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डेढ़ गुना दाम की असलियत

कमतर लागत के आधार पर एमएसपी में 50 फीसदी बढ़ोतरी के दावे से क्यों संतुष्ट नहीं किसान
सड़क से संसदः कमतर लागत के आधार पर एमएसपी तय करने के ख‌िलाफ जंतर-मंतर पर क‌िसान

 

देश में किसान और खेती की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। इसे दूर करने के ल‌िए बरसों से किसान संगठन उपज लागत पर डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने की मांग उठा रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने भी इस मांग का पुरजोर तरीके से समर्थन किया था। हाल में मोदी सरकार ने दावा किया है कि उसने अपना वादा निभा दिया है। खरीफ फसलों के डेढ़ गुना एमएसपी तय कर दिए हैं। इससे किसानों की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी। लेकिन सरकार के इस कदम से खुश होने के बजाय तमाम किसान संगठन नाराज हैं। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने डेढ़ गुना एमएसपी के दावों को किसानों के साथ छलावा करार देते हुए संसद मार्च निकाला और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया।

सवाल यह है कि सरकार के दावे आखिर किसानों के गले क्यों नहीं उतर रहे? इससे भी बड़ा सवाल है कि एमएसपी आधारित प्रणाली कितनी कारगर या प्रासंगिक रह गई है? 

क्या है व्यवस्था 

बाजार के उतार-चढ़ाव की मार से किसानों को बचाने के लिए कुछ प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किए जाते हैं। ये दाम कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर तय होते हैं। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने वाले इस आयोग की स्‍थापना 1965 में हुई थी। अध्यक्ष के अलावा इस आयोग में एक सदस्य सचिव, एक सरकारी और दो गैर-सरकारी सदस्य होते हैं। गैर-सरकारी सदस्य किसानों का प्रतिनि‌धित्व करते हैं और अमूमन इस क्षेत्र से सक्रिय रूप से जुड़े होते हैं।

एमएसपी की सिफारिशें करते वक्त सीएसीपी उपज की लागत, किसानों को मिलने वाले मुनाफे, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों की स्थिति, घरेलू बाजार में दाम, मांग-आपूर्ति और महंगाई जैसे पहलुओं को ध्यान में रखता है। किसान का मुनाफा और कीमतों में स्थायित्व बनाए रखने के लिहाज से यह महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। उपज और उत्पादकता बढ़ाने के लिहाज से भी यह बेहद अहम है, क्योंकि मंडी में कीमतें चढ़ती-उतरती रहती हैं और किसानों को अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है। यही कारण है कि सीएसीपी की सिफारिशों को ध्यान में रखकर सरकार हर साल प्रमुख फसलों की एमएसपी तय करती है।

सिफारिशों का महत्व

हर साल प्राइस पॉलिसी रिपोर्ट में फसलों को पांच समूहों - खरीफ, रबी, गन्ना, जूट और कोपरा में बांटकर सीएसीपी सरकार को अपनी सिफारिशें देता है। इससे पहले आयोग सभी राज्य सरकारों, राष्ट्रीय संगठनों और मंत्रालयों से सुझाव मांगता है। इसके बाद अलग-अलग राज्यों के किसानों, राष्ट्रीय संगठनों मसलन, कारोबारी संगठनों, खाद्य प्रसंस्करण संगठनों और प्रमुख केंद्रीय मंत्रालयों के सुझाव भी लेता है।

कौन-कौन सी फसलें

फिलहाल, सीएसीपी 23 फसलों के लिए एमएसपी की सिफारिश करता है। इनमें सात अनाज (धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ और रागी), पांच दालें (चना, तुअर, मूंग, उड़द, मसूर), सात तिलहन (मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, सैफ्लावर, नाइजरसीड) और चार व्यापारिक फसलें (कोपरा, गन्ना, कपास और जूट) शामिल हैं।

उपज की मार्केटिंग या पैदावार में किसानों को होने वाली दिक्कतों का पता लगाने के लिए आयोग राज्यों के दौरे भी करता है। तमाम सुझावों और पहलुओं को ध्यान में रखकर आयोग अपनी सिफारिश/रिपोर्ट को अंतिम रूप देता है। इसके बाद केंद्र सरकार इन सिफारिशों पर राज्य सरकारों और संबंधित मंत्रालयों से सुझाव मांगती है। आखिर में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीईए) एमएसपी के बारे में सीएसीपी की सिफारिशों पर फैसला लेती है। 

कृषि लागत के प्रमुख घटक

पारिवारिक श्रम (एफएल)ः उत्पादन लागत तय करने में कृषक परिवार की श्रम लागत एक महत्वपूर्ण घटक है। यदि हम अकुशल श्रमिक के लिए तय न्यूनतम मजदूरी को मापदंड बनाते हैं तो लागत फसल चक्र के आधार पर तय होनी चाहिए। 90 या 120 दिनों के फसल सीजन के आधार पर एक श्रमिक की लागत 31,500 से 42,000 रुपये होगी।

पशु श्रम : इसमें मवेशी के दाना-पानी पर होने वाला खर्च, देखभाल में मेहनत, मवेशी और उनके रहने की जगह का अवमूल्यन और अन्य खर्च शामिल हैं। 90 या 120 दिनों के फसल सीजन के आधार पर एक मवेशी पर 9,000 से 12,000 रुपये का खर्च आएगा।

मशीनरी खर्च : डीजल, बिजली, ल्यूब्रिकेंट, अवमूल्यन, मरम्मत और अन्य खर्च के आधार पर कृषि मशीनरी के रखरखाव की लागत की गणना होती है। 90 या 120 दिनों के फसल सीजन के आधार पर मशीनरी खर्च 9,000 से 12,000 रुपये तक आएगा।

फार्म उत्पादित खाद : गांव में प्रचलित दर के आधार पर गणना।

जमीन का किराया : गांव में प्रचलित किराए या संबंधित राज्य के भूमि कानून के आधार पर गणना।

फिक्‍स्ड कैपिटल पर ब्याज : फिक्‍स्ड कैपिटल पर 10 फीसदी की सालाना दर से ब्याज।

कमतर लागत के आधार पर दाम तय

सीएसीपी की खरीफ रिपोर्ट 2018-19 के मुताबिक, एमएसपी की सिफारिश करते समय आयोग ने उत्पादन लागत, मांग-आपूर्ति, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतें, इंटर-क्रॉप प्राइस पैरिटी, कृषि व गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की संध‌ियों और अर्थव्यवस्था पर प्राइस पॉलिसी के संभावित प्रभाव पर गौर किया है। इस तरह वास्तव‌िक खर्च (ए2+एफएल) के आधार पर खरीफ फसलों के एमएसपी तय किए गए हैं। इस लागत में जुताई, बुवाई, सिंचाई, बीज, खाद जैसे खेती पर आने वाले वास्तविक खर्च के अलावा कृषक परिवार की मजदूरी को भी जोड़ा गया है। इसी लागत के आधार पर डेढ़ गुना एमएसपी देने का दावा किया जा रहा है जबकि किसान संगठनों की मांग सकल लागत यानी सी2 पर डेढ़ गुना दाम देने की है। सी2 लागत में खेती के वास्तविक खर्च और कृषक परिवार की मजदूरी (ए2+एफएल) के साथ जमीन के किराए और खेती में लगी स्थायी पूंजी पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है। अगर सी2 लागत को आधार माना जाए तो एमएसपी में की गई हालिया बढ़ोतरी डेढ़ गुना से काफी कम बैठती है। (ताल‌िका देखें)

सीएसीपी का बदला रुख

अब तक फसलों के एमएसपी के निर्धारण में सी2 को आधार बनाया जाता रहा है। लेकिन अब यह एप्रोच बदलती नजर आ रही है। इस साल सी2 के बजाय कमतर लागत यानी (ए2+एफएल) के आधार पर सीएसीपी और केंद्र सरकार ने फसलों के एमएसपी तय किए और इसे डेढ़ गुना भी करार दिया। इस बार सीएसीपी की इन सिफारिशों पर राजनीतिक प्रभाव साफ झलकता है। दाम को डेढ़ गुना साबित करने के ल‌िए कमतर लागत को चुनने की यह नीति किसान विरोधी तो है ही, ग्रामीण अर्थव्यवस्‍था को भी कम आंकती है।

बदलाव का असर

अगर क‌िसान की सही वास्तव‌िक लागत को आधार बनाया जाए तो फसलों के दाम बहुत ज्यादा बढ़ाने पड़ेंगे। इससे खाने-पीने की चीजें बहुत ज्यादा महंगी होने का खतरा है। लेक‌िन इस तर्क के आधार पर खेती को घाटे का सौदा भी नहीं बनने द‌िया जा सकता है। यानी हमें क‌िसान के नुकसान की भरपाई के नए तरीके न‌िकालने पड़ेंगे। अकेले एमएसपी न‌िर्धारित करने से यह भरपाई होने वाली नहीं है। 

एमएसपी तय करने के दो तरीकों सी2 और ए2+एफएल के बीच भी व्यापक अंतर है। यह उपज की कीमत में 1,25,000 करोड़ रुपये का अंतर ला सकता है। इतनी बड़ी राशि बचाने का हवाला देकर सरकार कमतर लागत को आधार बना सकती है। लेक‌िन दूसरी तरफ 1,25,000 करोड़ रुपये क‌िसानों की जेब में पहुंचने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ढेरों आर्थिक गतिविधियां और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। यानी सी2 के आधार पर डेढ़ गुना एमएसपी तय करने के चौतरफा फायदे हैं। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। 

(लेखक फूड टेक्नोलॉजी और एग्री बिजनेस के एक्सपर्ट हैं)

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