अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और गुजरात में चल रहा पाटीदार अनामत आंदोलन एक बार फिर भाजपा का खेल बिगाड़ने के लिए कमर कस रहा है। पाटीदार आरक्षण आंदोलन के युवा नेता हार्दिक पटेल इस बार फिर नए साथियों को लेकर और किसानों की समस्याओं को जोड़कर आरक्षण आंदोलन को तेज करने की कोशिश कर रहे हैं। गुजरात सरकार ने भी अगले चुनाव के पहले राज्य में वोटिंग में निर्णायक माने जाने वाले पाटीदार समाज और अन्य उच्च वर्ग को खुश करने के लिए शिक्षा में सस्ते लोन सहित कई आर्थिक सहायता योजना का ऐलान किया है। उल्लेखनीय है कि हार्दिक के आरक्षण आंदोलन और पाटीदार समाज की नाराजगी के चलते 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ 99 सीटें मिली थीं। भाजपा को डर है कि कहीं लोकसभा चुनाव में पाटीदार आरक्षण का मुद्दा उसका खेल न बिगाड़ दे।
उधर, हार्दिक पटेल ने आरक्षण की मांग को लेकर 25 अगस्त से अहमदाबाद में उपवास आंदोलन की घोषणा की थी, लेकिन आउटलुक के प्रिंट में जाने तक राज्य की भाजपा सरकार ने इसकी मंजूरी नहीं दी थी। हार्दिक ने गांधीनगर की सत्याग्रह छावनी में अनशन की इजाजत मांगी, लेकिन प्रशासन की तरफ से यहां भी मना कर दिया गया। इस तमाम घटनाक्रम के बीच कांग्रेस सीधे हार्दिक पटेल के समर्थन में उतर आई और उसके 20 विधायकों ने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से मिलने का समय मांगा, लेकिन मुख्यमंत्री उनसे नहीं मिले। फिर सभी विधायक उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल से मिले और हार्दिक को अनशन के लिए इजाजत देने की मांग की।
इस पूरे प्रकरण से पाटीदार आंदोलन गुजरात में फिर से ज्वालामुखी का रुख लेने को तैयार है। हार्दिक पटेल का कहना है कि सरकार से इजाजत नहीं मिलने की स्थिति में वे अपने घर पर ही अनशन करेंगे और पाटीदारों की मांग के लिए आवाज उठाएंगे। पाटीदार के आरक्षण के मुद्दे पर आउटलुक ने हार्दिक से उनका पक्ष जानने के लिए आखिरी वक्त तक प्रयास किया, लेकिन कभी उन्हें हिरासत में लिए जाने की खबरें आईं, तो कभी राज्य सरकार से अनशन के लिए जगह की इजाजत को लेकर तनातनी के बीच उनसे बात नहीं हो पाई।
दरअसल, गुजरात की कुल छह करोड़ आबादी में पाटीदार लगभग सवा करोड़ हैं। इसलिए राज्य में वह मजबूत स्थिति में हैं। पाटीदार समाज के लोग पिछले 15 वर्षों से राज्य में ताकत कम होने से परेशानी महसूस कर रहे थे, क्योंकि 1995 में गुजरात में पहली बार भाजपा की सरकार बनी, तब पाटीदार नेता केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन कुछ वजह से पार्टी ने उन्हें हटाकर 2001 में नरेंद्र मोदी को राज्य की कमान सौंप दी। इसके बाद मोदी के शासन में पाटीदारों का वर्चस्व घटता चला गया। 2014 में मोदी जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने आनंदी बेन पटेल को गुजरात की पहली महिला पाटीदार मुख्यमंत्री बनाया। पाटीदारों ने आनंदी बेन के सामने अपना वर्चस्व बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन आनंदी बेन मोदी के रास्ते चलती थीं, जिससे पाटीदार अपना वर्चस्व बढ़ाने में नाकाम रहे। समृद्ध पाटीदार समाज भाजपा के शासन में खुद को कमजोर महसूस करने लगा।
गुजरात में पाटीदार सामाजिक, आर्थिक और राज्य स्तरों पर काफी मजबूत थे, लेकिन समय के साथ उनकी स्थिति कमजोर होने लगी। पहले पाटीदार समाज जमींदार गिने जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे परिवार बढ़ने से जमीन के टुकड़े होने लगे। नतीजतन, पाटीदारों के बच्चों को शिक्षा और नौकरी में संघर्ष करना पड़ रहा है। आरक्षण के कारण अन्य वर्ग के युवा आगे निकल रहे हैं और उनके बच्चों को योग्य होने पर भी नौकरी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इस कारण 2015 में गुजरात के पाटीदारों ने आरक्षण की मांग को लेकर बैठक की। इस बैठक में पाटीदार युवा नेता हार्दिक पटेल और सरदार पटेल ग्रुप के लालजी पटेल ने मांग को गंभीरता से लिया। इसके बाद हार्दिक पटेल ने विसनगर में पाटीदार आरक्षण की मांग को लेकर पहली रैली की और इस रैली को अपेक्षा से ज्यादा सफलता मिलने से हार्दिक की हिम्मत बढ़ गई। वह मजबूती से आरक्षण की मांग करने लगे। हार्दिक पटेल अहमदाबाद के पास विरमगाम के रहने वाले हैं और सरदार पटेल ग्रुप यानी एसपीजी के सोशल मीडिया का संचालन कर रहे थे। लेकिन अब उनके हाथ में पाटीदार आरक्षण का मुद्दा आ गया और उन्होंने एसपीजी से अलग होकर पाटीदार अनामत आंदोलन समिति बनाई। इसके बाद 25 अगस्त 2016 को अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में पाटीदार अनामत आंदोलन को लेकर विशाल सम्मेलन बुलाया गया और इसको बड़ी सफलता मिलने से 20 साल के हार्दिक पटेल नायक बन गए।
गुजरात में राज्य स्तर पर विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 80 से ज्यादा सीटों पर पाटीदार का प्रभुत्व है। इसलिए पाटीदार के वोट यहां निर्णायक माने जाते हैं। हार्दिक पटेल ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए परोक्ष रूप से कांग्रेस की मदद की। उन्होंने पाटीदार इलाकों में सभा और रैलियां करके कांग्रेस को सपोर्ट करने का प्रयास किया था। हार्दिक की इस कोशिश से उनके साथी नाराज भी हो गए और कुछ भाजपा से जुड़ गए। लेकिन हार्दिक ने मौन रहकर भाजपा को हराने के लिए मेहनत की, जिससे 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 99 सीटें ही मिल पाईं।
नितिन पटेल को मुख्यमंत्री नहीं बनाने से भी भाजपा को समर्थन देने वाले पाटीदार नाराज बताए जाते हैं। उनकी जगह गैर-पाटीदार विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया है। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन के इस्तीफा के बाद मेहसाणा के विधायक और मंत्री नितिन पटेल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा का समर्थन करने वाले पाटीदारों ने सरकार और संगठन पर बहुत दबाव बनाया था। लेकिन आखिरी पल में सौराष्ट्र के विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया। इससे पाटीदार समाज में नाराजगी बढ़ गई है। ऐसे में वे भीतरखाने से हार्दिक पटेल की मदद कर रहे हैं।
हालांकि, पिछले तीन साल में पाटीदारों को रिझाने के लिए भाजपा ने कई कोशिश की। इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने मुख्यमंत्री युवा स्वावलंबन योजना की शुरुआत भी की थी। फिर मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कुछ समय पहले सवर्ण आयोग बनाया। गैर-आरक्षण वाले वर्ग के छात्रों और लोगों को अपना कारोबार शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता देने की घोषणा भी की। लेकिन शायद ये घोषणाएं नाकाफी हैं।
ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा
संसद के मॉनसून सत्र में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाला 123वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा से पास हुआ। यह राज्यसभा से कुछ संशोधनों के साथ पारित हुआ था। लेकिन लोकसभा में इन्हें बदल दिया गया। संवैधानिक दर्जे वाले राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में महिला सदस्य को भी शामिल किया गया है। यह आयोग केंद्रीय सूची से संबंधित फैसले लेगा और इसमें केंद्र और राज्यों की सूचियां अलग-अलग हैं। केंद्रीय सूची के विषय राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं होंगे।
पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन 1993 में हुआ था और यह सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ी जातियों को पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल करने या पहले से शामिल जातियों को सूची से बाहर करने का काम करता था। संवैधानिक दर्जा मिलने से अनुच्छेद 342 (क) के तहत प्रस्तावित आयोग को सिविल कोर्ट के समान अधिकार मिल सकेंगे।
(दिव्य भास्कर डॉट कॉम के विशेष सहयोग से)