औद्योगिक पूंजी निवेश बढ़ाने की खातिर मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर तीसरी बार वैश्विक निवेशक सम्मेलन (जीआईएस) के लिए सज रही है। वैश्विक मंदी के दौर में बेजार होते बाजार के बावजूद मध्य प्रदेश पूंजी निवेश के लिहाज से अपने दामन में कई संभावनाएं लपेटे बैठा है। जब भी प्रदेश में चमक-दमक भरे जीआईएस की तैयारियां होती हैं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सूबे के औद्योगिक पिछड़ेपन को लेकर सवाल उठाने लगते हैं। फिजूलखर्ची के आरोप भी लगते हैं। सरकार कांग्रेस पर पलटवार करके प्रदेश के औद्योगिक फलक की 2003 के पहले वाली स्थिति बयां करती आई है। लेकिन अब 13 साल पुरानी भाजपा को अपनी ही सरकार के तीन कार्यकालों में हुए औद्योगिक विकास की तुलनात्मक समीक्षा करने का वक्त आ गया है।
वाइब्रेंट गुजरात की तर्ज पर 2007 से वैश्विक निवेशक सम्मेलन आयोजित करने का सिलसिला भी उन्हीं के कार्यकाल में शुरू हुआ। शुरू के दो सम्मेलनों में 2 से 5 लाख करोड़ तक के पूंजी निवेश के करारनामे हुए लेकिन इनमे से कुछ एक ही जमीन पर उतरे और अधिकांश मामलों में पूंजी निवेश की संभावना ख्वाब बनकर ही रह गई।
कांग्रेस के कार्यकाल के मुकाबले मध्य प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना में तेजी आई है। 1992 से लंबित 12 हजार करोड़ रुपये की बीना रिफायनरी परियोजना न सिर्फ शुरू हो सकी है बल्कि अब सात हजार करोड़ रुपये की लागत से इस कारखाने का विस्तार भी किया जा रहा है। कपड़ा मिलों के मामले में भी मध्य प्रदेश खुशनसीब है। ट्राइडेंट, वर्धमान टेक्सटाइल की दो बड़ी फैक्ट्री मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्र में स्थापित हुई हैं तो आष्टा में एसईएल टेक्सटाइल भी आई है। अनंत और अशोका स्पिनिंग मिल भी स्थापित हुई हैं। इंदौर के विशेष औद्योगिक क्षेत्र में ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटीकल तथा कलर पेंट बनाने के कारखाने शुरू हुए हैं। सीधी में हिंडाल्को ने करीब 12 हजार करोड़ रुपये की लागत से एल्यूमिनियम कारखाना खोला है तो सतना में रिलायंस ने सीमेंट उत्पादन में कदम बढ़ाया है। देवास में जोन डियर्स के ट्रैक्टर का कारखाना खोला गया है तो धार में पवन ऊर्जा के संयंत्र बनने लगे हैं।
प्रदेश के उद्योग मंत्री राजेंद्र शुक्ल कहते हैं कि पहले मध्य प्रदेश की तरफ निवेशक यदा-कदा ही झांकते थे लेकिन अब वह हमारे बुलावे के अलावा भी आ रहे हैं। देश के औद्योगिक नक्शे पर 13 साल पहले निचले पायदानों पर खड़े मध्य प्रदेश का अब शुरुआती 5 राज्यों में शुमार हो चुका है।
उद्योग विभाग के एक अफसर का दावा है कि पिछले 9 वर्षों में गुजरात और मध्य प्रदेश में हुए निवेशक सम्मेलन में जितने पूंजी निवेश के करार हुए हैं उनके जमीन पर उतरने की कामयाबी के आंकड़ों पर गौर करें तो मध्य प्रदेश गुजरात से भी आगे खड़ा है। गुजरात में जहां 8 फीसद करार ही कारखानों में तब्दील हो सके वहीं मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा 16 प्रतिशत का है। एक निजी एजेंसी एमिट ने मध्य प्रदेश को निवेश के हिसाब से सबसे अच्छा राज्य माना है। 'ईजी ऑफ डूइंग बिजनेस’ के मामले में विश्व बैंक और भारत सरकार के औद्योगिक प्रोत्साहन विभाग की रिपोर्ट में मध्य प्रदेश 5वें स्थान पर माना गया है। भोपाल परिक्षेत्र के औद्योगिक विकास केंद्र के मुख्य महाप्रबंधक जगदीश व्यास कहते हैं कि प्रदेश में किसी भी उद्योग को जमीन की कोई कमी नहीं है। अकेले भोपाल से सटे मंडीदीप में 1350 हेक्टेयर इलाके में विकसित औद्योगिक बुनियादी ढांचा मौजूद था। अब भोपाल के आसपास अगले साल मार्च तक 700 हेक्टेयर विकसित क्षेत्र और जुड़ जाएगा और 2018 मार्च तक हमारे पास 1700 हेक्टेयर का विकसित औद्योगिक क्षेत्र और होगा। मध्य प्रदेश में सोशल इन्फ्रास्ट्रख्र की योजना के तहत सरकार जो लाभ देती थी वह अब औद्योगिक इन्फ्रास्ट्रख्र के मामले में भी मिल रहा है।
प्रदेश में उद्योगों को लाने के लिए प्रोत्साहित करने वाला उद्योग विभाग और उसकी एजेंसी ट्राइफेक पलक पांवड़े बिछाकर तैयार बैठी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उद्योगपतियों को लुभाने विदेश दौरों के लिए तत्पर रहते हैं। यह बात और है कि अमेरिका, जापान से मैन्यूफेख्रिंग सेक्टर में कई निवेश नहीं आए जिससे मेक इन एमपी का सपना साकार हो। चीनी उद्यमी उत्सुक तो हैं पर उनकी शर्तें पूरी करना कठिन है। भोपाल में हर सोमवार-मंगलवार को उद्योगपति से मिलने वाले चौहान प्रदेश में उद्योगों के लिए गुजरात और दूसरे विकसित राज्यों की तर्ज पर सिंगल विंडो क्लीयरेंस के दावे भी करते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में उद्योग लाने के इच्छुक निवेशक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित दूसरे विभागों की लालफीताशाही से आजिज आ चुके हैं। उद्योग विभाग तो निवेशकों के निवेश को अपने बच्चे की तरह पालने को तत्पर दिखता है।
मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र में एक और बड़ी समस्या उसकी भौगोलिक स्थिति की है। यह देश का हृदय प्रदेश है। बिलकुल अमेरिका के ओयावो स्टेट की तरह। उसका कोई भी सिरा समुद्र की सीमा से सटा नहीं है। लैंडलॉक स्टेट। लेकिन बीचोबीच होने के कारण वह जिस चीज का सबसे ज्यादा फायदा ले सकता था उसे लेने में चूक हुई है। ओयावो स्टेट ने अपनी माली हालत को विशाल लॉजिस्टीक हब के रूप में विकसित करके संवारा है। लेकिन मध्य प्रदेश में आईटीसी और प्रॉक्टर गैंबल जैसी कंपनियों को छोड़ दें तो उस क्षेत्र में अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। पिछले 2 सालों में इस क्षेत्र में मात्र 244 निवेश हुए हैं। वह भी मात्र 615 करोड़ रुपये के। प्रदेश कांग्रेस युवा अध्यक्ष कुणाल चौधरी कहते हैं कि सारे जीआईएस के दौरान कुल करारनामे 15 लाख करोड़ के थे लेकिन धरातल पर आए मात्र 46 हजार करोड़ के, लेकिन 71 हजार एकड़ जमीन उद्योगों को माले मुफ्त दिले बेरहम की तर्ज पर बांट दी गई। उद्योगपतियों ने इन जमीनों का मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया है और कई ने तो मुफ्त की जमीन को बाजार भाव पर बेच कर मुनाफा कमा लिया है। कांग्रेस के युवा विधायक जीतू पटवारी का कहना है कि किसान आदिवासियों की जमीनों की बंदरबांट हुई है तो सरकार को यह भी सुनिश्चित करना था कि इसका सही प्रयोजन के लिए इस्तेमाल हो रहा है या नहीं। लेकिन प्रदेश के आला अफसरों और नेताओं ने बड़े उद्योग समूहों से सांठगांठ करके प्रदेश की संपदा को लुटाने का काम किया है।
इसके अलावा सवाल यह भी है कि मध्य प्रदेश में निवेशक के नाम पर अंबानी, अडानी, मित्तल और बिड़ला जैसे घरानों को तो बुलाया जाता है लेकिन बीते चार निवेशक सम्मेलनों में देश के कुछ ऐसे घरानों को छोड़ दिया गया है जिन्होंने देश में मैन्यूफैख्रिंग सेक्टर में नाम कमाया है। भारत में 'हॉट केक’ की तरह बिकने वाली बुलेट मोटर साइकिल के कारखाने के लिए सिद्धार्थ लाल को कभी नहीं बुलाया गया। इनोवा कार की निर्माता कंपनी के मालिक विक्रम किर्लोस्कर से सरकार ने कभी आग्रह नहीं किया कि वह मप्र में कार निर्माण संयंत्र लगाएं। बिस्कुट बनाने वाली कंपनी ब्रिटानिया को लाने की कोशिशें क्यों नहीं हुईं? इसके विपरीत हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों को रियो टिंटो ने बड़ा झटका दिया है। उसने बुंदेलखंड के बक्सवाहा इलाके में हीरा खनन के काम से हाथ पीछे खींच लिए हैं। इसके पहले जिन अनिल अंबानी को सरकार सिर पर बिठाती आई है लेकिन उन्होंने भी भोपाल के पास धीरूभाई अंबानी विश्वविद्यालय की परियोजना से हाथ खींच लिए हैं। उलटे वह सरकार से अपने निवेश का हर्जाना मांग रहे हैं। मप्र के ताजा आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक मध्य प्रदेश की जीडीपी में मैन्यूफैख्रिंग सेक्टर की हिस्सेदारी तीस फीसद से घटकर 25 फीसद रह गई है।