ट नहीं हुआ।
कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री पिछले पांच साल में 1,100 से अधिक घोषणाएं कर चुके हैं। कांग्रेस के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है कि शिवराज सिंह अपनी ब्रांडिंग, प्रचार-प्रसार, यात्राओं और अभियानों में जमकर सरकारी धन लुटा रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार, शिक्षाकर्मियों को समायोजित करने में दो हजार करोड़, संबल योजना में 2,500 करोड़, बिजली बिल समाधान योजना पर तीन हजार करोड़, कर्मचारियों को सातवां वेतनमान देने की वजह से 1,500 करोड़, किसानों को बोनस देने में 2,050 करोड़ और कृषक समृद्धि योजना में चार हजार करोड़ का भार सरकारी खजाने पर पड़ा है। हाल के विधानसभा सत्र में भी सरकार ने 11 हजार करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट लाकर हालत सुधारने की सोची थी, लेकिन इंतजाम पांच हजार करोड़ रुपये का ही हो पाया।
मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति का मामला अब राजनीतिक मुद्दा बन गया है। कांग्रेस पोल खोलो-वास्तविकता बताओ अभियान चलाकर कई सवाल उठा रही है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से प्रदेश पर बढते कर्ज पर श्वेत-पत्र जारी करने की मांग की है। मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति को लेकर कांग्रेस-भाजपा और सरकार के अपने-अपने दावे हैं और अब यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। दोनों राजनीतिक पार्टियां यात्रा-रैली के बहाने एक-दूसरे पर तंज कसते अपनी जमीन तैयार करने में लगी हैं। लेकिन एक बात साफ है कि मध्य प्रदेश का खजाना इन दिनों खाली हो गया और वेतन से लेकर दूसरे भुगतान के लिए सरकार के पसीने छूट रहे हैं।