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बोल आसान, बम मुश्किल

आतंकवाद का अजगर अगर मुंह फैलाता रहा तो भारतीय सेना उसे कुचलने के लिए आगे बढ़ सकती है। तब चीन भी पाकिस्तान को आधे रास्ते में छोड़ देगा। अमेरिका तो अपने स्वार्थों के बावजूद उसे चेतावनी देता रहता है।
भाभा परमाणु शोध केंद्र

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अपने टी.वी. चैनलों पर घमंड से कह दिया, ‘हां, जरूरत हुई तो हम एटम बम का इस्तेमाल भी करेंगे।’ इस बड़बोलेपन के जवाब में भारत के सुलझे हुए वरिष्ठ राजनयिक और पाकिस्तान के पूर्व भारतीय उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी ने बताया, ‘असलियत यह है कि रक्षा मंत्री रहते हुए ख्वाजा आसिफ को पाकिस्तान का आर्मी चीफ तक सेल्यूट करने नहीं जाता। परमाणु बम का बटन तो बहुत दूर की बात है। उनको ऐसे युद्ध का अंदाज ही नहीं हो सकता।’ निश्चित रूप से पाकिस्तान या भारत में जो लोग परमाणु बम के बल पर युद्ध का उन्माद पैदा करने की कोशिश करते हैं, उन्हें परिणामों से भी ज्यादा ऐसे युद्ध के व्यावहारिक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहलुओं का अहसास नहीं है। टी.वी. मीडिया के पर्दे पर युद्ध की बातें और फिल्मी दृश्यों में बम धमाके दिखाना-देखना आसान हो सकता है, जमीन-आकाश-पानी पर युद्ध की परिणति, संहार के दूरगामी परिणाम हर सुलझे हुए राजनीतिज्ञ, राजनयिक और सेनाधिकारी अच्छी तरह जानते हैं। यही कारण है कि उड़ी पर पाक आतंकवादी हमले पर सेनाधिकारियों ने भी सरकार को संयमित जवाबी कार्रवाई की सलाह दी। इस असलियत की ओर भी ध्यान दिलाया गया कि पिछले वर्षों के दौरान रक्षा बजट में कटौती से सेना-अर्द्ध सैन्य बलों को अत्याधुनिक हथियार पर्याप्त संख्या में नहीं मिल पाए हैं। इस प्रक्रिया को तेज करना होगा। प्रतिपक्ष के कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से पहले पाक आतंकवादी हमले पर त्वरित जवाबी कार्रवाई की टिप्पणियों की भी याद दिलाई। लेकिन नेहरू से मनमोहन सिंह तक और अटल बिहारी वाजपेयी एवं नरेंद्र मोदी तक सत्ता में रहते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के संवेदनशील तंत्र की शक्ति, कमजोरी, अंतरराष्ट्रीय पहलुओं को समझकर भारतीय हितों में त्वरित एवं उचित समय पर कार्रवाई का फैसला करते हैं। सत्ता के मद में एक भी गलत कदम व्यक्ति को ही नहीं, समाज और राष्ट्र के लिए घातक हो सकता है। तानाशाही मानसिकता वाली शिवसेना के नेता जम्मू-कश्मीर में मार्शल लॉ लगाने तक की मांग कर रहे हैं। वे भूल जाते हैं कि पाकिस्तान या उस जैसे देशों के सैनिक शासकों के ‘मार्शल लॉ’ के कितने दुष्परिणाम हुए। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। कश्मीर की जनता गरीबी, बेरोजगारी से निजात के साथ खुशहाली ही चाहती है। बेरोजगार कम शिक्षित युवकों को ही अपराधी और आतंकवादी संगठन धर्म-धन और ड्रग्स के बल पर हिंसा के रास्ते पर ले जाते हैं। वहां मार्शल लॉ लगाकर शिवसेना-भाजपा तो क्या कोई तानाशाह भी कश्मीर को सुरक्षित नहीं रख सकता।

पाकिस्तान का चश्मा परमाणु केंद्र

दूसरा मुद्दा है- नेहरू से अटल-मनमोहन सिंह तक कूटनीतिक तरीके से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने का। मोदी सरकार की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संयुक्त राष्ट्र सभा में जोरदार ढंग से पाकिस्तान को आतंकवादी देश के रूप में प्रमाणित करने वाले तर्क रखेंगी। विदेश सचिव एस. जयशंकर और विभिन्न देशों में तैनात राजनयिक शीर्ष नेताओं को पाकिस्तान पर अंकुश के लिए प्रामाणिक तथ्य रखेंगे। भारतीय सेनाएं इधर सीमा पर घुसपैठ पर निगरानी बढ़ाकर घुसने वाले आतंकवादियों का सफाया करेंगी। जहां तक पाकिस्तान की ताकत और अंदरुनी हालत की बात है, उसे बलूचिस्तान और पख्तून को दबाए रखने के लिए ढाई लाख सैनिक लगाने पड़ रहे हैं। सिंध में भी पाकिस्तानी शासक और सेना के विरुद्ध भयानक नाराजगी है। इसलिए भारत के साथ युद्ध की हिमाकत तो उसे बर्बाद ही कर देगी। पड़ोसी अफगानिस्तान और बांग्लादेश स्वयं पाकिस्तान द्वारा संचालित आतंकवादी संगठनों से त्रस्त हैं। नेपाल-भूटान आई.एस.आई. की गतिविधियों का कतई बर्दाश्त नहीं करते। श्रीलंका ने वर्षों तक आतंकवाद झेला है। कम से कम आतंकवाद विरोधी लड़ाई में वह भारत के साथ है। मालदीव बड़ा मुस्लिम देश होते हुए भारत के साथ संबंधों को तरजीह देता है। ऐसी परिस्थिति में पाकिस्तान इस साल दक्षिण एशिया देशों के संगठन (सार्क) सम्मेलन में किस मुंह से भारत सहित सबका स्वागत करेगा? नवाज शरीफ सेना और आई.एस.आई. की कठपुतली बने रहकर पाक जनता के दिल-दिमाग से दूर होते जाएंगे। जब पाकिस्तान अपने घर में भी जहर की टंकियों से तबाही की ओर बढ़ऩा चाहता है तो भारत को हमले की जरूरत शायद न पड़े। यदि आतंकवादी अजगर मुंह फैलाता रहा, तो अवश्य भारतीय सेना उसे कुचलने के लिए आगे बढ़ सकती है। आतंकवाद के मुद्दे पर चीन भी आधे रास्ते में ही पाक का हाथ छोड़ सकता है। अमेरिका तो अपने स्वार्थों के बावजूद चेतावनी देता रहता है।

इस संदर्भ में महाशक्तियों के खेल का जिक्र भी उचित होगा। नेहरू युग में रहे भारत के सबसे वरिष्ठ राजनयिक महाराज कृष्ण रसगोत्रा ने हाल में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में आजादी के बाद 1947 में पाकिस्तान के साथ हुए पहले युद्ध के संदर्भ में लोगों को एक महत्वपूर्ण तथ्य की याद दिलाई है। श्री रसगोत्रा के अनुसार ‘आजादी के बाद कश्मीर पर हुए युद्ध में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं का नेतृत्व करने वाले दोनों जनरल ब्रिटिश थे। जनरल डगलस ग्रेसी पाक सेना का प्रमुख था और जनरल फ्रांसिस राबर्ट रॉय बुखर भारत सेना का नेतृत्व कर रहा था। लड़ाई के दौरान भी दोनों जनरल एक-दूसरे के निरंतर संपर्क में रहते थे और उस समय उनके बीच लिखित में हुए संपर्क के दस्तावेज भारतीय संग्रहालय में रखे हुए हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों जनरल को लंदन में बैठी ब्रिटिश सरकार ही निर्देश दे रही थी। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रणनीति के तहत कश्मीर के एक हिस्से को पाकिस्तान के पास रहने दिया और नेहरू की इच्छा और निर्देशों तक को किनारे कर दिया। जनरल बुखर ने नेहरू से कह दिया कि पुंछ के उस क्षेत्र को संभालने के लिए पर्याप्त सैन्य बल ही नहीं है। इसी तरह की बहानेबाजी से गिलगिट और बलूचिस्तान का क्षेत्र भी अंग्रेजों ने अलग रख दिया।

आज ब्रिटेन उतना शक्तिशाली नहीं है। लेकिन अमेरिका और चीन इस समय भी भारत-पाकिस्तान के बीच अपने हितों के आधार पर कूटनीतिक एवं सुरक्षा रणनीति बनाने-बिगाड़ने में सक्रिय रहते हैं। अमेरिका ने नरसिंह राव के प्रधानमंत्री काल में भारत का परमाणु परीक्षण तक रुकवा दिया था। अटलजी ने समय की अति गोपनीयता रखकर परीक्षण कर लिया। कुछ साल अमेरिका ने उलटे-सीधे प्रतिबंधात्मक कदम उठाए। लेकिन पाकिस्तान को लगातार मदद की। चीन ने तो परमाणु बम बनाने की तकनीक ही पाकिस्तान को भेंट में दी। इसलिए इन दोनों आकाओं के रहते पाकिस्तान ‘बम’ को गेंद समझ कैसे फेंक सकेगा?

 

जंग के बगैर करें फौजी कार्रवाई

जिन जगहों से आतंकवादी आते हैं उन्हें वहीं जाकर रोकना होगा। हमें जड़ों पर कुठाराघात करना होगा

पूर्व मेजर जनरल अशोक मेहता

उड़ी हमले के बाद उच्चस्तरीय बैठक करते राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी, अरुण जेटली, मनोहर पर्रिकर, अजीत डोवाल और दलबीर सिंह सुहाग

हम कितनी भी कोशिश कर लें- कूटनीतिक औजार कभी पाकिस्तान के साथ काम नहीं आते। अरसे से भारत का यही अनुभव रहा है। हमारे सामने हमेशा यही स्थिति बन जाती है कि बदनाम देश को हम और कितना बदनाम करें?

घुसपैठ रोकने के पुख्ता उपाय हम अभी तक नहीं कर पाए यह हमारी विफलता है। हमारे बड़े देश की महान फौज इस मसले का हल नहीं ढूंढ़ पाई। हम चोट खाए जा रहे हैं। हम नहीं चेत रहे हैं। इसके लिए मैं देश के नेतृत्व को ज्यादातर दोषी पाता हूं। आर्मी और एयरफोर्स के कमांडर दोषी हैं जो पुख्ता योजना नहीं बना पा रहे हैं।

देश और नागरिकों की रक्षा करने की जिम्मेदारी सरकार पर है। मुख्य तौर पर यह जिम्मेदारी सरकार में बैठे जिन लोगों को उठानी चाहिए, वे सत्ता में आते ही चुनाव के समय किए हर वादे भूल जाते हैं। विदेश नीति हो या रक्षा के मामले- चुनाव में गर्मागर्म बातें की जाती हैं और फिर चुनाव के बाद वही ढाक के तीन पात। बाद में उड़ी या पठानकोट जैसा कांड हो जाने के बाद प्रधानमंत्री कहते हैं कि दोषियों को बगैर दंडित किए नहीं छोड़ेंगे।

सवाल उठता है कि दोषियों को सजा देने का रास्ता क्या हो? एक बदनाम देश को हम राजनयिक स्तर पर आखिर और कितना बदनाम कर सकते हैं। आप हर समस्या का हल कूटनीतिक तौर पर नहीं निकाल सकते। जरूरत इस बात की है कि जब वे हम पर आघात करें तो चोट उन्हें भी लगनी चाहिए। उनका भी खून बहना चाहिए। इसके लिए क्या लड़ाई ही एकमात्र रास्ता है? मेरा मानना है कि नहीं, लड़ाई ही एकमात्र रास्ता नहीं है। लड़ाई जरूरी नहीं है।

रास्ते की तलाश तो हमें संसद पर हमला, मुंबई हमला, पठानकोट हमला के समय ही करना चाहिए था। बातचीत के लिए हम अगले किसी आतंकी हमले का इंतजार क्यों करते हैं? उपाय सरकार को ढूंढऩा है कि किस प्रकार जंग के बगैर हम उन्हें जवाब दें। इसके लिए काबिलियत होनी चाहिए- राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए।

क्या यह कोवर्ट ऑपरेशंस (खुफिया कार्रवाई) का रास्ता हो सकता है? मेरा मानना है कि रास्ता कोवर्ट (खुफिया) तो हो ही, ओवर्ट (सामने आकर) भी हो। हम रक्षात्मक कार्रवाई करते रहते हैं। हमें लड़ाई किए बगैर लाइन ऑफ कंट्रोल पार करनी चाहिए। मैं आर-पार की कार्रवाई की बात हर्गिज नहीं कर रहा। लेकिन मैं यह जरूर कहूंगा कि फौजी कार्रवाई होनी चाहिए। पाकिस्तान की सीमा पर हमने कभी इस तरह की कोशिश नहीं की।

यह सही है कि भारत और पाकिस्तान- दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। लेकिन वे जिस तरह की हरकतें कर रहे हैं, उसका जवाब देना भी जरूरी है। वह देश परमाणु बम फोड़ देगा- इस डर से हम रक्षात्मक कार्रवाई ही करते रहें- यह कहां तक उचित है? हमें ‘परमाणु डर’ की ‘रेड लाइन’ के नीचे जाकर कार्रवाई करनी होगी।

पड़ोसी देश जिन जगहों से आतंकियों को भेजता है- उन्हें वहीं जाकर रोकना होगा, खत्म करना होगा। मैं कुछ दिनों पहले इस्राइल से लौटा हूं। वे लोग जिस तरह से कार्रवाई करते हैं- उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। ‘अटैक एट सोर्स’ (जड़ पर कुठाराघात) ही रास्ता हो सकता है। हमें सक्रिय रक्षापंक्ति तैयार करनी होगी। हमलावर रुख अख्तियार करना होगा। हमारे जवानों को हमलावर होना होगा- तभी बात बनेगी। अगर देश में फिदाइन आ रहे हैं तो जाहिर है कहीं न कहीं गड़बड़ है। तकनीक और रणनीति के साथ हमें चाक-चौबंद व्यवस्था करनी होगी- तभी बात बनेगी।

(दीपक रस्तोगी के साथ बातचीत पर आधारित)

 

 

आवरण कथा

पाक की अशांति का लाभ उठाएं

सिर्फ राजनयिक रास्ते से कुछ नहीं होगा, हमें पाक समर्थित आतंकवाद के खिलाफ वैकल्पिक रास्ते अपनाने चाहिए

जी. पार्थसारथी

उड़ी में आतंकी हमले के बाद का दृश्य

उड़ी के जवाब में भारत के पास कई प्रभावी और नपे-तुले जवाब हैं। भारत के पास अब पलटवार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। इससे हिंसा बढ़ने की आशंका तेज होगी, लेकिन अब कड़े कदम उठाने जरूरी हो गए हैं। लेकिन हम क्या कदम उठा सकते हैं और कितनी शिद्दत से- यह बड़ा सवाल है।

राजनयिक स्तर पर पाकिस्तान को लेकर हम बढ़त में हैं। सार्क में पाकिस्तान अलग-थलग पड़ा हुआ है। इस समूह के तीन देशों ने पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन करने वाला देश ठहराया है। अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भारत ने साफतौर पर कहा है कि इस्लामाबाद से आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके चलते आईएसआई जैसे कट्टर संगठन ने अपने पांव फैलाने शुरू कर दिए हैं। पाकिस्तान के साथ इन देशों के संबंधों पर भी असर पड़ रहा है। लेकिन पाकिस्तान के नेतृत्व में शामिल लोग आंखें मूंदे हुए हैं।

आतंकी हमले हो रहे हैं। इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि पाकिस्तान के साथ संबंध अच्छे हैं या बिगड़े हुए। वहां से आतंकवाद को बढ़ावा मिलना जारी है। सीमा पर बाड़बंदी का कोई असर नहीं हो रहा है। वे गड्ढा खोदकर चले आते हैं। हमने मल्टीलेयर फेंसिंग की है, बाड़ के आस-पास माइंस बिछाए हैं लेकिन आतंकवादी गतिविधियों से जाहिर है कि कोई असर नहीं पड़ रहा। हमें बाड़ के आसपास नजरदारी बढ़ानी होगी। मुझे याद है हमने जम्मू में जब फेंसिंग की थी तब पाकिस्तानी घबरा गए थे। तब हमने कड़ी निगरानी भी शुरू की थी लेकिन पाकिस्तान की पूरी सीमा पर चौकसी में कहीं न कहीं छेद हो ही सकता है। ऐसे में हमें अन्य वैकल्पिक रास्ते भी चिह्नित करने होंगे।

पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। पाकिस्तान में उच्चायुक्त के मेरे कार्यकाल के अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि भारत को कोई न कोई रास्ता अख्तियार करना चाहिए। हमारे पास ढेरों विकल्प हैं। सरकार राजनयिक स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने में जुटी है। साथ में हम द्विपक्षीय संबंधों के मामले में भी कुछ कर सकते हैं। भारत ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान को लेकर जो लाइन ली है, उससे हमारी रणनीति को लेकर दुनिया भर में कड़ा और सटीक संदेश गया है।

बतौर राजनयिक अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि पाकिस्तान अपने परमाणु क्षमता संपन्न राष्ट्र के दर्जे का इस्तेमाल भारत के साथ स्नायु युद्ध लडऩे में कर रहा है। पाकिस्तान की रणनीति यह है कि बार-बार परमाणु बम चलाने की बात उठाकर दबाव में रखो कि जान-माल के नुकसान की परवाह नहीं। लेकिन पाकिस्तानी भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि यह आत्महत्या है। इसलिए वह भले ही अपने परमाणु बम का ढोल पीटें, वे करेंगे कुछ नहीं। यहां मैं एक पाकिस्तानी सेनाधिकारी जनरल किदवई की चर्चा करना चाहूंगा। वे कई साल तक वहां न्यूक्लियर फोर्सेज के कमांडर रहे। वह हमेशा कहते रहे कि परमाणु बम होने के चलते हम सारे खतरे में हैं। जिन शक्तियों के पास बम है, वह भी उतने ही खतरे में हैं, जिनके खिलाफ परमाणु बम का वह इस्तेमाल करना चाहते हैं।

मेरा मानना है कि हमें इससे घबराना नहीं चाहिए। पाकिस्तान हमारे साथ छद्म युद्ध लड़ने की कोशिश करता है। स्नायु युद्ध (साइकोलॉजिकल वारफेयर) का रास्ता अपना रहा है, लेकिन हमें कार्रवाई करने के वैकल्पिक रास्ते तैयार करने चाहिए। रास्ते हमारे पास हैं, लेकिन हममें कुछ करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है। सिर्फ राजनयिक रास्ते से कुछ नहीं होने को है। हमें पाकिस्तान पर दबाव बनाना होगा। उनके देश के भीतर से दबाव बनाना होगा। उनकी सीमा पर दबाव बनाना होगा। पाकिस्तान में आज पख्तून, बलोच, मुहाजिर नाखुश हैं। हमें पाकिस्तान की इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए। अगर हमारे देश के राजनीतिज्ञ- सत्ता में काबिज लोग इन हालात का लाभ नहीं उठा सकते तो मैं उनसे यही कहूंगा कि जाकर मंदिर में बसिए।

(वरिष्ठ राजनयिक पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त)

(दीपक रस्तोगी के साथ बातचीत पर आधारित)

 

 

 

 

परमाणु युद्धोन्माद बनाम राजनयिक दांव-पेच

दीपक रस्तोगी

पाकिस्तान का जोर स्नायु युद्ध पर और भारत का ध्यान अंतरराष्ट्रीय एटमी क्लबों की लॉबिंग पर

भारत की ब्रह्मोस मिसाइल 

तीन महीने पहले अमेरिका, इंग्लैंड और रूस की खुफिया एजेंसियों के हवाले से पाकिस्तान के बढ़ते परमाणु जखीरे के बारे में खबरें आईं कि किस प्रकार यह देश इस मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। परमाणु जखीरे के मामले में अमेरिका और रूस के बाद अब पाकिस्तान का नंबर आ गया है। अमेरिका से हाल में जारी न्यूक्लियर नोटबुक बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट की रिपोर्ट है कि 2025 तक पाकिस्तान के पास करीब 350 परमाणु हथियार हो जाएंगे। अभी पाकिस्तान के पास 120 और भारत के पास लगभग 100 हैं। यह सवाल अकसर उठता रहा है कि क्या दोनों देश अब परमाणु हमले के साये में आ गए हैं? जखीरे की इस होड़ के बावजूद जानकार मानकर चल रहे हैं पाकिस्तान अपने परमाणु युद्धोन्माद का इस्तेमाल सिर्फ स्नायु युद्ध के लिए करता रहेगा। जहां तक भारत का सवाल है, वह एटमी क्लब में अंतरराष्ट्रीय संधियों के लिए लॉबिंग में जुटा है।

जिस देश को भारत के बाद अब अमेरिका भी ‘आतंकी राष्ट्र’ घोषित करने की तैयारी कर रहा है उस देश के कहूटा में अत्याधुनिक परमाणु संयंत्र तैयार किया जा रहा है। इस संयंत्र का नाम खान रिसर्च लैब रखा गया है। इस संयंत्र के बारे में पाकिस्तान के कुख्यात परमाणु वैज्ञानिक और धातु विज्ञानी ए. क्यू. खान ने पिछले हफ्ते बयान दिया कि कहूटा से हम दिल्ली पर पांच मिनट में परमाणु हमला कर सकते हैं।

परमाणु हमले की गीदड़-भभकी हमेशा से पाकिस्तान देता रहा है। यह उसकी ओर से छेड़े गए स्नायु युद्ध (साइकोलॉजिकल वारफेयर) का हिस्सा है। पठानकोट, फिर उड़ी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं। तनाव के माहौल में संयमित रहकर भारत ने स्नायु युद्ध की पाकिस्तान की पैंतरेबाजी को अनदेखा करना शुरू किया है। भारत की कोई टिप्पणी नहीं आई है। पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी कहते हैं, ‘पाकिस्तान के इस जाल में संयमित भारत नहीं फंसता है। भारत सरकार अपने तरीके से जवाब देती रही है।’ उड़ी में आतंकी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित कराने में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रियता रंग लाने लगी है।

दूसरी ओर, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की सक्रियता के नतीजे अब दिखने लगे हैं। के-4 मिसाइल परीक्षण के दूरगामी नतीजे माने जा रहे हैं। हाल में भारत ने के-4 मिसाइलों का जो परीक्षण किया है, क्या उसे संयमित कार्रवाई माना जाए? भारत ने परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम के-4 मिसाइल को बंगाल की खाड़ी में अरिहंत पनडुब्बी से लॉंच कर सफल परीक्षण किया। देश में ही विकसित किए गए के-4 की रेंज 3,500 किलोमीटर है। साथ ही यह दो हजार किलोग्राम गोला-बारूद अपने साथ ले जाने में सक्षम है। इस मिसाइल की कामयाब लॉन्चिंग के बाद भारत अब अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के क्लब में शामिल हो गया है। के-4 बैलेस्टिक मिसाइल को पानी के भीतर 20 फुट नीचे से भी दागा जा सकता है। डीआरडीओ के सीरीज की तीन और मिसाइलों को विकसित करने पर काम कर रहा है। अगले कुछ साल में सेना और एयरफोर्स को भी के-4 मिसाइलें मिल जाएंगी।

अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से के-4 के परीक्षण को पिछले दिनों गुप्त रूप से किया गया और रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। के-4 मिसाइल, ब्रह्मोस, अग्नि सीरीज भारतीय फौज के जखीरे में परमाणु सक्षम मिसाइलें हैं। पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश कहते हैं, ‘अरिहंत को 5000 किलोमीटर से ज्यादा रेंज की इंटर बैलेस्टिक मिसाइल से लैस करने की जरूरत है।’ पिछले दिनों ही भारत ने किसी भी बैलेस्टिक मिसाइल हमले को बीच में ही नाकाम करने में सक्षम ‘इंटरसेप्टर मिसाइल’ का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया था।

भारत ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ एटमी करार कर रखा है और अब न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में शामिल होने की लॉबिंग में जुटा है। इससे यूरेनियम हासिल करने के नए रास्ते खुलेंगे। घोषित तौर पर भारत सरकार परमाणु ईंधन का इस्तेमाल बिजली बनाने की परियोजनाओं में कर रही है। हालांकि अमेरिकी और रूसी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि भारत ने अपने देश के यूरेनियम भंडार का 80 हजार टन सैन्य इस्तेमाल के लिए रखा हुआ है। दोनों देशों की परमाणु क्षमता के बारे में इस छोटे से ब्यौरे से एक सवाल उठता है। वह है न्यूक्लियर वारहेड तैयार कर लेना और उसे डेटोनेशन लायक बना देने का सवाल। सैन्य भाषा में इसे ‘न्यूक्लियर वीपन्स डेलीवरी (एनडब्ल्यूडी)’ कहते हैं। भले ही पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा न्यूक्लियर वारहेड हैं, लेकिन हमारे पास उन्हें दागने और संरक्षित करने की अधिक उन्नत तकनीक और सुविधाएं हैं। ‘परमाणु त्रय’ (न्यूक्लियर ट्रॉयड) की सुविधा (थल, जल और वायु में परमाणु कार्रवाई की क्षमता) भारत ने बमवर्षक जेट्स, इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल्स (आईसीबीएम) और बैलिस्टिक मिसाइल से लैस पनडुब्बियां विकसित कर हासिल कर ली हैं।

भारतीय वायुसेना के पास उपलब्ध मिराज 2000एच, सुखोई-30, मिग 29 और जगुआर्स को न्यूक्लियर वारहेड से लैस किया जा सकता है। इस मामले में भारत की क्षमता पाकिस्तान से दोगुनी है। पाकिस्तान के पास सिंगल इंजन वाले जेएफ-17 थंडर और अमेरिकी एफ-16 सिरीज के 50 विमान हैं। पाकिस्तान ने खुफिया तरीके से चीन और उत्तर कोरिया से मध्यम दूरी के बैलिस्टिक मिसाइल की तकनीक हासिल की है। शाहीन (2500 किमी) और नस्र (60 किमी) मिसाइल भारत को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं। दूसरी ओर, भारत के अग्नि- दो और अग्नि-तीन की क्षमता पांच हजार किलोमीटर की है। अग्नि- पांच सीरीज के मिसाइलों की क्षमता आठ हजार किलोमीटर की है।

नौसैनिक मोर्चे पर भारत के आईएनएस अरिहंत (के-4 और के-15 से लैस, 3500 किमी रेंज) और विकसित किए जा रहे आईएनएस अरिदमन की क्षमता को अमेरिका, चीन और रूस से तुलना लायक माना जा रहा है। पाकिस्तानी नौसेना को अभी परमाणु क्षमता संपन्न पनडुब्बियों का इंतजार है।

वैश्विक स्तर पर भारत ने ‘नो फर्स्ट यूज’ (एनएफयू) की नीति अख्तियार कर रखी है। पाकिस्तान इस तरह की नीति पर राजी नहीं है। लेकिन हिंद महासागर में जिस तरह भारत की परमाणु ताकत बढ़ रही है, उसके मद्देनजर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हिंद महासागर को ‘न्यूक्लियर फ्री जोन’ घोषित करने की मांग उठानी शुरू कर दी है।

जाहिर है, परमाणु क्षमता संपन्न देश भारत और पाकिस्तान अपनी इस उपलब्धि का इस्तेमाल राजनयिक रूप से एक-दूसरे को दबाव में रखने के लिए कर रहे हैं। अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड जैसे देश रेफरी की भूमिका में दिख रहे हैं।

 

विश्वमंच पर पाक का पर्दाफाश करना होगा

सी उदय भाष्कर

लाइन ऑफ कंट्रोल से करीब 20 किलोमीटर भीतर उड़ी के सैन्य मुख्यालय में आतंकी हमला एक बहुत बड़ी ऑपरेशन भूल है। चार हथियार बंद आतंकियों ने सेना के चाक चौबंद मुख्यालय में 17 जवानों को मार डाला। यह हमारी सैन्य रणनीति की खामियों की ओर साफ इशारा करता है। तर्क दिया जा सकता है कि उड़ी ऊंचे पहाड़ों, जंगल और दरिया के बीच बसा है। इस वजह से वहां घुसपैठियों पर नजर रखनी मुश्किल है लेकिन आतंकियों की घुसपैठ पर गहनता से कोई नई रणनीति तो बनाई जा सकती है।

पाकिस्तान 1990 से प्रॉक्सी वार के तहत समय-समय पर एलआईसी मतलब लो इंटेसिटी कन्फलिक्ट के जरिये क्षेत्र में आतंकी हमलों को अंजाम देता आया है। ऐसे हमलों के बीच भारत लगातार अपनी पुरानी रक्षात्मक रणनीति के भरोसे बैठा है। पठानकोट और पुंछ के बाद हालिया उड़ी की इस नापाक करतूत के बाद पीएम मोदी दोषियों को कड़ी सजा देने का आश्वासन दे रहे हैं। गृह मंत्री राजनाथ सिंह पाकिस्तान को आतंकी देश बताकर उसे विश्व बिरादरी से अलग-थलग करने की बात कह रहे हैं। यह उचित है लेकिन हमें क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान को पड़ोसी देश चीन से मिलने वाली सैन्य सहायता पर भी विचार करना चाहिए।

पाक सेना के मुख्यालय रावलपिंडी को चीन का भरपूर साथ मिल रहा है। अमेरिका भी पाक को सैन्य सहायता देने में कोई गुरेज नहीं करता है। हमें विश्व मंच पर अमेरिका और चीन के सामने पाक की आतंकी हरकतों का पर्दाफाश करने की रणनीति अपनानी चाहिए। पाकिस्तान के कश्मीर विलाप की सच्चाई सामने रखनी चाहिए।

पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बाद हिंसा जारी है। इस पर पाकिस्तान लगातार प्रतिक्रिया देते आया है। पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद भारत-विरोधी गतिविधियों की घोषणा करते रहता है। इन सबके बाद भी हम आतंकियों की घुसपैठ पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। पाक को बलूचिस्तान की आजादी के मसले ने भी बेचैन कर दिया है। उड़ी आतंकी हमले से एक बार फिर पाकिस्तान के नापाक इरादे जाहिर हुए हैं। हमलावरों की पहचान जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती दस्ते के रूप में हुई है।

उड़ी सेक्टर और पुंछ में नियंत्रण रेखा पर हमेशा तनाव का माहौल बना रहता है, इसलिए उम्मीद की जाती है कि वहां ज्यादा चौकसी बरती जाएगी। पर सवाल है कि चार आतंकी ग्रेनेड से हमले करने में कामयाब कैसे हो गए। इस हमले के बाद उचित ही सेना और सुरक्षा को लेकर व्यावहारिक नीति बनाने की बात उठने लगी है। ताजा हमले की प्रकृति को देखते हुए अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि पाकिस्तानी सेना की मदद के बिना यह संभव नहीं था। भारत सरकार ने इस हमले को गंभीरता से लेते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने का संकल्प दोहराया है। मगर पाकिस्तान पर इसका कोई असर नजर नहीं आ रहा।

पिछले दिनों पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत को धमकाया कि अगर वह किसी सैनिक कार्रवाई का प्रयास करेगा तो उसे हमारे परमाणु हथियारों का कहर झेलने को तैयार रहना चाहिए। नापाक मंसूबों, अंतरराष्ट्रीय दबावों और सैनिक मुस्तैदी के बावजूद अगर पाकिस्तान पर कोई असर नहीं दिख रहा, वह अपने यहां संरक्षण पाए आतंकवादी संगठनों पर नकेल कसने को तैयार नहीं दिख रहा, वह भारत के खिलाफ उनका इस्तेमाल कर रहा है, तो भारत को इससे निपटने के लिए किसी कारगर तरीके पर अब विचार करने की जरूरत है।

(लेखक रक्षा विशेषज्ञ हैं।)

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